भारतेंदु हरिश्चंद्र नाटक - अंधेर-नगरी || हिन्दी नाटक
भारतेंदु हरिश्चंद्र - अंधेर-नगरी - 1881 ई.
इसका प्रकाशन वर्ष 1881 ई. है। यह नाटक 6 अंकों में विभक्त है। प्रहसन शैली में लिखे गये इस नाटक में तत्कालीन समय में सत्ता की विसंगतियों, मूर्खता और उससे उपजी परिस्थितियों का व्यंग्यात्मक चित्रण किया गया है।
प्रिय पाठकों,........इस पोस्ट में हम हिन्दी नाटक के महत्वपूर्ण बिंदुओं को क्रमवार समाहित किया गया है। यदि आपको हमारे द्वारा किया गया यह प्रयास अच्छा लगा है, तो इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम हिंदी साहित्य के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।
पृष्ठभूमि
यह नाटक भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा एक दिन में रचा गया और उसी दिन दशाश्वमेध घाट पर खेला भी गया। कहा यह भी जाता है कि भारतेंदु ने एक जमींदार को लक्ष्य करके उसे सुधारने के लिये यह नाटक रचा था। भारतेंदु ने इसे 'प्रहसन' कहा।
इस नाटक के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पृष्ठभूमि, विषयवस्तु, पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से चर्चा करेंगे ?
विषयवस्तु
* मनोरंजन को आधार बनाकर तात्कालिक व्यवस्था पर कड़ा प्रहार।
* नाटक में शासक की भ्रष्टता, धार्मिक विसंगतियों एवं हिंदुस्तान की कमियों की ओर ध्यान इंगित किया गया है। इसमें लालच छोड़कर ज्ञानी एवं समझदार बनने की नसीहत भी दी गयी है।
* नाटक में आदर्शहीनता, अनैतिकता और मानसिक गुलामी का खाका खींचते हुए असत्य पर सत्य की विजय दिखलायी गयी है।
* भारतेंदु ने इस नाटक में कई गीत एवं नीति वचन रखे हैं। हलवाई वाले प्रकरण की तुकबंदी देख ऐसा प्रतीत होता है कि उन पर पारसी थियेटर का थोड़ा प्रभाव है।
पात्र
* महन्तः - एक साधु
* गोबरधनदास :- महंत का लोभी शिष्य
* नारायणदास :- महंत का दूसरा शिष्य
* कबाबवाला :- कबाब विक्रेता
* घासीराम : - चना बेचने वाला
* नारंगीवाला :- नारंगी बेचने वाला
* हलवाई :- मिठाई बेचने वाला
* कुंजड़िन : - सब्जी बेचने वाली
* मुगल :- मेवे और फल बेचने वाला
* पाचकवाला :- चूरन विक्रेता
* मछलीवाली : - मछली बेचने वाली
* जातवाला : - जाति बेचने वाला
* राजा :- चौपट राजा
* मंत्री:- चौपट राजा का मंत्री
* दो नौकर : - राजा के दो नौकर
* फरियादी:- राजा से न्याय माँगने वाला
* कल्लू: - बनिया; जिसकी दीवार से फरियादी की बकरी मरी
* कारीगर :- कल्लू बनिया की दीवार बनाने वाला
* चूनेवाला:- दीवार बनाने के लिये मसाला तैयार करने वाला
* भिश्ती:- दीवार बनाने के लिए मसाले में पानी डालने वाला
* कसाई:- भिश्ती के लिये मशक बनाने वाला
* गड़रिया:- कसाई को भेड़ बेचने वाला
* चार सिपाही: - राजा के सिपाही
* कोतवाल
* माली
* बनिया
विशेष
* यह नाटक सदैव प्रासंगिक है क्योंकि अन्याय, भ्रष्टता, विवेक शून्यता, मनमानापन अब भी कायम है।
* नीति-उपदेश द्वारा पाठकों को जगाने का आग्रह।
* अन्य भाषाओं से शब्द लेने में भारतेंदु ने कोई परहेज नहीं किया।
* यह आज भी सर्वाधिक खेले जाने वाले नाटकों में से एक है।
कथासार
