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भाषा-व्याकरण एवं लिपि का परिचय || हिन्दी व्याकरण || NCERT हिन्दी व्याकरण बुक pdf

  भाषा-व्याकरण एवं लिपि का परिचय   

प्रिय पाठकों,........इस पोस्ट में हमने   के हिन्दी व्याकरण    महत्वपूर्ण बिंदुओं को क्रमवार समाहित किया गया है। यदि आपको हमारे द्वारा किया गया यह प्रयास अच्छा लगा है, तो इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम   हिन्दी व्याकरण    के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।


मानव जाति के विकास के सुदीर्घ इतिहास में सर्वाधिक महत्त्व सम्प्रेषण के माध्यम का रहा है   और वह माध्यम है-भाषा। मनुष्य समाज की इकाई होता है तथा मनुष्यों से ही समाज बनता है। समाज   की इकाई होने के कारण परस्पर विचार, भावना, संदेश, सूचना आदि को अभिव्यक्त करने के लिए मनुष्य    भाषा का ही प्रयोग करता है। यह भाषा चाहे संकेत भाषा हो अथवा व्यवस्थित ध्वनियों, शब्दों या वाक्यों   में प्रयुक्त कोई मानक भाषा हो। भाषा के माध्यम से ही हम अपने भाव एवं विचार दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाते   हैं तथा दूसरे व्यक्ति के भाव एवं विचार जान पाते हैं। भाषा ही वह साधन है जिससे हम अपना इतिहास,   संस्कृति, संचित ज्ञान-विज्ञान तथा अपनी महान परंपराओं को जान पाते हैं।

संसार में संस्कृत, हिंदी, अँगरेजी, बंगला, गुजराती, उर्दू, मराठी, तेलुगू, मलयालम, पंजाबी, उड़िया,जर्मन, फ्रैन्च, इतालवी, चीनी जैसी अनेक भाषाएँ हैं। भारत अनेक भाषा-भाषी देश है तथा अनेक बोली   और भाषाओं से ही मिलकर भारत राष्ट्र बना है। संस्कृत हमारी सभी भारतीय भाषाओं की सूत्र-भाषा है   तथा वर्तमान में हिंदी हमारी राजभाषा (राजकार्य भाषा) है।  

Note :- इस पोस्ट के  माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके प्रमुख बिन्दु, बिन्दु का सार , और इसके बारे मे प्रमुख रूप से जानकारी को विस्तार से   चर्चा करेंगे ?

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                   भाषा के दो प्रकार होते हैं

पहला - मौखिक 

दूसरा - लिखित

मौखिक भाषा आपस में बातचीत   के द्वारा, भाषणों तथा उद्बोधनों के द्वारा प्रयोग में लाई जाती है। 

लिखित भाषा लिपि के माध्यम से लिखकर   प्रयोग में लाई जाती है। यद्यपि भाषा भौतिक जीवन के पदार्थों तथा मनुष्य के व्यवहार व चिन्तन की   अभिव्यक्ति के साधन के रूप में विकसित हुई है, जो हमेशा एक-सी नहीं रहती अपितु उसमें दूसरी बोलियों-   भाषाओं से, संपर्क भाषाओं से शब्दों का आदान-प्रदान होता रहता है। जीवन के प्रति रागात्मक संबंध भाषा   के माध्यम से ही उत्पन्न होता है। किसी सभ्य समाज का आधार उसकी विकसित भाषा को ही माना   जाता है। हिंदी खड़ी बोली ने अपने शब्द-भण्डार का विकास दूसरी जनपदीय बोलियों, संस्कृत तथा अन्य   समकालीन विदेशी भाषाओं के शब्द भण्डार के मिश्रण से किया है किंतु हिंदी के व्याकरण के विविध   रूप अपने ही रहे हैं। हिंदी में अरबी-फारसी, अँगरेजी आदि विदेशी भाषाओं के शब्द भी प्रयोग के आधार   पर तथा व्यवहार के आधार पर आकर समाहित हो गए हैं। भाषा स्थायी नहीं होती उसमें दूसरी भाषा के   लोगों के संपर्क में आने से परिवर्तन होते रहते हैं। भाषा में यह परिवर्तन धीरे-धीरे होता है और इन परिवर्तनों   के कारण नई-नई भाषाएँ बनती रहती हैं। इसी कारण संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि के क्रम में ही   आज की हिंदी तथा राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी, सिन्धी, बंगला, उड़िया, असमिया, मराठी आदि अनेक   भाषाओं का विकास हुआ है।

