प्रमुख उपन्यास || गद्य साहित्य || हिन्दी साहित्य इतिहास || NCERT 11th & 12th Class Book
उपन्यास
इस काल में उपन्यास नाटक की अपेक्षा अधिक लिखे गए। इस काल के लेखकों और पाठकों की प्रवृत्ति कुतूहल, रहस्य और रोमांच के माध्यम से मनोरंजन करने में अधिक रही है। सामाजिक जीवन की यथार्थ समस्याओं को लेकर गम्भीर उपन्यासों की रचना इस युग में कम हुई।
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इस युग में तिलस्मी-ऐयारी, जासूसी, अद्भुत घटनाप्रधान, ऐतिहासिक एवं सामाजिक उपन्यास अधिक लिखे गए।
तिलस्मी-ऐयारी उपन्यासों की परंपरा देवकीनन्दन खत्री (1861-1913) द्वारा भारतेन्दु युग में आरंभ की गई जो द्विवेदी युग में भी जीवित रही।
देवकीनन्दन खत्री जी के :-
- 'काजर की कोठरी' (1902),
- 'अनूठी बेगम' (1905),
- 'गुप्त गोदना' (1906).
- "भूतनाथ'-प्रथम छह भाग (1906) आदि उपन्यास प्रकाशित हुए।
हरेकृष्ण जौहर ने :-
- 'मयंकमोहिनी या मायामहल' (1901),
- 'कमलकुमारी' (1902).
- 'निराला नकाबपोश (1902),
- 'भयानक खून' (1903) आदि तिलस्मी उपन्यास लिखे।
किशोरीलाल गोस्वामी ने:-
- 'तिलस्मी शीशमहल' (1905)
- - रामलाल वर्मा 'पुतली महल' (1908) भी इसी वर्ग की रचनाएँ हैं।
- आगे चलकर देवकीनन्दन खत्री के सुपुत्र दुर्गाप्रसाद खत्री ने 'भूतनाथ' के शेष भागों को लिखकर इस परंपरा को आगे बढ़ाया।
- जासूसी उपन्यासों का प्रवर्तन गोपालराम गहमरी (1866-1946) ने किया।
- गहमरी जी अंग्रेजी के प्रसिद्ध जासूसी उपन्यासकार आर्थर कानन डायल से प्रभावित थे।
आर्थर के उपन्यास :-
- 'ए स्टडी इन स्कारलेट (1887) का इन्होंने 'गोविन्दराम' (1905) नाम से अनुवाद किया।
- 'सरकटी लाश' (1900),
- 'चक्करदार चोरी' (1901),
- 'जासूस की भूल' (1901),
- 'जासूस पर जासूसी' (1904).
- 'जासूस चक्कर में (1906),
- 'इन्द्रजालिक जासूस' (1910),
- 'गुप्त भेद' (1913),
- 'जासूस की ऐयारी' (1914) आदि उनके प्रसिद्ध जासूसी उपन्यास हैं।
अद्भुत घटनाप्रधान उपन्यासों में :-
- विट्ठलदास नागर का 'किस्मत का खेल' (1905).
- बांकेलाल चतुर्वेदी का 'खौफनाक खेल' (1912),
- निहालचन्द वर्मा का 'प्रेम का फल या मिस जौहरा' (1913),
- प्रेमविलास वर्मा का 'प्रेममाधुरी या अनंगकान्ता' (1915)
- दुर्गाप्रसाद खत्री का 'अद्भुत भूत (1916) प्रमुख हैं।
- इस युग में ऐतिहासिक उपन्यास भी लिखे गए परंतु इन उपन्यासों में इतिहास तत्वों की कमी थी। ये उपन्यास भी रहस्य एवं रोमांच से प्रेरित थे।
ऐतिहासिक उपन्यासकारों में :-
- किशोरीलाल गोस्वामी (1865-1932) इस युग के सशक्त उपन्यासकार हैं।
किशोरीलाल गोस्वामी के :-
- तारा वाक्षात्रकुलकमलिनी' (1902),
- 'सुल्ताना रजिया बेगम वा रंगमहल में हलाहल' (1904),
- "मल्लिका देवी वा बंग सरोजिनी' (1905), और 'लखनऊ की कब्र व शाही महलसरा' (1917) चर्चित उपन्यास हैं।
गंगाप्रसाद गुप्त ने :-
- 'नूरजहाँ' (1902).
- 'कुमारसिंह सेनापति' (1903) और 'हम्मीर' (1903) उपन्यास लिखे।
जयरामदास गुप्त के:-
- 'काश्मीर पतन' (1907), '
- नवाबी परिस्तान वा वाजिद अली शाह (1909).
- 'मल्का चांद बीबी' (1909) आदि उपन्यास लिखे।
सामाजिक उपन्यासकारों में :-
- लज्जाराम शर्मा,
- किशोरीलाल गोस्वामी,
- अयोध्यासिंह उपाध्याय,
- ब्रजनन्दन सहाय,
- राजा राधिकारमणप्रसाद सिंह
- मन्नन द्विवेदी उल्लेखनीय हैं।
लज्जाराम शर्मा :- (1863-1931)
- 'आदर्श दम्पत्ति' (1904). '
- बिगड़े का सुधार अथवा सती सुखदेवी (1907),
- 'आदर्श हिन्दू' (1914) उपन्यासों का विशेष महत्त्व है।
किशोरीलाल गोस्वामी के :-
- 'लीलावती वा आदर्श सती' (1901),
- 'चपला वा नव्य समाज' (1903-1904),
- 'पुनर्जन्म वा सौतिया डाह' (1907),
- "माधवी माधव या मदनमोहिनी (1903-1910)
- 'अंगूठी का नगीना' (1918) उपन्यासों को विशेष ख्याति मिली।
अध्योध्यासिंह उपाध्याय ने :-
- 'अधखिला फूल' (1907)
- ठेठ हिन्दी का ठाठ' (1899) लिखे।
ब्रजनन्दन सहाय के :-
- 'सौन्दर्योपासक' (1911)
- 'राधाकान्त' (1912) ये दो उपन्यास अधिक प्रसिद्ध हुए।
मन्नन द्विवेदी का :-
- 'रामलाल' (1917) में - ग्रामीण जीवन का सजीव और यथार्थ चित्रण मिलता है।
राधिकारमणप्रसाद सिंह का :-
- 'नवजीवन वा प्रेमलहरी' (1916) प्रेमाकुलतापूर्ण भावात्मक उपन्यास है।
- आगे चलकर इन सामाजिक उपन्यासों ने प्रेमचन्द की उपन्यास रचना के लिए मार्ग पुष्ट किया। सामाजिक उपन्यासों का लक्ष्य समाज-सुधार था।
प्रेमचन्द :-
- उनके 'प्रेमा' (1907),
- 'रूठी रानी' (1907)
- 'सेवासदन' (1918) इसी युग में प्रकाशित हुए।
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