ईदगाह - प्रेमचंद || Eedagaah - Premachand - कहानी
ईदगाह (प्रेमचंद) - 1933 ई.
यह कहानी सर्वप्रथम अगस्त 1933 ई. में 'चाँद' पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
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प्रतिपाद्य
बाल मनोविज्ञान पर लिखी गई हिंदी की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में ईदगाह शिखर पर है। इसमें प्रेमचंद हामिद नामक बच्चे के माध्यम से दिखाते हैं कि गरीबी और अभावों में किस प्रकार बचपन की मासूमियत खत्म हो जाती है और बच्चे को समय से पहले ही परिपक्व हो जाना पड़ता है।
* इस कहानी के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से चर्चा करेंगे ?
पात्र
मुख्य पात्र
* हामिद : -
- चार-पाँच साल का गरीब लड़का
- माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है।
- दादी अमीना के साथ रहता है।
- मेले जाते वक्त उसके पास 3 पैसे थे। जिनसे वह अपनी बूढ़ी दादी के लिये चिमटा लाता है। हामिद का चिमटा रुस्तमे-हिन्दु है।
- गरीबी के कारण वह समय से पहले ही परिपक्व हो जाता है।
* अमीनाः-
- हामिद की दादी
- एक गरीब बूढ़ी विधवा औरत जिसके पुत्र एवं बहू की मृत्यु हो गई थी।
- लोगों का काम-काज करके खुद का और हामिद का पालन-पोषण करती है।
* मोहसिनः -
- हामिद के साथ का लड़का
- इसके पास कुल 15 पैसे रहते हैं।
- यह मेले में भिश्ती खरीदता है।
- "कमर झुकी हुई है, ऊपर मशक पानी उड़ेलना ही चाहता है।"
- मोहसिन के मामू थाने में कांस्टेबल हैं।
* महमूदः-
- हामिद के साथ का लड़का
- इसके पास 12 पैसे थे।
- यह मेले में सिपाही खरीदता है
- "खाकी वर्दी और लाल पगड़ीवाला ...... कवायद लिये चला आ रहा है।"
* नूरे:-
- हामिद के साथ का लड़का
- यह मेले में वकील खरीदता है।
- "कैसी विद्वता है उसके मुख पर बहस किये चले आ रहे हैं।"
* सम्मीः -
- हामिद के साथ की लड़की
- यह मेले में धोबिन और खैजड़ी खरीदती है।
गौण पात्र
* चौधरी कयामत अली :- गाँव का धनवान व्यक्ति
* आबिद : - हामिद का बाप, हैजा से मर जाता है (तथा माँ पीलिया से मर जाती है)।
* कांस्टेबलः - मोहसिन का मामू (वेतन बारह रुपये, घर 50 रुपये भेजता है)।
विशेष
* बाल मनोविज्ञान पर आधारित
* मुस्लिम समाज का चित्रण
* सामाजिक, आर्थिक ऊँच-नीच का वर्णन
* पुलिस विभाग में व्याप्त भ्रष्टता का वर्णन
* गरीबी और अभाव के कारण बचपन की मासूमियत के खत्म होने की कहानी।
* यह कहानी गरीबी में भी उच्च संस्कार को चित्रित करती है।
* इस कहानी में बालमन और मातृ वात्सल्य सहजता का चित्रण किया गया है।
* सारे खिलौने 2 पैसे में मिले थे।
* दुकानदार ने चिमटे की कीमत 6 पैसे बताई थी।
प्रमुख उद्धरण
* "हराम का माल हराम में जाता है"
- मोहसिन
* "हमलोग चाहे तो एक दिन में लाखों मार लाएँ। हम तो इतना ही लेते हैं, जिसमें अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाए।"
* "आशा तो बड़ी चीज़ है, और फिर बच्चों की आशा ! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती है।"
* "इतने बड़े कालेज में कितने लड़के पढ़ते होंगे? सब लड़के नहीं हैं जी! बड़े-बड़े आदमी हैं, सच ! उनकी बड़ी-बड़ी मूँछें हैं। इतने बड़े हो गए, अभी तक पढ़ने जाते हैं। न जाने कब तक पढ़ेंगे और क्या करेंगे इतना पढ़कर !"
