ads

चंद्रगुप्त - जयशंकर प्रसाद || हिन्दी नाटक

            चंद्रगुप्त - जयशंकर प्रसाद -  1931 ई.

इसका प्रकाशन वर्ष 1931 ई. है। 'चंद्रगुप्त' प्रसाद की नाट्य रचना का शिखर बिंदु है।

प्रिय पाठकों,........इस पोस्ट में हम हिंदी कहानियों के महत्वपूर्ण बिंदुओं को क्रमवार समाहित किया गया है। यदि आपको हमारे द्वारा किया गया यह प्रयास अच्छा लगा है, तो इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम हिंदी साहित्य के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।

                            विषयवस्तु 

'चंद्रगुप्त' जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एक प्रमुख ऐतिहासिक नाटक है। इस नाटक के द्वारा प्रसाद ने भारतीयों के मन में गौरव का भाव जगाने का प्रयास किया है। इस नाटक में विदेशियों से भारत का संघर्ष तथा उस संघर्ष में भारतीयों की विजय को दिखाया गया है जिससे तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के प्रति लोगों में राष्ट्रवाद की भावना का विकास हो सके।

'चद्रगुप्त' का कथानक इतिहास की तीन प्रमुख घटनाओं- सिकंदर का भारत पर आक्रमण, नंद कुल का उन्मूलन और सेल्यूकस की पराजय तथा चंद्रगुप्त के राजा बनने की घटना पर आधारित है। इस नाटक में मुख्य कथा के अतिरिक्त कई उपकथाएँ साथ-साथ चलती हैं।

 जैसे- सिद्धरण और अलका की कथा, राक्षस और सुहासिनी की कथा तथा पर्वतेश्वर और अलका की कथा आदि।

* इस कहानी  के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से  चर्चा करेंगे ?

 नोट: इस नाटक में कुल चार अंक हैं।

                              पुरुष पात्र 

* चंद्रगुप्तः-   चंद्रगुप्त नाटक में धीरोदात्त नायक है। जिसमें साहस, आत्मविश्वास और निर्भीकता आदि गुण हैं। अंत में वह मगध ही नहीं, संपूर्ण भारतवर्ष का सम्राट बनता है।

* चाणक्यः- मुख्य पात्र के रूप में नाटक में आता है। इसमें दूरदर्शिता, सतर्कता और गंभीरता आदि गुण हैं। नाटक में यह तत्कालीन समाज में व्याप्त ब्राह्मणत्व को प्रदर्शित करता है। यह वैदिक अनुयायी था।

* सिंहरण: - अलका का प्रेमी तथा मालव गण का प्रमुख, यह राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत है।

* पर्वतेश्वर:- पंजाब का राजा है। जो अकेले सिकंदर से युद्ध करता है। यह 'पोरस' नाम से जाना जाता है।

