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गुर्जर प्रतिहार वंश | राजस्थान का इतिहास (8 वीं से 18 वीं शताब्दी) | राजस्थान की सभी प्रतियोगी परीक्षा के लिये उपयोगी | Rpsc, Rssmb,Reet

राजस्थान का इतिहास (8 वीं से 18 वीं शताब्दी)

                        *  गुर्जर प्रतिहार *

- गुर्जर जाति का सर्वप्रथम उल्लेख एहोल अभिलेख में किया गया है।
- गुर्जर प्रतिहार शब्द का उल्लेख चंदेल वंश के शिलालेख में मिलता है।
- इसकी स्थापना छठी शताब्दी के द्वितीय चरण में उत्तर-पश्चिम भारत में हुई थी।
- नीलकुंड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।
- स्कन्द पुराण के पंच द्रविड़ों में गुर्जरों का उल्लेख मिलता है।
- अरब यात्रियों ने इन्हें 'जुर्ज' कहा है। अलमसूदी ने गुर्जर प्रतिहार को 'अल गुर्जर और राजा को 'बोरा' कहा है।
- मिहिरभोज के ग्वालियर अभिलेख में नागभट्ट को राम का प्रतिहार एवं विशुद्ध क्षत्रिय कहा है।
- स्मिथ, ब्यूतर, हार्नले आदि विद्वानों ने प्रतिहारों को हूणों की संतान बताया है।
- मुहणोत नैणसी ने गुर्जर प्रतिहारों की '26 शाखाओं' का वर्णन किया, जिनमें मंडोर, जालोर, राजोगढ़, कन्नौज, उज्जैन और भड़ौच के गुर्जर-प्रतिहार प्रसिद्ध रहे थे।
- गुर्जर-प्रतिहार वंश का संस्थापक - 'हरिश्चन्द्र' (रोहलिद्धि) 
- समय - छठी शताब्दी ईस्वी
- राजधानी - मंडोर
- गुर्जर-प्रतिहारों को भारत का 'द्वारपाल' कहा जाता है।

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(i) मण्डोर के प्रतिहार

- घटियाला शिलालेख में मण्डोर के प्रतिहार वंश की प्रारम्भिक स्थिति व वंशावली मिलती है।
- घटियाला शिलालेख के अनुसार हरिश्चन्द्र नामक ब्राह्मण की पत्नी भद्रा से चार पुत्र भोगभट्ट, कदक, रज्जिल और दह उत्पन्न हुए।
- हरिश्चन्द्र के चारों पुत्रों ने माण्डव्यपुर (मण्डोर) को जीता तथा इसके चारों ओर परकोटा बनवाया।
- मण्डोर के प्रतिहार वंश की वंशावली हरिश्चन्द्र के तीसरे पुत्र रज्जिल से शुरू होती है।

* रज्जिल:- 

- रज्जिल ने मंडोर के आसपास के क्षेत्रों को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया।

* नरभट्ट:- 

- यह रज्जिल का पुत्र था जो रज्जिल का उत्तराधिकारी बना।
- उपाधि -  'पिल्लापल्ली'

* नागभट्ट-प्रथम :- 

- यह नरभट्ट का पुत्र व रज्जिल का पौत्र था जो एक प्रतापी शासक था।
- उपाधि - नाहड़
- घटियाला शिलालेख के अनुसार नागभट्ट प्रथम ने मण्डोर राज्य की पूर्वी सीमा का विस्तार कर अपनी राजधानी 'मेड़ान्तक (मेड़ता)' बनाई।
- नागभट्ट-प्रथम की पत्नी जज्जिका देवी से दो पुत्र तात व भोज उत्पन्न हुए।

* यशोवर्धन :- 

- यह नागभट्ट-प्रथम के पुत्र तात का पुत्र था।
- राजोली ताम्रपत्र के अनुसार इसके समय पृथुवर्धन ने गुर्जर प्रतिहार राज्य पर असफल आक्रमण किया था।

