महाराणा राजसिंह || राजस्थान इतिहास
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महाराणा राजसिंह प्रथम (1652-1680 ई.)
महाराणा राजसिंह प्रथम (1652-1680 ई.) और मुगल
•अपने पिता जगतसिंह की मृत्यु के बाद 10 अक्टूबर, 1652 को राजसिंह मेवाड़ का शासक बना।
* *मुगल बादशाह शाहजहाँ ने गद्दीनशीनी के समय उसके लिए राणा का खिताब, पाँच हजार जात और पाँच हजार सवारों का मनसब देकर जड़ाऊ जमधर हाथी, घोड़ा आदि भेजे।
महाराणा राजसिंह व शाहजहां
* 1615 में हुई मेवाड़ मुगल संधि में यह शर्त थी कि चितौड़ दुर्ग की मरम्मत नहीं की जायेगी लेकिन शर्त तोडकर जगत सिंह ने मरम्मत प्रारम्भ करवा दी। राणा बनते ही इस कार्य को राजसिंह ने शीघ्रता से किया व चितौड़ दुर्ग की मरम्मत को पूर्ण करवा दी।
* जब शाहजहां को यह ज्ञात हुआ, तो शाहजहां ने सादुल्लाखां के नेतृत्व में तीस हजार सैनिक भेजे। महाराणा ने इस समय लड़ाई करना उचित नहीं समझा ओर चितौड़ से अपने सैनिक हटा लिये। सादुल्लाखां ने जितना निर्माण जगत सिंह व राजसिंह ने करवाया उसे वापस तोड़ दिया।
* सितम्बर, 1657 ई. में जब शाहजहाँ के बीमार होने पर बादशाह के पुत्रों में राजसिंहासन प्राप्त करने की होड़ लग गयी तो औरंगजेब ने महाराणा राजसिंह को पत्र लिखने आरम्भ किये जिनके द्वारा उसने उसको दक्षिण में अपनी सैनिक सहायता भेजने की प्रार्थना की गई थी।
* किंतु राणा ने इस अव्यवस्था का लाभ उठाने का निश्चय किया। ऐसे समय में 'टीका दौड़' के उत्सव का बहाना बनाकर राणा ने 2 मई, 1658 ई. में अपने राज्य के तथा बाहरी मुगल थानों पर हमले करना आरम्भ कर दिया। उत्तराधिकार युद्ध के समय राजसिंह लगभग तटस्थ रहा, इसका उसे लाभ भी मिला।
* औरंगजेब ने भी शासक बनते ही राणा के पद को बढ़ाकर 6 हजार 'जात' और 6 हजार 'सवार' कर दिया और ग्यासपुरा, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा के परगने उसके अधिकार क्षेत्र में कर दिये।
* चारूमती विवाद: -
- 1658 में किशनगढ़ के शासक रूप सिंह की मृत्यु के बाद मानसिंह शासक बना, मानसिंह की बहन चारूमती से औरंगजेब विवाह करना चाहता था।
* चारूमती औरंगजेब से विवाह नहीं करना चाहती थी। चारुमती ने राजसिंह को पत्र लिखा कहा "हंसिनी बगुलों के साथ नहीं रह सकती, मैं औरंगजेब से विवाह नहीं करना चाहती अतः आप मेरे धर्म की रक्षा करें व मुझसे विवाह करे" इस प्रार्थना पर राजसिंह ने चारूमति से विवाह कर लिया।
* जब औरंगजेब को देवलिये के रावत हरिसिंह के माध्यम से इस बात का पता चला की राजसिंह ने चारुमती से विवाह कर लिया। तब औरगजेब ने गयासपुर व बसावर को उदयपुर से अलग करके हरिसिंह को दे दिये। इस घटना के कारण औरंगजेब व राजसिंह के मध्य विरोध का बीजारोपण हो गया।
- औरंगजेब ने 2 अप्रैल, 1679 ई. में हिंदुओं पर जजिया कर लगाया तब राजसिंह ने हिंदू राष्ट्र के अध्यक्ष की हैसियत से इसका विरोध किया।
* जोधपुर के शासक जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद जब औरंगजेब ने जसवंत सिंह के पुत्र अजित सिंह को जोधपुर का शासक स्वीकार नहीं किया, तो जसवंत सिंह के वफादार सेनानायक दुर्गादास ने अजित सिंह का साथ दिया, और औरंगजेब के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। इस अवसर पर राजसिंह ने औरंगजेब के विद्रोही मारवाड़ के अजीतसिंह व दुर्गादास राठौड़ को शरण दी थी।
