परीक्षा गुरू उपन्यास - लाला श्रीनिवास दास Pareeksha Guroo Upanyaas - Laala Shreenivaas Daas
परीक्षा गुरू उपन्यास - लाला श्रीनिवास दास Pareeksha Guroo Upanyaas - Laala Shreenivaas Daas
परीक्षा गुरू उपन्यास - (लाला श्रीनिवास दास)
* यह उपन्यास 1882 ई. में प्रकाशित हुआ।
* आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'परीक्षा गुरू' को अंग्रेजी ढंग का हिंदी का पहला उपन्यास माना है।
* उपन्यास के लेंखक लाला श्रीनिवास दास ने 'निवेदन' में इस उपन्यास को 'अपनी भाषा में नई चाल की पुस्तक' कहा है।
* लाला श्रीनिवास दास पुस्तक के निवेदन में उपन्यास लिखने हेतु प्रेरणा स्रोत के लिये महाभारतादिसंस्कृत, गुलिस्तां वगैर फारसी, स्पेक्टेटर, लार्ड बेकन, गोल्ड स्मिथ, विलियम कूपर, पुराने लेखों, स्त्रीबोध और वर्तमान के रिसालों को श्रेय देते हैं।
* उपन्यास में तत्कालीन मध्यवर्गीय जीवन का चित्रण भी मिलता है, जो पश्चिमी आधुनिकता से विशेष प्रभावित थे।
* यह उपन्यास कथा प्रधान नहीं बल्कि उपदेश प्रधान है।
# पात्र:-
# मुख्य पात्र:-
* लाला मदनमोहन :- उपन्यास का मुख्य पात्र जो एक धनवान व्यापारी है, लेकिन गलत संगति में फंसा रहता है। अंत में जेल जाता है जहाँ से एक सच्चा मित्र उसे बचाकर लाता है।
* लाला ब्रजकिशोर :- लाला मदनमोहन का सच्चा मित्र जो उसे हमेशा सही सलाह देता है। और अंत में निकाले जाने पर भी अपने मित्र को जेल से बचा लाता है। पेशे से वकील एवं समझदार इंसान।
* मुंशी चुन्नीलालः- मदनमोहन का चापलूस मित्र जो पहले लाला ब्रजकिशोर के यहाँ 10 रुपये महीने का नौकरी करता था।
* मास्टर शिंभूदयालः- लाला मदनमोहन को अंग्रेज़ी पढ़ाने के लिये रखा गया था। बाद में उसकी चापलूसी करके अपना उल्लू सीधा करता है।
* हरकिशोर :- लाला मदनमोहन से बैर हो जाने के कारण सभी व्यापारियों को भड़काकर लाला मदनमोहन पर मुकदमा करवाता है।
# गौण पात्र:-
* कामिनी :- मदनमोहन की पत्नी* प्रियम्वदा :- ब्रजकिशोर की पत्नी
* पंडित पुरुषोत्तम दास :- मित्र
* हकीम अहमद हुसैन :- मित्र
* बाबू बैजनाथ :- मित्र
* लाला हरदयाल :- मित्र
* हरगोविन्द :- पंसारी का लड़का
* मिस्टर ब्राइट
* निहाचन्द मोदी
* आगाहसन जान
# कथासार:-
इस उपन्यास की कहानी दिल्ली के एक ऐसे कारोबारी व साहूकार लाला मदनमोहन की है जो एक समृद्ध वैश्य परिवार में जन्म लेता है और उसे अपने पिता की मेहनत व धीरज से बड़ी दौलत विरासत में मिलती है। लेकिन वह पश्चिमी आधुनिकता के प्रवाह में पड़कर लगातार अपव्यय करता है। वो युवावस्था में गलत संगति में पड़कर अपनी सारी दौलत खो बैठता है। उसे आदमी की परख नहीं है। वह अपने सच्चे मित्र लाला ब्रजकिशोर जो उसके हर अनुचित कार्यों से पहले उसे टोकता था उसे दूर कर देता है, जबकि चुन्नीलाल, शंभूदयाल, बैजनाथ आदि को अपने साथ रखता है। और ये सारे अवसरवादी