इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर - हरिशंकर परसाई || हिन्दी कहानिया
इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर - हरिशंकर परसाई
* संग्रहः- ठिठुरता हुआ गणतंत्र (1970 ई.)
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   * ठिठुरता हुआ
  गणतंत्र * कर कमल हो गए * वह जो आदमी
  है न * राम की लुगाई
  और गरीब की लुगाई * सद्गुरु का
  कहना * हम बिहार में
  चुनाव लड़ रहे हैं * छोटी सी बात * इंस्पेक्टर
  मातादीन चाँद पर * फिल्मी
  रोमांच * प्रेम
  पुजारी: अगर मैं फिल्म बनाता * मुखड़ा क्या
  देखें फोटो में * सबटेनेंट की
  कथा  | 
  
   * फोन टालने की
  कला * अपना चाचा-
  एशियाई फ्लू *दूसरे की
  महिमा ढोने वाले * मेरे जीबकट
  के नाम * एक काना : एक
  ऐंचकताना *चाँद पर
  नहीं जा सका * साहित्य और
  नम्बर दो का कारोबार *ग्रांट अभी
  तक नहीं आई *तटस्थ *बारात की
  वापसी *एक सुपरमैन *पाँच लोक
  कथाएँ  | 
 
* इस कहानी के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से चर्चा करेंगे ?
* पात्र *
मुख्य पात्र
* मातादीन: -
- सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर मातादीन (M.D. साब)
- पृथ्वी से चांद पर सलाहकार के रूप में गए।
- चांद की पुलिस व्यवस्था को सुधारने के लिये।
- इस पात्र के द्वारा लेखक ने पुलिस विभाग में व्याप्त सभी भ्रष्टाचारों पर व्यंग्य किया है।
* कोतवालः- चांद के पुलिस स्टेशन का कोतवाल
गौण पात्र
* अब्दुल गफूर :- मुंशी (भारतीय पुलिस में)
* बलभद्र : - हवलदार
* रामसजीवनः- हवलदार
प्रतिपाद्य
* भारतीय पुलिस व्यवस्था की कार्यशैली पर व्यंग्य
* भ्रष्ट पुलिस व्यवस्था पर व्यंग्य
* निर्दोष को दोषी करार देने पर व्यंग्य
* पुलिस द्वारा विज्ञान एवं वैज्ञानिकों के नकारने पर व्यंग्य
* चाँद के काल्पनिक चित्रण द्वारा भारतीय पुलिस एवं व्यवस्था पर व्यंग्य।
विशेष
हम क्या करें सब ऊपर से हो रहा है, इस कथन द्वारा भारतीय पुलिस व्यवस्था के ऊपर प्रभावशाली व्यंग्य किया गया है।
प्रमुख उद्धरण
* "वे भारत की तरफ से सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अंतर्गत गए थे। चाँद सरकार ने भारत सरकार को लिखा था- यों हमारी सभ्यता बहुत आगे बढ़ी है पर हमारी पुलिस में पर्याप्त सक्षमता नहीं है। वह अपराधी का पता लगाने और उसे सजा दिलाने में अक्सर सफल नहीं होती। सुना है, आपके यहाँ रामराज है। मेहरबानी करके किसी पुलिस अफसर को भेजें जो हमारी पुलिस को शिक्षित कर दे।"
* "सब ठीक-ठाक होना चाहिये, वरना हरामजादे का बीच अंतरिक्ष में चालान कर दूँगा।"
* "आदमी मारा गया है, तो यह पक्का है किसी ने उसे ज़रूर मारा। कोई कातिल है। किसी को सज़ा होनी है। सवाल है- किसको सजा होनी है? पुलिस के लिये यह सवाल इतना महत्त्व नहीं रखता जितना यह सवाल कि जुर्म किस पर साबित हो सकता है या किस पर साबित होना चाहिये। कत्ल हुआ है, तो किसी मनुष्य को सज़ा होगी ही। मारनेवाले को होती है, या बेकसूर को यह अपने सोचने की बात नहीं है। मनुष्य-मनुष्य सब बराबर हैं। सबमें उसी परमात्मा का अंश है। हम भेदभाव नहीं करते। यह पुलिस का मानवतावाद है। दूसरा सवाल है, किस पर जुर्म साबित होना चाहिये। इसका निर्णय इन बातों से होगा- 1. क्या वह आदमी पुलिस के रास्ते में आता है? 2. क्या उसे सजा दिलाने से ऊपर के लोग खुश होंगे?"
* "एक मुहावरा 'ऊपर से हो रहा है' हमारे देश में पच्चीस सालों से सरकारों को बचा रहा है। तुम इसे सीख लो।"
* "चश्मदीद गवाह वह नहीं है जो देखे, बल्कि वह है जो कहे कि मैंने देखा।"
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