                                     भाषा के भेद-

जब हम आपस में बातचीत करते हैं तो मौखिक भाषा का प्रयोग करते हैं तथा   पत्र, लेख, पुस्तक, समाचार पत्र आदि में लिखित भाषा का प्रयोग करते हैं। विचारों का संग्रह भी हम   लिखित भाषा में ही करते हैं।

(1) मौखिक भाषा 

(2) लिखित भाषा।

मूलतः सामान्य जन-जीवन के बीच बातचीत में मौखिक भाषा का ही प्रयोग होता है, इसे प्रयत्नपूर्वक   सीखने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि जन्म के बाद बालक द्वारा परिवार व समाज के संपर्क तथा परस्पर   सम्प्रेषण-व्यवहार के कारण स्वाभाविक रूप से ही मौखिक भाषा सीखी जाती है। जबकि लिखित भाषा   की वर्तनी और उसी के अनुरूप उच्चारण प्रयत्नपूर्वक सीखना पड़ता है। मौखिक भाषा की ध्वनियों के लिए   स्वतन्त्र लिपि-चिह्नों के द्वारा ही भाषा का निर्माण होता है।

                                  भाषा और बोली-

एक सीमित क्षेत्र में बोले जानेवाले भाषा के स्थानीय रूप को 'बोली' कहा जाता है जिसे 'उप   भाषा' भी कहते हैं।

 कहा गया है कि 'कोस-कोस पर पानी बदले, पाँच कोस पर बानी'। हर पाँच-सात   मील पर बोली में बदलाव आ जाता है। भाषा का सीमित, अविकसित तथा आम बोलचाल वाला रूप बोली   कहलाता है जिसमें साहित्य रचना नहीं होती तथा जिसका व्याकरण नहीं होता व शब्दकोश भी नहीं होता,   जबकि भाषा विस्तृत क्षेत्र में बोली जाती है, उसका व्याकरण तथा शब्दकोश होता है तथा उसमें साहित्य   लिखा जाता है। किसी बोली का संरक्षण तथा अन्य कारणों से यदि क्षेत्र विस्तृत होने लगता है तथा उसमें   साहित्य लिखा जाने लगता है तो वह भाषा बनने लगती है तथा उसका व्याकरण निश्चित होने लगता   है।

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                                  हिंदी की बोलियाँ-

हिंदी केवल खड़ी बोली (मानक भाषा) का ही विकसित रूप नहीं है बल्कि जिसमें अन्य बोलियाँ   भी समाहित हैं जिनमें खड़ी बोली भी शामिल है।

ये निम्न प्रकार हैं-

1. पूर्वी हिंदी - जिसमें अवधी, बघेली तथा छत्तीसगढ़ी शामिल हैं।

2. पश्चिमी हिंदी - में खड़ी बोली, ब्रज, बाँगरू (हरियाणवी), बुन्देली तथा कन्नौजी शामिल हैं।

3. बिहारी की प्रमुख बोलियाँ - मगही, मैथिली तथा भोजपुरी हैं।

4. राजस्थानी की - मेवाड़ी, मारवाड़ी, मेवाती तथा हाड़ौती बोलियाँ शामिल हैं।

कुछ विद्वान मालवी, ढूंढाडी तथा बागडी को भी राजस्थानी की अलग बोलियाँ मानते है।

5. पहाड़ी की - गढ़वाली, कुमाऊँनी तथा मंडियाली बोलियाँ हिंदी की बोलियाँ हैं।

इन बोलियों के मेल से बनी हिंदी को संविघान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 को भारत की राजभाषा   स्वीकार किया। विभिन्न बोलियों के मेल से बनी हिंदी की भाषाई विविधता के कारण ही हिंदी के क्षेत्रीय   उच्चारण में विविधता पाई जाती है।

                            हिंदी भाषा और व्याकरण-

हिंदी व्याकरण हिंदी भाषा को शुद्ध रूप से लिखने और बोलने संबंधी नियमों की जानकारी   देनेवाला शास्त्र है। किसी भी भाषा को जानने के लिए उसके व्याकरण को भी जानना बहुत आवश्यक   होता है। हिंदी की विभिन्न ध्वनि, वर्ण, पद, पदांश, शब्द, शब्दांश, वाक्य, वाक्यांश आदि की विवेचना तथा उसके विभिन्न घटकों-प्रकारों का वर्णन हिंदी व्याकरण में किया जाता है। हिंदी व्याकरण को मोटे   तौर पर वर्ण-विचार, शब्द-विचार, वाक्य विचार आदि तीन वर्गों में विभाजित कर इनके विभिन्न पक्षों पर   विचार किया जाता है।

