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मारे गए गुलफाम उर्फ तीसरी कसम (कहानी) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' || Maare Gae Gulaphaam Urph Teesare Kasam (kahane) - Phaneeshvaranaath Renu

 मारे गए गुलफाम उर्फ तीसरी कसम (कहानी) - फणीश्वरनाथ 'रेणु'

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* संग्रहः - ठुमरी (1959 ई.)

* रसप्रिया

* तीर्थोदक

* ठेस

* नित्यलीला

* पंचलाइट

* सिर पंचमी का सगुण

* मारे गए गुलफाम उर्फ तीसरी कसम

* लाल पान की बेगम

* तीन बिंदियाँ


इस कहानी  के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से  चर्चा करेंगे ?

                                 प्रतिपाद्य 

* आँचलिक कहानी / ग्रामगीतों का प्रयोग प्रेम की पीड़ा और उसकी भीनी खुशबू

* मूल कथा में नायक (हिरामन) द्वारा खाई तीन कसमों की चर्चा के साथ नायक के प्रेम-प्रंसग की कहानी है।

* पहली कसम चोरी का सामान गाड़ी में नहीं रखेगा।

* दूसरी कसम बाँस की लदनी नहीं करेगा।

* तीसरी कसम नाटक वाली (कंपनी वाली) को गाड़ी में नहीं बैठाएगा।

* हिरामन और हीराबाई के बैलगाड़ी सफर के माध्यम से लोक-संस्कृति, उसमें निहित रस और मर्यादित निश्छल प्रेम को व्यक्त करने वाली कहानी।

                                   पात्र 

                                मुख्य पात्र 

* हिरामनः-  खादी देहाती पात्र; चालीस साल का हट्टा-कट्टा, काला कलूटा देहाती नौजवान जिसे अपनी गाड़ी और बैलों के सिवाय दुनिया के किसी अन्य काम में दिलचस्पी नहीं। तीन काम न करने की कसम खाता है।

* हीराबाई:-  कंपनी की औरत, मेलों में नौटंकी में अभिनय एवं नृत्य का काम; हिरामन को अपना उस्ताद मानती है।

                                  गौण पात्र 

* लालमोहर, धुन्नीराम, पलटदास (तीनों ही गाड़ीवान), लहसनवाँ (लालमोहर का नौकर गाड़ीवान), नेपाली दरबान, मुनीम, दारोगा, कालेकोट वाला

                            कहानी में प्रयुक्त स्थान 

* विराटनगर, फारबिसगंज, खरैहिया शहर, चंपानगर (भगदड), 

* सिंधिया गाँव, कानपुर (हीराबाई का घर), तेगछिया (महावीर स्वामी) छत्तापुर-पचीस,

* मदनपुर, बिसनपुर, हरिपुर, नननपुर, मीनाबाजार, बनैली मेला, दो नौटंकी कंपनी रौती कंपनी, मथुरामोहन कंपनी

                                विशेष 

* फणीश्वरनाथ रेणु ने नयी कहानी के दौर में प्रेमचंद के गाँव और उसमें बसी दुनिया को अपनी कहानियों में जिंदा रखा।

* समाज के सामान्य पात्रों को अपनी कहानी का नायक या मुख्य किरदार बनाया; उदाहरणार्थ गाड़ीवान काला कलूटा हिरामन।

                 * कहानी में तीन काम न करने की कसम *

                                   (i) चोरी का समान

                                   (ii) बास की लदनी 

                                   (iii) कंपनी की औरत

* हिरामन का सहज और सरल व्यक्तित्व। मसलन, भाई के प्रति सम्मान और भौजाई से डर।

* रेणु ने लोक जीवन की समृद्धि को दिखाया है, उसमें त्याग, गीत और परिवेश को सुंदर ढंग से सजाया है।

* हिरामन का संसार 'लगा' और 'देखा' से बना है, हीराबाई का संसार परखा है।

* कहानी में एक जगह जगरनाथ धाम नाम का उल्लेख।

* इस कहानी पर 'तीसरी कसम' फिल्म भी बनी, जिसके संवाद लेखन का कार्य स्वयं रेणु ने किया।

* कहानी की मूल संवेदना प्रेम है। यह एक अधूरी प्रेम कहानी बनकर रह जाती है।

* तत्कालीन समय में मनोरंजन के साधन नौटंकी का वास्तविक चित्रण।

                                   प्रमुख उद्धरण 

* "हिरामन समझ गया, इस बार निस्तार नहीं। जेल? हिरामन को जेल का डर नहीं। लेकिन उसके बैल? न जाने कितने दिनों तक बिना चारा-पानी के सरकारी फाटक में पड़े रहेंगे- भूखे-प्यासे। फिर नीलाम हो जाएँगे। भैया और भौजी को वह मुँह नहीं दिखा सकेगा कभी। ... नीलाम की बोली उसके कानों के पास गूँज गई- एक-दो-तीन ! दारोगा और मुनीम में बात पट नहीं रही थी शायद।"

