परिन्दे - निर्मल वर्मा || हिन्दी कहानिया
परिन्दे - निर्मल वर्मा
* प्रथम प्रकाशन: - हंस, (1957 ई.)
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* संग्रह: - परिंदे (1959 ई.)
* डायरी का खेल
* माया का मर्म
* तीसरा गवाह
* अंधेरे में
* पिक्चर पोस्टकार्ड
* सितंबर की एक शाम
* परिंदे
इस कहानी के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से चर्चा करेंगे ?
प्रतिपाद्य
* सर्वधा नए ढंग से प्रेम और मानवीय नियति की पड़ताल करती हुई कहानी।
* इस कहानी का केंद्रीय कध्य मध्यवर्गीय जीवन में व्याप्त अकेलापन है। सभी चरित्र न सिर्फ अकेले हैं बल्कि कभी न खत्म होने वाले इंतजार की प्रक्रिया में बोझिल, उदास और टूटे हुए हैं। इसी इंतजार की समरूपता को आधार बनाकर लेखक ने इसका नाम 'परिन्दे' रखा है।
* प्रेम का तीव्र सम्मोहन तथा उससे मुक्त होने की अकुलाहट।
* "फ़कत सात कहानियों का संग्रह 'परिंदे' निर्मल वर्मा की ही पहली कृति नहीं है, बल्कि जिसे हम 'नयी कहानी' कहना चाहते हैं, उसकी भी पहली कृति है।" - नामवर सिंह
* पात्र *
मुख्य पात्र
* लतिकाः-
- एक पहाड़ी कॉन्वेंट स्कूल में शिक्षिका
- प्रेमी गिरीश की मृत्यु के बाद उसकी स्मृतियों के प्रति मोह।
- बिला नागा क्लब में जाती है, वहीं गिरीश से परिचय।
- 'मैन ईटर ऑफ कुमाऊँ' (गिरीश द्वारा चिढ़ाने के लिये दिया गया नाम)।
- देवदार पर बालों की क्लिप से गिरीश का नाम लिखा था।
* मि. ह्यूबर्टः-
- संगीत शिक्षक
- लतिका को प्रेम-पत्र लिखता है।
- पियानो पर शोपाँ (नोक्टर्न) तथा चाइकोव्स्की के कंपोजीशन बजाता है।
- प्राणघातक बीमारी से ग्रस्त ।
* डॉ. मुकर्जी: -
- स्कूल में अध्यापन तथा प्राइवेट प्रैक्टिस।
- मूलतः बर्मा से; जापानी आक्रमण के समय पलायन।
- रास्ते में पत्नी की मृत्यु।
- व्यक्तिगत जीवन के विषय में अधिक मुखर नहीं
- फिलोसोफाइज करके बात कहने के आदती।
गौण पात्र
* मेजर गिरीश नेगी: - कुमाऊँ रेजीमेंट
* करीमुद्दीनः- हॉस्टल का नौकर; आलसी
* मिस वुडः - स्कूल की प्रिंसिपल; 'ओल्मेड', कहकर पुकारा जाता है।
* फावर एलमण्डः - चैपल के पादरी
* जूली: - उसके सैनिक प्रेमी का पत्र लतिका पकड़ लेती है।
* सुधा
प्रमुख उद्धरण
"Can we do nothing for the dead? And for a long time the answer has been-nothing!"
- कैथरीन मेन्सफील्ड
* "मरने से पहले मैं एक दृफा बर्मा जरूर जाऊँगा" और तब एक क्षण के लिये उनकी आँखों में गीली सी नमी छा जाती।
- डॉक्टर मुकर्जी
* "होम-सिकनैस ही एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज किसी डॉक्टर के पास नहीं है।"
* "उसे याद आया कुछ महीने पहले अचानक उसे ह्यूवर्ट का प्रेमपत्र मिला था- भावुक याचना से भरा हुआ पत्र, जिसमें उसने न जाने क्या कुछ लिखा था, जो कभी उसकी समझ में नहीं आया। उसे ह्यूबर्ट की इस बचकाना हरकत पर हँसी आई थी, किंतु भीतर-ही-भीतर प्रसन्नता भी हुई थी उसकी उम्र अभी बीती नहीं है, अब भी वह दूसरों को अपनी ओर आकर्षित कर सकती है। ह्यूबर्ट का पत्र पढ़कर उसे क्रोध नहीं आया, आई थी केवल ममता। वह चाहती तो उसकी ग़लतफहमी को दूर करने में देर न लगती, किंतु कोई शक्ति उसे रोके रहती है. उसके कारण अपने पर विश्वास रहता है, अपने सुख का भ्रम मानो ह्यूबर्ट की गलतफहमी से जुड़ा है....।"
* "मैं कभी-कभी सोचता हूँ, इंसान जिंदा किसलिये रहता है- क्या उसे कोई और बेहतर काम करने को नहीं मिला? क्या तुमने कभी महसूस किया है कि एक अजनबी की हैसियत से पराई जमीन पर मर जाना काफी खौफनाफ बात है...!"
