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उसने कहा था कहानी - चंद्रधर शर्मा गुलेरी || Usane Kaha Tha - Chandradhar Sharma Guleree shorts notes tgt pgt kvs rpsc emrs ugc net

             उसने कहा था (चंद्रधर शर्मा गुलेरी)

यह कहानी सर्वप्रथम जून 1915 ई. में 'सरस्वती' पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।

प्रिय पाठकों,........इस पोस्ट में हम हिंदी कहानियों के महत्वपूर्ण बिंदुओं को क्रमवार समाहित किया गया है। यदि आपको हमारे द्वारा किया गया यह प्रयास अच्छा लगा है, तो इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम हिंदी साहित्य के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।



                                  प्रतिपाद्य 

इस कहानी में लेखक ने इसके केंद्रीय चरित्र लहना सिंह के माध्यम से प्रेम, कर्तव्य तथा आत्म-बलिदान के पारस्परिक संघर्ष का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है। इस कहानी में लहना सिंह अपने बचपन की प्रेमिका के कहने पर उसके पति की रक्षा करते-करते युद्ध भूमि में अपने प्राणों का बलिदान कर देता है।

इस कहानी  के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से  चर्चा करेंगे ?

                                    पात्र 

                                 मुख्य पात्र 

* लहना सिंह: -

- नं. 77 सिख राइफल्स में जमादार

- बचपन में अपने मामा के यहाँ एक लड़की से प्रेम हो जाता है जो बाद में सूबेदारनी बनती है।

- कर्त्तव्यनिष्ठ सिपाही/कुशल सिपाही

- अपने दिये वचन को निभाने के लिये अपने प्राणों को भी कुर्बान कर देता है।

* सुबेदारनी: -

- सूबेदार हजारा सिंह की पत्नी

- बोधा सिंह की माँ

- बचपन में अपने मामा के यहाँ लहना सिंह से मिलती है जो उसकी जान बचाता है।

- लहना सिंह से अपने पति और पुत्र की रक्षा के लिये भिक्षा मांगती है।

* सूबेदार हज़ारा सिंहः -

- सूबेदारनी का पति

- बोधा सिंह का पिता

- लहना सिंह को बहुत चाहता है।

- सरकार ने खुश होकर लायलपुर में उसको जमीन दी थी।

* बोधा सिंह: -

- हज्जारा सिंह और सूबेदारनी का पुत्र

- युद्ध में घायल होने पर लहना सिंह उसे अपने गर्म कपड़े और अपना बिस्तर देता है।

                                 गौण पात्र 

* वजीरा सिंह: - पलटन का विदूषक

* लपटन साहब: - पांच वर्ष से लहना सिंह के रेजिमेंट में अफसर। इसको मारकर कोई जर्मन इसका वेष धारण करके आता है। जिसकी पहचान कर लहना सिंह उसे मार देता है। लेकिन वह लहना सिंह को घायल कर देता है।

* महा सिंह, शाम सिंह: - सिपाही

* अतर सिंह: - सूबेदारनी के मामा

* कीरत सिंह:-  लहना सिंह का भाई

* अब्दुल्ला:-  लपटन साहब का खानसामा

* पोल्हूरामः - डाक-बाबू

* तुरकी:-  मौलवी

                                  विशेष 

* पूर्व दीप्ति शैली (फ्लैश बैक) का प्रयोग

* प्रेम के आदर्श स्वरूप का चित्रण

* त्याग एवं वीरता के आदर्श की कहानी

* प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर लिखी गई

* देश-प्रेम की कहानी

* वचन-बद्धता एवं उस हेतु प्राणों के समर्पण की कहानी

* सैन्य जीवन एवं युद्ध की विभीषिका का चित्रण

                           कहानी मे आए प्रमुख स्थान

* अमृतसर

* मगरे: - सूबेदारनी के घर

* माँझे: - लहना के घर

* गुरु बाज़ारः-  लहना के मामा का घर

* जगाधरी:-  जहाँ लपटन साहब शिकार खेलने गए थे।

* लायलपुर बर्लिनः - जहाँ सूबेदार को सरकार ने खेत दिया था।

                                प्रमुख उद्धरण 

* "बड़े-बड़े शहरों के इक्के-गाड़ीवालों की जबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है, और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बंबूकार्टवालों की बोली का मरहम लगावें।"

