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अमृतसर आ गया - भीष्म साहनी || हिन्दी कहानिया

            अमृतसर आ गया - भीष्म साहनी

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* संग्रह: - पटरियाँ (1973 ई.)

* पटरियाँ

* पैरों का निशान

* अमृतसर आ गया

* अभी तो मैं जवान हूँ

* ललक

* रास्ता

* नया मकान

* इन्द्रजा

* तसवीर

* डोरे

* मौकापरस्त

* ढोलक

* ज़ख्म

* भगौड़ा

* इस कहानी  के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से  चर्चा करेंगे ?

                                       प्रतिपाद्य 

* 'मैं' शैली में लिखित कहानी

* भारत-पाक विभाजन के समय बढ़ती सांप्रदायिक नफरत को एक चलती रेल के डिब्बे के भीतर की घटनाओं से व्यक्त करती कहानी।

* सांप्रदायिक तनाव की विषयवस्तु जिसमें भाईचारे एवं मानवीय रिश्तों में एक टूटन दिखाई पड़ती है।

* शुरू में खुशनुमा माहौल, बाद में वातावरण भयाक्रांत हो गया। शायद सबको दंगों की आहट थी।

                                     उल्लिखित स्थान 

पेशावर, 

बंबई, 

वज़ीराबाद, 

दिल्ली, 

अमृतसर, हरवंसपुरा (जिसके निकल जाने पर बाबू को लगा कि खतरा टल गया)

                                        पात्र 

                                      मुख्य पात्र 

* कथावाचक (स्वयं लेखक)

- लेखक द्वारा ट्रेन यात्रा का विवरण जिसमें विभाजन की त्रासदी के दरम्यान भय और आतंक का माहौल। 

-  वातावरण में भय और आतंक के बीच दो धर्मों/संप्रदायों के बीच अविश्वास का माहौल।

- एक ओर पाकिस्तान बन जाने का जोश था तो दूसरी ओर हिंदुस्तान के आज़ाद हो जाने का जोश।

- लेखक द्वारा पूरे वातावरण का यथार्थ, सजीव, मार्मिक एवं संवेदनशील चित्रण।

- लेखक स्वतंत्रता दिवस का समारोह देखने दिल्ली जा रहा था।

* दुबला बाबू :-

- लेखक/कथावाचक का सहयात्री जो लेखक को संभवतः पेशावर का जान पड़ा।

- ट्रेन में मौजूद पठानों द्वारा इसका बार-बार मज़ाक उड़ाया जा रहा था।

- एक हिंदू महिला पर पठानों द्वारा लात जमाये जाने और उसके परिवार को ट्रेन से उतरने पर विवश करने का दंश उसके मन में गहरे बैठ जाता है।

-  अपना इलाका शुरू होते ही दुबला बाबू अपने काबू से बाहर आ जाता है और पठानों पर चिल्लाने लगता है।

- बदले की भावना में एक अधेड़ उम्र के मुस्लिम को मार देता है।

* डिब्बे के तीन पठान :-

- पश्तो में दुबला बाबू से बात करते समय उसका मज्जाक उड़ाते हैं।

- अपने क्षेत्र में पठानों के मन का तनाव ढीला था।

                                       गौण पात्र 

* सरदार

* लाम के दिनों में वर्मा की लड़ाई में भाग ले चुके हैं।

* विनोदप्रिय है; अधिकतर कोई बात कह खी-खी करके हँसता है।

* पठान और दुबला बाबू को लड़ने से रोकता है।

* बुढ़ियाः -

- नेकदिल है; ट्रेन से मुसाफिर को उतारे जाने पर मार्मिक अपील करती है कि उसे मेरे पास बैठने दो।

