राजस्थान का अपवाह तंत्र || Rajasthan rivers || pdf || Notes Ras , Rpsc , Rssmb , Reet notes
राजस्थान का अपवाह तंत्र
अपवाह तंत्र
राजस्धान की नदियों को सामान्यत तीन समूहों में बाँटा जाता है1 बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ 123 प्रतिमात
2 अरब सागर में गिरने वाली नदियों 1 प्रतिशत)
3 अन्तः प्रवाहित नदियाँ (60 प्रतिशत)
राजस्थान में नदी बेसिन क्षेत्रफल-
लूणी 69302 वर्ग किमी (20 प्रतिशत) है।
बनास 47060 वर्ग किमी (14 प्रतिशत) है।
चम्बल 31243 वर्ग किमी 19 प्रतिशत) है।
माही 16611 वर्ग किमी (5 प्रतिशत) है।
राजस्थान में सर्वाधिक सतही जल वाली नदियों - चम्बल, बनास , माही, लूणी
सर्वाधिक अपवाह क्षेत्र वाली नदियों - चम्बल , लूणी ,बनास, माही
सर्वाधिक जलग्रहण क्षेत्र वाली नदियों - बनास ,लूणी ,चम्बल ,माही
बगाल खाड़ी अपवाह तंत्र
बंगाल खाड़ी अपवाह तंत्र की नदियाँ चम्बल , बनास ,कालीसिंध ,पार्वती, परवन, बेडच, गंभीर ,कोठारी, व खारी प्रमुख नदियों है।
(1) चम्बल नदी :-
उद्गगम - विध्याचल पर्वत श्रेणी की अनापाव की पहाड़ी (मध्य प्रदेश) से
राजस्थान में चौरासीगढ़ किले के पास से प्रवेश करती है छह जिलों में प्रवाहित होती है
चित्तौड़गढ़ कोटा बूँदी सवाई माधोपुर करौती व धौलपुर जिलों में बहकर यह नदी उत्तर प्रदेश के मुरादगंज (ईटावा) के पास यमुना नदी में मिल जाती है।
चम्बल की कुल लम्बाई - (965 किमी/1051 किमी) राजस्थान में इसकी तम्बाई (135 किमी है।
# एकमात्र नित्यवाही, कामधेनु, चर्मण्वती, बारहमासी नाम से जाना जाता है।
# चम्बल नदी पर चित्तौड़गढ़ में राजस्थान का सबसे ऊँचा जल प्रपात (चूलिया। स्थित है।
# चम्बल अपवाह क्षेत्रों में सर्वाधिक बीहड़ भूमि पाई जाती है। धौलपुर सवाई माधोपुर व करौली जिलों में सर्वाधिक बीहड़ भूमि मिलती है।
# चम्बल नदी पर चार बाँध बनाए गए हैं-
चम्बल की सहायक नदियाँ-
बनास , कालीसिंध, पार्वती, वापनी/ब्रह्मणी , मेज व कुराल प्रमुख नदिया
(1) कालीसिंध नदी
कालीसिंध का उद्मगम - देवास (मध्यप्रदेश) के निकट से होता है.
राजस्थान में रायपुर झालावाड़) से प्रवेश करती है और झालावाड़ और बारा जिले में प्रवाहित होकर नानेरा (कोटा) में चम्बल में मिल जाती है।
कालीसिंध नदी की सहायक नदियाँ निवाज उजाड़, आहू और परवन हैं।
(ii) पार्वती नदी
# पार्वती नदी का उद्गगम - सिहोर (मध्यप्रदेश) से होता है
# राजस्थान के छबड़ा तहसील एवं मध्य प्रदेश के गुना जिले की सीमा में बहते हुए अटरू बारों, मांगरोल से होकर पुनः कोटा (राजस्थान मध्य प्रदेश) की सीमा बनाते हुए सवाई माधोपुर के निकट पालिया स्थान पर चम्बत में मिल जाती है।
पार्वती की प्रमुख सहायक नदियों रेतरी अहेती अंधेरी व कूल है।
(ⅲ) मेज नदी
मेज नदी का उद्रम भीलवाड़ा से होता है और भीलवाड़ा एवं बूंदी में प्रवाहित होकर सीनपुर (लाखेरी, बूँदी) में चम्बल में मिल जाती है।
(iv) वापनी (ब्राह्मणी) नदी
ब्राह्मणी नदी का उद्गम हरिपुरा गांव (वित्तौड़गढ़) से होता है और भैंसरोड़गढ़ के पास चम्बल में मित जाती है।
(2) बनास नदी
पूर्णत राजस्तान में बहने वाली सबसे लम्बी नदी है।
उइगम - खमनौर की पहाड़ियों ( राजसमंद से होता है यह राजस्थान के राजसमद वित्तौड़गढ़ भीलवाठा अजमेर टोक व सवाई माधोपुर जिलों से प्रवाहित होती है।
यह नदी भीलवाड़ा से बीगोद के पास बेडय को सम्मिलित करते हुए रामेश्वर घाट के पास (सवाई माधोपुर में चम्बल में मिल जाती है।