* "हट जा जीणे जोगिए; हट जा करमाँवालिए; हट जा पुत्तां प्यारिए; बच जा लंबी उमरा वालिए। समष्टि में इनके अर्थ हैं, कि तू जीने योग्य है, तू भाग्योंवाली है, पुत्रों की प्यारी है, लंबी उमर तेरे सामने है, तू क्यों मेरे पहिये के नीचे आना चाहती है? बच जा।"

* "लड़के ने मुसकरा कर पूछा, 'तेरी कुड़माई हो गई? इस पर लड़की कुछ आँखें चढ़ाकर धत् कह कर दौड़ गई, और लड़का मुँह देखता रह गया।"

* "फिरंगी मेम, फल और और दूध की वर्षा कर देती है। लाख कहते हैं, दाम नहीं लेती। कहती है, तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो।"

* "बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही।"

* "लड़ाई के मामले जमादार या नायक के चलाए नहीं चलते। बड़े अफसर दूर की सोचते हैं। तीन सौ मील का सामना है। एक तरफ बढ़ गए तो क्या होगा?"

* "हाँ, देश क्या है, स्वर्ग है। मैं तो लड़ाई के बाद सरकार से दस घुमा जमीन यहाँ माँग लूँगा और फलों के बूटे लगाऊँगा।"

* “जैसे मैं जानता ही न होऊँ! रात-भर तुम अपने कंबल उसे उढाते हो और आप सिगड़ी के सहारे गुजर करते हो। उसके पहरे पर आप पहरा दे आते हो। अपने सूखे लकड़ी के तख्तों पर उसे सुलाते हो, आप कीचड़ में पड़े रहते हो। कहीं तुम न माँदे पड़ जाना। जाड़ा क्या है, मौत है, और निमोनिया से मरने वालों को मुरब्बे नहीं मिला करते।"

* “मेरा डर मत करो। मैं तो बुलेल की खड्ड के किनारे मरूँगा भाई कीरत सिंह की गोदी पर मेरा सिर होगा और मेरे हाथ के लगाए हुए आँगन के आम के पेड़ की छाया होगी।"

* “सूबेदार ने लहनासिंह की जाँघ में पट्टी बँधवानी चाही पर उसने यह कहकर टाल दिया कि थोड़ा घाव है सबेरे देखा जाएगा। बोधासिंह ज्वर में बर्रा रहा था। वह गाड़ी में लिटाया गया। लहना को छोड़कर सूबेदार जाते नहीं थे। यह देख लहना ने कहा- तुम्हें बोधा की कसम है और सूबेदारनी जी की सौगंध है जो इस गाड़ी में न चले जाओ।"

* "और तुम?"

* "मेरे लिये वहाँ पहुँचकर गाड़ी भेज देना। और जर्मन मुद्दों के लिये भी तो गाड़ियाँ आती होगीं। मेरा हाल बुरा नहीं हैं। देखते नहीं में खड़ा हूँ? वजीरासिंह मेरे पास है ही।"

* "सुनिए तो, सूबेदारनी होरों को चि‌ट्ठी लिखो तो मेरा मत्था टेकना लिख देना। और जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उसने कहा था, वह मैंने कर दिया।"

* “मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है। जन्मभर की घटनाएँ एक-एक करके सामने आती हैं। सारे दृश्यों के रंग साफ होते हैं, समय की धुंध बिल्कुल उन पर से हट जाती है।"

* "तुम्हें याद है, एक दिन ताँगे वाले का घोड़ा दहीवाले की दुकान के पास बिगड़ गया था। तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाये थे। आप घोड़ों की लातों पर चले गये थे और मुझे उठाकर दुकान के तख्त के पास खड़ा कर दिया था। ऐसे ही इन दोनों को बचाना। यह मेरी भिक्षा है। तुम्हारे आगे मैं आँचल पसारती हूँ।"

* "वजीरासिंह, पानी पिला- उसने कहा था।"

* “अब के हाड़ में यह आम खूब फलेगा।"

* “जितना बड़ा तेरा भतीजा है, उतना ही यह आम है। जिस महीने उसका जन्म हुआ था, उसी महीने में मैंने इसे लगाया था।"

* "फ्रांस और बेलजियम- 68वीं सूची मैदान में घावों से मरा नं. 77 सिख राइफल्स जमादार लहनासिंह।"

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