- राजसिंह द्वारा मारवाड़ के अजित सिंह को दी गई इस सहायता ने औरंगजेब के समक्ष परेशानी पैदा कर दी तथा इनकी मदद से जब औरंगजेब के पुत्र अकबर ने विद्रोह कर दिया तो औरंगजेब बड़ी मुसिबत में फंस गया और वह बड़ी मुश्किल से इस विद्रोह पर काबू पा सका।
* इस गठबंध का कोई बड़ा परिणाम निकलता इससे पहले ही ओढ़ा गांव में राजसिंह की 1680 ई. में मृत्यु हो गई, कुंभलगढ़ की तलहटी में उसकी छतरी बनी हुई हैं।
राजसिंह : एक कल्याणकारी शासक -
* राजसिंह ने अपनी प्रजा में सैनिक और नैतिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 'विजय कटकातु' की उपाधि धारण की।
* राजसिंह की पत्नी रामरसदे ने उदयपुर में जयाबावड़ी/त्रिमुखी बावड़ी का निर्माण करवाया था।
* अकाल प्रबंधन के उद्देश्य से राजसिंह ने गोमती नदी के पानी को रोककर राजसमंद झील का निर्माण करवाया था तथा इस झील के उत्तरी किनारे नौ चौकी नामक स्थान पर "राज प्रशस्ति" नामक शिलालेख लगवाया।
* संस्कृत भाषा में लिखित राजप्रशस्ति शिलालेख की रचना "रणछोड़ भट्ट" द्वारा की गई थी। यह प्रशस्ति 25 काले संगमरमर की शिलाओं पर खुदी हुई है। इसे संसार का सबसे बड़ा शिलालेख माना जाता है।
* राजप्रशस्ति में मेवाड़ का प्रामाणिक इतिहास और ऐतिहासिक मुगल मेवाड़ संधि (1615) का उल्लेख मिलता है।
* इस प्रशस्ति में मेवाड़ के शासकों की तकनीकी योग्यता की भी जानकारी मिलती है।
* जब औरंगजेब के अत्याचारों से पीड़ित गोसाई लोगों ने सहायता मांगी, तो राजसिंह के प्रतिनिधि दाऊजी महाराज / दामोदर जी महाराज 1669-70 में मथुरा से ' श्रीनाथ जी और द्वारिकाधीश' की मूर्ति लाये थे।
* राजसिंह ने श्रीनाथ जी को सिहाड (आधुनिक नाथद्वारा) में तथा द्वारिकाधीश को कांकरोली (राजसमंद) में प्रतिष्ठित करवाया था। राजसिंह ने अम्बिका माता मंदिर, उदयपुर को भी प्रतिष्ठित करवाया था।
* इसके अतिरिक्त राजसिंह ने राजसमंद झील के पास सर्वश्रतु विलास व जनसागर का निर्माण करवाया तथा राजनगर नाम से एक नया शहर भी बसाया था।
हाड़ी रानी की कहानी
यह बूंदी के जागीरदार संग्रामसिंह की पुत्री थी। हाड़ी रानी के नाम से विख्यात इस रानी का मूल नाम सलह/सहल कंवर था। इनका विवाह सलूंबर के राव रतनसिंह चूंडावत के साथ हुआ था। विवाह के दूसरे दिन ही राव रतनसिंह को मेवाड़ के महाराणा राजसिंह की ओर से औरंगजेब के विरुद्ध युद्ध करने के लिए देसूरी की नाल के युद्ध में जाना पड़ा।
रतनसिंह को अपनी नई नवेली रानी की याद सताने लगी तो उसने अपने सेवक को रानी के पास भेजकर रानी की निशानी मंगाई। हाड़ी रानी ने निशानी के तौर पर अपना सिर काटकर रतनसिंह चुंडावत के पास भेज दिया था। इस युद्ध में रतनसिंह चूड़ावत मारे गए। उनकी ऐतिहासिक छतरी देसूरी की नाल (पाली व राजसमंद की सीमा पर) में बनी हुई। प्रसिद्ध कवि मेघराज 'मुकुल' ने इसी हाड़ी रानी पर 'सैनाणी' नामक कविता लिखी जिसके बोल हैं- "चुंडावत माँगी सैनाणी सिर काट दे दियो क्षत्राणी"
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कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न :-
राणा राज सिंह का पुत्र कौन था?
औरंगजेब के समय मेवाड़ का शासक कौन था?
राजसिंह की उपाधि क्या थी?
राज सिंह के बाद मेवाड़ का शासक कौन बना था?
राजा राज सिंह कौन थे?
राजसिंह की उपाधि क्या थी?
औरंगजेब के समय मेवाड़ का शासक कौन था?
राणा राज सिंह का पुत्र कौन था?
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