एक टोकरी-भर मिट्टी ( कहानी ) - माधवराव सप्रे || ek tokaree-bhar mittee - maadhavaraav sapre
एक टोकरी-भर मिट्टी (माधवराव सप्रे) - 1901ई.
पृष्ठभूमि
* यह कहानी 1901 में 'छत्तीसगढ़ मित्र' पत्रिका में सर्वप्रथम प्रकाशित हुई।
* देवी प्रसाद वर्मा और अधिकांश विद्वानों द्वारा सहमति बनी कि यह कहानी हिंदी की प्रथम मौलिक कहानी है। यह आदर्शवादी कहानी है।
* इस कहानी के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से चर्चा करेंगे ?
प्रतिपाद्य
जमींदार द्वारा अपने महल के अहाते के लिये एक बूढ़ी विधवा की झोंपड़ी हटाने और जमींदार की आँखें खुलने के पश्चात् झोंपड़ी की जमीन वापस करने की छोटी-सी आदर्शवादी कथा।
पात्र
मुख्य पात्र
* बुजुर्ग विधवाः अपनी बहू और पुत्र की मौत देख चुकी है। अब एकमात्र पोती ही उसके जीने का सहारा है।
* जमींदारः दंभी व्यक्तित्व, बाद में टोकरी भर मिट्टी न उठा पाने पर अहंकार का तिरोहित हो जाना।
गौण पात्र :-
* बुजुर्ग विधवा की पोती
* जमींदार का वकील
विशेष :-
* विधवा बुजुर्ग महिला की पीड़ा
* शोषण का चित्रण
* कहानी की मूल संवेदना हृदय परिवर्तन
* अपनी मिट्टी से प्रेम का संदेश
* जमींदार का अहंकार और अंत में उसका हृदय परिवर्तन
* लचर कानून व्यवस्था का जिक्र
* मानवता का संदेश
* जमींदार के हृदय परिवर्तन के साथ कहानी समाप्त
* वर्ग-भेद: गरीब (बुजुर्ग महिला), अमीर (जमींदार)
* कहानी का केंद्रीय तत्त्व आदर्शवाद है।
प्रमुख उद्धरण
* "किसी श्रीमान जमींदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढ़ाने की इच्छा हुई, विधवा से बहुतेरे कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी, उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपडी में मर गया थ। पतोहू भी एक पाँच बरस की कन्या को छोड़कर चल बसी थी।"
* "उस झोंपड़ी में उसका मन लग गया था और बिना मरे वहाँ से वह निकलना नहीं चाहती थी।"
* "बाल की खाल निकालने वाले वकीलों की थैली गरम कर उन्होंने अदालत से झोंपड़ी पर अपना कब्जा करा लिया। कानून व्यवस्था का दुरुपयोग कर उस बुजुर्ग महिला को वहाँ से निकाल दिया।"
* "जब से यह झोंपड़ी छूटी है, तब से मेरी पोती ने खाना-पीना छोड़ दिया है। मैंने बहुत कुछ समझाया पर वह एक नहीं मानती। यही कहा करती है कि अपने घर चल। वहीं रोटी खाऊँगी। अब मैंने यह सोचा कि इस झोंपड़ी में से एक टोकरी-भर मिट्टी लेकर उसी का चूल्हा बनाकर रोटी पकाऊँगी। इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगेगी।"
* "विधवा झोंपड़ी के भीतर गई। वहाँ जाते ही उसे पुरानी बातों का स्मरण हुआ। अपनी मिट्टी के प्रति स्नेह से उसकी आँखों से आँस की धारा बहने लगी। अपने आंतरिक दुःख को किसी तरह संभालकर उसने अपनी टोकरी मिट्टी से भर ली और बाहर ले आई।"
* “यह विधवा ने कहा, "महाराज, नाराज न हों, आपसे एक टोकरी-भर मिट्टी नहीं उठाई जाती और इस झोंपड़ी में तो हज़ारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी है। उसका भार आप जन्म-भर क्योंकर उठा सकेंगे? आप ही इस बात पर विचार कीजिये।"
* “ज़मींदार साहब धन-मद से गर्वित हो अपना कर्त्तव्य भूल गए थे। - पर विधवा के उपर्युक्त वचन सुनते ही उनकी आँखें खुल गईं। कृतकर्म का पश्चाताप कर उन्होंने विधवा से क्षमा माँगी और हृदय परिवर्तन होने से उसकी झोंपड़ी वापिस दे दी।"
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