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मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास गोदान | munshee premachand ka upanyaas godaan | Munshi Premchand's novel Godaan

                  मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास गोदान 

                                गोदान उपन्यास - (प्रेमचंद)- 1936 ई.

यह 1936 ई. में लिखा गया प्रेमचंद का अंतिम पूर्ण उपन्यास है। इसे हिंदी के महानतम उपन्यासों में गिना जाता है। इसमें प्रेमचंद ने किसी एक समस्या को उठाने की बजाय तत्कालीन भारतीय समाज की लगभग हर समस्या को एक साथ उठाया है। यही कारण है कि गोदान को भारतीय जीवन का महाकाव्य भी कहा जाता है।

* दोस्तों इस उपन्यास के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकेंगे और इसमे आए हुए पात्र , कथानक , व उपन्यास का सार ,और विशेष तथ्य  या विशेषता , एवं महत्वपूर्ण  कथनों के बारे मे चर्चा करेंगे ? 


मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास गोदान |  munshee premachand ka upanyaas godaan | Munshi Premchand's novel Godaan 

                                   पात्र

* ग्रामीण पात्र

* होरी:-  

*  धनिया का पति
* भोला से उसकी सगाई (दूसरा विवाह) कराने का वादा करता है। 
*इसी बात के संदर्भ में भोला उसे 80 रुपए की गाय देता है।
* बेलारी गाँव (अवध प्रान्त) का निवासी
* गाय की लालसा जीवन का सबसे बड़ा स्वप्न
* दो भाई- हीरा और शोभा (पाल-पोसकर बड़ा किया, बाद में अलगौझा
* होरी की कृषक प्रकृति झगड़े से भागती थी।
* एक समय होरी ने भी महाजनी की थी।
* 'फस्ली. बुखार' से पीड़ित होता है।
* तीन बीघे का काश्तकार।

* धनिया:- 
* होरी की पत्नी
* 6 संतानें। तीन जीवित- गोबर, सोना, रूपा
* 36 साल (उपन्यास के आरम्भ में)
* जल्दी ही आक्रोशित होती है और जल्दी ही पिघल भी जाती है।
* सिलिया को अपने घर शरण देती है।

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* गोबर :- 
* होरी और धनिया का बेटा
* 16 साल (उपन्यास के आरंभ में)
* सांवला, लंबा, इकहरा युवक
* काम में रुचि नहीं
* मुख पर असंतोष और विद्रोह
* झुनिया से संबंध बनता है, जिसमें वह गर्भवती हो जाती है।
* लखनऊ में पहले अपना खोंचा, बाद में गन्ना मिल में नौकरी
* मिल की हड़ताल में गंभीर रूप से घायल; बाद में मालती के यहां माली की नौकरी |

* सोना:-
 *होरी और धनिया की बड़ी बेटी
* 12 साल (उपन्यास के आरम्भ में)
* लज्जाशील कुमारी
* सांवली, सुडौल, प्रसन्न और चपल
* सोनारी के एक धनी किसान गौरी महतो के लड़के मथुरा से विवाह

* रूपा:- 
 
* होरी और धनिया की छोटी बेटी
* 8 साल (उपन्यास के आरम्भ में) आगे एक जगह उम्र 5-6 वर्ष दी गई है।
* बहुत ही ढीठ और रोनी
* रामसेवक महतो से विवाह

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* झुनिया:-  
* भोला की बेटी; बाल-विधवा
* 'ऐसा प्रेम चाहती थी जिसके लिये वह जिये और मरे, जिस पर वह अपने को समर्पित कर दे'
* दो बेटे - चुन्नू (मर जाता है) और मंगल

* दातादीनः-
 * गाँव में पशु चिकित्सा के आचार्य
 * होरी ने आलू बोने के लिये 30 रुपए उधार लिये थे।
 * 'वह इस गाँव के नारद थे'
 * होरी के पास बैल न बचने पर आधी हिस्सेदारी के साथ उसके खेत में बुवाई का प्रबंध करता है।

* मातादीनः-
 
* दातादीन का पुत्र
* सिलिया चमारिन से संबंध
* झुनिया को प्रेम पाश में फंसाने का प्रयत्न करता है।
* सिलिया के पिता द्वारा जातिभ्रष्ट होने के बाद, दातादीन ने काशी के पंडितों द्वारा अनुष्ठान करा कर मातादीन को पुनः ब्राह्मण बनवा दिया था। परंतु वह जनेऊ और पुरोहिती छोड़कर, पक्का खेतिहर बन गया।
* अंत में सिलिया के साथ रहने लग जाता है।
 
* दुलारी सहुआइन:- 
* गाँव में नौन (नमक), तेल तमाखू की दुकान
* होरी ने बँटवारे के समय दुलारी से 40 रुपए लेकर भाइयों को दिए थे।
* रिश्ते में होरी की भाभी
* होरी कभी-कभी दिल्लगी भी करता था, जिससे धनिया जलती थी।

                                      गौण पात्र

* मंगरू साहू:-  
-होरी ने बैल के लिये 60 रुपए उधार लिये थे.
- गाँव का सबसे धनी आदमी।

* पटेश्वरीलाल:-  
- पटवारी। 
- गाँव में 'पुण्यात्मा' नाम से मशहूर थे। 
- मंगरू साह को उकसाकर होरी पर नालिश करवाते हैं।

* झिंगुरी सिंह:- 
- गाँव के सबसे बड़े महाजन। 
- शहर के बड़े महाजन के एजेंट।

* पंडित नोखेरामः - 
- रायसाहब का कारकुन। 
- होरी से लगान के पैसे लेकर इनकार कर देता है।

* सिलियाः - 
- पिता हरखू, माँ कालिया। 
- पुत्र रामू (निमोनिया से मर जाता है)।

* भोला:- 
-  होरी के गाँव से मिले हुए पूरवे का ग्वाला
* दूध-मक्खन का व्यवसाय
* पहली स्त्री लू लग जाने से मर गई थी
* तीन संतानें: कामता (बड़ा लडका), जंगी (छोटा लडका) और झुनिया
* अपने गाँव का मुखिया

* नोहरी:-  
- विधवा। 
- भोला से दूसरा विवाह।

* हीराः - 
- होरी का भाई। 
- गाय को जहर देकर घर से फरार।

* पुनिया: -
- हीरा की पत्नी। 
- बांस काटने को लेकर बंसोर चौधरी से लड़ती है।

* शोभा:-
-  होरी का भाई। 
- अंत में सारी जमीन-जायदाद बिक जाती है।

* दमड़ी बंसोर:-
- बांस के सौदे में होरी से मिलीभगत, फिर धोखा देता है।

* दारोगा :- 
* होरी की गाय के मरने पर तहकीकात के लिये आता है।
* हीरा के घर की तलाशी लेने के बहाने होरी से रुपये चाहता है, पर धनिया का आक्रोश इसे असफल कर देता है।
* अंततः गाँव के महाजनों से रुपये वसूलता है।

                                  शहरी पात्र

* राय साहब अमरपाल सिंह: - 
* सेमरी गाँव (अवध प्रान्त के निवासी)
* पिछले सत्याग्रह संग्राम में कौंसिल की मेम्बरी छोड़कर जेल चले गए थे।
* राष्ट्रवादी, संगीत-प्रेमी, ड्रामा के शौकीन, अच्छे वक्ता, अच्छे लेखक, अच्छे निशानेबाज
* पत्नी को मरे दस साल, दूसरी शादी नहीं।
* दो बच्चेः रुद्रपाल सिंह (लड़का), मीनाक्षी (लड़की)
* जेठ के दशहरे के अवसर पर धनुष यज्ञ का आयोजन
* पिता से सम्पत्ति के साथ भक्ति भी पायी।
* परिवार बहुत विशाल था, सभी पैतृक रियासत पर आश्रित थे। • मेहता, तंखा, खन्ना और ओंकारनाथ राय साहब के सहपाठी
* होरी से डाँड़ वसूले जाने की खबर पाकर, नोखेराम से पूरा धन माँगते हैं। नोखेराम और उनके साथी ओंकारनाथ को इसकी खबर देते हैं। तब रायसहब ने ओंकारनाथ की पत्रिका को रिश्वत स्वरूप चंदा देकर मामले को दबाया।
* कुंवर दिग्विजय सिंह से बेटी (मीनाक्षी) का विवाह कराते हैं। मीनाक्षी दिग्विजय सिंह के बुरे बरताव और ऐयाश प्रवृत्ति को कारण उसे छोड़ देती है।
* उपन्यास के आखिर में राजा की पदवी मिलती है

* डॉ. बी. मेहताः-
 * यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के अध्यापक
* धनुष यज्ञ के कार्यक्रम में पठान का रूप धरकर सबको आतंकित किया।
* विमेंस लीग में भाषण दिया।
* फ्रांस की अकादमी ने इनकी रचना को शताब्दी की सबसे उत्तम कृति कहाँ 'आत्म सेवा से बड़ा उनकी नजर में दूसरा अपराध न था'
* घर-गृहस्थी के मामलों में अनाड़ी थे।

* मिस मालती :-
 - इंग्लैंड से डॉक्टरी पढ़ कर आई थीं।
- 'नवयुग की साक्षात प्रतिमा' थीं।
* 'झिझक-संकोच का अभाव, हाजिर जवाब, पुरुष मनोविज्ञान की अच्छी जानकार, आमोद-प्रमोद को जीवन का तत्त्व समझनेवाली, लुभाने और रिझाने की कला में निपुण'।
* राय साहब के यहाँ धनुष यज्ञ के कार्यक्रम में ओंकारनाथ को शराब पिलाने की शर्त स्वीकार कर, जीतती हैं
* शिकार के दौरान मेहता से बातें करते हुए, मालती उसकी ओर आकर्षित होती हैं।
* पिता- मि. कौल
* दो छोटी बहनें- सरोज और वरदा
* विमेंस लीग की संस्थापक
* नगर कांग्रेस कमेटी की सभानेत्री चुनी जाती हैं।

