मानसिंह || राजस्थान और मुगल || राजस्थान इतिहास
राजस्थान और मुगल (राणा सांगा, महाराणा प्रताप, मानसिंह, चंद्रसेन, रायसिंह, राजसिंह)
भारत में मुगल सत्ता का संस्थापक बाबर था, जिसने 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में लोदी सुल्तान इब्राहीम लोदी को परास्त करके मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी। आगे के पृष्ठों में हम मुगलों के साथ राणा सांगा, राणा प्रताप, मानसिंह, चंद्रसेन व रायसिंह के संबंधों का अध्ययन करेंगे।
मानसिंह
राजा मानसिंह (1589-1614 ई.) और मुगल
* मानसिंह का जन्म दिसम्बर, 1550 ई. में मौजमाबाद में हुआ था।
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* कहा जाता है कि मानसिंह के जन्म के समय ही ज्योतिषियों ने उसके उज्वल भविष्य की भविष्यवाणी कर दी थी। साथ ही इसके लिये उन्होंने उसके पिता भगवन्तदास को आगाह किया था कि वे 12 वर्ष की आयु तक अपने पुत्र को स्वयं से दूर रखे।
* अतः भगवन्तदास ने आमेर राज्य में स्थित मोजमाबाद में मानसिंह की रहने की पूर्ण व्यवस्था कर दी थी। मानसिंह का प्रारम्भिक जीवन यहीं व्यतीत हुआ था।
Note :- इस पोस्ट के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके प्रमुख बिन्दु, बिन्दु का सार , और इसके बारे मे प्रमुख रूप से जानकारी को विस्तार से चर्चा करेंगे ?
* 1562 ई. में मानसिंह अकबर के सम्पर्क में आया और अकबर उसकी योग्यता से बड़ा प्रभावित हुआ। इस प्रकार मानसिंह 12 वर्ष की आयु में (1562 ई) मुगल साम्राज्य की सेवा में प्रविष्ठ हो गया और जीवनपर्यन्त अर्थात् 1614 ई. तक मुगल सेवा में रहा।
* मानसिंह को अपने मुगल सेवा काल के दीर्घकालीन 52 वर्षों (1562-1614 ई.) में विभिन्न रूपों में दो मुगल सम्राटों-अकबर (1562-1605 ई. तक) और जहाँगीर (1605-1614 ई. तक) के साथ काम करने का अवसर मिला।
* अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से उनके इस दीर्घकालीन सेवा काल को तीन भागों में बांटा जा सकता हैं प्रथम काल भंवर मानसिंह काल (1562-1574 ई.) था। इस काल में मानसिंह ने भारमल के पौत्र (भँवर) के रूप में मुगल साम्राज्य की सेवा की।
* द्वितीय काल कुँवर मानसिंह काल (1574-1589 ई.) था। इस काल में मानसिंह ने भगवन्तदास के पुत्र (कुँवर) के रूप मुगल साम्राज्य को अपनी सेवायें अर्पित की।
* तृतीय काल शासक मानसिंह का काल (1589-1614 ई.) था। इस काल में मानसिंह ने आमेर के शासक के रूप में मुगल साम्राज्य को सेवा की।
प्रथम काल-भँवर मानसिंह (1562-1574 ई.)
* मानसिंह को अपनी योग्यता प्रदर्शित करने का प्रथम अवसर अकबर के रणथम्भौर अभियान में मिला।
* राजस्थान का सुदृढ़ और अभेद्य रणथम्भौर का दुर्ग अकबर के लिये खुली चुनौती था। अतः 1568-69 ई. में उसने स्वयं इस दुर्ग को जीतने का निश्चय किया।
* मानसिंह और भगवन्तदास भी इस अभियान में उसके साथ थे। इनकी मदद से अकबर रणथम्भौर के शासक सुर्जन हाड़ा को अपना सहयोगी बनाने में सफल रहा, सुर्जन हाड़ा भी अब अकबर के अधीन हो गया।
* 1572 ई. में अकबर गुजरात विजय के लिये रवाना हुआ। मानसिंह भी इस अभियान में अकबर के साथ था।
* गुजरात में शेरखाँ फौलादी और उसके पुत्रों ने विद्रोह कर दिया था। अकबर ने गुजरात पहुँचकर मानसिंह को इस विद्रोह के दमन का भार सौंपा।
* इब्राहीम मिर्जा के विरुद्ध हुये सरनाल के युद्ध में मानसिंह ने शाही सेना के हरावल (अग्रभाग) का नेतृत्व किया और अपूर्व सैन्य योग्यता प्रदर्शित की।
* गुजरात से वापस लौटते हुए अकबर ने मानसिंह को डूंगरपुर पर आक्रमण करने का आदेश दिया क्योंकि डूंगरपुर का शासक आसकरण मुगलों का विरोधी था।
* अप्रैल, 1573 ई. में मानसिंह ने डूंगरपुर पर आक्रमण किया। इस युद्ध में आसकरण के दो भतीजे बाघा व दुर्गा लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और डूंगरपुर को मानसिंह ने जीत लिया।
द्वितीय काल - कुँवर मानसिंह (1574-1589 ई.)