बनास की विशेषताएँ-
# वन की आशा , कहा जाता हैबना की तम्बाई 480/512 किमी है।
# राजस्थान में यह नदी तीन त्रिवेणी संगम बनाती है.
# बनास बेड़ा मनात (बीगोद भीलवाडा
# बनास हाई खारी (बीसतपुर टोका
# बनास चम्बत सीप रामपुर घाट सवाई बाधोपुर
बनास की सहायक नदी
#बेडच , खारी ,मैनाल ,कोठारी, मानसी, बाकल
(1) बेडच | आहड़ | आयड नदी
#आयड नदी का उद्रगम - गोगुन्दा की पहाडियों (उदयपुर) से होता है तथा इसका क्षेत्र उदयपुर चित्तौडगढ़ व भीलवाड़ा है।
# बेड़च नदी बीगोद भीलवाड़ा में बनास नदी में मिल जाती है।(B) मैनाल नदी
मेनाल नदी का उद्स माण्डलगढ़ की पहाड़ियों (भीलवाड़ा) से होता है तथा यह बनास नदी में बीगोद भीलवाड़ा) में मिल जाती है।
मेनाल नदी भीलवाड़ा में मैनाल जलप्रपात का निर्माण करती है।(3) कोठारी नदी
कोठारी नदी का उद्म दिवेर की पहाड़ियों से होता है तथा यह नंदराय (भीलवाड़ा) में बनास नदी में मिल जाती है। कोठारी नदी (भीलवाड़ा) पर भेजा बाँध बना हुआ है।
(iv) खारी नदी
खारी नदी का उद्मगम - बिजरात ग्राम की पहाड़ियों से होता है।खारी नदी का अपवाह क्षेत्र राजसमंद भीलवाड़ा अजमेर व टोंक है।
देवती (टोंक) में खारी नदी बनास में मिल जाती है।
खारी नदी पर अजमेर में नारायण सागर परियोजना स्थित है।
(3) बाणगंगा नदी-
अर्जुन की गंगा/रूण्डित्त नदी/ताला नदी-
बाणगंगा नदी का उद्रम - बैराठ की पहाड़ियों (जयपुर) से होता है।
बैराठ का प्राचीन नाम विराट नगर था।
बाणगंगा नदी का अपवाह क्षेत्र जयपुर दौसा व भरतपुर हैं।
भरतपुर से यह नदी आगरा के फतेहाबाद के निकट यमुना में मिल जाती है।
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॥ अरब सागर अपवाह तंत्र-
लूणी , माही , साबरमती व पश्चिमी , बनास(1) लूणी नदी
लूणी नदी की कुल लम्बाई 495 किलोमीटर है ज
अजमेर के नाग पहाड़ से निकलकर नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर तथा जालोर से होते हुए गुजरात के कच्छ के रण में चली जाती है।
लूणी की विशेषताएँ -
# पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश की मुख्य नदी है,
# मल्लीनाथ पशुमेला तिलवाड़ा (बाड़मेर) लूणी नदी के किनारे लगता है।
# वर्तमान में रंगाई-छपाई उद्योग के कारण लूणी नदी प्रदूषित हो रही है।
# बालोतरा (बाड़मेर) के बाद लूणी नदी का पानी खारा होता है।
लूणी की सहायक नदियों-
(1) सीलड़ी-
अजमेर के जवाजा स्थान से निकलकर पाली जिले में तूणी में मिल जाती है।
(ii) मीठड़ी-
अरावती (पाली) के निकट से निकलकर पाती बाड़मेर में बहते हुए पवाला गाँव के निकट तूणी में मिल जाती है।
(ii) बाड़ी-
बाड़ी। अरावली पहाड़ियों से निकलकर यह नदी लालसनी गाँव (पाली) के पास लूणी में मिल जाती है, बाड़ी-॥ अरावली की पहाड़ियों (सिरोही) से निकलकर जातोर में सुकड़ी-॥। में मिल जाती है।
(iv) सूकड़ी-
