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लाल पान की बेगम - फणीश्वरनाथ रेणु || हिन्दी कहानिया || UGC NET, TGT/PGT, EMRS & RPSC ALL EXAM

        लाल पान की बेगम - फणीश्वरनाथ रेणु

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* प्रथम प्रकाशन 'कहानी' पत्रिका में जनवरी, 1957 ई. में हुआ।

* संग्रहः-  ठुमरी (1959 ई.)

* रसप्रिया

* तीर्थोदक

* ठेस

* नित्य लीला

* पंचलाइट

* सिरपंचमी का स

* तीसरी कसम, उर्फ मारे गए गुलफाम

* लाल पान की बेगम

* तीन बिन्दियाँ

* इस कहानी  के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से  चर्चा करेंगे ?

                                 प्रतिपाद्य 

* आंचलिक पृष्ठभूमि में एक स्त्री की आत्माभिमान की आकांक्षा की अभिव्यक्ति

* बैलगाड़ी पर बैठकर नाच देखने जाने के इर्द-गिर्द बुनी गई यह कहानी बिरजू की माँ के रूप में एक अलग व सशक्त स्त्री को पेश करती है।

                                * आंचलिक कथा *

* गाँव के लोगों के आपसी ईर्ष्या द्वेष, राग-विराग, आशा-निराशा, हर्ष-विषाद की जीवंत बानगी।

                                  उल्लिखित टोले 

1. कुर्माटोली

3. कोइरीटोली

2. बबुआनटोला

4. मलदहियाटोली

                                  उल्लिखित स्थान 

* सिमराह का सरकारी कूप

* गुलाब-बाग मेला

* मोहनपुर होटिल-बंगल

                                     पात्र 

                                   मुख्य पात्र 

* बिरजू की माँ: - 

- लाल पान की बेगम

- बलरामपुर का नाच देखने जाने को इच्छुक

- महावीर जी की रोट की मनौती बाकी है।

- स्वाभिमानी

- जंगी की पतोहू, राधे की बेटी सुनरी, लरेना की बीवी को अपनी गाड़ी में बिठाती है नाच देखने जाने के लिये।

* बिरजू के बप्पा:- 

- सर्वे सेटलमेंट में 5 बीघा जमीन हासिल की।

- बिरजू की माँ को बैलगाड़ी पर नाच दिखाने ले जाने का वादा करता है।

- मलदहियाटोली के मियाँजान से गाड़ी ले आता है।

* बिरजूः -

- बिरजमोहन

- इमली पर रहने वाले जिनबाबा को बैंगन कबूला हुआ दिया और नाच देखने की मनौती करता है।

- सात वर्षीय बच्चा

* चंपियाः - 

- बिरजू की बहन

- बायस्कोप का गाना सीखने में रुचि

- 'बाजे न मुरलिया' गीत गाती है।

                                  गौण पात्र

* जंगी की पतोहू:-  रेलवे स्टेशन के पास की लड़की

* बिरजू की माँ से नहीं डरती

* कुर्माटोली

* ससुर चोर, पति- डकैत

* 'मुँहजोर' (लड़ाक)

* मखनी फुआ:-  तंबाकू की शौकीन

* बिरजू के घर रखवाली के लिये रुकती है।

* बाबू साहेब:-  जमींदार

                                 प्रमुख उद्धरण 

* "पहले से किसी बात का मनसूबा नहीं बाँधना चाहिये किसी को ! भगवान ने मनसूबा तोड़ दिया। उसको सबसे पहले भगवान से पूछना है, यह किस चूक का फल दे रहे हो भोला बाबा!"

* "चल दिदिया, चल! इस मुहल्ले में लाल पान की बेगम बसती है। नहीं जानती, दोपहर-दिन और चौपहर-रात बिजली की बत्ती भक्-भक् कर जलती है!"

- जंगी की पतोहू

* "छोड़ दो, जब तुम्हारा कलेजा ही स्थिर नहीं होता है तो क्या होगा? जोरु-जमीन जोर के, नहीं तो किसी और के... बिरजू के बाप पर बहुत तेजी से गुस्सा चढ़ता ही जाता है। ... बिरजू की माँ का भाग ही खराब है, जो ऐसा गोबरगणेश घरवाला उसे मिला। कौन-सा सौख-मौज दिया है उसके मर्द ने? कोल्हू के बैल की तरह खट कर सारी उम्र काट दी इसके यहाँ, कभी एक पैसे की जलेबी भी ला कर दी है उसके खसम ने!"

* "बिरजू की माँ उठ कर ओसारे पर आई "डेढ़ पहर रात को गाड़ी लाने की क्या जरुरत थी? नाच तो अब खत्म हो रहा होगा।" ढिबरी की रोशनी में धान की बालियों का रंग देखते ही बिरजू की माँ के मन का सब मैल दूर हो गया। ... धानी रंग उसकी आँखों से उतर कर रोम-रोम में घुल गया।"

"नाच अभी शुरू भी नहीं हुआ होगा। अभी-अभी बलमपुर के बाबू की संपनी गाड़ी मोहनपुर होटिल बँगला से हाकिम साहब को लाने गई है। इस साल आखिरी नाच है।... पंचसीस दट्टी में खोंस दे, अपने खेत का है।"

'अपने खेत का? हुलसती हुई बिरजू की माँ ने पूछा. पक गये धान?' "नहीं, दस दिन में अगहन चढ़ते चढ़ते लाल हो कर झुक जाएँगी सारे खेत की बालियाँ! ... मलदहियाटोली पर जा रहा था, अपने खेत में धान देख कर आँखें जुड़ा गई। सच कहता हूँ, पंचसीग तोड़ते समय उँगलियाँ काँप रही थीं मेरी!"

बिरजू ने धान की एक बाली से एक धान लेकर मुँह में डाल लिया और उसकी माँ ने एक हल्की डाँट दी - "कैसा लुक्क्ड है तू रे! ... इन दुश्मनों के मारे कोई नेम-धरम बचे!"

* "बिरजू के बाप ने घूँघट में झुकी दोनों पतोहुओं को देखा। उसे अपने खेत की झुकी हुई बालियों की याद आ गई।"

* "बिरजू की माँ बेगम है, लाल पान की बेगम ! यह तो कोई बुरी बात नहीं। हाँ, वह सचमुच लाल पान की बेगम है।"

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