देवरानी-जेठानी की कहानी (पं. गौरीदत्त शर्मा)||Devrani-jethani ki kahani upnyaas - P. Goridatt sharma,UGC NET,
देवरानी-जेठानी की कहानी (पं. गौरीदत्त शर्मा) 1870 ई.
प्रिय पाठकों ....... इस उपन्यास के माध्यम से हम देवरानी जेठानी की कहानी नामक उपन्यास जो की पंडित गौरीदत्त शर्मा द्वारा लिखित है इस लेख के माध्यम से हम इसकी संपूर्ण जानकारी व इसके पात्र और कथासार व प्रमुख विशेषता के बारे में चर्चा करेंगे
देवरानी-जेठानी की कहानी, Devrani-jethani ki kahani upnyaas,हिन्दी साहित्य,UGC NET,
* यह 1870 ई. में मेरठ के एक लियो प्रेस से प्रकाशित हुआ था।
* गौरी दत्त का 'देवरानी जेठानी की कहानी' उपन्यास पैंतीस पृष्ठों में समाहित एक लघुकाय उपन्यास है।
* हिंदी के प्रथम उपन्यास के मतभेद में यह उपन्यास भी गिना जाता है जिसके लेखक पं. गौरीदत्त शर्मा ने उपन्यास की भूमिका में ही इस उपन्यास के उद्देश्य और ज़रूरत को रेखांकित कर दिया है। यह उपन्यास पढ़ी-लिखी और अनपढ़ स्त्रियों के गुण-दोष को रेखांकित करता है।
* गौरी दत्त का 'देवरानी जेठानी की कहानी' उपन्यास पैंतीस पृष्ठों में समाहित एक लघुकाय उपन्यास है।
* हिंदी के प्रथम उपन्यास के मतभेद में यह उपन्यास भी गिना जाता है जिसके लेखक पं. गौरीदत्त शर्मा ने उपन्यास की भूमिका में ही इस उपन्यास के उद्देश्य और ज़रूरत को रेखांकित कर दिया है। यह उपन्यास पढ़ी-लिखी और अनपढ़ स्त्रियों के गुण-दोष को रेखांकित करता है।
* उपन्यास का परम लक्ष्य यही बताना है कि समाज-परिवार के लिये पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ क्यों जरूरी हैं।
* पं. गौरीदत्त ने अपनी इस कृति में स्पष्ट किया है कि वे इसका प्रणयन स्त्री शिक्षा के लिये कर रहे हैं। वे यह भी लिखते हैं- "मैंने इस कहानी को नए रंग-ढंग से लिखा है। मुझको निश्चय है कि दोनों, स्त्री-पुरुष इसको पढ़कर अति प्रसन्न होंगे और बहुत लाभ उठायेंगे।"
* पं. गौरीदत्त ने अपनी इस कृति में स्पष्ट किया है कि वे इसका प्रणयन स्त्री शिक्षा के लिये कर रहे हैं। वे यह भी लिखते हैं- "मैंने इस कहानी को नए रंग-ढंग से लिखा है। मुझको निश्चय है कि दोनों, स्त्री-पुरुष इसको पढ़कर अति प्रसन्न होंगे और बहुत लाभ उठायेंगे।"
* इसमें बनिया परिवार की पृष्ठभूमि द्वारा कथा प्रस्तुत की गई है।
पात्र
* मुख्य पात्र और गोण पात्र* मुख्य पात्र *
पुरुष पात्र : -
* लाला सर्वसुखः - मेरठ का अग्रवाल बनिया जिसने अपने पुरुषार्थ से धन-दौलत, हाट-हवेली खड़ी की थी।
* दौलतरामः - लाला सर्वसुख का बड़ा बेटा। पिता के व्यवसाय में सहयोग करता है।
* मुलिया और कन्हैयाः- दौलतराम के क्रमशः पुत्री और पुत्र।
* छोटेलाल :- लाला सर्वसुख का छोटा बेटा। रेलवे के दफ्तर में नौकरी करता है।
* नन्हे और मोहनः- छोटे लाल के क्रमशः बड़े और छोटे बेटे।
* आनंदी (देवरानी):- छोटेलाल की पत्नी। व्यवहार कुशल और विवेकशील स्त्री। आनंदी (देवरानी) सुशिक्षित और गुणवान है।
* पार्वतीः - सर्वसुख की बड़ी बेटी, इसकी शादी दिल्ली में हुई।
* सुखदेई: - सर्वसुख की छोटी बेटी।
* दौलतरामः - लाला सर्वसुख का बड़ा बेटा। पिता के व्यवसाय में सहयोग करता है।
* मुलिया और कन्हैयाः- दौलतराम के क्रमशः पुत्री और पुत्र।
* छोटेलाल :- लाला सर्वसुख का छोटा बेटा। रेलवे के दफ्तर में नौकरी करता है।
* नन्हे और मोहनः- छोटे लाल के क्रमशः बड़े और छोटे बेटे।