सूकडी। अरावली से निकलकर सरदार समंद (पाली) में गिरती है और सूकड़ी-॥ अरावली से निकलकर पाती जिले में बहती है। सुकड़ी-॥ खारी और जवाई के संगम के पक्षात् सूकड़ी-॥॥ के नाम से जानी जाती है, जो बाद में तूणी में मिल जाती है।
(v) जवाई-
इसका उद्गम - गोरियाग्राम (पाली) से होता है।
जवाई की सहायक नदी मथाई नदी के किनारे रणकपुर जैन मंदिर बने हुए हैं।
जवाई नदी बिराना गाँव (जालोर) में यह खारी नदी में मिल जाती है. तत्पश्चात यह लूणी में मिल जाती है।
(vi) सागी -
अराक्त्ती की पहाड़ियों (सिरोही। से लूणी में सबसे अंत में मिलने वाली सहायक नदी है। यह बाड़मेर में लूणी में मिल जाती है।
(vii) जोजरी -
तृणी की एकमात्र ऐसी सहायक नदी जो लूणी में दायीं ओर से आकर मिलती है जिसका उद्गम अरावली की पहाड़ी नहीं है। ये नागौर के पोडतू गाँव से निकलती है।
लूणी नदी पर स्थित बाँध
(i) जसवंतसागर बाँध - (पिचियाक बाँध)-
लूणी नदी बिताहा (जोधपुर)।
(B) जवाई परियोजना-
जवाई नदी सुमेरपुर (पाली)
जवाई नदी पर पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा बाँध जवाई बाँध बना हुआ है।
जवाई बाँध का निर्माण वर्ष 1946-1956 के मध्य अकाल राहत कार्य के दौरान जोधपुर के महाराजा उम्मेदसिंह ने करवाया था।
जवाई बाँध को मारवाड़ का अमृत सरोवर कहते हैं।
जवाई बाँध से जलापूर्ति। पेयजल) पाती जालोर जोधपुर व सिरोही की होती है।
जवाई बाँध से सिंचाई जालोर व पाली जिलों में होती हैं।
(क) हेमावास बाँध-
बाड़ी नदी हेमावास (पाली)।
(iv) बाँकती बाँध-
सुकड़ी नदी बांकती (जातोर में)।
(2) माही नदी -
नदी का उद्रम - मध्यप्रदेश की विधाचल पर्वत श्रेणी की मेहद झील से होता है।
# राजस्थान मंधीद्र पाम (बाँसवाड़ा) से प्रवेश करती है।
# इसका जल ग्रहण क्षेत्र दक्षिण राजस्थान में बाँसवाड़ा हूँगरपुर प्रतापगढ़ और उदयपुर जिलों में हैं।
# यह नदी संभात की खाड़ी गुजरात में जाकर मिलती है।
माही नदी की विशेषताएँ-
# माही नदी कर्क रेखा (2312523 जसरी अक्ष को दो बार काटती है।
# यह अंग्रेजी के उन्हें पर्व का निर्माण करती है।
# राजस्थान की एकमात्र नदीं जो दक्षिण से प्रदेश करती है तथा दक्षिण में ही समाप्त होती है।
# बेणेश्वर डूंगरपुर में माही नदी सोम व जाश्रम के साथ मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है जहाँ प्रत्येक वर्ष की माघ # पूर्णिमा को बेणेश्वर मेला भरता है जिसे आदिवासियों का कुंभ कहा जाता है।
माही नदी की सहायक नदियाँ-
सोम ,जाखम ,चाप ,अनास ,मोरेन व इस नदियाँ हैं।
# माही नदी में सबसे पहले मिलने वाली सहायक नदी इस है जो मही बजाज सागर परियोजना से पहले मिलती है।
# राजस्थान में माही नदी में सबसे अंत में मिलने वाली सहायक नदी अनास है जो दक्षिण की ओर से आकर माही में मिलती है।
(1) जाखम नदी
माही नदी की मुख्य सहायक नदी जाखम का उद्म - भैवरमाता की पहाडियों आजाराणिया ग्राम-प्रतापगढ़। से होता है
और वह बेणेश्वर हूँगरपुर में आकर माही नदी में मिलती है
