चंद्रदेव से मेरी बातें (बंग महिला/राजेंद्र बाला घोष) - 1904 ई.- हिन्दी कहानिया || chandradev se meree baaten (bang mahila/raajendr baala ghosh)
चंद्रदेव से मेरी बातें (बंग महिला/राजेंद्र बाला घोष)-1904 ई.
पृष्ठभूमि
* प्रकाशन: सरस्वती पत्रिका (1904 ई.), निबंध के रूप में।
* पत्रात्मक शैली में लिखी कहानी।
* भवदेव पांडेय इसे हिंदी की पहली राजनीतिक कहानी मानते हैं।
* इस कहानी के माध्यम से हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी के बारे मे चर्चा करेंगे और हम इसके पात्र , कथासार का सार , और इसके प्रमुख उद्धरण के बारे मे विस्तार से चर्चा करेंगे ?
*कहानी के भीतर आए विषय *
* पक्षपात
* ज्ञान-विज्ञान
* कलकत्ता की बात
* चिकित्सा
* वाहन (चप्पल)
* बिजली
* एकता का सूत्र
* तंत्र विज्ञान
* परिवर्तन
* कानून आदि।
* उपनिवेशवाद के शिकार भारत में तत्कालीन आर्थिक, राजनीतिक,
प्रतिपाद्य
* सामाजिक समस्याओं का वर्णन करते हुए, वायसराय 'लॉर्ड कर्जन' और उनकी व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया गया है। • यह कहानी चंद्रदेव को लिखे गए पत्र के रूप में लिखी गई है
* जिसमें तत्कालीन गुलाम भारत की व्यवस्था और परिवेश पर व्यंग्य है।
* अंग्रेजी सरकार की न्याय व्यवस्था पर व्यंग्य।
* रंगभेद एवं पक्षपात का चित्रण।
* सरकारी मिशन और कमीशन की उपयोगिता पर प्रश्न चिह्न।
* उच्च शिक्षित वर्ग की काठ के पुतलों से तुलना।
*भारत की दीन-हीन व्यवस्था को देख लेने का आग्रह चंद्रदेव से।
* प्रकृति से छेड़छाड़ पर व्यंग्य किया गया है, मसलन "कलकत्ता आदि को देखकर आपके देवराज सुरेंद्र भी कहेंगे कि हमारी अमरावती तो इसके आगे निरी फीकी-सी जान पड़ती है।"
* कलकत्ता विश्वविद्यालय के विद्वानों पर भी व्यंग्य।
पात्र
लेखिका और चंद्रदेव
प्रमुख उद्धरण
* "भगवान चंद्रदेव! क्षमा कीजिए, आप तो अमर हैं; आपको मृत्यु कहाँ? तब परलोक बनाना कैसा? ओ हो ! देवता भी अपनी जाति के कैसे पक्षपाती होते हैं। देखो न 'चंद्रदेव' को अमृत देकर उन्होंने अमर कर दिया तब यदि मनुष्य होकर हमारे अंग्रेज अपने जातिवालों का पक्षपात करें तो आश्चर्य ही क्या है? अच्छा, यदि आपको अंग्रेज जाति की सेवा करना स्वीकार हो तो, एक 'एप्लिकेशन' (निवेदन पत्र) हमारे आधुनिक भारत प्रभु लार्ड कर्जन के पास भेज देवें। आशा है कि आपको आदरपूर्वक अवश्य आह्वान करेंगे। क्योंकि आप अधम भारतवासियों के भाँति कृष्णांग तो हैं नहीं, जो आपको अच्छी नौकरी देने में उनकी गौरांग जाति कुपित हो उठेगी।"
* "मैं विश्वास करती हूँ, कि जब लार्ड कर्जन हमारे भारत के स्थायी भाग्यविधाता बन के आवेंगे, तब आपको किसी कमीशन का मेम्बर नहीं तो किसी मिशन में भरती करके वे अवश्य ही भेजे देवेंगे क्योंकि लार्ड कर्जन को कमिशन और मिशन, दोनों ही, अत्यंत प्रिय हैं।"