* शिलूक:- 

- यह गुर्जर प्रतिहार के राजा यशोवर्धन के पुत्र चन्दुक का पुत्र था।
- घटियाला शिलालेख के अनुसार शिलूक ने देवराज भाटी से युद्ध किया तथा उसे मारकर उसके राज्य चिह्न व छत्र को छीन लिया था।

* कक्क :- 

- कक्क ने मुदागिरी (मुंगेर, बिहार) में गौड़ राजा धर्मपाल को पराजित किया था।
- कक्क की पत्नी पद्मिनी से उत्पन्न पुत्र बाउक था तथा कक्क की दूसरी पत्नी दुर्लभदेवी से उत्पन पुत्र कक्कुक था।

* बाउक :- 

- कक्क की मृत्यु के पश्चात् इनका उत्तराधिकारी बाउक हुआ था।
- बाउक ने मयूर नामक राजा के आक्रमण को विफल किया तथा इस विजय के उपलक्ष्य में मण्डोर शिलालेख उत्कीर्ण करवाया था।

* कक्कुक :- 

- बाउक के बाद उसका भाई कक्कुक राजा बना।
- इनके समय घटियाला के दो शिलालेख उत्कीर्ण किए गए थे।
- घटियाला के शिलालेखों में कक्कुक को मरु, वल्ल, गुर्जरात्रा, मांड (जैसलमेर), अज्ज (मध्य प्रदेश) व तृवणी आदि राज्यों में ख्याति फैलाने वाला राजा कहा गया है।
- इसने वट्टनानक (नाणा-बेड़ा) नामक नगर बसाया।
- इसने आभीरों का आक्रमण विफल कर इसकी विजय के उपलक्ष्य में रोहिंसकूप व मण्डोर में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया था।
- मण्डोर की ईन्दा प्रतिहार शाखा ने चूंडा राठौड़ को 1395 ई. में मण्डोर को दहेज में दे दिया।

(ii) जालोर, कन्नौज व उज्जैन के गुर्जर प्रतिहार वंश :- 


- नागभट्ट-प्रथम से जालोर प्रतिहार वंश का आरम्भ होता है।
- यहाँ के गुर्जर प्रतिहार रघुवंशी प्रतिहार कहलाते हैं।
- इस प्रतिहार वंश का उद्भव भी मण्डोर प्रतिहार शाखा से माना जाता है।

* नागभट्ट-प्रथम :- 

 - शासनकाल - 730-760 ई.
- नागभट्ट प्रथम के समय मण्डोर के प्रतिहार इनके सामन्तों के रूप में शासन करते थे।
- इनके समय इनका राज्य उत्तर में मारवाड़ से दक्षिण में भड़ौच तक फैला था जिसमें ताट, जालोर, आबू व मालवा के कुछ भाग शामिल थे।
- नागभट्ट-प्रथम का दरबार 'नागावलोक का दरबार कहलाता था।
- जालोर, अवन्ति, कन्नौज प्रतिहारों की नामावती नागभट्ट से प्रारंभ होती है।
- नागभट्ट-प्रथम गुर्जर प्रतिहारों का प्रथम शक्तिशाली शासक था, जिसने अरबों तथा बलुचों के आक्रमण को रोके रखा। इसलिए इसे प्रतिहारों में से 'प्रथम द्वारपाल' माना जाता है।

 * उपाधियाँ -
1. नारायण का अवतार (अरबों पर विजय प्राप्त करने के कारण)
2. मेघनाद के युद्ध का अवरोधक
3. इन्द्र के दंभ का नाशक
4. म्लेच्छों का नाशक (ग्वालियर प्रशस्ति)
5. नारायण (ग्वालियर प्रशस्ति)
- इसके शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने कुल 72 देशों की यात्रा की थी। उसने भीनमाल को 'पिलोमोलो/भीतामाला तथा गुर्जर राज्य को 'कु-चे-तो' कहा।