* नन्व:- मगध सम्राट, कल्याणी का पिता, भोगी-विलासी शासक

* राक्षस :- मगध का अमात्य

* वररुचि :- (कात्यायन) मगध का अमात्य

* शकटार :-  मगध का मंत्री

* आम्भीक :- तक्षशिला का राजकुमार

* सिकंदर :- ग्रीक विजेता

* फिलिप्स : - सिकंदर का क्षत्रप

* मौर्य-सेनापति:- चन्द्रगुप्त का पिता

* एनीसाक्रीटीज: - सिकंदर का सहचर

* देवबल, नागदत्त, गणमुख्य :- मालव गणतंत्र के पदाधिकारी

* साइबर्टियस, मेगस्थनीज: - यवन दूत

* गांधार-नरेश :- आंभीक का पिता

* सेल्यूकस :-  सिकंदर का सेनापति

* दाण्ड्यायन :-  एक तपस्वी

                                   स्त्री पात्र 

* अल्का:-  गांधार नरेश की पुत्री तथा आंभीक की बहन। यह राष्ट्रप्रेमी और साहसी है।

* सुवासिनी :- शकटार की कन्या और राक्षस की प्रेमिका

* कल्याणी:- मगध की राजकुमारी

* नीला, लीला :- कल्याणी की सहेलियाँ

* मालविका :- सिंधु देश की राजकुमारी

* कार्नेलिया :- सेल्युकस की पुत्री, बाद में चंद्रगुप्त से विवाह

* मौर्य-पत्नी:-  चंद्रगुप्त की माता

* एलिस : - कार्नेलिया की सहेली

                                      विशेष

* इस नाटक में कुल 4 अंक / 44 दृश्य 13 गीत हैं। 

* इस नाटक की भाषा कूटनीतिक है तथा इसमें तत्सम बहुल शब्दावली का उपयोग हुआ है।

* इस नाटक का अंगीरस वीर और श्रृंगार है।

* इसमें बौद्ध और वैदिक धर्म के बीच संघर्ष मिलता है।

* इसमें नारियों को स्वतंत्रता मिलती है, वो युद्ध में भी भाग लेती हैं।

* मंचीय दृष्टि से यह नाटक अधिक सफल नहीं है।

                                       कथासार 

न. डी

प्रथम अंक (11 दृश्य) :-

* नाटक का प्रारंभ तक्षशिला के गुरुकुल में युवकों के पारस्परिक वार्तालाप से होता है। जहाँ चाणक्य, सिंहरण, आंभीक, अल्का और चंद्रगुप्त उपस्थित होते हैं। आंभीक और चंद्रगुप्त में संघर्ष होता है और आंभीक पराजित होकर चला जाता है। चाणक्य के कहने पर चंद्रगुप्त मगध और अल्का के कहने पर सिंहरण गांधार को छोड़कर चला जाता है।

इस अंक में मुख्य रूप से चंद्रगुप्त की सहायता से चाणक्य का नंदकुल के सर्वनाश की योजना बनाना, सीमा प्राप्ति की ओर प्रस्थान, प्रतिपक्षी आंभीक का सिंधु तट पर विरोध, दाण्ड्यायन के आश्रय में दोनों पक्षों के लोगों का एकत्र होना, दाण्ड्यायन की प्रशंसा से चंद्रगुप्त का सम्मान तथा मगध से लेकर गांधार तक की राजनीतिक स्थिति की प्रतिष्ठा की कथा का वर्णन हुआ है।

द्वितीय अंक (10 दृश्य) :-

इस अंक में पश्चिमोत्तर सीमा पार की राजनीतिक वस्तुस्थिति की स्पष्ट रूपरेखा देखी जा सकती है।

दुराचारी फिलिप्स के चंगुल से कार्नेलिया का निकलना, सूझ-बूझ और अपरिमित शक्ति के आधार पर सिकंदर को नीचा दिखाने में सफलता, विदेशी सेना की स्थिति एवं युद्धकला की जानकारी, चाणक्य को मिलना, चंद्रगुप्त को दोनों गणतंत्रों का सेनापति बनाना आदि कई महत्त्वपूर्ण घटनाएँ इस अंक में घटती हैं। इसी अंक में घायल सिकंदर को चंद्रगुप्त प्राणदान देता है।

तृतीय अंक (9 दृश्य ) :-

तीसरे अंक का आरंभ विपाशा तट से होता है जहाँ राक्षस चाणक्य के बनाए गए चक्र में फँस जाता है। दूसरे दृश्य में चाणक्य पर्वतेश्वर को आत्महत्या से रोकता है, सिकंदर अपने अनुचरों के साथ नौका से वापस लौटता है। चौथे दृश्य में राक्षस को एक चर के द्वारा पता लगता - है कि चाणक्य उसको मायाचक्र में फँसा कर मगध में विद्रोह कराने वाला है। पाँचवें दृश्य में नंद, सुवासनी के साथ दुर्व्यवहार करता है लेकिन समय पर आकर राक्षस उसे बचाता है। छठे दृश्य में चाणक्य शकटार से मिलता है जो नंद से प्रतिशोध लेना चाहता है। सातवें दृश्य में मालविका नंद को चाणक्य का दिया पत्र और राक्षस की अंगूठी देती है। आठवें दृश्य में नंद के प्रति विद्रोह होता है और नौवें दृश्य में चंद्रगुप्त मगध का शासक बन जाता है।