पहला अंक (बाह्य प्रांत) :-
इसमें महंत, नारायणदास एवं गोबरधनदास प्रस्तुत होते हैं। महंत भिक्षा माँगने के क्रम में अपने दोनों शिष्यों को अधिक लोभ न करने का उपदेश देता है।
दूसरा अंक (बाजार) :-
बाजार के इस दृश्य में कबाबवाला, नारंगीवाला, घासीराम (चनावाला), हलवाई, कुंजड़िन (सब्जीवाली), मुगल (मेवावाला) पाचकवाला, मछलीवाला, साइतवाला (ब्राह्मण), बनिया जैसे पात्र आते हैं और अपना-अपना सौदा बेचते हैं। इस अंक में ही भारतेंदु जी ने हिंदुस्तान की कमी को कुजड़िन के माध्यम से कहलवाया है-
"हिंदुस्तान का मेवा फूट और बैर"
वहीं ब्राह्मण का अपनी जात बेचना धर्म एवं कर्म से विहीन हो जाना दर्शाया है।
* पाचकवाले के द्वारा देश में व्याप्त भ्रष्टता उजागर होती है-
"साहब लोग जो चूरन खाता,
सारा हिंद हजम कर जाता।"
तीसरा अंक (जंगल) :-
गोबरधनदास सात पैसे में खरीदी हुई साढ़े तीन मिठाई लेकर गुरु जी से मिलता है तो वे पूछ बैठते हैं, "बच्चा किस धर्मात्मा की कृपा हुई?" गोबरधनदास 'टके सेर' वाली दास्तान सुनाता है जिसे सुन गुरु जी को नगर के बारे में आशंका होती है और वे अंधेर नगरी छोड़कर चलने को कहते हैं पर गोबरधनदास लालच में पड़कर उनके साथ नहीं जाता है।
चौथा अंक (राजसभा) :-
इस अंक में पिनक में बैठा राजा एक फरियादी की बकरी मर जाने पर कल्लू बनिया, कारीगर चूने वाले, भिश्ती, गड़ेरिया को छोड़कर अंत में अपने कोतवाल को ही फाँसी का दण्ड देता है, क्योंकि अंततोगत्वा उसकी सवारी निकलने के कारण ही बकरी दबकर मर गई थी। यह नाटक का सबसे रोचक अंक है।
पाँचवा अंक (अरण्य) :-
इस अंक में गर्दन मोटी होने के कारण फाँसी के लिये गोबरधनदास प्यादों के द्वारा पकड़ लिया जाता और तमाम फरियादों के बावजूद उसे फाँसी के लिये घसीट लिया जाता है।
छठा अंक (श्मशान) :-
जैसे ही गोबरधनदास फाँसी पर चढ़ने को होता है, गुरु और नारायणदास आ जाते हैं। महंत अपनी चतुर बुद्धि द्वारा बैकुंठ जाने की बात कहकर सबको फाँसी चढ़ने के लिये उद्वेलित कर देता है। अंत में राजा स्वयं फाँसी चढ़ जाता है।
नोट:- इस प्रहसन में कुल 28 पात्र हैं।
प्रमुख उद्धरण
* प्रथम अंक 'बाह्य प्रांत' :-
* "राम भजो-राम भजो राम भजो भाई" - महंत जी
* द्वितीय अंक 'बाजार' :-
* "जात ले जात, टके सेर जात... टके के वास्ते धर्म और प्रतिष्ठा दोनों बेचें, टके के वास्ते झूठी गवाही दें।... वेद, धर्म, कुल, मरजादा,सचाई, बड़ाई सब टके सेर।" - जातवाला (ब्राह्मण)
* "अंधेर नगरी चौपट राजा,
टके सेर भाजी टके सेर खाजा।" - गोबरधनदास
* तृतीय अंक 'जंगल' :-
* सेत सेत सब एक से, जहाँ कपूर कपास।
ऐसे देस कुदेस में कबहुँ न कीजै बास।। - महंत जी
* चतुर्थ अंक 'राजसभा' :-
* "चुप रहो। तुम्हारा न्याय यहाँ ऐसा होगा कि जैसा जम के यहाँ भी न होगा।" - राजा, फरियादी से
* पंचम अंक-अरण्य :-
* "वेश्या जोरू एक समाना"।
* अंधाधुंध मच्यौ सब देसा मानहुँ राजा रहत बिदेसा - गोबरधनदास
* छठा अंक-श्मशान :-
* जहाँ न धर्म न बुद्धि नहिं, नीति न सुजन समाज।
ते ऐसहि आपुहि नसे, जैसे चौपटराज ।। - महंत
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