दुलाईवाली - बंग महिला - 1907 ई. || Dulayi vali - Bang Mahila kahani
दुलाईवाली - बंग महिला - 1907 ई.
* दुलाईवाली कहानी का प्रकाशन 1907 हुआ था। ई. में सरस्वती पत्रिका में
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इनकी प्रमुख कहानियाँ
* 'कुंभ में छोटी बहू' (1906 ई.),
* भाई बहन (1908 ई.),
* दालिया (1909 ई.),
* 'हृदय परीक्षा' इनकी प्रमुख कहानियाँ हैं।
* इस कहानी के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से चर्चा करेंगे ?
* बंग महिला *
* जन्म: - 1882 ई. में
* निधन : - 1950
* पूरा नाम: - राजेंद्र बाला घोष
* आरंभिक दौर की महिला कथाकारों में प्रमुख। इनकी पुस्तक कुसुम संग्रह का संपादन आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा किया गया।
प्रतिपाद्य
* नवल किशोर द्वारा अपने मित्र वंशीधर से रेल में किए गए मज़ाक की सरस कहानी।
* काशी/बनारस के लोगों के जीवन पर प्रकाश।
* बनारसी शौक और बोली का समावेश।
* विभिन्न परिस्थितियों में इंसान की दिनचर्या का चित्रण।
* काशी से इलाहाबाद की यात्रा का विवरण।
* दो मित्रों के हँसी-मज़ाक एवं व्यवहार का चित्रण।
* दोनों में गहरी मित्रता, दोनों एक जान दो कालिब।
पात्र
मुख्य पात्र
* वंशीधर :- जानकी के पति
- नवलकिशोर के मित्र, नवलकिशोर के लिये अगाध स्नेह।
* नवलकिशोर : - वंशीधर के घनिष्ठ मित्र।
- विनोदप्रिय, खूब हँसी-मजाक करने वाले
- कलकत्ते से नई बहू को लेकर चले थे और वंशीधर को तार भेजा था कि उन्हें ट्रेन में मिले।
- कट्टर स्वदेशी थे।
* जानकी :- वंशीधर की पत्नी
- उन्हें नवलकिशोर का हँसी-मज़ाक पंसद नहीं था।
- हालाँकि उनमें नवल के प्रति कोई दुराग्रह नहीं था।
- पारंपरिक भारतीय नारी थीं।
- ससुराल से विदा होने पर रोने जैसे संस्कार इनमें विद्यमान थे।
गौण पात्र
* नवलकिशोर की बहू
* सीताः जानकी देई की बहन
* कहारिनः जानकी के मायके में नौकरानी
* ट्रेन में 2-3 महिला सहयात्री
* कहानी में स्थानों के नाम *
* दशाश्वमेध घाट
* गोदौलिया (बनारस) कलकत्ता
* मुगलसराय
* इलाहाबाद पैयाग (प्रयाग)
विशेष
* दुलाई-अर्थात् एक प्रकार का चादर चुनरी जिसे घूँघट के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
* यथार्थ चित्रण, पात्रानुकूल भाषा और स्थानीयता के रंगों से भरी यह कहानी आज भी जीवंत है।
* बनारसी बोली के संवाद (ट्रेन में औरतों के कदम) कहानी की मिठास बढ़ा देते हैं।
प्रमुख उद्धरण
* "अरे इनकर मनई तो नाहीं आइलेन। हो देख हो, रोवल करथईन"
* पैयाग जी, जाहाँ मनई मकर नाहाए जाला।
* "नाहक बिलायती चीजें मोल लेकर क्यों रुपये की बरबादी की जाए। देशी लेने से भी दाम लगेगा सही; पर रहेगा तो देश ही में।"
* खैर, दोनों मित्र अपनी-अपनी घरवाली को लेकर राजी-खुशी घर पहुँचे और मुझे भी उनकी यह राम-कहानी लिखने से छुट्टी मिली।
* पहली, "उ मेहरुवा बड़ी उजबक रहला। भला केहू के चिल्लाये से रेलीऔ कहूँ खड़ी होला?"
* उस गाड़ी में एक लाठीवाला भी था, उसने खुल्लमखुल्ला कहा, "का बाबू जी ! कुछ हमरो साझा?"
* वह बुढ़िया, जिसे उन्होंने रखवाली के लिये रख छोड़ा था, किसी बहाने से भाग गयी।
* "तू ही उन स्त्रियों को कहीं ले गयी है," इतना कहना था कि दुलाई से मुँह खोलकर नवलकिशोर खिलखिला उठे।
* "दुलाई की बिसात ही कितनी?"
* "अरे तुम क्या जानो, इन लोगों की हँसी ऐसी ही होती है। हँसी में किसी के प्राण भी निकल जाएँ तो भी इन्हें दया न आवे।"
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