राही ( कहानी ) - सुभद्रा कुमारी चौहान - raahee ( kahaanee ) - subhadra kumaaree chauhaan
राही ( कहानी ) - सुभद्रा कुमारी चौहान
"सुभद्राकुमारी चौहान नारी के रूप में ही रहकर साधारण नारी की आकांक्षाओं और भावों को व्यक्त करती हैं। बहन, माता, पत्नी क साथ-साथ एक सच्ची देश-सेविका के भाव उन्होंने व्यक्त किये हैं। उनकी शैली में वही अकृत्रिमता और स्पष्टता है जो उनके जीवन में है।" - 'मुक्तिबोध'
* इस कहानी के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से चर्चा करेंगे ?
* संग्रह:- सीधे सादे चित्र (1947 ई.) अंतिम कहानी-संग्रह
* रूपा
* दुराचारी
* कैलाशी नानी
* मंगला
* बिआहा
* हींगवाला
* कल्याणी
* राही
* दो साथी
तांगे वाला
* प्रोफेसर मित्रा
* गुलाब सिंह
प्रतिपाद्य
* राही की विवशता के कारण की गई चोरी की जानकारी से दुखी होकर अनीता द्वारा तत्कालीन कांग्रेसी आंदोलनकारियों की सत्तालोलुपता और ढोंग पर चिंतन तथा विवश-गरीबों की सेवा को वास्तविक देशभक्ति समझने वाले स्वप्न से बनी कहानी।
* जेल का परिवेश।
पात्र
मुख्य पात्र
* राही:- मांगरोरी जाति की एक गरीब असहाय स्त्री
* पुलिसवालों द्वारा उसके पति को मार दिया जाता है।
* चोरी के आरोप में जेल जाती है।
* अनीता :- स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाली जेल में बंद एक स्त्री गौण पात्र
* पतिः - राही का पति (जिसे पुलिसवाले मारते-मारते मार देते हैं।)
* बच्चा: - राही का बेटा, जिसके लिये राही अनाज की चोरी करती है।
विशेष
* संवादात्मक एवं आत्मकथात्मक कहानी।
* मांगरोरी जाति की कठिनाइयों का वर्णन
* स्त्री-वेदना की झलक।
* राष्ट्रभक्ति का चित्रण एवं सत्ताभक्ति पर व्यंग्य।
* देश की दरिद्रता एवं रोजगार की समस्या का चित्रण।
* गरीबों को पुलिस द्वारा सताए जाने का चित्रण।
* गरीबी की समस्या का चित्रण।
* मानव धर्म की प्रतिष्ठा।
* राही 5-6 सेर अनाज की गठरी की चोरी करती है।
* राही को एक साल की सजा मिलती है।
* कहानी में तथाकथित कांग्रेसी नेताओं पर व्यंग्य किया गया है।
प्रमुख उद्धरण
* "तो तूने चोरी क्यों की? मजदूरी करती तब भी तो दिन भर में तीन-चार आने पैसे मिल जाते।" - अनिता
* "हमें मजदूरी नहीं मिलती सरकार। हमारी जाति माँगरोरी है। हम केवल माँगते-खाते हैं।" - राही
* "और भीख न मिले तो?" - अनिता
* "तो फिर चोरी करते हैं। उस दिन घर में खाने को नहीं था। बच्चे भूख से तड़प रहे थे। बाज़ार में बहुत देर तक माँगा। बोझा ढोने के लिये टोकरा लेकर भी बैठी रही। पर कुछ न मिला। सामने किसी का बच्चा रो रहा था, उसे देखकर मुझे अपने भूखे बच्चों की याद आ गई। वहीं पर किसी की नाज की गठरी रखी हुई थी। उसे लेकर राही भागी ही थी कि पुलिसवाले ने पकड़ लिया।"- राह
- राही और अनीता के मध्य संवाद