* मिर्जा खुर्शेद : -
* सूफी मुसलमान
* 'बड़े दिल्लगीबाज और बेफिक्रे जीव'
* कारोबार चौपट हो जाने पर रायसाहब और अन्य मित्रों की मदद से लखनऊ में जूते की दुकान खोली।
* कौंसिल के सदस्य।
* वर्तमान में रहने वाले व्यक्ति।
* शायरी और शराब के शौकीन
* बुड्डों की कबड्डी का आयोजन करते हैं। इस कबड्डी में मेहता और खुर्शद आमने-सामने होते हैं।
* मिल में मजदूरी घटने के विरोध में हड़ताल करवाने वाले संघ के सभापति (इस संघ के मंत्री पंडित ओंकारनाथ थे)
* वेश्याओं के उद्धार के लिये उनकी नाटक मंडली बनाते हैं।

* मिस्टर चंद्रप्रकाश खन्नाः-
*  बैंक मैनेजर और शक्कर मिल के मैनेजिंग डायरेक्टर।
* "मिस मालती के उपासकों में थे।"
* "शिष्टता उसके लिये दुनिया को ठगने का एक साधन थी, मन का संस्कार नहीं।"
* चीनी मिल में आग लग जाने से कंगाली के हालत आ जाते हैं।

* गोविंदी देवी:-   
*  मिस्टर खन्ना की पत्नी
* कविता लिखने का शौक
* मालती से अपने दाम्पत्य जीवन को खतरा महसूस करती थी।

                              गौण पात्र 

* ओंकारनाथ :- 
 * दैनिक पत्र 'बिजली' के संपादक
* साहित्य की सेवा का ध्येय
* खुद को सिद्धांतों का पुजारी मानते हैं।
* पत्नी- गोमती

* मिस्टर श्यामबिहारी तंखाः-
 * वकील, परंतु वकालत न चलने के कारण बीमा कंपनी के दलाल
* ताल्लुकेदारों और महाजनों को बैंक से कर्ज दिलाते हैं।
* चुनाव के समय उम्मीदवार खड़े करने का व्यवसाय
* राजा सूर्यप्रताप सिंह : रायसाहब के मुकाबले चुनाव लड़ते हैं और हार जाते हैं।
* रायसाहब के बेटे रुद्रपाल सिंह से अपनी बेटी का विवाह करना चाहते हैं, परंतु रुद्रपाल मालती की बहन सरोज से शादी करके विदेश चला जाता है।

* चुहिया:- 
 - लखनऊ में गोबर-झुनिया की पड़ोसी। 
- झुनिया के गर्भ और गोबर की चोट के बाद उनकी मदद करती है।

* सरोज :-
- मालती की बहन । 
- मेहता के भाषण में उनके स्त्री संबंधी विचारों का विरोध करती है।,

 देवरानी-जेठानी की कहानी (पं. गौरीदत्त शर्मा)

                                       कथासार

* भोला की गाय देखकर होरी के मन में, गाय की लालसा उत्पन्न होती है। वह विधुर भोला का विवाह करवाने का वादा देकर अस्सी रुपये की गाय उधार लेने की जुगत कर लेता है। जब भोला अपने पास भूसे की कमी की बात करता है, तब होरी अभाव में पड़े आदमी से गाय ले लेने को उचित न मानकर, मना कर देता है, पर उसे भूसा देने का वादा करता है।

* भोला के घर भूसा पहुंचाने के क्रम में गोबर की मुलाकात भोला की विधवा बेटी झुनिया से होती है। जो आगे प्रेम में परिणत होती है।

* गाय आने पर गाँव वाले देखने आते हैं और होरी की खुशकिस्मती की तारीफ करते हैं। यह सोचकर की अलगौझे में दबाकर रखे गए पैसों से होरी ने गाय खरीदी है, उसके दोनों भाई- हीरा और शोभा गाय देखने नहीं आते। इससे होरी को बड़ा दुःख होता है।

* राय साहब के घर पर दशहरे के उत्सव में धनुषयज्ञ नाटक में होरी जनक के माली का अभिनय करता है। वहाँ रायसाहब, मेहता, ओंकारनाथ, मालती आदि के बीच ज़मींदारी, विवाह, सिद्धांत एवं अन्य मसलों पर बहस होती है।
* यहाँ मिस मालती एक शर्त के लिये अपनी बातों से ओंकारनाथ को भुलावे में डालकर शराब पिलवा देती है और एक हजार रुपये इनाम ले लेती है। पठान के वेश में डॉ. मेहता आकर रुपये माँगते हैं और धमकी देते हैं कि रुपये न मिले तो वे गोली चला देंगे। अंत में होरी वहाँ प्रवेश करके पठान को गिराकर उसकी मूँछें उखाड़ लेता है।
 
* अगले दिन शिकार पर जाते हैं। तीन टोलियाँ बनती हैं- मेहता और मालती (मालती मेहता के प्रति आकर्षित है, पर मेहता को इस ओर कोई आकर्षण नहीं है), रायसाहब और खन्ना, तंखा और मिर्जा खुशेंद।

* खरीफ की बुवाई से पहले नोखेराम कहलवाता है कि बाकी लगान न चुकाने वाले खेत में हल नहीं जोत सकेंगे। होरी लगान के लिये साहूकार झिंगुरीसिंह को गाय बेचने को तैयार होता है उसी रात हीरा द्वारा विष दिये जाने से गाय की मृत्यु हो गई। हीरा घर से भाग जाता है। होरी, हीरा की पत्नी पुनिया का भी खेत संभालता है।

* एक रात पाँच महीने का गर्भ लेकर झुनिया होरी के घर आ जाती है। गोबर उसे घर चलने को कहकर लखनऊ भाग जाता है। झुनिया के एक लड़का होता है। गाँव की पंचायत होरी पर डौड़ लगाती है। धनिया पंचायत पर बहुत क्रोध करती है। होरी झिंगुरीसिंह के पास मकान रेहन रखकर डाँड़ चुकाता है।

* गोबर, लखनऊ में मिर्जा खुशेंद के यहाँ नौकरी पर लग जाता है।

* इधर डाँड़ में सारा अनाज देने के बाद होरी के पास कुछ नहीं बचता। पुनिया उसकी सहायता करती है भोला झुनिया और गोबर के प्रकरण से आहत हो होरी से गाय के रुपये माँगता है, न दे पाने पर उसके बैल खोलकर ले जाता है।

* मालती राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहने लगी है। उसके प्रयत्न से मेहता वीमेन्स लीग में भाषण देने के दौरान महिलाओं को समान अधिकार की माँग छोड़कर त्याग, दया, क्षमा अपनाने का सुझाव देता है। जो गृहस्थ जीवन के लिये निहायत जरूरी है।

* अगली बुवाई के समय होरी के पास बैल नहीं होते, इसका फायदा उठाकर दातादीन होरी से साझे में बुवाई करने का प्रस्ताव देकर होरी को मजदूर के स्तर तक ले जाता है। होरी ईख बेचने जाता है तो मिल मालिक के साथ मिलकर महाजन सारा रुपया कर्ज के लिये वसूल कर लेता है।

* उधर गोबर नौकरी छोड़ खोंचा लगाने लगता है, जिसमें अच्छी आमदनी होती है। वह एक दिन गाँव में पहुँचता है। गाँव में वह महाजनों की बड़ी बेइज्जती करता है। होली के अवसर पर गाँव के मुखिया लोगों की नकल करके अभिनय किया जाता है। फलस्वरूप सभी महाजन गोबर पर क्रोधित होते हैं। वह भोला को मनाकर उससे अपने बैल ले आता है। वापसी में वह झुनिया को शहर ले जाना चाहता है। इस प्रसंग में धनिया से झगड़ा हो जाता है। माँ के पांव में सिर न झुकाकर बिलकुल उदंड और स्वार्थी बन बाल-बच्चों को लेकर शहर चला जाता है।

* राय साहब की कई समस्याएँ थीं। कन्या का विवाह करना था, अदालत में संपत्ति का मुकदमा लड़ना था और सिर पर चुनाव भी थे। पैसों की कमी थी इसीलिये वे तंखा के पास उधार माँगने के लिये जाते हैं। वह मना करता है तो वे खन्ना के पास जाते हैं। खन्ना पहले आनाकानी करके बाद में कमीशन लेकर पैसों का इंतजाम कर सकने की बात बताते हैं।

* सिलिया मातादीन के अनाज के ढेर से, दुलारी सहुआइन को उधार चुकाने के लिये कुछ अनाज दे देती है, तो मातादीन उसे भला-बुरा कहता है। सिलिया के बाप हरखू के कहने पर उसके साथी मातादीन के मुँह पर हड्डी डालकर उसे जातिभ्रष्ट कर देते हैं। धनिया सिलिया को अपने घर पर रख लेती है।
 
* सोना के विवाह के लिये पैसों की जरूरत थी। सोना को मालूम हुआ कि पिता विवाह के लिये दुलारी से दो सौ रुपये लाएँगे। इस पर सोना सिलिया को भावी पति मथुरा के पास भेजती है। ससुराल वाले बिना दहेज के बहू लेने को तैयार हो गए। लेकिन धनिया अपनी मर्यादा बचाने के लिये दहेज देना चाहती है।

* भोला एक जवान विधवा नोहरी से विवाह करता है। नोहरी की बहुओं से नहीं पटती, जिस वजह से भोला का पुत्र कामता भोला को घर से निकाल देता है। नोखेराम नोहरी की लालसा से भोला को नौकर रख लेता है। लाला पटेश्वरी साहूकार मँगरू शाह को भड़काकर होरी की ईख नीलाम करवा देता है। उगाही की उम्मीद न होने से दुलारी होरी को शादी के लिये दो सौ रुपये नहीं देती है इस संकट में नोहरी, होरी को रुपये देकर उबारती है।

* गोबर के शहर वापस लौटने पर उसे पता लगता है कि उसके खोंचे की जगह दूसरा आदमी बैठने लगा है। कारोबार में घाटा होता है तो वह मिल में नौकरी कर लेता है। गोबर का बेटा मर जाता है। झुनिया फिर से गर्भवती है। गोबर नशा करने लगता है। झुनिया को पीटता है, गालियाँ देता है। चुहिया की सहायता से झुनिया एक बेटे को जन्म देती है। मिल में झगड़ा हो जाने से गोबर घायल हो जाता है। गोबर की सेवा करने के दौरान पति-पत्नी में फिर संबंध स्वाभाविक हो जाता है।