* "दो कमसें खाई हैं उसने। एक चोरबाजारी का माल नहीं लादेंगे; दूसरी-बाँस लदी हुई गाड़ी! गाड़ी से चार हाथ आगे बाँस का अगुआ निकला रहता है और पीछे की ओर चार हाथ पिछुआ! काबू के बाहर रहती है गाड़ी हमेशा। सो बेकाबूवाली लदनी और खरैहिया।"

* "बाघगाड़ी की गाड़ीवानी की है हिरामन ने। कभी ऐसी गुदगुदी नहीं लगी पीठ में। आज रह-रह कर उसकी गाड़ी में चंपा का फूल महक उठता है। पीठ में गुदगुदी लगने पर वह अँगोछे से पीठ झाड़ लेता है।"

* "औरत है या चंपा का फूल। जब से गाड़ी मह-मह महक रही है।"

* "मथुरामोहन नौटंकी कंपनी में लैला बननेवाली हीराबाई का नाम किसने नहीं सुना होगा भला। लेकिन हिरामन की बात निराली है। उसने सात साल तक लगातार मेलों की लदनी लादी है, कभी नौटंकी-थियेटर या बायस्कोप सिनेमा नहीं देखा।"

* "उसकी सवारी मुस्कराती है। ... मुस्कराहट में खुशबू है।"

* "तब तो मीता कहूँगी, भैया नहीं। मेरा नाम भी हीरा है।"

* "उसकी गाड़ी में फिर चंपा का फूल खिला। उस फूल में एक परी बैठी है। ... जै भगवती।"

* "हीराबाई ने परख लिया, हिरामन सचमुच हीरा है।"

* "हिरामन की भी शादी हुई थी, बचपन में ही गौने के पहले ही दुलहिन मर गई। हिरामन को अपनी दुलहिन का चेहरा याद नहीं। .... दूसरी शादी? दूसरी शादी न करने के अनेक कारण हैं। भाभी की जिद, कुमारी लड़की से ही हिरामन की शादी करवाएगी। कुमारी का मतलब हुआ पाँच-सात साल की लड़की।"

* "अब हिरामन ने तय कर लिया है, शादी नहीं करेगा।"

* ""बिदागी' (नैहर या ससुराल जाती हुई लड़की)। "

* "काला आदमी, राजा क्या महाराजा भी हो जाए, रहेगा काला आदमी ही। साहेब के जैसे अक्किल कहाँ से पाएगा। (हिरामन, हीराबाई से)"

* "छोकरा-नाच के मनुवाँ नटुवा का मुँह हीराबाई-जैसा ही था। ... कहाँ चला गया वह जमाना? हर महीने गाँव में नाचनेवाले आते थे। हिरामन ने छोकरा नाच के चलते अपनी भाभी की न जाने कितनी बोली-ठोली सुनी थी। भाई ने घर से निकल जाने को कहा था।"

* "हिरामन दुनिया भर की निगाह से बचा कर रखना चाहता है हीराबाई को।"

* "सड़क तेगछिया गाँव के बीच से निकलती है। गाँव के बच्चों से परदेवाली गाड़ी देखी और तालियाँ बजा-बजा कर रटी हुई पंक्तियों दुहराने लगे।

...दुलहिनिया ... लाली-लाली डोलिया! हिरामन हँसा... कितने दिनों का हौसला पूरा हुआ है हिरामन का। ऐसे कितने सपने देखे हैं उसने। वह अपनी दुलहिन को ले कर लौट रहा है। हर गाँव के बच्चे तालियाँ बजा कर गा रहे हैं। हर आँगन से झाँक कर देख रही हैं औरतें। मर्द लोग पूछते हैं, 'कहाँ जाएगी? उसकी दुलहिन डोली का परदा थोड़ा सरका कर देखती है। और भी कितने सपने..."

* इस मुलुक के लोगों की यही आदत बुरी है। राह चलते एक सी जिरह करेंगे। अरे भाई, तुमको जाना है, जाओ। ... देहाती भुच्च सब।

* "महुआ घटवारिन गाते समय उसके सामने सावन-भादों की नदी उमड़ने लगती है, अमावस्या की रात और घने बादलों में रह-रह कर बिजली चमक उठती है। उसी चमक में लहरों से लड़ती हुई बारी-कुमारी महुआ की झलक उसे मिल जाती है। सफरी मछली की चाल और तेज हो जाती है। उसको लगता है, वह खुद सौदागर का नौकर है। महुआ कोई बात नहीं सुनती। परतीत करती नहीं। उलट कर देखती भी नहीं। और वह थक गया है, तैरते-तैरते।"

* “तुम मेरे उस्ताद हो। हमारे शास्तर में लिखा हुआ है, एक अच्छर सिखानेवाला भी गुरु और एक राग सिखानेवाला भी उस्ताद!"

- हीराबाई, हिरामन से

* "आज रात-भर हिरामन की गाड़ी में रहेगी वह। ... हिरामन की गाड़ी में नहीं, घर में!"

* “जनाना जात अकेली रहेगी गाड़ी पर? कुछ भी हो, जनाना आखिर जनाना ही है। कोई जरूरत ही पड़ जाए!"

