राजा निरबंसिया - कमलेश्वर || हिन्दी कहानिया || यूजीसी नेट || UGC NET|| ALL EXAM
राजा निरबंसिया - कमलेश्वर
* संग्रह :- राजा निरबंसिया (1957 ई.); कमलेश्वर का पहला कहानी-संग्रह।
* देवा की माँ
* पानी की तसवीर
* धूल उड़ जाती है
* सुबह का सपना
* मुरदों की दुनिया
* आत्मा की आवाज
* राजा निरबंसिया
* इस कहानी के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से चर्चा करेंगे ?
प्रतिपाद्य
* राजा निरबंसिया पौराणिक कथा के साथ-साथ चंदा की आधुनिक कथा के द्वारा समांतर दोहरी कथा के माध्यम से आधुनिक जीवन की विसंगतियों का चित्रण करती एक नयी कहानी है।
* चंदा जगपती की बीमारी और बेरोजगारी से उपजी आर्थिक मजबूरियों से हताश है।
पात्र
मुख्य पात्र
* जगपतीः-
- कथावाचक का स्कूल का दोस्त
- वकील के यहाँ मुहर्रिर
- चंदा का पति
- दूर के रिश्तेदार दयाराम की शादी में डकैतों से लड़ते हुए घायल मध्यवर्गीय व्यक्ति
- अफीम और तेल पीकर आत्म-हत्या
- मरते वक्त दो परचे छोड़े; एक चंदा के नाम, दूसरा कानून के नाम।
* चंदा: -
- जगपती की पत्नी
- हाथों का कड़ा बेच कर पति का इलाज कराने को तैयार।
- बचन सिंह के साथ गर्भवती होने के आरोप में मायके में रहने को बाध्य।
- अंत में मधुसूदन के साथ जाने की सूचना (मुंशी जी द्वारा)।
- जगपती तथा चंदा मैनपुरी के निवासी हैं तथा संतानहीन हैं।
* बचन सिंह: -
- अस्पताल में कंपाउंडर
* मैनपुरी के सदर अस्पताल में तबादला।
* लकड़ी के धंधे में जगपती का साझीदार।
* राजा निरबंसियाः -
- एक राज्य का संतानहीन राजा
- कुशल शासक ।
- मेहतरानी के भला-बुरा कहने पर राज्य का त्याग।
* रानी: -
- मंत्री के साथ राजा को ढूंढ़ने जाती है।
- एक प्रसंग में भटियारिन के रूप में राजा के सम्मुख उपस्थित।
- अंत में दो पुत्रों को जन्म देती है।
- कुल-देवता के मंदिर में सतीत्व की परीक्षा।
गौण पात्र
* माँ: - कथावाचक की माता, जो बच्चों को राजा निरबंसिया की कथा सुनाती है।
* कथावाचकः - मैट्रिक पास
* जमुना सुनार
* चाची
विशेष
* लोक - कथात्मक शैली पर आधारित
* प्राचीन एवं आधुनिक युग की दो समांतर कथाएँ
* राजा निरबंसिया की कथा।
* जगपती तथा चंदा की कथा।
* दोनों कथाओं की अंतिम परिणति में भेद के माध्यम से आधुनिक जीवन की जटिलता की प्रस्तुति।
प्रमुख उद्धरण
भूमिका :-
* "आज के हर कहानीकार में कुछ कहने के लिये एक अजीब-सी अकुलाहट और बेबसी है, जो निश्चय ही इस संक्रातिकाल की देन है जिसने एक ओर यदि हमारी संवेद्य शक्तियों पर दबाव डाला है तो दूसरी ओर हमारी चेतना को भी जागृत किया है।"
* "... नयी कहानी की एक और भी उपलब्धि है- नयी भावभूमियों का सृजन।"
कहानी के उद्धरण
* "कर्ज कोढ़ का रोग होता है, एक बार लगने से तन तो गलता ही है, मन भी रोगी हो जाता है।"
* “चंदा ने भीतर कदम तो रख दिया पर सहसा सहम गई, जैसे वह किसी अँधेरे कुएँ में अपने-आप कूद पड़ी हो, ऐसा कुआँ, जो निरंतर पतला होता गया है और जिसमें पानी की गहराई पाताल की पतों तक चली गई हो, जिसमें पड़कर वह नीचे धंसती चली जा रही हो, नीचे... अंधेरा... एकांत, घुटन... पाप!"
