कोसी का घटवार - शेखर जोशी - हिन्दी कहानिया
कोसी का घटवार - शेखर जोशी
* संग्रह:- कोसी का घटवार (1958 ई.)
* दाज्यू
* उस्ताद
* कविप्रिया
* बंद दरवाजे खुली खिड़कियाँ
* किंकरोमि जनार्दन
* कोसी का घटवार
* जी-हजूरिया
* पद्मा की कहानी
* शुभो दीदी
* बदबू
* इस कहानी के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से चर्चा करेंगे ?
प्रतिपाद्य
* सामाजिक जड़ मनोविज्ञान के कारण अधूरे रहे अनाथ फौजी गुसाईं और लछमा के कालातीत प्रेम की अद्भुत कहानी।
* पहाड़ का परिवेश
* फ्लैशबैक (पूर्व दीप्ति) की तकनीक का प्रयोग
* सूखे की स्थिति का जिक्र
* पहाड़ों के पलायन की समस्या का उल्लेख
* मिहल व दाड़िम के पेड़ों का बारंबार उल्लेख
उल्लिखित स्थान
* हल्द्वानी
* गंगनाथ
प्रमुख पात्र
* गुसाईं: -
- पूर्व सैनिक
- कोसी के किनारे घट (गेहूँ पीसने की व्यवस्था)
- हवलदार धरम सिंह की फौजी पैंट देखकर वैसी ही पैंट पहनने की इच्छा से फौज में भर्ती।
- किसन सिंह (सिपाही) से लछमा का विवाह रामसिंह (रमुवां) से होने का पता चला।
* लछमा :-
- गुसाईं की प्रेमिका
- वर्तमान में विधवा
- एक पुत्र की माँ
- मायके में रहती है
- स्वाभिमानी स्त्री
प्रमुख उद्धरण
* "सूखी नदी के किनारे बैठा गुसाईं सोचने लगा, क्यों उस व्यक्ति को लौटा दिया? लौट तो वह जाता ही, घट के अंदर टच्च पड़े पिसान के थैलों को देखकर। दो-चार क्षण की बातचीत का आसरा ही होता। कभी-कभी गुसांईं को यह अकेलापन काटने लगता है। सूखी नदी के किनारे का यह अकेलापन नहीं, जिंदगी भर साथ देने के लिये जो अकेलापन उसके द्वार पर धरना देकर बैठ गया है, वही। जिसे अपना कह सके, ऐसे किसी प्राणी का स्वर उसके लिये नहीं।"
* "जिसके आगे-पीछे भाई-बहिन नहीं, माई-बाप नहीं, परदेश में बंदूक की नोंक पर जान रखनेवाले को छोकरी कैसे दे दें हम?" लछमा के बाप ने कहा था।"
* "पिछले बैसाख में ही वह गाँव लौटा, पंद्रह साल बाद, रिज़र्व में आने पर। काले बालों को लेकर गया था, खिचड़ी बाल लेकर लौटा। लछमा का हठ उसे अकेला बना गया।"
- गुसाईं के संदर्भ में
* “गंगनाथज्यू की कसम, जैसा तुम कहोगे, मैं वैसा ही करूंगी!" आँखों में आँसू भरकर लछमा ने कहा था। वर्षों से वह सोचता आया है, कभी लछमा से भेंट होगी, तो वह अवश्य कहेगा कि वह गंगनाथ का जागर लगाकर प्रायश्चित जरूर कर ले। देवी-देवताओं की झूठी कसमें खाकर उन्हें नाराज करने से क्या लाभ?"
* “कलाई में पहने हुए चांदी के कड़े जब कभी आपस में टकरा जाते, तो खन्-खन् का एक अत्यंत मधुर स्वर निकलता। चक्की के पाट पर टकरानेवाली काठ की चिडियों का स्वर कितना नीरस हो सकता है, यह गुसांईं ने आज पहली बार अनुभव किया।"
* "दुःख-तकलीफ के वक्त ही आदमी आदमी के काम नहीं आया, तो बेकार है! स्साला! कितना कमाया, कितना फूंका हमने इस जिंदगी में। है कोई हिसाब ! पर क्या फायदा! किसी के काम नहीं आया। इसमें अहसान की क्या बात है? पैसा तो मिट्टी है स्साला! किसी के काम नहीं आया तो मिट्टी, एकदम मिट्टी!"
- गुसाईं, लछमा से
* “गंगनाथ दाहिने रहें, तो भले-बुरे दिन निभ ही जाते हैं, जी! पेट का क्या है, घट के खप्पर की तरह जितना डालो, कम हो जाय। अपने-पराये प्रेम से हँस-बोल दें, तो वह बहुत है दिन काटने के लिये।"
- लछमा, गुसाईं से
* "घर के अंदर काठ की चिड़ियाँ अब भी किट-किट आवाज कर रही थीं, चक्की का पाट खिस्सर-खिस्सर चल रहा था और मथानी की पानी काटने की आवाज़ आ रही थी, और कहीं कोई स्वर नहीं, सब सुनसान, निस्तब्ध!"
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