# जहाँ सोम नदी भी आकर माही नदी में मिलती है और तीनों मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है जाई बेजेश्वर मेला आदिवासियों का कुभा भरता है।
# सरमई तथा करमई जखम की सहायक नदियों है
(2) सोम नदी-
सोम नदी का उदम बीजामेड़ा की पहाड़ियाँ ऋषभदेव उदयपुर में होता है और यह बेर हूँगरपुर में आकर माही नदी में मिल जाती है जहाँ सोम-माही-जाराम तीनों मिलकर विदेशी सगम्म बनाती है।
गोमती व हीड़ी सोम नदी की सहायक नदियों है।
(3) ईरु नदी
माही नदी में सबसे पहले मिलने वाली सहायक नहीं है जो माही में उसकी ओर से आकर माही बजाज सागर परियोजना से पहले मिलती है।
इम का प्राचीन नाम ऐराव था।
(iv) अनास नदी
राजस्धान में माही नदी में सबसे अंत में मिलने वाली सहायक नदीं है जिसका उद्स आर ग्राम की पहाडियों (मध्यप्रदेशा से होता है।
राजस्थान में अनास नदी मेतेही खेड़ी बाँसवाड़ में प्रवेश करती है और गलियाकोट डूगरपुर में यह माही नदी में मिलती है। जहाँ दाऊदी बोहरा सम्प्रदाय का उर्स भरता है।
माही नदी तंत्र से संबंधित परियोजनाएँ
1) माही बजाज सागर परियोजना
यह राजस्थान और गुजरात की संयुक्त परियोजना है।
साही नदी पर बोरखेड़ा (बाँसवाडा में माही बजाज सागर बाँध बना हुआ है जी राजस्थान का सबसे लम्बा बाँध (3100 मीटर है।
(5) कागदी पिकअप बाँध
माही नदी पर सिवाड़ा में कागदी पिक-अप बाँध बना हुआ है जिसके सभी गेट खोलने पर डैम में एक भी बूंद पानी नहीं रहता है।
(क) भीखाभाई सागवाडा परियोजना
सिंचाई ताभ हेतु माही नदी पर साइफन का निर्माण करके भीतखाभाई सागवाड़ा नहर निकाली गई थी। इस परियोजना से डूंगरपुर के सागवाड़ा क्षेत्र में सिंचाई की जाती है। इसका नामकरण वागड के स्वतंत्रता सेनानी व भीखाभाई भीत के नाम पर किया गया।(iv कड़ाना बाँध
कड़ाना बाँध माही नदी पर गुजरात के महासागर जिले में माही नदी पर स्थित है।(3) पश्चिमी बनास नदी
पश्चिमी बनास नदी जिसका उद्म - नया सनवाड (सिरोही के निकर भगवती की पहाडियों में होता है।सिरोही में प्रवाहित होते हुए पश्चिमी बनास गुजरात के बनाल काठा जिले में प्रदेश करती है और कच्छ की साही गुजरात में विलुप्त हो जाती है
इसकी सहायक नदी मुक्ती (सीपुर है।
राजस्थान काबू हरजीसहर पश्चिमी बना के किन्योति है
(4) साबरमती नदी
# साबरमती नदी का उद्धम- पदराड़ा की पहाडियों (उदयपुर) से होता हैऔर समाप्ति संभात की खाड़ी (गुजरात) में होती है।
# साबरमती नदी की कुल लम्बाई 371 किलोमीटर है पर राजस्थान में प्राह क्षेत्र मात्र 44 किलोमीटर है।
# गुजरात की राजधानी गोंधीनगर अहमदाबाद शहर और साकमती श्रम साबरमती नदी के किनारे बसे हैं।
साबरमती नदी की सहायक नदियों
# मानसी , वाकत, सेई ,साबरमती, मेजा माजम, तथा वैतरक ,साबरमती की सहायक नदियों है।
मानसी-वाकत परियोजना-
राजस्थान सरकार हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड की एक संयुक्त परियोजना जिसमें कम 10.30 की साझेदारी है।