- पलटदास, हिरामन से

* “उस आदमी ने अपने संगी से कहा, 'खेला शुरू होने पर जगा देना। नहीं-नहीं, खेला शुरू होने पर नहीं, हिरिया जब स्टेज पर उतरे, हमको जगा देना।

हिरामन के कलेजे में जरा आँच लगी। ... हिरिया! बड़ा लटपटिया आदमी मालूम पड़ता है। उसने लालमोहर को आँख के इशारे से कहा, 'इस आदमी से बतियाने की जरूरत नहीं।"

* "तीनों-चारों से मत पूछे कोई, नौटंकी में क्या देखा। किस्सा कैसे याद रहे! हिरामन को लगता था, हीराबाई शुरू से ही उसी की ओर टकटकी लगा कर देख रही है, गा रही है, नाच रही है। लालमोहर को लगता था, हीराबाई उसी की ओर देखती है। वह समझ गई है, हिरामन से भी ज़्यादा पावरवाला आदमी है लालमोहर ! पलटदास किस्सा समझता है। ... किस्सा और क्या होगा, रमैन की ही बात।"

* “पलटदास हर रात नौटंकी शुरू होने के समय श्रद्धापूर्वक स्टेज को नमस्कार करता, हाथ जोड़ कर। लालमोहर, एक दिन अपनी कचराही बोली सुनाने गया था हीराबाई को। हीराबाई ने पहचाना ही नहीं। तब से उसका दिल छोटा हो गया है। उसका नौकर लहसनवाँ उसके हाथ से निकल गया है, नौटंकी कंपनी में भर्ती हो गया है। जोकर से उसकी दोस्ती हो गई है। दिन-भर पानी भरता है, कपड़े धोता है। कहता है, गाँव में क्या है जो जाएँगे! लालमोहर उदास रहता है। धुन्नीराम घर चला गया है, बीमार हो कर।"

* "तेरी बाँकी अदा पर मैं खुद हूँ फिदा, तेरी चाहत को दिलबर बयाँ क्या करूँ! यही ख्वाहिश है कि इ-इ-ठ तू मुझको देखा करे और दिलोजान मैं तुमको देखा करूँ।"

* 'उस्ताद !' जनाना मुसाफिरखाने के फाटक के पास हीराबाई ओढ़नी से मुँह-हाथ ढक कर खड़ी थी। थैली बढ़ाती हुई बोली, "लो! हे भगवान! भेंट हो गई, चलो, मैं तो उम्मीद खो चुकी थी। तुमसे अब भेंट नहीं हो सकेगी। मैं जा रही हूँ गुरु जी!"

* "हीराबाई ने हिरामन के कंधे पर हाथ रखा, ... इस बार दाहिने कंधे पर। फिर अपनी थैली से रुपया निकालते हुए बोली, 'एक गरम चादर खरीद लेना...।'

हिरामन की बोली फूटी, इतनी देर के बाद- "इस्स! हरदम रुपैया-पैसा! रखिए रुपैया! क्या करेंगे चादर?"

हीराबाई का हाथ रुक गया। उसने हिरामन के चेहरे को गौर से देखा। फिर बोली, "तुम्हारा जी बहुत छोटा हो गया है। क्यों मीता? महुआ घटवारिन को सौदागर ने खरीद जो लिया है गुरु जी!"

गला भर आया हीराबाई का। बक्सा ढोनेवाले ने बाहर से आवाज दी- "गाड़ी आ गई।" हिरामन कमरे से बाहर निकल आया। बक्सा ढोनेवाले ने नौटंकी के जोकर जैसा मुँह बना कर कहा, "लाटफारम से बाहर भागो। बिना टिकट के पकड़ेगा तो तीन महीने की हवा...।"

हिरामन चुपचाप फाटक से बाहर जा कर खड़ा हो गया। ... टीसन की बात, रेलवे का राज। नहीं तो इस बक्सा ढोनेवाले का मुँह परीक्षा कर देता हिरामन ।

हीराबाई ठीक सामनेवाली कोठरी में चढ़ी। इस्स! इतना टान! गाड़ी • में बैठकर भी हिरामन की ओर देख रही है, टुकुर-टुकुर। लालमोहर को देख कर जी जल उठता है, हमेशा पीछे-पीछे, हरदम हिस्सादारी सूझती है।

गाड़ी ने सीटी दी। हिरामन को लगा, उसके अंदर से कोई आवाज निकल कर सीटी के साथ ऊपर की ओर चली गई - कू-ऊ-ऊ! इ-स्स!

छी-ई-ई-छक्क ! गाड़ी हिली। हिरामन ने अपने दाहिने पैर के अँगूठे को बाएँ पैर की एड़ी से कुचल लिया। कलेजे की धड़कन ठीक हो गई। हीराबाई हाथ की बैंगनी साफी से चेहरा पोंछती है। साफी हिला कर इशारा करती है ... अब जाओ। आखिरी डिब्बा गुजरा. प्लेटफार्म खाली सब खाली ... खोखले ... मालगाड़ी के डिब्बे ! दुनिया ही खाली हो गई मानो! हिरामन अपनी गाड़ी के पास लौट आया।"

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