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गद्य साहित्य - प्रमुख नाटक || हिन्दी साहित्य इतिहास NCERT BOOK || 11th & 12th class Book

                   गद्य साहित्य - प्रमुख नाटक 

इस युग में गद्य साहित्य भी प्रचुर मात्रा में लिखा गया। गद्य की लगभग सभी विधाओं का इस काल में विकास हुआ। साहित्यकारों के मन पर राष्ट्र की प्रत्येक महत्त्वपूर्ण घटना का प्रभाव पड़ा और उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना प्रतिबिम्बित हुई। इस युग में साहित्य की प्रत्येक विधा में व्यापक राष्ट्रीय जागरण एवं सुधार की भावना विद्यमान है।

प्रिय पाठकों,........इस पोस्ट में हम हिंदी नाटक (गद्य साहित्य - प्रमुख नाटक)   के महत्वपूर्ण बिंदुओं को क्रमवार समाहित किया गया है। यदि आपको हमारे द्वारा किया गया यह प्रयास अच्छा लगा है, तो इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम हिंदी साहित्य के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।

नाट्य साहित्य :- 

द्विवेदी युग में नाटक अपेक्षाकृत कम ही लिखे गए। इस काल के नाटकों को छः वर्गों मेंविभक्त किया जा सकता है -

 (क) पौराणिक नाटक, 

(ख) ऐतिहासिक नाटक, 

(ग) सामयिक उपादानों पर रचित नाटक, 

(घ) रोमांचकारी नाटक 

(ड) प्रहसन और 

(च) अनूदित नाटक

राम और कृष्ण से संबंधित पौराणिक नाटकों में :-

  • राधाचरण गोस्वामी का -  'श्रीदामा' (1904).
  • शिवनंदन सहाय का - 'सुदामा' (1907) 
  • प्रताप नारायण मिश्र का - 'कंसवध' (1910). 
  • रामनारायण मिश्र का - 'जनक बाड़ा' (1906), 
  • गंगाप्रसाद का - 'रामाभिषेक' (1910),
  •  गिरधारीलाल का - 'राम-वनयात्रा' (1910).
  • नारायणसहाय का - 'रामलीला' (1911), 
  • रामगुलामलाल का - 'धनुषयज्ञ लीला' (1912) उल्लेखनीय है।

* अन्य पौराणिक नाटकों में :- 

  • महावीर सिंह का 'नल-दमयन्ती' (1905), 
  • बालकृष्ण भट्ट का 'वेणुसंहार' (1909), 
  • लक्ष्मीप्रसाद का 'उर्वशी' (1910), 
  • जयशंकर प्रसाद का 'करुणालय' (1912). 
  • माखनलाल चतुर्वेदी का 'कृष्णार्जुन-युद्ध' (1918) उल्लेखनीय है। 
  • ये नाटक उपदेशात्मक अधिक हैं।

ऐतिहासिक नाटकों में :- 

  • गंगाप्रसाद गुप्त का 'वीर जयमल' (1903). 
  • वृंदावनलाल वर्मा का 'सेनापति उदल' (1909), 
  • बद्रीनाथ भट्ट का 'चन्द्रगुप्त' (1915), 
  • जयशंकर प्रसाद का 'राज्यश्री' (1915) उल्लेखनीय है। 
  • वस्तुतः हिंदी साहित्य में ऐतिहासिक नाटकों का सूत्रपात प्रसाद से ही हुआ है।

सामयिक उपादानों पर आधारित नाटकों में :-

  • प्रतापनारायण मिश्र का 'भारत-दुर्दशा' (1902).
  • भगवतीप्रसाद का 'वृद्ध-विवाह' (1905). 
  • जीवानन्द शर्मा का 'भारत-विजय' (1906), 
  • कृष्णानन्द जोशी का 'उन्नति कहां से होगी' (1915) 
  • मिश्रबन्धु का 'नेत्रोन्मीलन' (1915) उल्लेखनीय है। 

- इन नाटकों में तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक जीवन की विकृतियों को उभारने की चेष्टा की गई है रोमांचकारी नाटक मुख्यतः रोमांचकारी एवं अलौकिक घटनाओं के केन्द्र में रखकर पारसी रंगमंच की दृष्टि से लिखे गए। इन्हें मंचीय नाटक भी कहा गया है। ये व्यवसायी नाटक-मण्डलियों के लिए लिखे गए। 

- रोमांचकारी नाटकों में मोहम्मद मिया का 'रौनक', हुसैन मिया का 'जरीफ', मुंशीविनायक प्रसाद का 'तालिब', सैयद मेहंदी हसन का 'अहसान' आगा मोहम्मद का 'हश्र" उल्लेखनीय है। इन नाटककारों में राधेश्याम कथावाचक का नाम महत्त्वपूर्ण है। 

- इन्होंने अपने नाटकों को चमत्कारपूर्ण बनाने के लिए परदों की तड़क-भड़क और वेश-भूषा की चमक-दमक के साथ दृश्यों में अद्भुत तत्वों का समावेश किया 

जैसे- 

  • आकाश-मार्ग से देवताओं का जाना, 
  • तारों का टूटना, पुष्पवर्षा करना, 
  • खम्भों का टूटना और उनमें से पात्रों का निकलना आदि।

इस युग में प्रहसन भी लिखे गए जिनमें :- 

बद्रीनाथ भट्ट का 'चुकी की उम्मीदवारी' (1912),

गंगाप्रसाद श्रीवास्तव का 'उलटफेर' (1918), और 'नोक-झोंक' (1918) प्रमुख है।

इस युग में संस्कृत, अंग्रेजी और बंगला भाषा से कुछ नाटकों के अनुवाद भी हुए। संस्कृत से श्री सदानन्द अवस्थी ने 'नागानन्द' (1906), लाला सीताराम ने 'मृच्छकटिक' (1913) और कबिरत्न सत्यनारायण ने 'उत्तररामचरित' का अनुवाद किया। फ्रांस के प्रसिद्ध नाटककार मोलियर के नाटकों को लल्लीप्रसाद पाण्डेय और गंगाप्रसाद श्रीवास्तव ने अंग्रेजी के माध्यम से अनुवाद किया।

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