स्त्री पात्र -
* ज्ञानो (जेठानी): - दौलतराम की पत्नी और घर की जेठानी (बड़ी बहू)। यह अनपढ़ और झगड़ालू प्रवृत्ति की है।* आनंदी (देवरानी):- छोटेलाल की पत्नी। व्यवहार कुशल और विवेकशील स्त्री। आनंदी (देवरानी) सुशिक्षित और गुणवान है।
* पार्वतीः - सर्वसुख की बड़ी बेटी, इसकी शादी दिल्ली में हुई।
* सुखदेई: - सर्वसुख की छोटी बेटी।
गौण पात्र
शिवदयाल,बंशीधर कबाड़ी,
ज्ञानचंद, डूंगर,
तहसीलदार,
राम प्रसाद,
गंगा राम,
भगवानदेई,
दिल्ला पाण्डेय,
मिसरानी,
मुंशी टिकट नारायण
हर सहाय काबली,
लाला दीन दयाल,
किरपी (बाल विधवा),
लाला बुलाकीदास (मदरसे में नौकर),
झल्ला मल्ल।
हिंदी के इस प्रथम माने जाने वाले उपन्यास की खास बात यह है कि इसमें लोक जीवन के चटख रंगों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
कथासार
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस उपन्यास के केंद्र में नारी को आधार बनाकर पढ़े-लिखे और अनपढ़ के बीच का अंतर स्पष्ट किया गया है। लाला सर्वसुख के बड़े बेटे दौलतराम की पत्नी (बहू) ज्ञानो और छोटे बेटे 'छोटेलाल' की पत्नी आनंदी है। ज्ञानो अर्थात् जेठानी बेपढ़ी स्त्री है। वह तनिक भी व्यवहार कुशल नहीं है। सास, ससुर, देवरानी (छोटी बहू) सबसे उसकी खटपट लगी रहती है। छोटी बहू अर्थात् देवरानी पढ़ी-लिखी और समझदार है। उसकी व्यवहार कुशलता से लाला सर्वसुख और उनकी पत्नी सहित पूरा परिवार संतुष्ट रहता है। देवरानी जेठानी उपन्यास अनेक सामाजिक कुरीतियों, बाह्याडंबरों, धार्मिक अंधविश्वास आदि पर करारी चोट करता है। आभूषण प्रियता, विवाह में फिजूलखर्च झाड़-फूंक आदि की चर्चा हुई है। अलगौझे की समस्या भी इस उपन्यास में चित्रित हुई है। परिवार में वृद्ध की स्थिति क्या हो जाती है उपन्यास इस पर भी हल्की-सी रोशनी डालता है।हिंदी के इस प्रथम माने जाने वाले उपन्यास की खास बात यह है कि इसमें लोक जीवन के चटख रंगों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
* उपन्यास का अंत : - बँटवारे से होता है,
जहाँ बड़े बेटे दौलतराम के हिस्से में दुकान, जबकि छोटे बेटे छोटे लाल के हिस्से में मकान आताहै।
दौलतराम मकान में भी आधा हिस्सा ले लेता है। मकान से जाते वक्त बड़ी बहू खिड़कियों के दरवाजे और चौखट भी ले जाती हैं।
* आनंदी के पिता द्वारा कहलवाया गया है-
"ज्ञानवान लड़कियाँ घबराती नहीं हैं, सब काम किये जाती हैं।"
* पुनर्विवाह का समर्थन किया गया है।
विशेष
* यह उपन्यास समस्या के साथ समाधान भी प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिये झाड़-फूंक की जगह डॉक्टर को दिखाना, वृद्ध समस्या के बीच देवरानी द्वारा सेना का आदर्श प्रस्तुत करना।* आनंदी के पिता द्वारा कहलवाया गया है-
"ज्ञानवान लड़कियाँ घबराती नहीं हैं, सब काम किये जाती हैं।"
* पुनर्विवाह का समर्थन किया गया है।
* लोक मुहावरों का यथास्थान उचित प्रयोग।
* "मेरठ में सर्वसुख नामक एक अग्रवाल बनिया था।"
प्रमुख उद्धरण
* "शीतला माँ के नाराज हो जाने के भय से लोग बच्चों को चेचक का टीका तक नहीं लगवाते थे।"* "मेरठ में सर्वसुख नामक एक अग्रवाल बनिया था।"
देवरानी-जेठानी की कहानी
Devrani-jethani ki kahani upnyaas - P. Goridatt sharma
नोट :- इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम हिंदी साहित्य के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।
Post a Comment