* मिल में आग लग जाने से खन्ना की स्थिति खराब हो जाती है। खन्ना-गोविंदी का मनमुटाव मिट जाता है। मेहता से प्रेरित होकर मालती सेवा-व्रत में लगी रहती है। एक दिन मेहता और मालती होरी के गाँव में पहुँचकर लोगों से मिलते हैं। राय साहब की लड़की की शादी हो जाती है। मुकदमे और चुनाव में भी जीत होती है। वे लीग होम मेंबर भी बन जाते हैं।

* मालती देखती है कि दूसरों की सेवा करने के कारण ज्यादा वेतन होने के बावजूद भी मेहता पर कर्ज है। कुर्की भी आ गयी है मालती मेहता को अपने घर लाती है। मालती गोबर को माली रख लेती है। उसके बेटे की चिकित्सा और सेवा भी करती है। मालती मेहता से विवाह करना अस्वीकार करके मित्र बनकर रहना पसंद करती है।

* मातादीन, सिलिया के बालक को प्यार करता है। बालक निमोनिया के कारण मर जाता है। मातादीन, सिलिया के प्रति पुनः आकर्षित हो जाता है। जाति के बंधन तोड़कर उसके साथ रहता है।

* होरी की आर्थिक दशा दिनोंदिन गिरती जाती है। तीन साल तक लगान न चुकाने से नोखेराम बेदखली का दावा करता है। दातादीन के सुझाव पर होरी रूपा की शादी, अधेड़ रामसेवक महतो से करके बदले में कुछ रुपए ले लेता है और बेदखली से बच जाता है। गोबर शादी के बाद झुनिया व बच्चे को गाँव में छोड़कर लखनऊ चला जाता है। होरी पोते मंगल के लिये गाय लेना चाहता था। इसलिये वह कंकड़ खोदने की मजदूरी करता है। एक दिन हीरा अचानक आ जाता है और होरी से माफी माँगता है। होरी खुश हो जाता है। होरी कंकड़ खोदते समय दोपहर की छुट्टी के समय लेट जाता है। उसको कै (उल्टी) होती है। उसे लू लग जाती है। होरी को उठाकर घर लाया जाता है। होरी को मृत्यु शय्या पर जानकर सब धनिया से उसका गोदान करने को कहते हैं। धनिया सुतली बेचकर इकट्ठा किये गए बीस आने पैसे होरी के हाथ में रखकर दातादीन से कहती है "महाराज, घर में न गाय है, न बछिया, न पैसा। यही पैसे हैं, यही इनका गोदान है।
और पछाड़ खाकर गिर पड़ी।"

                                   कुछ तथ्य

* सेमरी और बेलारी में 5 मील का अंतर ।
* स्वराज, स्वाधीन भारत और हंटर पत्रों का उल्लेख
* सेमरी से लखनऊ बीस कोस दूर है।
* हजरतगंज और अमीनाबाद का उल्लेख

                                 प्रमुख उद्धरण 

* "धनी कौन होता है, इसका कोई विचार नहीं करता। वह जो अपने कौशल से दूसरों को बेवकूफ बना सकता है..."
- गोविन्दी और मेहता

* "जब दूसरे के पाँवों तले अपनी गर्दन दबी हुई है तो उन पाँवों को सहलाने में ही कुशल है।"- होरी, धनिया से

* "विपन्नता के इस अथाह सागर में सुहाग ही वह तृण था, जिसे पकड़े हुए वह सागर को पार कर रही थी।"- रायसाहब, होरी से

* “दरिद्रता में जो एक प्रकार की अदूरदर्शिता होती है, वह निर्लज्जता जो तकाजे, गाली और मार से भी भयभीत नहीं होती, उसने उसे प्रोत्साहित किया। बरसों से जो साध मन को आंदोलित कर रही थी, उसने उसे विचलित कर दिया।"आशा में कितनी सुधा है।"- रायसाहब, होरी से

* "किसान पक्का स्वार्थी होता है, इसमें संदेह नहीं। उसकी गाँड से रिश्वत के पैसे बड़ी मुश्किल से निकलते हैं, भाव-ताव में भी वह चौकस होता है, ब्याज की एक-एक पाई छुड़ाने के लिये वह महाजन की घण्टों चिरौरी करता है, जब तक पक्का विश्वास न हो जाय, वह किसी के फुसलाने में नहीं आता, लेकिन उसका संपूर्ण जीवन प्रकृति से स्थायी सहयोग है। वृक्षों में फल लगते हैं, उन्हें जनता खाती है; खेती में अनाज होता है, वह संसार के काम आता है; गाय के थन में दूध होता है, वह खुद पीने नहीं जाती, दूसरे ही पीते हैं; मेघों से वर्षा होती है, उससे पृथ्वी तृप्त होती है। ऐसी संगति में कुत्सित स्वार्थ के लिये कहाँ स्थान? होरी किसान था और किसी के जलते हुए घर में हाथ सेंकना उसने सीखा ही न था।"- रायसाहब, होरी से

* "संकट की चीज लेना पाप है, यह बात जन्म-जन्मान्तरों से उसकी आत्मा का अंश बन गई थी।"- रायसाहब, होरी से

* "सेमरी और बेलारी दोनों अवध-प्रांत के गाँव हैं।"- रायसाहब, होरी से

* "होरी बेलारी में रहता है, रायसाहब अमरपाल सिंह सेमरी में।"- रायसाहब, होरी से

* “संपत्ति और सहृदयता में बैर है। हम भी दान देते हैं, धर्म करते हैं। लेकिन जानते हो, क्यों? केवल अपने बराबर वालों को नीचा दिखाने के लिये। हमारा दान और धर्म कोरा अहंकार है, विशुद्ध अहंकार। हममें से किसी पर डिग्री हो जाय, कुर्की आ जाय, बकाया मालगुजारी की इल्लत में हवालात हो जाय, किसी का जवान बेटा मर जाय, किसी की विधवा बहू निकल जाय, किसी के घर में आग लग जाय, कोई किसी वेश्या के हाथों उल्लू बन जाय, या अपने असामियों के हाथों पिट जाय, तो उसके और सभी भाई उस पर हँसेंगे, बगलें बजाएँगे, मानो सारे संसार की सम्पदा मिल गई है। और मिलेंगे तो इतने प्रेम से, जैसे हमारे पसीने की जगह खून बहाने को तैयार हैं।" - रायसाहब, होरी से


* "मेरे दुःख को दुःख समझने वाला कोई नहीं। उनकी नजरों में मुझे दुःखी होने का कोई अधिकार ही नहीं है। मैं अगर रोता हूँ, तो दुःख की हँसी उड़ाता हूँ। मैं अगर बीमार होता हूँ, तो मुझे सुख होता है। मैं अगर अपना ब्याह करके घर में कलह नहीं बढ़ाता, तो यह मेरी नीच स्वार्थपरता है; अगर ब्याह कर लूँ, तो वह विलासांधता होगी। अगर शराब नहीं पीता तो मेरी कंजूसी है। शराब पीने लगूँ; तो वह प्रजा का रक्त होगा।" - रायसाहब, होरी से

* "गरीबों में अगर ईर्ष्या या वैर है, तो स्वार्थ के लिये या पेट के लिये। ऐसी ईर्ष्या और वैर को मैं क्षम्य समझता हूँ। हमारे मुँह की रोटी कोई छीन ले, तो उसके गले में उंगली डालकर निकालना हमारा धर्म हो जाता है। अगर हम छोड़ दें, तो देवता हैं। बड़े आदमियों की ईर्ष्या और वैर केवल आनन्द के लिये है। हम इतने बड़े आदमी हो गए हैं कि हमें नीचता और कुटिलता में ही निःस्वार्थ और परम आनन्द मिलता है।"- रायसाहब, होरी से

* “दुनिया समझती है, हम बड़े सुखी हैं। हमारे पास इलाके, महल, सवारियाँ, नौकर-चाकर, कर्ज, वेश्याएँ, क्या नहीं हैं, लेकिन जिसकी . आत्मा में बल नहीं, अभिमान नहीं, वह और चाहे, कुछ हो आदमी नहीं है। जिसे दुश्मन के भय के मारे रात को नींद न आती हो, जिसके दुख पर सब हँसें और रोने वाला कोई न हो, जिसकी चोटी दूसरों के पैरों के नीचे दबी हो, जो भोग-विलास के नशे में अपने को बिल्कुल भूल गया हो, जो हुक्काम के तलवे चाटता हो और अपने अधीनों का खून चूसता हो, उसे मैं सुखी नहीं कहता।"- रायसाहब, होरी से

* "साहब शिकार खेलने आएँ या दौरे पर, मेरा कर्त्तव्य है कि उनकी दुम के पीछे लगा रहूँ। उनकी भौंहों पर शिकन पड़ी और हमारे प्राण सूखे। उन्हें प्रसन्न करने के लिये हम क्या नहीं करते?"- रायसाहब, होरी से

* "केवल अफसरों के सामने दुम हिला हिलाकर किसी तरह उनके कृपापात्र बने रहना और उनकी सहायता से अपनी प्रजा पर आतंक जमाना ही हमारा उद्यम है।"- रायसाहब, होरी से

* "मैं तो कभी-कभी सोचता हूँ कि अगर सरकार हमारे इलाके छीनकर हमें अपनी रोज़ी के लिये मेहनत करना सिखा दे, तो हमारे साथ महान् उपकार करे, और यह तो निश्चय है कि अब सरकार भी हमारी रक्षा न करेगी। हमसे अब उसका कोई स्वार्थ नहीं निकलता। लक्षण कह रहे हैं कि बहुत जल्द हमारे वर्ग की हस्ती मिट जाने वाली है। मैं उस दिन का स्वागत करने को तैयार बैठा हूँ। ईश्वर वह दिन जल्द लाए।"-- रायसाहब, होरी से

* "हमारी गरदन दूसरों के पैरों के नीचे दबी हुई है, अकड़कर निबाह नहीं हो सकता।"- होरी, गोबर से

• "तो फिर अपना इलाका हमें क्यों नहीं दे देते। हम अपने खेत, बैल, हल, कुदाल सब उन्हें देने को तैयार हैं। करेंगे बदला? यह सब धूर्तता है, निरी मोटमरदी। जिसे दुःख होता है, वह दरजनों मोटरें नहीं रखता, महलों में नहीं रहता, हलवा-पूरी नहीं खाता और न नाच-रंग में लिप्त रहता है। मजे से राज का सुख भोग रहे हैं, उस पर दुखी हैं।" - गोबर, होरी से