सेई परियोजना-
साबरमती की सहायक नदी सेई पर उदयपुर में सेई परियोजना निर्मित है जिसकर निर्माण जवाई बाँध में पानी की आवक बनाए रखने हेतु किया गया
।।। आआंतरिक प्रवाह तंत्र से संबंधित राजस्थान की प्रमुख नदियाँ-
(1) घग्घर नदी -
# शिवालिक नदी/इण्डो ब्रह्म नदी
# अन्य नाम दषद्वती नदी प्राचीन सरस्वती नदी मृत नदी
# शिवालिक की पहाड़ियों कालका (हिमाचल प्रदेश) से घग्घर नदी का उद्म होता है।
# टिब्बी तहसील (हनुमानगढ़) से यह नदी राजस्थान में प्रवेश करती है।
# अपवाह क्षेत्र राजस्थान में हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर।
# वर्तमान में नदी के तल को स्थानीय भाषा में नाली कहा जाता है।
# धन्धर नदी में बाढ़ आने पर इसका पानी फोर्ट अब्बास (पाकिस्तान) तक जाता है और वहाँ इसके प्रवाह क्षेत्र को हकरा कहते हैं।
घग्घर नदी की विशेषताएँ -
# धग्घर नदी राजस्थान की आंतरिक प्रवाह की सबसे लम्बी नदीं है।
# घग्घर नदी द्वारा निर्मित मैदान को श्रीगंगानगर हनुमानगढ़ में पाट कहा जाता है।
(2) कांतली नदी
# शेखावाटी प्रदेश (चूरू झुंझुनूं सीकर की मुख्य नदी कॉतली नदी पूर्णतः राजस्थान में बहने वाली आंतरिक प्रवाह की सबसे तम्बी नदी है 1100 किलोमीटर।।
# खण्डेला की पहाड़ियों (सीकर) से कौतली नदी का उद्रम होता है।
# सीकर झुंझुनूं में बहती हुई चूरू जिले में प्रवेश कर रेतीली भूमि में विलुप्त हो जाती है।
(3) काकनेम नदी-
मसूरदी नदी/काकानी
# कोटड़ी की पहाड़ियों (जैसलमेर) से काकनेध नदी का उदूम होता है।
# काकनेध नदी राजस्थान की आतरिक प्रवाह की सबसे छोटी नहीं है।
# काकनेय नदी जैसलमेर में मीठे पानी की बुझ झील का निर्माण करती है।
(4) साबी नदी
संवर की पहाड़ियों (जयपुर से साबी नदी का उद्रम होता है।
अपवाह क्षेत्र जयपुर अलकन
साथी नदी अलवर जिले की मुख्य नदी है।
जयपुर की सेवर पहाड़ियों से निकल अलवर के बहरोड़ मुण्डावर एवं तिजारा में बहती हुई हरियाणा में प्रवेश कर विलुप्त हो जाती है।
(5) रूपारेल नदी
रूपनारायण नदी/वराह नदी/लसावरी नदी
उदयनाथ की पहाडियों धानामाजी अलवर से रूपारेल नदी का उद्रम होता है।
अपवाह क्षेत्र अतवर से भरतपुर तक है।
अपारेल नदी पर भरतपुर में मोती झील बाँध निर्मित है जो भरतपुर की जीवन रेखा कहलाता है।
(6) रूपनगढ़ नदी
सलेमाबाद। अजमेर) से निकल कर जयपुर जिले में सांभर झील में गिरती है।
(7) मेन्था नदी
मदा/मेदा/मधथाई नदी मेन्था नदी के अन्य नाम है।
मनोहरपुरा की पहाड़ियों (जयपुर) से मेन्था नदी का उद्धम होता है।
अपवाह क्षेत्र-जयपुर बहाते हुए उत्तर की ओर से सांभर झील में गिरती है।
नोट-मेढ़ा नहीं रूपनगढ़ नदी तुवमती नदी सारी नदी व सहेता नदी सांभर झील में गिरती है।
राजस्थान की झीलें..............??????
Nice 👍👍👍👍
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