* "मैं अनुमान करती हूँ कि आपके नेत्रों की ज्योति भी कुछ अवश्य ही मंद पड़ गई होगी। क्योंकि आधुनिक भारत संतान लड़कपन से ही चश्मा धारण करने लगी है; इस कारण आप हमारे दीन, हीन, क्षीणप्रभ भारत को उतनी दूर से भलीभाँति न देख सकते होंगे।"
* "जिस व्योमवासिनी विद्युत देवी को स्पर्श तक करने का किसी व्यक्ति को साहस नहीं हो सकता, वही आज पराये घर में आश्रिता नारियों की भाँति ऐसे दबाव में पड़ी है, कि वह चूं तक नहीं कर सकती। क्या करें? बेचारी के भाग्य में विधाता ने दास-वृत्ति ही लिखी थी।"
- स्त्रियों की दशा का वर्णन
* “अब भारत में न तो आपके, और न आपके स्वामी भुवनभास्कर सूर्य महाशय के ही वंशधरों का साम्राज्य है और न अब भारत की वह शस्यश्यामला स्वर्ण प्रसूतामूर्ति ही है। अब तो आप लोगों के अज्ञात, एक अन्य द्वीप-वासी परम शक्तिमान गौरांग महाप्रभु इस सुविशाल भारत-वर्ष का राज्य वैभव भोग रहे हैं। अब तक मैंने जिन बातों का वर्णन आपसे स्थूल रूप में किया वह सब इन्हीं विद्या विशारद गौरांग प्रभुओं के कृपा कटाक्ष का परिणाम है। यों तो यहाँ प्रति वर्ष पदवी दान के समय कितने ही राज्य विहीन राजाओं की सृष्टि हुआ करती है, पर आपके वंशधारों में जो दो चार राजा महाराजा नाम-मात्र के हैं भी, वे काठ के पुतलों की भाँति हैं। जैसे उन्हें उनके रक्षक नचाते हैं, वैसे ही वे नाचते हैं। वे इतनी भी जानकारी नहीं रखते कि उनके राज्य में क्या हो रहा है- उनकी प्रजा दुखी है, या सुखी?"
- देशी राजाओं की रीढ़विहीनता का वर्णन
* "हरिपदोभ्दवा त्रैलोक्यपावनी सुरसरी के भी खोटे दिन आए हैं, वह भी अब स्थान-स्थान में बंधन ग्रस्त हो रही है। उसके वक्षस्थल पर जहाँ-तहाँ मोटे वृहदाकार खंभ गाड़ दिये गये हैं।"
- गंगा पर बन रहे पुलों और बांधों के मार्फत आधुनिक विकास की आलोचना
* "कलकत्ता आदि को देखकर आपके देवराज सुरेंद्र भी कहेंगे कि हमारी अमरावती तो इसके आगे निरी फीकीं सी जान पड़ती है। वहाँ का ईडन गार्डन तो पारिजात परिशोभित नंदन कानन को भी मात दे रहा है।"
- प्रकृति से छेड़छाड़ पर व्यंग्य
* “भम्रण करने को आएँ तो, अपने 'फैमिली डॉक्टर' धन्वन्तरि महाशय को और देवताओं के 'चीफ जस्टिस' चित्रगुप्तजी को साथ अवश्य लेते आएँ। आशा है कि धन्वन्तरि महाशय यहाँ के अंग्रेज़ी डॉक्टरों के सन्निकट चिकित्सा संबंधी बहुत कुछ शिक्षा लाभ कर सकेंगे।.. यहाँ के 'इंडियन पीनल कोड' की धाराओं को देख कर चित्रगुप्त जी महाराज अपने यहाँ की दंडविधि (कानून) को बहुत कुछ सुधार सकते हैं।"
- अंग्रेज़ी डॉक्टरों और ब्रिटिश न्याय व्यवस्था पर व्यंग्य
नोट :- इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम हिंदी साहित्य के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।
Post a Comment