* "जैजात किसी से छोड़ी जाती है कि वही छोड़ देंगे? हमीं को खेती से क्या मिलता है? एक आने नफरी की मजूरी भी तो नहीं पड़ती। जो दस रुपए महीने का भी नौकर है, वह भी हमसे अच्छा खाता-पहनता है; लेकिन खेतों को छोड़ा तो नहीं जाता। खेती छोड़ दें, तो और करें क्या? नौकरी कहीं मिलती है? फिर मरजाद भी तो पालना ही पड़ता है। खेती में जो मरजाद है, वह नौकरी में तो नहीं है। इसी तरह जमींदारों का हाल भी समझ लो।"-होरी, गोबर से

*  भगवान ने तो सबको बराबर ही बनाया है।' 'यह बात नहीं है बेटा, छोटे-बड़े भगवान के घर से बनकर आते हैं। सम्पत्ति बड़ी तपस्या से मिलती है। उन्होंने पूर्वजन्म में जैसे कर्म किए हैं, उनका आनन्द भोग रहे हैं। हमने कुछ नहीं संचा, तो भोगें क्या?'- गोबर-होरी का संवाद

* •" औरत को भगवान सब कुछ दे, रूप न दे, नहीं वह काबू में नहीं रहती।" - बाँस काटने वाला चौधरी

* "वैवाहिक जीवन के प्रभात में लालसा अपनी गुलाबी मादकता के साथ उदय होती है और हृदय के सारे आकाश को अपने माधुर्य की सुनहरी किरणों से रंजित कर देती है। फिर मध्याह्न का प्रखर ताप आता है, क्षण-क्षण पर बगूले उठते हैं और पृथ्वी काँपने लगती है। लालसा का सुनहरा आवरण हट जाता है और वास्तविकता अपने नग्न रूप में सामने आ खड़ी होती है। उसके बाद विश्रामय संध्या आती है, शीतल और शांत, जब हम थके हुए पथिकों की भाँति दिन-भर की यात्रा का वृत्तांत कहते और सुनते हैं तटस्थ भाव से, मानो हम किसी ऊँचे शिखर पर जा बैठे हैं, जहाँ नीचे का जन-रव हम तक नहीं पहुँचता।"- झुनिया, गोबर से

* "जीतकर आप अपनी धोखेबाजियों की डींग मार सकते हैं; जीत में सब-कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है।"- झुनिया, गोबर से

* "द्वेष का मायाजाल बड़ी-बड़ी मछलियों को ही फँसाता है। छोटी मछलियाँ या तो उसमें फँसती ही नहीं या तुरन्त निकल जाती हैं। उनके लिये वह घातक जल-क्रीड़ा की वस्तु है, भय की नहीं।"- झुनिया, गोबर से

* "भिक्षुक जब तक दस द्वारे न जाए, उसका पेट कैसे भरेगा? मैं ऐसे भिक्षुकों को मुँह नहीं लगाती। ऐसे तो गली-गली मिलते हैं। फिर भिक्षुक देता क्या है, असीस। असीसों से तो किसी का पेट नहीं भरता।"- झुनिया, गोबर से

* "वह ऐसा प्रेम चाहती थी, जिसके लिये वह जिये और मरे, जिस पर वह अपने को समर्पित कर दे। वह केवल जुगनू की चमक नहीं, दीपक का स्थायी प्रकाश चाहती थी।"- झुनिया, गोबर से

* "जान देने का अरथ है, साथ रहकर निबाह करना। एक बार हाथ पकड़कर उमिर-भर निबाह करते रहना, चाहे दुनिया कुछ कहे, चाहे माँ-बाप, भाई-बंद, घर-द्वार सब कुछ छोड़ना पड़े।"- झुनिया, गोबर से

* "बड़े आदमियों की बातें कौन चलाए। वह जो कुछ करें, सब ठीक है। उन्हें तो बिरादरी और पंचायत का भी डर नहीं।" -- झुनिया, गोबर से
* "बहुत करके तो मर्द ही औरतों को बिगाड़ते हैं। जब मर्द इधर-उधर ताक-झाँक करेगा तो औरत भी आँख लड़ाएगी। मर्द दूसरी औरतों के पीछे दोड़ेगा, तो औरत भी जरूर माँ के पीछे दोड़ेगी। मर्द का हरजाईपन औरत को भी उतना ही बुरा लगता है, जितना औरत का मर्द को।" - - झुनिया, गोबर से

* "सद्भावना करते हुए भी स्वार्थ नहीं छोड़ सकता और चाहता हूँ कि हमारे वर्ग को शासन और नीति के बल से अपना स्वार्थ छोड़ने के लिये मजबूर कर दिया जाय। इसे आप कायरता कहेंगे, मैं इसे विवशता कहता हूँ। मैं इसे स्वीकार करता हूँ कि किसी को भी दूसरे के श्रम पर मोटे होने का अधिकार नहीं है। उपजीवी होना घोर लज्जा की बात है। कर्म करना प्राणिमात्र का धर्म है। समाज की ऐसी व्यवस्था, जिसमें कुछ लोग मौज करें और अधिक लोग पिसें और खपें, कभी सुखद नहीं हो सकती। पूँजी और शिक्षा, जिसे मैं पूँजी ही का एक रूप समझता हूँ, इनका किला जितनी जल्द टूट जाय, उतना ही अच्छा है। जिन्हें पेट की रोटी मयस्सर नहीं, उनके अफसर और नियोजक दस-दस, पाँच-पाँच हजार फटकारें, यह हास्यास्पद है और लज्जास्पद भी।"- रायसाहब

*  "मैं इस सिद्धांत का समर्थक हूँ कि संसार में छोटे-बड़े हमेशा रहेंगे, और उन्हें हमेशा रहना चाहिये। इसे मिटाने की चेष्टा करना मानव जाति के सर्वनाश का कारण होगा।" - मिस्टर मेहता

* "आश्चर्य अज्ञान का दूसरा नाम है।"- मिस्टर मेहता

 * "धन को आप किसी अन्याय से बराबर फैला सकते हैं। लेकिन बुद्धि को, चरित्र को, रूप को, प्रतिभा को और बल को बराबर फैलाना तो आपकी शक्ति के बाहर है। छोटे-बड़े का भेद केवल धन से ही तो नहीं होता। मैंने बड़े-बड़े धन-कुवेरों को भिक्षुकों के सामने घुटने टेकते देखा है, और आपने भी देखा होगा। रूप के चौखट पर बड़े-बड़े महीप नाक रगड़ते हैं। क्या यह सामाजिक विषमता नहीं है? आप रूस की मिसाल देंगे। वहाँ इसके सिवाय और क्या है कि मिल के मालिक ने राजकर्मचारी का रूप ले लिया है। बुद्धि तब भी राज करती थी, अब भी करती है और हमेशा करेगी।" - मिस्टर मेहता

* "बुद्धि अगर स्वार्थ से मुक्त हो, तो हमें उसकी प्रभुता मानने में कोई आपत्ति नहीं। समाजवाद का यही आदर्श है। हम साधु-महात्माओं के सामने इसलिये सिर झुकाते हैं कि उनमें त्याग का बल है। इसी तरह हम बुद्धि के हाथ में अधिकार भी देना चाहते हैं, सम्मान भी, नेतृत्व भी; लेकिन संपत्ति किसी तरह नहीं। बुद्धि का अधिकार और सम्मान व्यक्ति के साथ चला जाता है, लेकिन उसकी संपत्ति विष बोने के लिये, उसके बाद और भी प्रबल हो जाती है। बुद्धि के बगैर किसी समाज का संचालन नहीं हो सकता। हम केवल इस बिच्छू का डंक तोड़ देना चाहते हैं।" - रायसाहब।

* "लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अन्दर कुछ दर्द है, अनुराग है लगन है, जिन्होंने धन और भोग-विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वह क्या लिखेंगे?" - संपादक पंडित ओंकारनाथ

* "मेरे लिये धन केवल उन सुविधाओं का नाम है, जिनमें मैं अपना जीवन सार्थक कर सकूँ। धन मेरे लिये बढ़ने और फलने-फूलने वाली चीज नहीं, केवल साधन है।"- मिस्टर मेहता

* "मुक्त भोग आत्मा के विकास में बाधक नहीं होता। विवाह तो आत्मा को और जीवन को पिंजरे में बंद कर देता है।"- मिस्टर मेहता

* "विवाह को मैं सामाजिक समझौता समझता हूँ और उसे तोड़ने का अधिकार न पुरुष को है, न स्त्री को। समझौता करने के पहले आप स्वाधीन हैं, समझौता हो जाने के बाद आपके हाथ कट जाते हैं।"- मिस्टर मेहता

* ""आप श्रेष्ठ किसे समझते हैं, विवाहित जीवन को या अविवाहित जीवन को?' 'समाज की दृष्टि से विवाहित जीवन को, व्यक्ति की दृष्टि से अविवाहित जीवन को।" - मालती और मेहता संवाद

* “मैं उस आदमी को आदमी नहीं समझता, जो देश और समाज की भलाई के लिये उद्योग न करें और बलिदान न करें। मुझे क्या अच्छा लगता है कि निर्जीव किसानों का रक्त चूसूँ और अपने परिवारवालों की वासनाओं की तृप्ति के साधन जुटाऊँ; मगर करूँ क्या? जिस व्यवस्था में पला और जिया, उससे घृणा होने पर भी उसका मोह त्याग नहीं सकता और उसी चरखे में रात-दिन पड़ा रहता हूँ कि किसी तरह इज्जत-आबरू बची रहे, और आत्मा की हत्या न होने पाए।"- रायसाहब