* वत्सराज :- 

- शासनकाल 783-795 ई.
* उपाधि - रणहस्तिन
- गुर्जर-प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक 
- वत्सराज के शासनकाल में 'उद्योतन सूरी' ने जालोर में कुवलयमाला' नामक ग्रंथ प्राकृत भाषा में और 'आचार्य जिनसेन सूरी' ने 'हरिवंश पुराण' ग्रन्थ  की रचना की।
- ओसियाँ के जैन मंदिर प्रतिहार शासक वत्सराज के समय निर्मित हैं।
- त्रिकोणात्मक संघर्ष की शुरुआत गुर्जर प्रतिहार नरेश वत्सराज ने की थी
- यह संघर्ष 150 वर्षों तक (लगभग) चला। इसको प्रारंभ गुर्जर प्रतिहारों ने किया तथा अंतिम विजय भी इनकी ही हुई थी।
- वत्सराज ने इन्द्रायुध को पराजित कर कन्नौज पर अधिकार किया और इन्द्रायुध को अपना सामन्त बनाया।
- वत्सराज ने पाल वंश के शासक धर्मपाल को पराजित किया था।
- राष्ट्रकूट शासक ध्रुव-प्रथम ने वत्सराज को पराजित कर उच्जैन व कन्नौज पर अधिकार कर लिया और वत्सराज वहाँ से जालोर की ओर मरुस्थत में चता गया। इस युद्ध की जानकारी 'राधनपुर' और 'वनी-डिंडोरी अभिलखों से मिलती है।

*  नागभट्ट द्वितीय :- 

- शासनकाल-795-833 ई.
- माता - सुंदरदेवी
-वत्सराज का उत्तराधिकारी।
- उपाधि - 'परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर' (बुचकला अभिलेख)
- इन्होंने उज्जैन और कन्नौज को जीत लिया और कन्नौज को अपनी राजधानी बनाई।
- नागभट्ट द्वितीय के कन्नौज विजय का वर्णन ग्वालियर अभिलेख' में मिलता है।
- ग्वालियर प्रशस्ति में इनको आन्ध्र, आनर्त, मालव, किरात, तुरूष्क, वत्स, मत्स्य आदि प्रदेशों का विजेता बताया गया है।
- मान्यखेत के राष्ट्रकूट शासक गोविन्द-तृतीय ने नागभट्ट द्वितीय को हराकर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
- गोविन्द-तृतीय के साम्राज्य विस्तार के बारे में इतिहासकारों ने लिखा है कि "गोविन्द-तृतीय के घोड़े हिमालय से कन्याकुमारी तक बिना किसी शत्रु क्षेत्र में प्रवेश किए सीधे दौड़ सकते थे।
- इनका दरबार भी 'नागावलोक का दरबार' कहलाता था।
- मुसलमानों के विरुद्ध नागभट्ट द्वितीय के संघर्ष का प्रमाण खुम्माण रासो नामक ग्रन्थ से मिलता है।

* मिहिरभोज :- 

- शासनकात - 836-885 ई.
- नागभट्ट-द्वितीय का उत्तराधिकारी
- भोज के नाम से विख्यात
- माता - अप्पा देवी
- इनका प्रथम अभिलेख 'वराह अभिलेख है, जिसकी तिथि 893 विक्रम संवत् (836 ई.) है।
- मिहिरभोज को बंगाल के शासक धर्मपाल के पुत्र देवपाल ने पराजित किया।
- मिहिरभोज ने क्रमशः नारायणपाल व विग्रहपाल को हराया था।
- 851 ई. में अरब यात्री सुलेमान' ने भारत की यात्रा की थी।
- सुलेमान ने बताया कि मिहिरभोज मुसलमानों का सबसे बड़ा शत्रु था।
- मिहिरभोज का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बुंदेलखण्ड तक और पूर्व में उत्तरप्रदेश से लेकर पश्चिम में गुजरात और काठियावाड़ तक विस्तृत था।
- कश्मीरी कवि 'कल्हण' ने अपने ग्रन्थ 'राजतरंगिणी में मिहिरभोज के साम्राज्य का उल्लेख किया।
- उपाधि:-  
1. आदिवराह (ग्वालियर अभिलेख)
2. प्रभास (दौलतपुर अभिलेख)