* इस कालखंड में सबसे बड़ी घटना मानसिंह का राणा प्रताप के विरूद्ध अभियान (1576 ई.) था, जिसका हम पूर्व में अध्ययन कर चुके हैं।
* काबुल के मिर्जा हाकिम के विद्रोह की दमन (1581 ई.) इस काल की मानसिंह की एक बड़ी सफलता थी।
* मानसिंह काबुल का सूबेदार (1585 ई.) :-
- मानसिंह द्वारा दमन के पश्चात् मिर्जा हाकिम ने पुनः कभी विद्रोह नहीं किया। किन्तु जुलाई, 1585 ई. में उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके सरदारों ने मुगल प्रभुता को त्यागकर काबुल में स्वयं का शासन स्थापित कर लिया पर एक बार फिर मानसिंह ने काबुल में विजय प्राप्त की, और मिर्जा हाकिम के सरदारों को घुटने टेकने को बाध्य किया।
* इसी विजय के प्रतीक के रूप में आमेर (जयपुर) रियासत ने पचरंगी ध्वज को अपनाया था।
* मानसिंह के इस कार्य से प्रसन्न होकर अकबर ने उसे काबुल की सूबेदारी सौंप दी।
* बिहार की सूबेदारी :- 1587 ई. में अकबर ने मानसिंह को बिहार का सूबेदार नियुक्त किया। इस समय बिहार में घोर अराजकता व्याप्त थी।
* बिहार की इस अस्त-व्यस्त अवस्था को सुधारकर वहाँ शान्ति और व्यवस्था स्थापित करने का दायित्व मानसिंह को सौंपा गया किन्तु मानसिंह अभी बिहार की स्थिति का अध्ययन करके वहाँ कोई सक्रिय कदम उठाने की योजना ही बना रहा था कि 1589 ई. में उसे अपने पिता भगवन्तदास की मृत्यु का दुःखद समाचार मिला।
◇ अतः 15 जनवरी, 1589 ई. को उसने पटना में ही आमेर के शासक के रूप में अपना औपचारिक राज्याभिषेक करवाया। इसके पश्चात् बादशाह की स्वीकृति लेकर वह आमेर आया, यहाँ उसे विधिपूर्वक आमेर का शासक बनाया गया।
* इस अवसर पर अकबर ने मानसिंह को 'राजा' की उपाधि और 5,000 का मनसब प्रदान किया। कुछ समय पश्चात् मानसिंह अपने शाही दायित्वों का निर्वहन करने वापस बिहार लौट आया।
तृतीय काल-राजा मानसिंह (1589-1614 ई.)
* 1589 ई. के पश्चात् मानसिंह ने आमेर के शासक के रूप में मुगल साम्राज्य को अपनी अमूल्य सेवाएँ प्रदान की। वस्तुतः यहाँ से मानसिंह की उपलब्धियों का गौरवपूर्ण अध्याय आरम्भ होता है।
* राज्याभिषेक बाद मानसिंह वापस बिहार पहुँचा, और सर्वप्रथम गिधौर के शासक पूरणमल को पराजित किया। इसके बाद मानसिंह ने 1590 ई. में खड़गपुर के शासक संग्रामसिंह व हाजीपुर के शासक गणपत को पराजित किया।
उड़ीसा के विद्रोहियों का दमन
◇ उड़ीसा पर अफगानों का शासन था, और वहाँ के दो शासकों कतलु खाँ व उसके पुत्र नासिर खाँ से मानसिंह को निपटना पड़ा। कतलु खाँ ने तो मुगल अधीनता नहीं स्वीकार की पर नासिर खाँ मुगलों की अधीनता में आ गया पर फिर भी अफगान शांति से नहीं रहे, किंतु मानसिंह ने बीनापुर के युद्ध, सारनगढ़ के युद्ध में उन्हें पराजित किया, तथा खुर्दा के शासक रामचंद्र को आत्मसमर्पण को बाध्य करके मानसिंह ने उड़ीसा मे शांति स्थापित की।
* उड़ीसा को सर्वप्रथम मानसिंह ने ही मुगल साम्राज्य का हिस्सा बनाया था।
* अकबर मानसिंह की इन सफलताओं से बड़ा प्रसन्न हुआ व फरवरी 1594 ई. में अकबर ने मानसिंह का लाहौर में भव्य स्वागत व सम्मान किया।
* बंगाल की सूबेदारी (1594 ई.): -
- बिहार के सूबेदार के रूप में मानसिंह की सेवाओं से प्रसन्न होकर अकबर ने 17 मार्च, 1594 ई. को सईदखाँ के स्थान पर मानसिंह को बंगाल का सूबेदार बना दिया।
* मई, 1594 ई. को मानसिंह बंगाल के लिये रवाना हुआ। वहाँ पहुँचकर उसने विद्रोहियों के दमन की निश्चित योजना बनाई। सर्वप्रथम उसने टांडा के स्थान पर राजमहल (अकबरपुर) को बंगाल की राजधानी बनाया।
* अक्टूबर, 1605 ई. में अकबर की मृत्यु हो गई। कतिपय विद्वानों की मान्यता है कि अकबर की मृत्यु के पश्चात् मानसिंह ने शाहजादे सलीम को बन्दी बनाने और उसके पुत्र खुसरो (जो मानसिंह का भान्जा भी था) को मुगल सिंहासन पर बिठाने का षड्यन्त्र रचा था किन्तु इसके निश्चित प्रमाण नहीं मिलते।
* मानसिंह और जहाँगीर :- अकबर की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र सलीम जहाँगीर नाम से मुगल बादशाह बना। अकबर के जीवनकाल * में ही मानसिंह और जहाँगीर (सलीम) के मध्य मनमुटाव हो गया था फिर भी मानसिंह व जहाँगीर के संबंध बने रहे।
बंगाल की तीसरी सूबेदारी (1605 ई.)