* "हम गरीबों की कोई नहीं सुनता सरकार ! बच्चे आये थे कचहरी में। मैंने सब कुछ कहा, पर किसी ने नहीं सुना।" - राही • "अनीता के सामने आज एक प्रश्न था। वह सोच रही थी कि देश की दरिद्रता और इन निरीह गरीबों के कष्टों को दूर करने का कोई उपाय नहीं है? हम सभी परमात्मा की संतान हैं। एक ही देश के निवासी। कम-से-कम हम सबको खाने-पहनने का समान अधिकार तो है ही? फिर यह क्या बात है कि कुछ लोग तो बहुत आराम से रहते हैं और कुछ लोग पेट के अन्न के लिये चोरी करते हैं? उसके बाद विचारक की अदूरदर्शिता के कारण या सरकारी वकील के चातुर्यपूर्ण जिरह के कारण छोटे-छोटे बच्चों की माताएँ जेल भेज दी जाती हैं। उनके बच्चे भूखे मरने के लिये छोड़ दिए जाते हैं। एक ओर तो यह कैदी है, जो जेल आकर सचमुच जेल जीवन के कष्ट उठाती है, और दूसरी ओर हैं हम लोग जो अपनी देशभक्ति और त्याग का ढिंढोरा पीटते हुए जेल आते हैं। हमें आमतौर से दूसरे कैदियों के मुकाबले में अच्छा बरताव मिलता है। फिर भी हमें संतोष नहीं होता। हम जेल आकर 'ए' और 'बी' क्लास के लिये झगड़ते हैं। जेल आकर ही हम कौन-सा बड़ा त्याग कर देते हैं? जेल में हमें कौन-सा कष्ट रहता है? सिवा इसके कि हमारे माथे पर नेतृत्त्व की सील लग जाती है। हम बड़े अभिमान से कहते हैं- 'यह हमारी चौथी जेल यात्रा है, यह हमारी पाँचवीं जेल यात्रा है।' और अपनी जेल यात्रा के किस्से बार-बार सुना-सुनाकर आत्मगौरव अनुभव करते हैं; तात्पर्य यह कि हम जितने बार जेल जा चुके होते हैं, उतनी ही सीढ़ी हम देशभक्ति और त्याग से दूसरों से ऊपर उठ जाते हैं और इसके बल पर जेल से छूटने के बाद, कांग्रेस को राजकीय सत्ता मिलते ही, हम मिनिस्टर, स्थानीय संस्थाओं के मेम्बर और क्या-क्या हो जाते हैं।"
* "अनीता सोच रही थी कल तक जो खद्दर भी न पहनते थे, बात-बात पर कांग्रेस का मजाक उड़ाते थे, कांग्रेस के हाथों में थोड़ी शक्ति आते ही वे कांग्रेस भक्त बन गए। खद्दर पहनने लगे। यहाँ तक कि जेल में भी दिखाई पड़ने लगे। वास्तव में यह देशभक्ति है या सत्ताभक्ति!
* "वास्तव में सच्ची देशभक्ति तो इन गरीबों के कष्ट निवारण में है। ये कोई दूसरे नहीं, हमारी ही भारतमाता की संतानें हैं। इन हजारों, लाखों भूखे नंगे भाई-बहिनों की यदि हम कुछ भी सेवा कर सकें, थोड़ा भी कष्ट निवारण कर सकें तो सचमुच हमने अपने देश की कुछ सेवा की। हमारा वास्तविक देश तो देहातों में ही है। किसानों की दुर्दशा से हम सभी थोड़े-बहुत परिचित हैं, पर इन गरीबों के पास न घर है, न द्वार। अशिक्षा और अज्ञान का इतना गहरा पर्दा इनकी आँखों पर है कि होश सँभालते ही माता पुत्री को और सास बहू को चोरी की शिक्षा देती है।"
* "संसार की मृगमरीचिका में हम लक्ष्य को भूल जाते हैं। सतह के ऊपर तक पहुँच पाने वाली कुछेक महान आत्माओं को छोड़कर सारा जन-समुदाय संसार में अपने को खोया हुआ पाता है. कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य का उसे ध्यान नहीं, सत्य-असत्य की समझ नहीं, अन्यथा मानवीयता से बढ़कर कौन-सा मानव धर्म है?"
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