* "मुझे अब इस डेमॉक्रेसी में भक्ति नहीं रही। जरा-सा काम और महीनों की बहस। हाँ, जनता की आँखों में धूल झोंकने के लिये अच्छा स्वाँग है। इससे तो अच्छा है कि एक गवर्नर रहे, चाहे वह हिंदुस्तानी हो, या अंग्रेज़, इससे बहस नहीं। एक इंजन जिस गाड़ी को बड़े मजे से हज़ारों मील खींच ले जा सकता है, उसे दस हजार आदमी मिलकर भी उतनी तेजी से नहीं खींच सकते। मैं तो यह सारा तमाशा देखकर कौंसिल से बेज़ार हो गया हूँ, मेरा बस चले, तो कौंसिल में आग लगा दूँ। जिसे हम डेमॉक्रेसी कहते हैं, वह व्यवहार में बड़े-बड़े व्यापारियों और जमींदारों का राज्य है, और कुछ नहीं। चुनाव में वही बाज़ी ले जाता है, जिसके पास रुपए हैं। रुपए के ज़ोर से उसके लिये सभी सुविधाएँ तैयार हो जाती हैं। बड़े-बड़े पण्डित, बड़े-बड़े मौलवी, बड़े-बड़े लिखने और बोलने वाले, जो अपनी ज़बान और कलम से पब्लिक को जिस तरफ चाहें फेर दें, सभी सोने के देवता के पैरों पर माथा रगड़ते हैं।" - मिर्जा खुशेंद • “घर में तलासी होने से इसकी इज्जत जाती है। अपनी मेहरिया को सारे गाँव के सामने लतियाने से इसकी इज्जत नहीं जाती।"- धनिया

* “ये हत्यारे गाँव के मुखिया हैं, गरीबों का खून चूसने वाले! सूद-ब्याज, डेढ़ी-सवाई, नजर-नजराना, घूस घास जैसे भी हो, गरीबों को लूटो। उस पर सुराज चाहिये। जेल जाने से सुराज न मिलेगा। सुराज मिलेगा धरम से, न्याय से।"- धनिया।

* "हमको कुल-परतिसठा इतनी प्यारी नहीं है महाराज, कि उसके पीछे एक जीव की हत्या कर डालते। ब्याहता न सही; पर उसकी बाँह तो पकड़ी है मेरे बेटे ने ही। किस मुँह से निकाल देती? वही काम बड़े-बड़े करते हैं, मुदा उनसे कोई नहीं बोलता, उन्हें कलंक ही नहीं लगता।"- धनिया, दातादीन से

* "पंचो, गरीब को सताकर सुख न पाओगे, इतना समझ लेना। हम तो मिट जाएँगे, कौन जाने, इस गाँव में रहें या न रहें, लेकिन मेरा सराप तुमको भी जरूर से जरूर लगेगा।"- धंनिया

* "हमें नहीं रहना है बिरादरी में, बिरादरी में रहकर हमारी मुकुत न हो जाएगी। अब भी अपने पसीने की कमाई खाते हैं, तब भी अपने पसीने की कमाई खाएँगे।"- धनिया

* "बिरादरी उसके जीवन में वृक्ष की भाँति जड़ जमाए हुए थी और उसकी नसें उसके रोम-रोम में बिंधी हुई थीं।"

* "मन पर जितना ही गहरा आघात होता है उसकी प्रतिक्रिया भी उतनी ही गहरी होती है।"

* "इन लोगों ने जितना घी खाया है, उतना अब हमें पानी भी मयस्सर नहीं। लोग कहते हैं, भारत धनी हो रहा है। होता होगा। हम तो यही देखते हैं कि इन बुड्ढ़ों-जैसे जीवट के जवान भी आज मुश्किल से निकलेंगे।" - जनता

*  "मेरे जेहन में औरत बफा और त्याग की मूर्ति है, जो अपनी बेजबानी से, अपनी कुर्बानी से, अपने को बिलकुल मिटाकर पति की आत्मा का एक अंश बन जाती है। देह पुरुष की रहती है पर आत्मा स्त्री की होती है। आप कहेंगे, मर्द अपने को क्यों नहीं मिटाता? औरत से ही क्यों उसकी आशा करता है? मर्द में वह सामर्थ्य ही नहीं है। वह अपने को मिटाएगा, तो शून्य हो जाएगा। वह किसी खोह में जा बैठेगा और सर्वात्मा में मिल जाने का स्वप्न देखेगा। वह तेज प्रधान जीव है, और अहंकार में यह समझकर कि वह ज्ञान का पुतला है, सीधा ईश्वर में लीन होने की कल्पना किया करता है। (स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान् है, शान्ति-सम्पन्न है, सहिष्णु है। पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं, तो वह महात्मा बन जाता है। नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं, तो वह कुलटा हो जाती है।" - मेहता, मिर्जा खुशेंद से


* ""आपके पास दान देने के लिये दया है, श्रद्धा है, त्याग है। पुरुष के पास दान के लिये क्या है? वह देवता नहीं, लेवता है। वह अधिकार के लिये हिंसा करता है, संग्राम करता है, कलह करता है...'" - मेहता का भाषण

* “मैं प्राणियों के विकास में स्त्री के पद को पुरुषों के पद से श्रेष्ठ समझता हूँ, उसी तरह जैसे प्रेम और त्याग और श्रद्धा को हिंसा और संग्राम और कलह से श्रेष्ठ समझता हूँ। अगर हमारी देवियाँ सृष्टि और पालन के देव-मन्दिर से हिंसा और कलह के दानव-क्षेत्र में आना चाहती हैं, तो उससे समाज का कल्याण न होगा। मैं इस विषय में दृढ़ हूँ। पुरुष ने अपने अभिमान में अपनी कीर्ति को अधिक महत्त्व दिया। वह अपने भाई का स्वत्व छीनकर और उसका रक्त बहाकर समझने लगा, उसने बहुत बड़ी विजय पायी। जिन शिशुओं को देवियों ने अपने रक्त से सिरजा और पाला, उन्हें बम और मशीनगन और सहस्रों टैंकों का शिकार बनाकर वह अपने को विजेता समझता है। और जब हमारी ही माताएँ उसके माथे पर केसर का तिलक लगाकर और उसे अपनी असीसों का कवच पहनाकर हिंसा-क्षेत्र में भेजती हैं, तो आश्चर्य है कि पुरुष ने विनाश को ही संसार के कल्याण की वस्तु समझा और उसकी हिंसा-प्रवृत्ति दिन-दिन बढ़ती गई और आज हम देख रहे हैं कि यह दानवता प्रचण्ड होकर समस्त संसार को रौंदती, प्राणियों को कुचलती, हरी-भरी खेतियों को जलाती और गुलजार बस्तियों को वीरान करती चली जाती है।"- मेहता का भाषण

* "मैं उन लोगों में नहीं हूँ, जो कहते हैं, स्त्री और पुरुष में समान शक्तियाँ हैं, समान प्रवृत्तियाँ हैं, उनमें कोई विभिन्नता नहीं है। इससे भयंकर असत्य की मैं कल्पना नहीं कर सकता। यह वह असत्य है, जो युग-युगान्तरों से संचित अनुभव को उसी तरह ढंक लेना चाहता है, जैसे बादल का एक टुकड़ा सूर्य को ढंक लेता है। मैं आपको सचेत किए देता हूँ कि आप इस जाल में न फँसें। स्त्री पुरुष से उतनी ही श्रेष्ठ है, जितना प्रकाश अंधेरे से। मनुष्य के लिये क्षमा और त्याग और अहिंसा जीवन के उच्चतम आदर्श हैं। नारी इस आदर्श को प्राप्त कर चुकी है। पुरुष धर्म और अध्यात्म और ऋषियों का आश्रय लेकर उस लक्ष्य पर पहुँचने के लिये सदियों से जोर मार रहा है; पर सफल नहीं हो सका। मैं कहता हूँ, उसका सारा आध्यात्म और योग एक तरफ और नारियों का त्याग एक तरफ।"- मेहता का भाषण


* पुरानी बात भी आत्मबल के साथ कही जाती है, तो नई हो जाती है।"- रायसाहब

* ""पुरुष कहता है, जितने दार्शनिक और वैज्ञानिक आविष्कारक हुए हैं, वह सब पुरुष थे। जितने बड़े-बड़े महात्मा हुए हैं, वह सब पुरुष थे। सभी योद्धा, सभी राजनीति के आचार्य, बड़े-बड़े नाविक, बड़े-बड़े सब कुछ पुरुष थे; लेकिन इन बड़ों-बड़ों के समूहों ने मिलकर किया क्या? महात्माओं और धर्म-प्रवर्तकों ने संसार में रक्त की नदियाँ बहाने और वैमनस्य की आग भड़काने के सिवा और क्या किया, योद्धाओं ने भाइयों की गर्दनें काटने के सिवा और क्या यादगार छोड़ी, राजनीतिज्ञों की निशानी अब केवल लुप्त साम्राज्यों के खंडहर रह गए हैं, और आविष्कारों ने मनुष्य को मशीन का गुलाम बना देने के सिवा और क्या समस्या हल कर दी? पुरुषों की रची हुई इस संस्कृति में शान्ति कहाँ है? सहयोग कहाँ है?"- मेहता का भाषण

* "मैं नहीं कहता, देवियों को विद्या की जरूरत नहीं है। है और पुरुषों से अधिक। मैं नहीं कहता, देवियों को शक्ति की जरूरत नहीं है। है और पुरुषों से अधिक; लेकिन वह विद्या और वह शक्ति नहीं, जिससे पुरुष ने संसार को हिंसा क्षेत्र बना डाला है। अगर वही विद्या और वही शक्ति आप भी ले लेंगी, तो संसार मरुस्थल हो जाएगा। आपकी विद्या और आपका अधिकार हिंसा और विध्वंस में नहीं, सृष्टि और पालन में है। क्या आप समझती हैं, वोटों से मानव-जाति का उद्धार होगा, या दफ्तरों में और अदालत में जबान और कलम चलाने से? इन नकली, अप्राकृतिक, विनाशकारी अधिकारों के लिये आप वह अधिकार छोड़ देना चाहती हैं, जो आपको प्रकृति ने दिए हैं?"-मेहता का भाषण

* "वोट नए युग का मायाजाल है, मरीचिका है, कलंक है, धोखा है; उसके चक्कर में पड़कर आप न इधर की होंगी, न उधर की। कौन कहता है कि आपका क्षेत्र संकुचित है और उसमें आपको अभिव्यक्ति का अवकाश नहीं मिलता। हम सभी पहले मनुष्य हैं, पीछे और कुछ। हमारा जीवन हमारा घर है। वहीं हमारी सृष्टि होती है, वहीं हमारा पालन होता है, वहीं जीवन के सारे व्यापार होते हैं। अगर वह क्षेत्र परिमित है, तो अपरिमित कौन-सा क्षेत्र है? क्या वह संघर्ष, जहाँ संगठित अपहरण है? जिस कारखाने में मनुष्य और उसका भाग्य बनता है, उसे छोड़कर आप उन कारखानों में जाना चाहती हैं, जहाँ मनुष्य पीसा जाता है, जहाँ उसका रक्त निकाला जाता है?"- मेहता का भाषण