* "कालिख बुरी तरह बढ़ गई थी और सामने खड़े पेड़ की काली परछाईं गहरी पड़ गई थी। दोनों लौट गए थे। पर जैसे उस कालिख में कुछ रह गया था, छूट गया था। दवाखाने का लैम्प जो जलते-जलते एक बार भभका था, उसमें तेल न रह जाने के कारण बत्ती की लौ बीच से फट गई थी, उसके ऊपर धुएँ की लकीरें बल खाती, सांप की तरह अंधेरे में विलीन हो जाती थीं।"
* "रात के बढ़ते सन्नाटे में दोनों के सामने दो बातें थीं। जगपती के कानों में जैसे कोई व्यंग्य से कह रहा था- राजा निरबंसिया अस्पताल से आ गए! और चंदा के दिल में यह बात चुभ रही थी- तुम्हारे कभी कुछ नहीं होगा। और सिसकती-सिसकती चंदा न जाने कब सो गई। पर जगपती की आंखों में नींद न आई।"
* "उसे लगता, जैसे कड़े माँगकर वह चंदा से पत्नीत्व का पद भी छीन लेगा। मातृत्व तो भगवान ने छीन ही लिया। वह सोचता आखिर चंदा क्या रह जाएगी? एक स्त्री से यदि पत्नीत्व और मातृत्व छीन लिया गया, तो उसके जीवन की सार्थकता ही क्या?"
* "तो फिर क्या? वह कुछ क्या है, जो उसकी आत्मा में नासूर-सा रिसता रहता है, अपना उपचार मांगता है? शायद काम! हाँ, यही, बिल्कुल यही, जो उसके जीवन की घड़ियों को निपट सूना न छोड़े, जिसमें वह अपनी शक्ति लगा सके, अपना मन डुबो सके, अपने को सार्थक अनुभव कर सके, चाहे उसमें सुख हो या दुख, अरक्षा हो या सुरक्षा, शोषण हो या पोषण.. उसे सिर्फ काम चाहिये! करने के लिये कुछ चाहिये। यही तो उसकी प्रकृत आवश्यकता है, पहली और आखिरी मांग है, क्योंकि वह उस घर में नहीं पैदा हुआ, जहाँ सिर्फ ज़बान हिलाकर शासन करने वाले होते हैं। वह उस घर में भी नहीं पैदा हुआ, जहाँ सिर्फ मांगकर जीने वाले होते हैं। वह उस घर का है, जो सिर्फ काम करना जानता है, काम ही जिसकी आस है। सिर्फ वह काम चाहता है, काम।"
* "दिन-भर में वह एक घंटे के लिये किसी का मित्र हो सकता है, कुछ देर के लिये वह पति हो सकता है, पर बाकी समय? दिन और रात के बाकी घंटे, उन घंटों के अभाव को सिर्फ उसका अपना काम ही भर सकता है और अब वह कामदार था।"
* "औलाद ही तो वह स्नेह की धुरी है, जो आदमी औरत के पहियों को साधकर तन के दलदल से पार ले जाती है नहीं तो हर औरत वेश्या है और हर आदमी वासना का कीड़ा।"
"आदमी को पाप नहीं, पश्चाताप मारता है, मैं बहुत पहले मर चुका था।"
* "किसी ने मुझे मारा नहीं है, किसी आदमी ने नहीं। मैं जानता हूँ कि मेरे ज़हर की पहचान करने के लिये मेरा सीना चीरा जाएगा। उसमें जहर है। मैंने अफीम नहीं, रुपए खाए हैं। उन रुपयों में कर्ज का जहर था, उसी ने मुझे मारा है।"
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