* “मनों आटा पीस डालती हैं। जरा-सा बैट पकड़ लेंगी, तो हाथ काँपने लगेंगे! सैकड़ों घड़े पानी रोज निकालती हैं। पाँच घड़े तो मेरी भैंस पी जाती है। किसी मेम को एक घड़ा पानी भरना पड़े, तो आँखों तले अँधेरा आ जाए।"
* “चौधरी साहब के काबू में बहुत-से जिन्न हैं। कोई चीज़ चोरी चली जाए चौधरी साहब उसका पता लगा देंगे और चोर का नाम बता देंगे। जिन्नात आकर उन्हें सारे जहान की खबर दे जाते हैं।"
* "मोहसिन ने प्रतिवाद किया- यह कानिसटिबिल पहरा देते हैं? तभी तुम बहुत जानते हो अजी हजरत, यह चोरी करते हैं। शहर के जितने चोर-डाकू हैं, सब इनसे मिले रहते हैं। रात को ये लोग चोरों से तो कहते हैं, चोरी करो और आप दूसरे मुहल्ले में जाकर 'जागते रहो! जागते रहो!' पुकारते हैं। तभी इन लोगों के पास इतने रुपये आते हैं।"
* "यहाँ कोई धन और पद नहीं देखता। इस्लाम की निगाह में सब बराबर हैं। कितना सुंदर संचालन है, कितनी सुंदर व्यवस्था ! लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सबके सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हैं, और एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते हैं। कई बार यही क्रिया होती है, जैसे: बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जायँ, और यही क्रम चलता रहा। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएँ, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानों भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोये हुए है।"
* “हामिद खिलौनों की निंदा करता है- मिट्टी ही के तो हैं, गिरें तो चकनाचूर हो जाएँ, लेकिन ललचाई हुई आँखों से खिलौनों को देख रहा है और चाहता है कि जरा देर के लिये उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अनायास ही लपकते हैं, लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते हैं, विशेषकर जब अभी नया शौक है।"
* "हामिद लोहे की दुकान पर रुक जाता है। कई चिमटे रखे हुए थे। उसे ख्याल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है। अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे तो वह कितना प्रसन्न होंगी। फिर उनकी उंगलियाँ कभी न जलेंगी। घर में एक काम की चीज़ हो जाएगी। खिलौने से क्या फायदा? व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं।"
* "चिमटा कितने काम की चीज़ है। रोटियाँ तवे से उतार लो, चूल्हे में सेंक लो। कोई आग माँगने आए तो चटपट चूल्हे से आग निकालकर उसे दे दो। अम्माँ बेचारी को कहाँ फुरसत है कि बाज़ार आएँ और इतने पैसे ही कहाँ मिलते हैं? रोज हाथ जला लेती हैं।"
* "अम्माँ चिमटा देखते ही दौड़कर मेरे हाथ से ले लेंगी और कहेंगी- मेरा बच्चा अम्माँ के लिये चिमटा लाया है। कितना अच्छा लड़का है। इन लोगों के खिलौने पर कौन इन्हें दुआएँ देगा? बड़ों की दुआएँ सीधे अल्लाह के दरबार में पहुँचती हैं, और तुरंत सुनी जाती हैं। मेरे पास पैसे नहीं हैं। तभी तो मोहसिन और महमूद यों मिजाज दिखाते हैं। मैं भी इनसे मिजाज दिखाऊँगा। खेलें खिलौने और खाएँ मिठाइयाँ। मै नहीं खेलता खिलौने, किसी का मिजाज क्यों सहूँ? मैं गरीब सही, किसी से कुछ माँगने तो नहीं जाता। आखिर अब्बाजान कभी-न-कभी आएंगे। अम्मा भी आएंगी ही। फिर इन लोगों से पूछेंगा, कितने खिलौने लोगे? एक-एक को टोकरियों खिलौने दूँ और दिखा दूँ कि दोस्तों के साथ इस तरह का सलूक किया जाता है।"
* "अभी कंधे पर रखा, बंदूक हो गयी। हाथ में ले लिया, फकीरों का चिमटा हो गया। चाहूँ तो इससे मजीरे का काम ले सकता हूँ। एक चिमटा जमा दूँ, तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान निकल जाय। तुम्हारे खिलौने कितना ही जोर लगायें, मेरे चिमटे का बाल भी बाँका नहीं कर सकते। मेरा बहादुर शेर है चिमटा।"
* "आग में बहादुर ही कूदते हैं जनाब, तुम्हारे यह वकील, सिपाही और भिश्ती लौंडियों की तरह घर में घुस जाएंगे। आग में कूदना वह काम है, जो यह रूस्तमे हिंदू ही कर सकता है।"
* "कानून मुँह से बाहर निकलने वाली चीज़ है। उसको पेट के अंदर डाल दिया जाना बेतुकी-सी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती है।"
* "बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है!"
* “बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई। वह रोने लगी। दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूँदें गिराती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता !"
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