* "मुझे खेद है, हमारी बहनें पश्चिम का आदर्श ले रही हैं, जहाँ नारी ने अपना पद खो दिया है और स्वामिनी से गिरकर विलास की वस्तु बन गई है। पश्चिम की स्त्री स्वच्छन्द होना चाहती हैं, इसलिये कि वह अधिक-से-अधिक विलास कर सकें। हमारी माताओं का आदर्श कभी विलास नहीं रहा। उन्होंने केवल सेवा के अधिकार से सदैव गृहस्थी का संचालन किया है। पश्चिम में जो चीजें अच्छी हैं, वह उनसे लीजिए। संस्कृति में सदैव आदान-प्रदान होता आया है; लेकिन अन्धी नकल तो मानसिक दुर्बलता का ही लक्षण है! पश्चिम की स्त्री आज गृह-स्वामिनी नहीं रहना चाहती। भोग की विदग्ध लालसा ने उसे उच्छृंखल बना दिया है। वह अपनी लज्जा और गरिमा को, जो उसकी सबसे बड़ी विभूति थी, चंचलता और आमोद-प्रमोद पर होम कर रही है। जब मैं वहाँ की शिक्षित बालिकाओं को अपने रूप का, या भरी हुई गोल बाँहों या अपनी नग्नता का प्रदर्शन करते देखता हूँ, तो मुझे उन पर दया आती है। उनकी लालसाओं ने उन्हें इतना पराभूत कर दिया है कि वे अपनी लज्जा की भी रक्षा नहीं कर सकतीं।"- मेहता का भाषण

* "यह पुरुषों का षड्यन्त्र है। देवियों को ऊँचे शिखर से खींचकर अपने बराबर बनाने के लिये, उन पुरुषों का, जो कायर हैं, जिनमें वैवाहिक जीवन का दायित्व सँभालने की क्षमता नहीं है, जो स्वच्छन्द काम-क्रीड़ा की तरंगों में साँढ़ों की भाँति दूसरों की हरी-भरी खेती में मुँह डालकर अपनी कुत्सित लालसाओं को तृप्त करना चाहते हैं। पश्चिम में इनका षड्यन्त्र सफल हो गया और देवियाँ तितलियाँ बन गईं। मुझे यह कहते हुए शर्म आती है कि इस त्याग और तपस्या की भूमि भारत में भी कुछ वही हवा चलने लगी है।"- मेहता का भाषण

* "संन्यास केवल भीख माँगने का संस्कृत रूप है। वह प्रेम अगर वैवाहित जीवन में कम है, तो मुक्त विलास में बिलकुल नहीं है। सच्चा आनन्द, सच्ची शान्ति केवल सेवा व्रत में है। वही अधिकार का स्रोत है, वही शक्ति का उद्गम है। सेवा ही वह सीमेंट है, जो दम्पति को जीवनपर्यन्त स्नेह और साहचर्य में जोड़े रख सकता है, जिस पर बड़े-बड़े अघातों का कोई असर नहीं होता। जहाँ सेवा का अभाव है, वहीं विवाह-विच्छेद है, परित्याग है, अविश्वास है। और आपके ऊपर, पुरुष-जीवन का नौका की कर्णधार होने के कारण जिम्मेदारी ज्यादा है।"- मेहता का भाषण

* "भूल जाइए कि नारी श्रेष्ठ है और सारी जिम्मेदारी उसी पर है श्रेष्ठ पुरुष है और उसी पर गृहस्थी का सारा भार है। नारी में सेवा और संयम और कर्त्तव्य सब कुछ वही पैदा कर सकता है; अगर उसमें इन बातों का अभाव है तो नारी में भी अभाव रहेगा। नारियों में आज जो यह विद्रोह है, इसका कारण पुरुष का इन गुणों से शून्य हो जाना है।" - मिसेज खन्ना, मेहता ये-रायसाहब, संपादक ओंकारनाथ से

* "यह समाचार-पत्रों का युग है। सरकार तक उनसे डरती है मेरी हस्ती क्या! आप जिसे चाहें बना दें।"-रायसाहब, संपादक ओंकारनाथ से

* "जैसे शिक्षालयों को संस्थाओं द्वारा सहायता मिला करती है, ऐसे ही अगर पत्रकारों को मिलने लगे, तो इन बेचारों को अपना जितना समय और स्थान विज्ञापनों की भेंट करना पड़ता है, वह क्यों करना पड़े?"- संपादक ओंकारनाथ

* "हमारा धर्म है हमारा भोजन। भोजन पवित्र रहे, फिर हमारे धर्म पर कोई आँच नहीं आ सकती। रोटियाँ ढाल बनकर अधर्म से हमारी रक्षा करती हैं।" - मातादीन

* "कहाँ है इस गाँव में मजूरी? और कौन मुँह लेकर मजूरी करोगे? महतो नहीं कहलाते!"- धनिया, होरी से

* "मजूरी करना कोई पाप नहीं है। मजूर बन जाए तो किसान हो जाता है। किसान बिगड़ जाए तो मजूर हो जाता है।" - होरी, धनिया से

* "यह महाशय इसलिये तो इतना मिजाज करते हैं कि वह मेरा पालन करते हैं। मैं अब खुद अपना पालन करूँगी।"- गोविंदी

* "जिसे संसार दुःख कहता है, वही कवि के लिये सुख है। धन और ऐश्वर्य, रूप और बल, विद्या और बुद्धि, ये विभूतियाँ संसार को चाहे कितना ही मोहित कर लें, कवि के लिये यहाँ जरा भी आकर्षण नहीं है, उसके मोद और आकर्षण की वस्तु तो बुझी हुई आशाएँ और मिटी हुई स्मृतियाँ और टूटे हुए हृदय के आँसू हैं। जिस दिन इन विभूतियों में उसका प्रेम न रहेगा, उस दिन वह कवि न रहेगा। दर्शन जीवन के इन रहस्यों से केवल विनोद करता है, कवि उनमें लय हो जाता है।"- मेहता, गोविंदी से


* 'नारी-हृदय धरती के समान है, जिससे मिठास भी मिल सकती है, कड़वापन भी। उसके अंदर पड़नेवाले बीज में जैसी शक्ति हो।"- मेहता, गोविंदी से

* "मैं प्रकृति का पुजारी हूँ और मनुष्य को उसके प्राकृतिक रूप में देखना चाहता हूँ, जो प्रसन्न होकर हँसता है, दुखी होकर रोता है और क्रोध में आकर मार डालता है। जो दुःख और सुख दोनों का दमन करते हैं, जो रोने को कमज़ोरी और हँसने को हलकापन समझते हैं, उनसे मेरा कोई मेल नहीं। जीवन मेरे लिये आनन्दमय क्रीड़ा है, सरल स्वच्छन्द, जहाँ कुत्सा, ईर्ष्या और जलन के लिये कोई स्थान नहीं। मैं भूत की चिन्ता नहीं करता, भविष्य की परवाह नहीं करता।- मेहता, गोविंदी से

* मेरे लिये वर्तमान ही सब कुछ है। भविष्य की चिन्ता हमें कायर बना देती है, भूत का भार हमारी कमर तोड़ देता है। हममें जीवन की शक्ति इतनी कम है कि भूत और भविष्य में फैला देने से वह और भी क्षीण हो जाती है। हम व्यर्थ का भार अपने ऊपर लादकर, रूढ़ियों और विश्वासों और इतिहासों के मलवे के नीचे दबे पड़े हैं; उठने का नाम नहीं लेते, वह सामर्थ्य ही नहीं रही। जो शक्ति, जो स्फूर्ति मानव-धर्म को पूरा करने में लगनी चाहिये थी, सहयोग में, भाई-चारे में, वह पुरानी अदावतों का बदला लेने और बाप-दादों का ऋण चुकाने की भेंट हो जाती है। और जो यह ईश्वर और मोक्ष का चक्कर है, इस पर तो मुझे हँसी आती है। 'वह मोक्ष और उपासना अहंकार की पराकाष्ठा है, जो हमारी मानवता को नष्ट किए डालती है। जहाँ जीवन है, क्रीड़ा है, चहक है, प्रेम है, वहीं ईश्वर है; और जीवन को सुखी बनाना ही उपासना है, और मोक्ष है। ज्ञानी कहता है, ओठों पर मुस्कराहट न आये, आँखों में आँसू न आये। मैं कहता हूँ, अगर तुम हँस नहीं सकते और रो नहीं सकते, तो तुम मनुष्य नहीं हो, पत्थर हो। वह ज्ञान जो मानवता को पीस डाले, ज्ञान नहीं है, कोल्हू है।"- मेहता, गोविंदी से

* "माता का काम जीवन-दान देना है। जिसके हाथों में इतनी अतुल शक्ति है, उसे इसकी क्या परवाह कि कौन उससे रूठता है, कौन बिगड़ता है। प्राण के बिना जैसे देह नहीं रह सकता, उसी तरह प्राण का भी देह ही सबसे उपयुक्त स्थान है।" - मेहता, गोविंदी से

* "नारी केवल माता है, और इसके उपरान्त वह जो कुछ है, वह सब मातृत्व का उपक्रम मात्र। मातृत्व संसार की सबसे बड़ी साधना, सबसे बड़ी तपस्या, सबसे बड़ा त्याग और सबसे महान् विजय है। एक शब्द में उसे लय कहूँगा - जीवन का, व्यक्तित्व का और नारीत्व का भी।" - मेहता, गोविंदी से

* "यह ऊपरी आमदनी की चाट आदमी को खराब कर देती है ठाकुर; लेकिन हम लोगों की आदत कुछ ऐसी बिगड़ गई है कि जब तक बेईमानी न करें, पेट ही नहीं भरता।" - गोबर, झिंगुरी से

* "रुपए हों तो न हुक्का-पानी का काम है, न जात-बिरादरी का। दुनिया पैसे की है, हुक्का पानी कोई नहीं पूछता - गोबर, होरी से

"गर्मी उन्हें होती है, जो एक के दस लेते हैं। हम तो मजूर हैं। हमारी गर्मी पसीने के रास्ते बह जाती है। मुझे याद है, तुमने बैल के लिये तीस रुपए दिए थे। उसके सौ हुए और अब सौ के दौ सो हो गए। इसी तरह तुम लोगों ने किसानों को लूट-लूटकर मजूर बना डाला और आप उनकी ज़मीन के मालिक बन बैठे। तीस के दो सौ !"- गोबर, दातादीन से