लोग उसके हर अनुचित कार्य पर प्रोत्साहन देते हैं, उसकी खुशामद करते हैं तथा उससे अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। इन लालची लोगों द्वारा दी गयी गलत सलाहों के कारण लाला मदनमोहन जल्द ही कर्ज में डूब जाता है। उसी समय हरकिशोर से उसका बैर हो जाता है। वह सारे लेनदारों को इकट्ठा करके लाला मदनमोहन पर मुकदमा कर देता है। विपत्ति के समय लाला मदनमोहन के सारे कपटी/लालची/मौका-परस्त मित्र उसका साथ छोड़ देते हैं। अंत में उसका सच्चा, शिक्षित, बुद्धिमान, वकील मित्र लाला ब्रजकिशोर उसका साथ निभाता है और उसकी खोई हुई संपत्ति उसे वापस दिलवाता है। अंत में लाला मदनमोहन को अपनी गलतियों का एहसास होता है और वह चापलूसी करने वाले मित्रों तथा दुर्व्यसनों से भी तौबा कर लेता है।
* उपन्यास के प्रकरण:-
यह उपन्यास 41 प्रकरणों में विभक्त है |
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1.सौदागर की दुकान 2.अकाल मैं अधिकमास 3.संगति का फल 4.मित्रमिलाप 5.विषयासक्त 6.भले बुरे की पहचान 7.सावधानी 8.सब में हां (!) 9.सभासद 10.प्रबन्ध (इन्तज़ाम) 11.सज्जनता 12.सुख-दुःख 13.बिगाड़ का मूल-विवाद 14.पत्र व्यवहार 15.प्रिय अथवा पिय् 16.सुरा (शराब) 17.स्वतंत्रता और
स्वेच्छाचार 18.क्षमा 19.स्वतंत्रता 20.कृतज्ञता |
21.पतिव्रता 22.संशय 23. प्रामाणिकता 24. हाथ से पैदा
करने वाले (और पोतड़ों के अमीर) 25. साहसी पुरुष 26. दिवाला 27. लोक चर्चा (अफवाह) 28. फूट का काला मुँह 29. बातचीत 30. नैराश्य (नाउम्मीदी) 31. चालाक की चूक 32. अदालत 33. मित्रपरीक्षा 34. हीनप्रभा 35. स्तुति निन्दा का भेद 36. धोके की टट्टी 37. विपत्ति में धैर्य 38. सच्ची प्रीति 39. प्रेत-भय 40. सुधारने की रीति 41. सुख की परमावधि |
विशेष
* उपन्यास में प्रतीकात्मक रूप से ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत के आर्थिक शोषण और लूट का यथार्थ चित्रण किया गया है।
* इस उपन्यास के हर प्रकरण की शुरुआत संस्कृत, ब्रज, फारसी आदि भाषा के साथ-साथ इंग्लैंड, यूनान आदि के प्रमुख विद्वानों के विचारों के पद्यानुवाद से होती है।
* उपन्यास दिल्ली के आसपास की बोलचाल की भाषा में लिखा गया है।
* उपन्यास में आए पद्मों की भाषा ब्रज है, जबकि गद्य की भाषा खड़ी बोली। ये उस युग के प्रभाव का कारण है।
* उपन्यास में तत्कालीन समाज में व्याप्त अशिक्षा, लोभ, प्रपंच, दिखाये और दयनीय स्थिति की समस्या आदि पर प्रकाश डाला गया है।
# प्रमुख उद्धरण
* "अपनी भाषामैं यह नई चालक़ी पुस्तक होगी, ... यह सच है कि नई चाल की चीज़ देखनेंको सबका जी ललचाता है परंतु पुरानी रीतिके मनमैं समाये रहने और नई रीतिको मन लगाकर समझनेंमें थोड़ी मेहनत होनेंसै पहले, पहले पढ़नेंवाले का जी कुछ उलझनें लगता है और मन उछट जाता है।"