चतुर्थ अंक (14 दृश्य ):-

इस अंक में पर्वतेश्वर के प्राणों का अंत होता है तथा कल्याणी के आत्महत्या कर लेने से चंद्रगुप्त का राज्य निष्कंटक हो जाता है। चंद्रगुप्त की प्राण-रक्षा करते हुए मालविका अपने प्राण दान देती है तथा उसकी हत्या कर राक्षस सेल्यूकस के यहाँ चला जाता है। इधर चाणक्य की नीति से खिन्न होकर चंद्रगुप्त के माता-पिता राज्य छोड़कर चले जाते हैं जिससे चंद्रगुप्त और चाणक्य में मतभेद होता है और चाणक्य भी राजमहल से चला जाता है। अंत में फिर चंद्रगुप्त को युद्ध में चाणक्य, सिंहरण आकर मदद करते हैं जिससे वो विजयी होता है। और अंत में कार्नेलिया और चंद्रगुप्त के साथ, राक्षस और सुवासिनी का विवाह होता है तथा चाणक्य राजनीति से संन्यास ले लेता है। 

                                  प्रमुख उद्धरण

प्रथम अंक :-

* "तुम कनक किरन के अंतराल में लुक छिपकर चलते हो क्यों?" - सुवासिनी

* "त्याग और क्षमा, तप व विद्या - तेज व सम्मान के लिये है।" - चाणक्य

* "अतीत सुखों के लिये सोच क्यों, अनागत भविष्य का भय क्यों?" - सिंहरण 

* "मैं मगध का उद्धार चाहता हूँ पर यवन लुटेरों की सहायता से नहीं।" - चंद्रगुप्त

• "मैं लेखक नहीं हूँ कात्यायन ! शास्त्र प्रणेता हूँ, व्यस्थापक हूँ।" - चाणक्य

* "मेरा देश है, मेरे पहाड़ हैं, मेरी नदियाँ हैं।" - अलका

* "विजय तृष्णा का अंत पराभव में होता है, अलक्षेन्द्र! राजसत्ता सुव्यवस्था से बढ़े तो बढ़ सकती है, केवल विजयों से नहीं।" - दांड्यायन

द्वितीय अंक :-

* " अरुण यह मधुमय देश हमारा, जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।" - कार्नेलिया

तृतीय अंक :-

* "यह स्वप्नों का देश, यह त्याग व ज्ञान का पालना। अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि है। यह मनुष्यता की जन्मभूमि है।"

- कार्नेलिया (चंद्रगुप्त से)

* "समझदारी आने पर यौवन चला जाता है।... मैं अविश्वास, कूट चक्र और छलनाओं का कंकाल........." - चाणक्य (स्वगत)

चतुर्थ अंक :-

* "पतन और कहाँ तक हो सकता है! ले लो मौर्य चंद्रगुप्त अपना अधिकार छीन लो।"

- चाणक्य (चंद्रगुप्त से

* "हिमाद्री तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।"

- अलका

* "यदि प्रेम ही जीवन का सत्य है तो संसार ज्वालामुखी है। " - कार्नेलिया

* "मैं क्रूर हूँ केवल वर्तमान के लिये, भविष्य के सुख व शांति के लिये।"

- चाणक्य

* "यह युद्ध ग्रीक व भारतीयों का नहीं, यह अरस्तू व चाणक्य की चोट है।"

- कार्नेलिया

* "युद्ध देखना चाहो तो मेरा हृदय फाड़कर देखो मालविका ।" - चंद्रगुप्त 

नोट :- इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम हिंदी साहित्य के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.