* "पाँव में एक बार ठोकर लग जाने के बाद किसी कारण से बार-बार ठोकर लगती है और कभी-कभी अँगूठा पक जाता है और महीनों कष्ट देता है। पिता पुत्र के सद्भाव को आज उसी तरह की चोट लग गई थी।"- गोबर, धनिया से

* "डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूँगा हो जाता है। वही सीमेंट, जो ईंट पर चढ़कर पत्थर हो जाता है, मिट्टी पर चढ़ा दिया जाय, तो मिट्टी हो जायगा।"- गोबर, धनिया से

* "पालने में तुम्हारा क्या लगा? जब तक बच्चा था, दूध पिला दिया। फिर लावारिश की तरह छोड़ दिया। जो सबने खाया, वही मैंने खाया।"- गोबर, धनिया से

* "आज संसार का शासन सूत्र बैंकरों के हाथ में है। सरकार उनके हाथ का खिलौना है।"- मेहता, खन्ना से

* "जब धन जरूरत से ज्यादा हो जाता है, तो अपने लिये निकास का मार्ग खोजता है। यों न निकल पाएगा तो जुए में जायगा, घुड़‌दौड़ में जायगा, ईंट-पत्थर में जायगा, या ऐयाशी में जायगा।"- झिंगुरी सिंह

* "विनोद में दुःख उड़ गया। वही उसकी दवा है।"- झिंगुरी सिंह

* "कानून और न्याय उसका है, जिसके पास पैसा है। कानून तो है कि महाजन किसी असामी के साथ कड़ाई न करे, कोई जमींदार किसी काश्तकार के साथ सख्ती न करे; मगर होता क्या है। रोज ही देखते हो।"- झिंगुरी सिंह

* "किसान के लिये जमीन जान से भी प्यारी है, कुल मर्यादा से भी प्यारी है।"

* "माँ-बाप को भगवान् ने दिया हो, तो खुशी से जितना चाहें लड़की को दें, मैं मना नहीं करती; लेकिन जब वह पैसे-पैसे को तंग हो रहे हैं, आज महाजन नालिश करके लिल्लाम करा ले, तो कल मजूरी करनी पड़ेगी, तो कन्या का धरम यही है कि डूब मरे। घर की जमीन-जैजात तो बच जायगी, रोटी का सहारा तो रह जायगा।"- सोना, सिलिया से

* "जिसके पास जमीन नहीं, वह गृहस्थ नहीं, मजूर है।"

* "जब हम अपने किसी प्रियजन पर अत्याचार करते हैं, और जब विपत्ति आ पड़ने से हममें इतनी शक्ति आ जाती है कि उसकी तीव्र व्यथा का अनुभव करें, तो उससे हमारी आत्मा में जागृति का उदय हो जाता है, और हम उस बेजा व्यवहार का प्रायश्चित करने के लिये तैयार हो जाते हैं।"

* "खतरे में हमारी चेतना अंतर्मुखी हो जाती है"

* "जब हम नेकी करके उसका एहसान जताने लगते हैं, तो वही जिसके साथ हमने नेकी की थी, हमारा शत्रु हो जाता है, और हमारे एहसान को मिटा देना चाहता है। वही नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे, तो नेकी है, बाहर निकल आये तो बदी है।"

* "आसक्ति में आदमी अपने बस में नहीं रहता।"

* "यह धरम का बन्धन बड़ा कड़ा होता है। जिस समाज में जन्मे और पले, उसकी मर्यादा का पालन तो करना ही पड़ता है। और किसी जाति का धरम बिगड़ जाए, उसे कोई बिसेस हानि नहीं होती; बाम्हन का धरम बिगड़ जाए, तो वह कहीं का नहीं रहता। उसका धरम ही उसके पूर्वजों की कमाई है। उसी की वह रोटी खाता है। इस परासचित के पीछे हमारे तीन सौ बिगड़ गए। तो अब बेधरम होकर ही रहना है, तो फिर जो कुछ करूँगा परतच्छ करूंगा। समाज के नाते आदमी का अगर कुछ धरम है, तो मनुष्य के नाते भी तो उसका कुछ धरम है। समाज-धरम पालने से समाज आदर करता है; मगर मनुष्य-धरम पालने से तो ईश्वर प्रसन्न होता है।"-  मातादीन, दातादीन से

* "ईश्वर की कल्पना का एक ही उद्देश्य उनकी समझ में आता था और वह था, मानव जाति की एकता। एकात्मवाद या सर्वात्मवाद या अहिंसा-तत्त्व को वह आध्यात्मिक दृष्टि से नहीं, भौतिकी दृष्टि से ही देखते थे; यद्यपि इन तत्त्वों का इतिहास के किसी काल में भी आधिपत्य नहीं रहा, फिर भी मनुष्य जाति के सांस्कृतिक विकास में उनका स्थान बड़े महत्त्व का है। मानव समाज की एकता में मेहता का दृढ़ विश्वास था।"

* "पुरुष निर्दयी है, माना; लेकिन है तो इन्हीं माताओं का बेटा। क्यों माता ने पुत्र को ऐसी शिक्षा नहीं दी कि वह माता की, स्त्री जाति की पूजा करता? इसलिये कि माता को यह शिक्षा देनी नहीं आती, इसलिये कि उसने अपने को इतना मिटाया कि उसका रूप ही बिगड़ गया, उसका व्यक्तित्व ही नष्ट हो गया।"

* "नहीं, अपने को मिटाने से काम न चलेगा। नारी को समाज-कल्याण के लिये अपने अधिकारों की रक्षा करनी पड़ेगी, उसी तरह जैसे इन किसानों को अपनी रक्षा के लिये इस देवत्व का कुछ त्याग करना पड़ेगा।"- मालती का चिंतन

* "अज्ञान की भाँति ज्ञान भी सरल निष्कपट एवं सुनहले स्वप्न देखने वाला होता है। मानवता में उसका विश्वास इतना दृढ़, इतना सजीव होता है कि वह इसके विरुद्ध व्यवहार को अमानुषीय समझने लगता है। वह यह भूल जाता है कि भेड़ियों ने भेड़ों की निरीहता का जवाब सदैव पंजे और दाँतों से दिया है। वह अपना एक आदर्श संसार बनाकर उसको आदर्श मानवता से आबाद करता है और उसी में मग्न रहता है। यथार्थता कितनी अगम्य, कितनी दुर्बोध, कितनी अप्राकृतिक है, उसकी ओर विचार करना उसके लिये मुश्किल हो जाता है।"

* "जिसे सच्चा प्रेम कह सकते हैं, केवल एक बन्धन में बंध जाने के बाद ही पैदा हो सकता है। इसके पहले जो प्रेम होता है, वह तो रूप की आसक्ति-मात्र है, जिसका कोई टिकाव नहीं; मगर इसके पहले यह निश्चय तो कर लेना ही था कि जो पत्थर साहचर्य के खराद पर चढ़ेगा, उसमें खरादे जाने की क्षमता है भी या नहीं। सभी पत्थर तो खराद पर चढ़कर सुंदर मूर्तियाँ नहीं बन जाते।"

* "प्रकृति से स्पर्श होते ही जैसे मुझमें नया जीवन-सा आ जाता है; नस-नस में स्फूर्ति छा जाती है। एक-एक पक्षी, एक-एक पशु, जैसे मुझे आनन्द का निमन्त्रण देता हुआ जान पड़ता है, मानो भूले हुए सुखों की याद दिला रहा हो। यह आनन्द मुझे और कहीं नहीं मिलता मालती, संगीत के रुलाने वाले स्वरों में भी नहीं, दर्शन की ऊँची उड़ानों में भी नहीं। जैसे अपने-आपको पा जाता हूँ, जैसे पक्षी अपने घोंसले में आ जाए।"- मेहता, मालती से

* "नारी परीक्षा नहीं चाहती, प्रेम चाहती है। परीक्षा गुणों को अवगुण, सुंदर को असुंदर बनाने वाली चीज है; प्रेम अवगुणों को गुण बनाता है, असुंदर को सुंदर! मैंने तुमसे प्रेम किया, मैं कल्पना ही नहीं कर सकती कि तुममें कोई बुराई भी है; मगर तुमने मेरी परीक्षा की और तुम मुझे अस्थिर, चंचल और जाने क्या-क्या समझकर मुझसे मेर भागते रहे। नहीं, मैं जो कुछ कहना चाहती हूँ, वह मुझे कह लेने दो। मैं क्यों अस्थिर और चंचल हूँ; इसलिये कि मुझे वह प्रेम नाही मिला, जो मुझे स्थिर और अचंचल बनाता; अगर तुमने मेरे सामने उसी तरह आत्म-समर्पण किया होता, जैसे मैंने तुम्हारे सामने किया है, तो तुम आज मुझ पर यह आक्षेप न रखते।"- मालती, मेहता से 

*• "प्रेम सीधी-सादी गऊ नहीं, खूँख्वार शेर है, जो अपने शिकार पर किसी की आँख भी नहीं पड़ने देता।"- मेहता, मालती से

* "अगर प्रेम खूँख्वार शेर है तो मैं उससे दूर ही रहूँगी। मैंने तो उसे गाय ही समझ रखा था। मैं प्रेम को सन्देह से ऊपर समझती हूँ। वह देह की वस्तु नहीं, आत्मा की वस्तु है। सन्देह का वहाँ जरा भी स्थान नहीं और हिंसा तो सन्देह का ही परिणाम है। वह सम्पूर्ण आत्म-समर्पण है। उसके मंदिर में तुमं परीक्षक बनकर नहीं, उपासक बनकर ही वरदान पा सकते हो।" - मालती, मेहता से

* "छात्र को पुस्तकों से प्रेम हो सकता है और हो जाता है; लेकिन वह पुस्तक के उन्हीं भागों पर ज्यादा ध्यान देता है, जो परीक्षा में आ सकते हैं। उसकी पहली गरज परीक्षा में सफल होना है। ज्ञानार्जन इसके बाद। अगर उसे मालूम हो जाए कि परीक्षक बड़ा दयालु है या अन्धा है और छात्रों को यों ही पास कर दिया करता है, तो शायद वह पुस्तकों की ओर आँख उठाकर भी न देखे।"