       नागरी लिपि का परिचय एवं वर्तनी-

भाषा की ध्वनियों को जिन लेखन चिह्नों में लिखा जाता है उसे लिपि कहते हैं, अर्थात् किसी   भी भाषा की मौखिक ध्वनियों को लिखकर व्यक्त करने के लिए जिन वर्तनी चिह्नों का प्रयोग किया जाता   है वह लिपि कहलाती है। संस्कृत, हिंदी, मराठी, कोंकणी (गोवा), नेपाली आदि भाषाओं की लिपि   'देवनागरी' है। इसी प्रकार अँगरेजी की 'रोमन', पंजाबी की 'गुरुमुखी' तथा उर्दू की लिपि फ़ारसी है।

भारत सरकार के अधीन केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने अनेक भाषाविदों, पत्रकारों, हिंदी सेवी संस्थानों तथा   विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधियों के सहयोग से हिंदी की वर्तनी का देवनागरी में एक मानक स्वरूप तैयार   किया है जो सभी हिंदी प्रयोक्ताओं के लिए समान रूप से मान्य है।

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देवनागरी लिपि का निर्धारित मानक रूप-

                                              स्वर     

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ 

मात्राएँ-अ की कोई मात्रा नहीं, ा ,ि ,ी , ु ,ू , ृ , े , ै , ो ,ौ 

अनुस्वार-अं ( ां  )

जैसे-अंश, अंदेशा, संपदा, हंस।

अनुनासिक- (चंद्रबिन्दु)

जैसे-हँसना, धुआँ, चाँद।

विसर्ग- अ: ( : )

जैसे-अध:पतन, दुःख, मनःस्थिति।

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                                                व्यंजन     

क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ज, ट, ठ, ड, ड़, ढ, ढ़, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ,  ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह।

संयुक्त व्यंजन-क्ष, त्र, ज्ञ, श्र।

हल चिह्न ( ,)

जैसे-प्रह्लाद, पट्टा, अपराह्न।

गृहीत स्वर-ऑ (-ॉ)

गृहीत व्यंजन-क़, ख़, ग़, ज़, फ़

अँगरेजी भाषा से गृहीत स्वर-ॉ

जैसे-डॉक्टर, कॉटेज, कॉलेज।

फ़ारसी से गृहीत ध्वनियाँ-

जैसे-ग़रीब, ग़ज़ल, फ़न, क़ौम, ख़त।

पुनः याद रखने योग्य : -

  1.  हम अपनी बात एक दूसरे को भाषा के माध्यम से ही कहते हैं।
  2.  भाषा के दो रूप होते हैं-(1) मौखिक (2) लिखित।
  3.  मौखिक भाषा को लिखने के लिए जिन लेखन-चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, उसे 'लिपि'   कहते हैं।
  4. भाषा के सीमित क्षेत्र में बोले जानेवाले स्थानीय रूप को 'बोली' या 'उपभाषा' कहते हैं।
  5. हिंदी की 18 से 22 बोलियाँ 5 उपभाषाओं/विभाषाओं में विभाजित की गई हैं-पश्चिमी हिंदी,
  6. पूर्वी हिंदी, राजस्थानी, बिहारी तथा पहाड़ी।
  7. भाषा को शुद्ध लिखने व बोलने संबंधी जानकारी देने वाले शास्त्र को व्याकरण कहते हैं।
  8. हिंदी भाषा की लिपि 'देवनागरी' है।

अभ्यास प्रश्न   :-   

प्र. 1. निम्नलिखित में से राजस्थानी की बोली नहीं है-

(अ) मेवाड़ी

(ब) मारवाड़ी

(स) अवधी

(द) मेवाती

प्र. 2. सीमित क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा के स्थानीय रूप को कहते हैं-

(अ) राजभाषा

(ब) राष्ट्रभाषा

(स) उपभाषा

(द) संपर्क भाषा

प्र. 3. निम्नलिखित में से किसकी लिपि 'देवनागरी' नहीं है-

(अ) नेपाली

(ब) हिंदी

(स) पंजाबी

(द) संस्कृत

प्र. 4. 'खड़ी बोली' हिंदी के किस स्वरूप से निकली है-

(अ) पूर्वी हिंदी

(ब) पश्चिमी हिंदी

(स) राजस्थानी

(4) पहाड़ी

प्र. 5. भाषा किसे कहते हैं?

प्र. 6. भाषा के कौन से दो रूप होते हैं?

प्र. 7. भाषा और बोली में क्या अंतर है?

प्र. 8. हिंदी भाषा की विभिन्न बोलियों के नाम बताइए।

प्र. 9. लिपि का क्या अर्थ है? हिंदी भाषा की लिपि बताइए।

प्र.10. व्याकरण किसे कहते हैं?

प्र. 11. व्याकरण के प्रमुख विभाग कौन-कौनसे होते हैं?

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