- 1605 ई. में जहाँगीर ने मानसिंह को बंगाल का सूबेदार बनाया, पर जहाँगीर के मन में मानसिंह को लेकर पूर्ण विश्वास नहीं था। अतः उसने मानसिंह को बंगाल की निजामत (शान्ति और व्यवस्था) का दायित्व ही सौंपा और दीवानी (राजस्व) का कार्य अन्य अधिकारी वजीरखाँ के सुपुर्द किया गया।
* किंतु जल्दी ही मानसिंह को बंगाल से हटाकर बिहार भेज दिया गया।
* फिर 1609 ई. में मानसिंह को दक्षिण भारत भेज दिया गया, वहीं पर 1614 ई. में एलिचपुर (महाराष्ट्र) में उसकी मृत्यु हो गई। मानसिंह की छतरी हाड़ीपुर (आमेर) में स्थित हैं।
* इस प्रकार हम देखते है कि जहाँगीर से तो मानसिंह के संबंध अच्छे न थे, पर अकबर ने उसे 7000 का मनसब व फर्जन्द (पुत्र) की उपाधि देकर सम्मानित किया था।
* एक शासक के रूप में मानसिंह का मूल्यांकन :- मानसिंह अपनी वंश की परम्परा के अनुसार हिन्दू धर्म में विश्वास रखता था। अपने धर्म में उसे इतनी श्रद्धा थी कि उसने अकबर के आग्रह पर भी दीन-ए- इलाही की सदस्यता स्वीकार न की। इसी तरह से मुंगेर के शाह दौलत नामी संत के कहने से भी इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया।
* बैकुंटपुर में जो पटना जिले में है, मानसिंह ने भवानी शंकर का मन्दिर बनवाया और उसमें विष्णु, गणेश तथा मातृदेवी की मूर्तियों की स्थापना की।
* गया में उसने महादेव का मन्दिर और आमेर में शिलादेवी का मन्दिर बनवाया था। वृन्दावन के गोविन्दजी के मन्दिर का भी निर्माण उसने करवाया।
* मानसिंह ने बंगाल के शासक केदारनाथ को परास्त करके बंगाल से शिलादेवी की मूर्ति लाकर उसे आमेर में प्रतिष्ठित करवाया था।
* मानसिंह न केवल युद्ध नीति, रण-कौशल तथा शासन कार्य में ही कुशल था वरन् संस्कृत भाषा में उसकी रुचि थी।
◇ 'मानचरित्र' तथा 'महाराजकोष' नामक ग्रन्थ उसके शासनकाल में रचे गये थे। इसके समय में मुरारीदास ने 'मान-प्रकाश' तथा जगन्नाथ ने 'मानसिंह कीर्ति मुक्तावली' की रचना की थी।
* मानसिंह के दरबारी कवि अमृतराय व कवि नरोत्तम ने एक ही नाम की पुस्तक मान चरित्र की रचना की थी, अर्थात् दोनों ही विद्वानों ने अपनी पुस्तक का नाम मान चरित्र रखा था।
* इसके समय में हरिनाथ, सुन्दरदास भी दरबारी कवि थे। इसके समय में दादूदयाल ने 'वाणी' की रचना की थी।
* मानसिंह का यह सौभाग्य था कि उसे अकबर के कई दरबारी कवियों से जिनमें दुरसा, होलराय, ब्रह्मभट्ट, गंग आदि प्रमुख थे, सम्पर्क स्थापित करने का अवसर प्राप्त हुआ।
* मानसिंह के समय बने आमेर के 'जगत शिरोमणिजी' का मन्दिर तथा तोरणद्वार की तक्षणकला अपने ढंग की अनूठी है।
* इस मन्दिर का निर्माण रानी कंकावतीजी ने अपने पुत्र जगतसिंह की स्मृति में करवाया था।
* इसी प्रकार आमेर के राजप्रासाद राजपूत शैली के अच्छे नमूने हैं। बारादरियों के निर्माण में मुगल प्रभाव अवश्य है।
* इनके अतिरिक्त मानसिंह ने अकबरनगर (बंगाल में) और मानपुर (बिहार में) के नगरों की स्थापना की।
Note :- इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम राजस्थान इतिहास के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।
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