* “हम जिनके लिये त्याग करते हैं, उनसे किसी बदले की आशा न रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं, चाहे वह शासन उन्हीं के हित के लिये हो, यद्यपि उस हित को हम इतना अपना लेते हैं कि वह उनका न होकर हमारा हो जाता है। त्याग की मात्रा जितनी ही ज़्यादा होती है, यह शासन-भावना भी उतनी ही प्रबल होती है और जब सहसा हमें विद्रोह का सामना करना पड़ता है, तो हम क्षुब्ध हो उठते हैं, और वह त्याग जैसे प्रतिहिंसा का रूप ले लेता है।"

* "संकटों में ही हमारी आत्मा को जागृति मिलती है।"

* "मिर्जा साहब की धारणा थी कि रूप के बाज़ार में वही स्त्रियाँ आती हैं, जिन्हें या तो अपने घर में किसी कारण से सम्मानपूर्ण आश्रय नहीं मिलता, या जो आर्थिक कष्टों से मजबूर हो जाती हैं; और अगर यह दोनों प्रश्न हल कर दिए जाएँ, तो बहुत कम औरतें इस भाँति पतित हों।"

* "मेहता का ख्याल था कि मुख्यतः मन के संस्कार और भोग-लालसा ही औरतों को इस ओर खींचता है।"

* "हर एक कौम में एक ऐसी चीज़ होती है, जिसे उसकी आत्मा कह सकते हैं। असमत (सतीत्व) हिंदुस्तानी तहज़ीब की आत्मा है।"- मिर्जा, खुशेंद

* "मैं नहीं समझती, तुम किस तर्क से इस दान-प्रथा का समर्थन कर सकते हो। मनुष्य जाति को इस प्रथा ने जितना आलसी और मुफ्तखोर बनाया है और उसके आत्मगौरव पर जैसा आघात किया है, उतना अन्याय ने भी न किया होगा; बल्कि मेरे खयाल में अन्याय ने मनुष्य-जाति में विद्रोह की भावना उत्पन्न करके समाज का बड़ा उपकार किया है।" - मालती, मेहता से

* "मोह ही विनाश की जड़ है। प्रेम-जैसी निर्मम वस्तु क्या भय से बाँधकर रखी जा सकती है? वह तो पूरा विश्वास चाहती है, पूरी स्वाधीनता चाहती है, पूरी जिम्मेदारी चाहती है। उसके पल्लवित होने की शक्ति उसके अंदर है। उसे प्रकाश और क्षेत्र मिलना चाहिये। वह कोई दीवार नहीं है, जिस पर ऊपर से ईंटें रखी जाती हैं। उसमें तो प्राण है, फैलने की असीम शक्ति है।"

* "तुमसे ज़्यादा निकट संसार में मेरा कोई दूसरा नहीं है। मैंने बहुत दिन हुए, अपने को तुम्हारे चरणों पर समर्पित कर दिया। तुम मेरे पथ-प्रदर्शक हो, मेरे देवता हो, मेरे गुरु हो। तुम्हें मुझसे कुछ याचना करने की ज़रूरत नहीं, मुझे केवल संकेत कर देने की ज़रूरत है। जब मुझे तुम्हारे दर्शन न हुए और मैंने तुम्हें पहचाना न था, भोग और आत्म-सेवा ही मेरे जीवन का इष्ट था। तुमने आकर उसे प्रेरणा दी, स्थिरता दी। मैं तुम्हारे एहसान कभी नहीं भूल सकती। मैंने नदी की तट वाली तुम्हारी बातें गाँठ बाँध ली। दुःख यही हुआ कि तुमने भी मुझे वही समझा जो कोई दूसरा पुरुष समझता, जिसकी मुझे तुमसे आशा न थी। उसका दायित्व मेरे ऊपर है, यह मैं जानती हूँ; लेकिन तुम्हारा अमूल्य प्रेम पाकर भी मैं वही बनी रहूँगी, ऐसा समझकर तुमने मेरे साथ अन्याय किया। मैं इस समय कितने गर्व का अनुभव कर रही हूँ, यह तुम नहीं समझ सकते। तुम्हारा प्रेम और विश्वास पाकर अब मेरे लिये कुछ भी शेष नहीं रह गया है। यह वरदान मेरे जीवन को सार्थक कर देने के लिये काफी है। यह मेरी पूर्णता है।"- मालती, मेहता से

* "प्रेम में कुछ मान भी होता है, कुछ महत्त्व भी। श्रद्धा तो अपने को मिटा डालती है और अपने मिट जाने को ही अपना इष्ट बना लेती है। प्रेम अधिकार कराना चाहता है, जो कुछ देता है, उसके बदले में कुछ चाहता भी है। श्रद्धा का चरम आनन्द अपना समर्पण है, जिसमें अहम्मन्यता का ध्वंस हो जाता है।"

* "मित्र बनकर रहना स्त्री-पुरुष बनकर रहने से कहीं सुखकर है। अपनी छोटी-सी गृहस्थी बनाकर अपनी आत्माओं को छोटे-से पिंजड़े में बन्द करके, अपने दुःख-सुख को अपने ही तक रखकर, क्या हम असीम के निकट पहुँच सकते हैं? वह तो हमारे मार्ग में बाधा ही डालेगा। कुछ विरले प्राणी ऐसे भी हैं, जो पैरों में यह बेड़ियाँ डालकर भी विकास के पथ पर चल सकते हैं और चल रहे हैं। यह भी जानती हूँ कि पूर्णता के लिये पारिवारिक प्रेम और त्याग और बलिदान का बहुत बड़ा महत्त्व है; लेकिन मैं अपनी आत्मा को उतना दृढ़ नहीं पाती। जब तक ममत्व नहीं है, तब तक जीवन का मोह नहीं है, स्वार्थ पर जोर नहीं है। जिस दिन मोह आसक्त हुआ, और हम बन्धन में पड़े, उस क्षण हमारा मानवता का क्षेत्र सिकुड़ जायगा, नई-नई ज़िम्मेदारियाँ आ जायेंगी और हमारी सारी शक्ति उन्हीं को पूरा करने में लगेगी। तुम्हारे जैसे विचारवान, प्रतिभाशाली मनुष्य की आत्मा को मैं इस कारागार में बन्दी नहीं करना चाहती। अभी तक तुम्हारा जीवन यज्ञ था, जिसमें स्वार्थ के लिये बहुत थोड़ा स्थान था। मैं उसको नीचे की ओर न ले जाऊँगी। संसार को तुम-जैसे साधकों की जरूरत है, जो अपनेपन को इतना फैला दें कि सारा संसार अपना हो जाए। संसार में अन्याय की, आतंक की, भय की दुहाई मची हुई है। अन्धविश्वास का, कपट-धर्म का, स्वार्थ का प्रकोप छाया हुआ है। तुमने वह आर्त्त-पुकार सुनी है। तुम भी न सुनोगे, तो सुनने वाले कहाँ से आयेंगे? अपनी विद्या और बुद्धि को, अपनी जागी हुई मानवता को और भी उत्साह और जोर के साथ उसी रास्ते पर ले जाओ। मैं भी तुम्हारे पीछे-पीछे चलूँगी। अपने जीवन के साथ मेरा जीवन भी सार्थक कर दो। मेरा तुमसे यही आग्रह है।" - मालती, मेहता से

* "परदा होता है हवा के लिये। आँधी में परदे उठाके रख दिए जाते हैं कि आँधी के साथ उड़ न जायें।"

* "यही मरद का धरम है। जिसकी बाँह पकड़ी, उसे क्या छोड़ना।"- होरी

* "संसार में गऊ बनने से काम नहीं चलता। जितना दबो, उतना ही लोग दबाते हैं। थाना पुलिस, कचहरी अदालत सब हैं हमारी रक्षा के लिये; लेकिन रक्षा कोई नहीं करता। चारों तरफ लूट है। जो गरीब है, बेकस है, उसकी गर्दन काटने के लिये सभी तैयार रहते हैं। भगवान् न करे, कोई बेईमानी करे। यह बड़ा पाप है, लेकिन अपने हक और न्याय के लिये न लड़ना उससे भी बड़ा पाप है।"- रामसेवक

* "यहाँ तो जो किसान है, वह सबका नरम, चारा है। पटवारी को नजराना और दस्तूरी न दे. तो गाँव में रहना मुश्किल। ज़मींदार के चपरासी और कारिन्दों का पेट न भरे तो निबाह न हो। थानेदार और कानिसिटिबिल तो जैसे उसके दामाद हैं। जब उनका दौरा गाँव में हो जाय, किसानों का धरम है, वह उनका आदर-सत्कार करें, नगर-नयाज़ दें, नहीं एक रिपोर्ट में गाँव का गाँव बँध जाय। कभी कानूनगो आते हैं, कभी तहसीलदार, कभी डिप्टी, कभी जण्ट, कभी कलक्टर, कभी कमिसनर।"- रामसेवक

* "पतन की वह इन्तहा है, जब आदमी शर्म और इज्जत को भी भूल जाता है।"

* "जिसे पेट को रोटी मयस्सर नहीं, उसके लिये मरजाद और इज्जत सब ढोंग है। औरों की तरह तुमने दूसरों का गला दबाया होता, उनकी जमा मारी होती, तो तुम भी भले आदमी होते। तुमने कभी नीति को नहीं छोड़ा, यह उसी का दण्ड है। तुम्हारी जगह मैं होता, तो या जेल में होता या फाँसी पर गया होता।" - गोबर, होरी से

* "मोटे वह होते हैं, जिन्हें न रिन का सोच होता है, न इज्जत का। इस जमाने में मोटा होना बेहयाई है। सौ को दुबला करके तब एक मोटा होता है। ऐसे मोटेपन में क्या सुख? सुख तो जब है कि सभी मोटे हों।"- होरी, हीरा से

* "जो कुछ अपने से नहीं बन पड़ा, उसी के दुःख का नाम तो मोह है। पाले हुए कर्त्तव्य और निपटाए हुए कामों का क्या मोह। मोह तो उन अनाथों को छोड़ जाने में है, जिनके साथ हम अपना कर्त्तव्य न निभा सके; उन अधूरे मंसूबों में है, जिन्हें हम न पूरा कर सके।"


मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास गोदान |  munshee premachand ka upanyaas godaan | Munshi Premchand's novel Godaan 

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