- डॉक्टर मुकर्जी, ह्यूबर्ट से
* "लीड काइण्डली लाइट ... संगीत के सुर मानो एक ऊँची पहाड़ी पर चढ़कर हाँफती हुई साँसों को आकाश की अबाध शून्यता में बिखेरते हुए नीचे उतर रहे हैं। बारिश की मुलायम धूप चैपल के लंबे-चौकोर शीशों पर झलमता रही है, जिसकी एक महीन चमकीली रेखा ईसा मसीह की प्रतिमा पर तिरछी होकर गिर रही है। मोमबत्तियों का धुआँ धूप में नीली-सी लकीर खींचता हुआ हवा में तिरने लगा है।"
* "उसे लगा कि जैसे मोमबत्तियों के धूमिल आलोक में कुछ भी ठोस. वास्तविक न रहा हो चैपल की छत, दीवारें, डेस्क पर रखा हुआ डॉक्टर का सुघड़-सुडौल हाथ और पियानो के सुर अतीत की धुन्ध को भेदते हुए स्वयं उस धुन्ध का भाग बनते जा रहे हों...।"
* "पियानो का हर नोट चिरंतन खामोशी की अँधेरी खोह से निकलकर बाहर फैली नीली धुन्ध को काटता, तराशता हुआ एक भूला-सा अर्थ खींच लाता है। गिरता हुआ हर 'पोज' एक छोटी-सी मौत है, मानो घने छायादार वृक्षों की काँपती छायाओं में कोई पगडंडी गुम हो गई हो, एक छोटी-सी मौत जो आने वाले सुरों को अपनी बची-खुची गूँजों की साँसें समर्पित कर जाती है... जो मर जाती है, किंतु मिट नहीं पाती, मिटती नहीं इसलिये मरकर भी जीवित है। दूसरे सुरों में लय हो जाती है..."
- ह्यूबर्ट का चिंतन
* "कुछ भी कह लो, अपने देश का सुख कहीं और नहीं मिलता। यहाँ तुम चाहे कितने वर्ष रह लो, अपने को हमेशा अजनबी ही पाओगे।"
- मिस वुड, डॉक्टर मुकर्जी से
* "जो वह याद करती है, वही भूलना भी चाहती है, लेकिन जब सचमुच भूलने लगती है, तब उसे भय लगता है कि जैसे कोई उसकी किसी चीज को उसके हाथों से छीन लिये जा रहा है, ऐसा कुछ जो सदा के लिये खो जाएगा। बचपन में जब कभी वह अपने किसी खिलौने को खो देती थी, तो वह गुमसुम-सी होकर सोचा करती थी, कहाँ रख दिया मैंने। जब बहुत दौड़-धूप करने पर खिलौना मिल जाता, तो वह बहाना करती कि अभी उसे खोज ही रही है, कि वह अभी मिला नहीं है। जिस स्थान पर खिलौना रखा होता, जान-बूझकर उसे छोड़कर घर के दूसरे कोने में उसे खोजने का उपक्रम करती। तब खोई हुई चीज़ याद रहती, इसलिये भूलने का भय नहीं रहता था...।"
* "आज वह उस बचपन के खेल का बहाना क्यों नहीं कर पाती? 'बहाना'... शायद करती है, उसे याद करने का बहाना, जो भूलता जा रहा है... दिन, महीने बीत जाते हैं, और वह उलझी रहती है. अनजाने में गिरीश का चेहरा धुँधला पड़ता जाता है, याद वह करती है, किंतु जैसे किसी पुरानी तस्वीर के धूल भरे शीशे को साफ कर रही हो। अब वैसा दर्द नहीं होता, सिर्फ उसको याद करती है, जो पहले कभी होता था- तब उसे अपने पर ग्लानि होती है। वह फिर जान-बूझकर उस घाव को कुरेदती है, जो भरता जा रहा है, खुद-ब-खुद उसकी कोशिशों के बावजूद भरता जा रहा है..।"
* "वैसे हम सबकी अपनी-अपनी जिद होती है, कोई छोड़ देता है, कोई आखिर तक उससे चिपका रहता है।"
- डॉक्टर मुकर्जी, लतिका से
* "किसी चीज़ को न जानना यदि गलत है, तो जान-बूझकर न भूल पाना, हमेशा जोंक की तरह उससे चिपटे रहना-यह भी गलत है। बर्मा से आते हुए मेरी पत्नी की मृत्यु हुई थी, मुझे अपनी जिंदगी बेकार-सी लगी थी। आज इस बात को अर्सा गुजर गया और जैसा आप देखती हैं, मैं जी रहा हूँ उम्मीद है कि काफी अर्सा और जीऊँगा। जिंदगी काफी दिलचस्प लगती है, और यदि उम्र की मजबूरी न होती तो शायद मैं दूसरी शादी करने में भी न हिचकता। इसके बावजूद कौन कह सकता है कि मैं अपनी पत्नी से प्रेम नहीं करता था- आज भी करता हूँ....।"
- डॉक्टर मुकर्जी, लतिका से
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