5 "बलायत की सब उन्नति का मूल लार्ड बेकन की यह नीति है कि केवल बिचार ही बिचार मैं मकड़ी के जाले न बनाओ आप परीक्षा करके हरेक पदार्थ का स्वभाव जानों।" - मिस्टर ब्राइट
* "प्रीति का सुख ऐसा ही अलौकिक है। संसार मैं जिन लोगों को भोजन के लिये अन्न और पहन्ने के लिये वस्त्र तक नहीं मिल्ता उन्को भी अपनें दुःख सुख के साथी प्राणोपम मित्र के आगे अपना दुःख रोकर छाती का बोझ हल्का करने पर, अपनें दुखों को सुन, सुन कर उस्के जी भर आनें पर, उस्के धैर्य देने पर, उस्के हाथ से अपनी डबडबाई हुई आंखों के आँसू पुछ जानें पर, जो संतोष होता है वह किसी बड़े राजा को लाखों रुपे खर्च करने से भी नहीं होसक्ता।" - लाला हरदयाल
* "परोपकार की इच्छा ही अत्यन्त उपकारी है परंतु हद्द सै आगे बढ़नें पर वह भी फिजूलखर्ची समझी जायगी और अपनें कुटुंब परवारादि का सुख नष्ट हो जाएगा जो आलसी अथवा अधर्मियों की सहायता की तो उस्सै संसार मैं आलस्य और पाप की वृद्धि होगी इसी तरह कुपात्र मैं भक्ति होनें सै लोक, परलोक दोनों नष्ट हो जायंगें, न्यायपरता यद्यपि सब वृत्तियों को समान रखनें वाली है परंतु इस्की अधिकता सै भी मनुष्य के स्वभाव मैं मिलनसारी नहीं रहती, क्षमा नहीं रहती।" -लाला ब्रजकिशोर
* "हिन्दुस्थान की भूमि मैं ईश्वर की कृपा सै उन्नति करनें के लायक सब सामान बहुतायतसे मौजूद हैं केवल नदियों के पानी ही से बहुत तरह की कलैं चल सक्ती हैं परंतु हाथ हिलाये बिना अपनें आप ग्रास मुख मैं नहीं जाता नई, नई युक्तियों का उपयोग किए बिना काम नहीं चलता।"। -लाला ब्रज किशोर
* "देशकी उन्नति अवनतिका आधार वहाँ के निवासियों की प्रकृति पर है, सब देशो मैं सावधान और असावधान मनुष्य रहते हैं परंतु जिस देशके बहुत मनुष्य सावधान और उद्यागी होते हैं उस्की उन्नति होती देशक है और जिस देशमैं असावधान और कमकस विशेष होते हैं जाकी अवनति होती जाती है, हिन्दुस्थान में इस समय और देशों की अपेक्षा सच्चे सावधान बहुत कम हैं और जो हैं वे द्रव्य की असंगति सै, अथवा द्रव्यवानों की अज्ञानता से, अथवा उपयोगी पदाथो की अप्राप्तिसै, अथवा नई, नई युक्तियों के अनुभव करने की कठिनाइयोंसै, निरर्थक से हो रहे हैं और उन्की सावधानता बनक फूलोंकी तरह कुछ उपयोग किए बिना वृथा नष्ट हो जाती है परंतु हिन्दुस्थान मैं इस समय कोई सावधान न हो यह बात हरीगज नहीं है।" -लाला ब्रजकिशोर
* "मनुष्य जिस बात को मन सै चाहता है उस्का पूरा होना ही सुख का कारण है ओर उस्मैं हर्ज पड़नें ही सै दुःख होता है।"
- मास्टर शिंभूदयाल
* "हिन्दुस्थान की उन्नति नहीं होती, विद्याभ्यास के गुण कोई नहीं जान्ता, अखबारों की कदर कोई नहीं करता, अखबार जारी करनें वालों को नफेके बदले नुक्सान उठाना पड़ता है, हम लोग अपना दिमाग़ खिपा कर देश की उन्नति के लिये आर्टिकल लिखते हैं, परंतु अपनें देश के लोग उस्की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखते।"
- लाला ब्रजकिशोर
