राणा सांगा || राजस्थान और मुगल (राणा सांगा, महाराणा प्रताप, मानसिंह, चंद्रसेन, रायसिंह, राजसिंह) || राजस्थान इतिहास

राजस्थान और मुगल (राणा सांगा, महाराणा प्रताप, मानसिंह, चंद्रसेन, रायसिंह, राजसिंह)
भारत में मुगल सत्ता का संस्थापक बाबर था, जिसने 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में लोदी सुल्तान इब्राहीम लोदी को परास्त करके मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी। आगे के पृष्ठों में हम मुगलों के साथ राणा सांगा, राणा प्रताप, मानसिंह, चंद्रसेन व रायसिंह के संबंधों का अध्ययन करेंगे।
प्रिय पाठकों,........इस पोस्ट में हमने राजस्थान इतिहास के महत्वपूर्ण बिंदुओं को क्रमवार समाहित किया गया है। यदि आपको हमारे द्वारा किया गया यह प्रयास अच्छा लगा है, तो इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम राजस्थान इतिहास के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।
राणा सांगा
राणा सांगा और बाबर के संबंध -
* बाबर ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में हराकर दिल्ली को जीत लिया, साथ ही बाबर ने राणा सांगा पर आरोप लगाता है कि इस युद्ध में सांगा ने उसकी मदद का वादा करके भी उसकी मदद नहीं की।
* बाबर ने इस बारे में बाबरनामा में भी लिखा है, पर और किसी साक्ष्य से इस आरोप की पुष्टि नहीं होती।
* राणा सांगा इस समय भारत का सबसे ताकतवर शासक था। अतः उनके व बाबर के मध्य संघर्ष होना अवश्यंभावी था।
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बयाना का युद्ध (16 फरवरी, 1527)
* बाबर के सेनापति मेहंदी ख्वाजा ने बयाना (भरतपुर) के दुर्ग पर अधिकार जमा लिया, यह सांगा को सीधी चुनौती थी।
* इस पर राणा सांगा ने बयाना पर आक्रमण कर दिया, और मुगल सेना को परास्त करके बयाना को जीत लिया।
* राणा सांगा की इस विजय ने मुगल सेना में भय पैदा कर दिया। अब बाबर भी समझ चुका था कि आर-पार की लड़ाई लड़नी होगी और यह लड़ाई हुई - खानवा के मैदान में।
खानवा का युद्ध (17 मार्च, 1527)
* खानवा का युद्ध राणा सांगा एवं मुगल बादशाह बाबर के मध्य 17 मार्च, 1527 ई. को बयाना के पास (भरतपुर में स्थित) हुआ।
खानवा युद्ध में कर्नल टॉड के अनुसार राणा सांगा की सेना में 7 उच्च श्रेणी के राजा, 9 राव एवं 104 बड़े सरदार सम्मिलित हुए।
इनमें प्रमुख थे - अफगान सुल्तान महमूद लोदी, मेव शासक हसन खां मेवाती, मारवाड़ से राव गांगा का पुत्र मालदेव, बीकानेर से राव जैतसी का पुत्र कल्याणमल, आमेर का कच्छवाहा शासक पृथ्वीराज, ईडर का भारमल, मेड़ता का रायमल राठौड़, रायसीन का सलहदी तंवर, बागड़ का उदयसिंह, नागौर का खानजादा, सिरोही का अखैराज, डूंगरपुर का रावल उदयसिंह, चंदेरी का मेदिनीराय, सलूम्बर का रावत रतनसिंह, वीरमदेव मेड़ितया, देवलिया का बाघसिंह, जगनेर का अशोक परमार आदि।
* 16 फरवरी, 1527 की बयाना विजय के बाद टेढ़े-मेढ़े रास्ते से भुसावर होता हुआ सांगा 13 मार्च, 1527 को खानवा के निकट पहुंचा। इधर खानवा की निर्णायक लड़ाई से पहले बाबर को अपनी सेना को युद्ध हेतु तैयार करने के लिए बड़े जतन करने पड़े।
* बयाना की हार व एक मुस्लिम ज्योतिषी मोहम्मद शरीफ की भविष्यवाणी की बाबर की सेना की हार होगी ने बाबर की सेना के मनोबल को तोड़ दिया था।
* पर चतुर बाबर ने शराब न पीने की कसम खाई, एक धर्मनिष्ठ मुसलमान बनने का वादा किया, तमगा (एक व्यापारिक कर) कर हटाने का आदेश दिया, राणा सांगा के विरूद्ध संघर्ष को जिहाद (धर्मयुद्ध) कहा और अंत में एक जोशिले भाषण से अपेन सैनिकों को संघर्ष के लिए तैयार किया।
* 17 मार्च, 1527 ई. प्रातः साढे नौ बजे के लगभग युद्ध आरम्भ हो गया। युद्ध के मैदान में राणा सांगा घायल हो गया जिससे युद्ध का नक्शा ही बदल गया।
* घायल राणा को सिरोही के अखैराज की देखरेख में युद्ध क्षेत्र से बाहर लाया गया तथा बसवा (दौसा) नामक स्थान पर ठहराया गया, जहां आज भी राणा सांगा का स्मारक बना हुआ है।
* हलवद (काठियावाड़) के झाला राजसिंह के पुत्र झाला अज्जा ने सांगा से प्राप्त राजचिह्न धारण करके युद्ध को जारी रखा, किंतु अंततः बाबर के हाथ विजय लगी। इस विजय के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की।
* अज्जा की इस अद्भुत वीरता के कारण उसकी वीरगति के बाद उसके पुत्र सिम्हा को सादड़ी (बड़ी सादड़ी) की जागीर राणा सांगा द्वारा प्रदान की गई।
राणा सांगा की पराजय के कारण
* बाबर के पास तोपखाना होना।
* बाबर की तुलुगमा पद्धति।
* राजपूत सेना का एक नेता के अधीन न होना।
* रायसीन के सलहदी तंवर व नागौर के खानजादा के युद्ध के अंतिम दौर में बाबर से मिल जाना।
* डॉ. ओझा के अनुसार इस पराजय का मुख्य कारण महाराणा सांगा का बयाना विजय के बाद तुरन्त ही युद्ध न करके बाबर को तैयारी करने का पूरा समय देना ही था। यदि वह बयाना की पहली लड़ाई के बाद ही आक्रमण करता, तो उसकी जीत निश्चित थी।
* युद्ध के मैदान से मुच्छेित अवस्था में सांगा को पालकी में बसवा (दौसा) ले जाया गया। ज्यों ही राणा को होश आया वह पुनः युद्ध स्थल पर जाने की जिद करने लगा।
* किंतु सांगा के साबी इस हेतु तैयार न थे, अंतत: 30 जनवरी, 1528 को 46 वर्ष की आयु में राणा सांगा की मृत्यु हो गयी। (एक मान्यता के अनुसार सरदारों ने सांगा को विष दे दिया था।) उनका शव कालपी से माण्डलगढ़ ले जाया गया जहाँ उनका समाधि-स्थल आज भी उस महान् योद्धा का स्मरण दिला रहा है।
* सांगा के बाद मेवाड़ की राजनैतिक स्थिति बड़ी शोचनीय हो चली। दस वर्ष की अवधि में मेवाड़ की राजगद्दी पर तीन शासक रतन सिंह (1528-31), विक्रमादित्य (1531-36) और बनवीर (1536- 40) बैठे।
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