* भिश्ती :- 

- दंगों के बीच यात्रियों को पानी पिलाने आता है। महज एक बार ही इसका जिक्र।

                                     प्रमुख उद्धरण

* "उन दिनों के बारे में सोचता हूँ तो लगता है, हम किसी झुटपुटे में जी रहे थे। शायद समय बीत जाने पर अतीत का सारा व्यापार ही झुटपुटे में बीता जान पड़ता है। ज्यों-ज्यों भविष्य के पट खुलते जाते हैं, यह झुटपुटा और भी गहराता चला जाता है।"

* "मेरे सामने बैठे सरदार जी बार-बार मुझे पूछ रहे थे कि पाकिस्तान बन जाने पर जिन्ना साहिब बंबई में ही रहेंगे या पाकिस्तान में जा कर बस जाएँगे, और मेरा हर बार यही जवाब होता बंबई क्यों छोड़ेंगे।"

* "कुछ लोग अपने घर छोड़कर जा रहे थे, जबकि अन्य लोग उनका मजाक उड़ा रहे थे। कोई नहीं जानता था कि कौन-सा कदम ठीक रहेगा और कौन-सा गलत ! एक ओर पाकिस्तान बन जाने का जोश था तो दूसरी ओर हिंदुस्तान के आजाद हो जाने का जोश। जगह-जगह दंगे भी हो रहे थे और कौम-ए-आजादी की तैयारियाँ भी चल रही थीं। इस पृष्ठभूमि में लगता, देश आजाद हो जाने पर दंगे अपने आप बंद हो जाएँगे। वातावरण में इस झुटपुट में आजादी की सुनहरी धूल-सी उड़ रही थी। और साथ ही साथ अनिश्चय भी डोल रहा था, और इसी अनिश्चय की स्थिति में किसी-किसी वक्त भावी रिश्तों की रूपरेखा झलक दे जाती थी।"

* "जितनी देर कोई मुसाफिर डिब्बे के बाहर खड़ा अंदर आने की चेष्टा करता रहे, अंदर बैठे मुसाफिर उसका विरोध करते रहते हैं। पर एक बार जैसे-तैसे वह अंदर आ जाए तो विरोध खत्म हो जाता है, और वह मुसाफिर जल्दी ही डिब्बे की दुनिया का निवासी बन जाता है, और अगले स्टेशन पर वही सबसे पहले बाहर खड़े मुसाफिरों पर चिल्लाने लगता है- नहीं है जगह, अगले डिब्बे में जाओ... घुसे आते हैं..."

* "बहुत बुरा किया है तुम लोगों ने, बहुत बुरा किया है।' बुढ़िया ऊँचा-ऊँचा बोल रही थी। "तुम्हारे दिल में दर्द मर गया है। छोटी-सी बच्ची उनके साथ थी, बेरहमो, तुमने बहुत बुरा किया है। धक्के देकर उतार दिया है।"

* "शहर में आग लगी थी। बात डिब्बे भर के मुसाफिरों को पता चल गई और वे लपक लपककर खिड़कियों में से आग का दृश्य देखने  जब गाड़ी शहर छोड़कर आगे बढ़ गई तो डिब्बे में सन्नाटा छा गया था। मैंने घूमकर डिब्बे के अंदर देखा, दुबले बाबू का चेहरा पीला पड़ गया था। और माथे पर पसीने की परत किसी मुर्दे के माथे की तरह चमक रही थी। मुझे लगा, जैसे अपनी-अपनी जगह बैठे सभी मुसाफिरों ने अपने आस-पास बैठे लोगों का जायजा ले लिया है। सरदार जी उठकर मेरी सीट पर आ बैठे। नीचे वाली सीट पर बैठा पठान अपने दो साथी पठानों के साथ ऊपर वाली बर्थ पर चढ़ गया। यही क्रिया शायद रेलगाड़ी के अन्य डिब्बों में भी चल रही थी। डिब्बे में तनाव आ गया। लोगों ने बतियाना बंद कर दिया।"

* "डिब्बे में तरह-तरह की आड़ी-तिरछी मुद्राओं में मुसाफिर पड़े थे। उनकी बीभत्स मुद्राओं को देखकर लगता, डिब्बा लाशों से भरा है।" 

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