* "ईश्वर ने मनुष्यों को स्वतन्त्र बनाया है पर स्वेच्छाचारी नहीं बनाया क्योंकि उस्को प्रकृति के नियमों मैं अदलबदल करनें की कुछ शक्ति नहीं दी गई।" - लाला ब्रजकिशोर
•" वर्तमान समय के अनुसार सब के फायदे की बातों पर सत् शास्त्र और शिष्टाचार की एकता सै बरताव करना सच्ची स्वतंत्रता है।". - लाला ब्रजकिशोर
* "दंडका प्रयोजन किसी अपराधी सै बदला लेनें का नहीं हैं बल्कि आगेके लिये और अपराधों से लोगों को बचानें का है।"
- मास्टर शिंभूदयाल
* "आदमी की पहचान जाहिरी बातों से नहीं होती उस्के बरतावसै होती हैं।". - लाला ब्रजकिशोर
* "मनुष्य को जलन उस मौकेपर हुआ करती है जब वह आप उस लायक न हो परंतु तुम को जो बड़ाई बड़े परिश्रम से मिली है वह ईश्वर की कृपा से मुझ को बेमेहनत मिल रही हैं। फिर मुझको जलन क्यों हो? तुम्हारी तरह खुशामद कर के मदनमोहन से मेल किया चाहता तो मैं सहज मैं करलेता। परंतु मैंने आप यह चाल पसंद न की तो अपनी इच्छा से छोड़ी हुई बातों के लिये मुझ को जलन क्यों हो? जलन की वृत्ति परमेश्वर ने मनुष्य को इस लिये दी है कि वह अपने से ऊंची पदवी के लोगों को देखकर उचित रीति से अपनी उन्नति का उद्योग करे।" -लाला ब्रजकिशोर
* "एक प्रामाणिक मनुष्य परमेश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना है।"
-- लाला ब्रजकिशोर
* "मनुष्य के मनके बिचार न सुधरे तो पढ़नें-लिखनें सै क्या लाभ हुआ?" - लाला ब्रजकिशोर
* "सावधानी, आदमी की दृढ़ बुद्धिको कहते हैं।"
- लाला ब्रजकिशोर
* 'अफ़वाह वह भयंकर वस्तु है जिस्से बहुत से निर्दोष दूषित बन जाते हैं। हिन्दुस्थानियोंमैं अबतक विद्याका ब्यसन नहीं है, समय की कदर नहीं है, भले बुरे कामों की पूरी पहचान नहीं है इसी सै यहाँ के निवासी अपना बहुत समय ओरों के निज की बातों पर हासिया लगानें मैं और इधर उधरकी जटल्ल हांकनेंमैं खो देते हैं जिस्से तरह, तरह की अफ़वाएँ पैदा होती हैं और भलेमानसोंकी झूटी निंदा अफ़वाहकी जहरी पवन मैं मिल्कर उनके सुयशको धुंधला करती है।"। -लाला ब्रजकिशोर
* "आदतब यह सामर्थ्य है कि वह मनुष्य की इच्छा न होनें पर भी अपनी इच्छानुसार काम करा लेती है, धोका दे, देकर मनपर अधिकार कर लेती है।" - लाला ब्रजकिशोर
* "मनुष्य के चित्त से बढ़कर कोई बस्तु कोमल और कठोर नहीं है।" - लाला ब्रजकिशोर
* "किसी मनुष्य की रीति भांति सुधरे बिना उस्सै आगे को काम नहीं लिया जा सक्ता परंतु जिन लोगों का सुधारना अपनें बूते सै बाहर हो उन्सै काम काजका सन्बन्ध न रखना ही अच्छा है और जब किसी मनुष्य सै ऐसा संबंध न रखा जाय तो उस्के सुधारनें का बोझ सर्व शक्तिमान परमेश्वर अथवा राज्याधिकारियों पर समझकर उस्सै द्वेष और बैर रखनें के बदले उस्की हीन दशा पर करुणा और दया रखनी सज्जनों को विशेष शोभित करती है।"
- लाला ब्रजकिशोर
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