- इनके समय में चाँदी और ताँबे के सिक्के, जिन पर 'श्रीमदादिवराह 'अंकित रहता था।
- स्कन्ध पुराण के अनुसार मिहिरभोज ने तीर्थ यात्रा करने के लिए अपने पुत्र महेन्द्रपात को सिंहासन सौंपकर राजपाठ त्याग दिया था।

* महेद्रपाल-प्रथम:- 

- शासनकाल-885-910 ई.
- माता - चन्द्रा भट्टारिका देवी

* उपाधियाँ (विद्धशालभंजिका ग्रन्थ में) -
1. निर्भयराज
2. निर्भय नरेंद्र
3. रघुकुल तिलक
4. रघुकुल चूड़ामणि
5. हिंदू भारत का अंतिम महान हिंदू सम्राट (बी.एन. पाठक)
- दरबारी राजकवि 'राजशेखर'
- राजशेखर द्वारा रचित ग्रंथ कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, 'विद्धशालभजिका, 'बालभारत', 'प्रबंधकोष, बातरामायण, 'हरविलास' और 'भुवनकोष'
- महेन्द्रपाल का शासन काठियावाड़ तक विस्तृत था।

* महिपाल प्रथम :- 

- शासनकाल-914-943 ई.

- राजशेखर द्वारा प्रदत्त उपाधियाँ -
1. आर्यावर्त का महाराजाधिराज
2. रघुकुलमुक्तामणि
3. रघुवंश-मुकुटमणि

- 'प्रचंड पाण्डव में महिपाल की विजयों का वर्णन मिलता है।
- इनके समय 915 ई. में अरब यात्री 'अल मसूदी ने भारत की यात्रा की थी।
- 'कहला अभिलेख' के अनुसार कलचूरि वंश का राजा भीमदेव महिपाल के अधीन गोरखपुर प्रदेश का शासक था।
- अरब यात्री 'अल मसूदी' के अनुसार इसने उत्तर-पश्चिम में पंजाब के कुलूतों और 'रनठों को पराजित किया था।
- हकुल अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसका सामंत 'धरणीवराह उसकी अधीनता में सौराष्ट्र पर शासन कर रहा था।
- इसके समय राष्ट्रकूट वंश का शासक इन्द्र-तृतीय था, जिसने मालवा पर आक्रमण कर उज्जैन को अपने अधिकार में ले लिया था।
- महिपाल-प्रथम ने चन्देत शासक हर्ष की सहायता से पुनः उज्जैन पर अधिकार कर लिया था।

* महेन्द्रपाल द्वितीय :- 

- महिपाल-प्रथम का उत्तराधिकारी
- माता - प्रसाधना देवी
- महेन्द्रपात-द्वितीय के पश्चात् देवपाल, विनायकपाल-द्वितीय, महिपाल-द्वितीय व विजयपाल प्रतिहार वंश के शासक हुए।

* महिपाल द्वितीय :-
- महिपाल-द्वितीय का उल्लेख बयाना अभिलेख में मिलता है।
- उपाधि महाराजाधिराज महिपाल देव (बयाना अभिलेख)

* राज्यपाल :- 

- शासनकाल - 990-1019 ई.
- विजयपाल का उत्तराधिकारी
- इनके समय कन्नौज भारत का एक सुन्दर व समृद्ध शहर था।
- जब 1018 ई. में गजनी के सुल्तान महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया, तब राज्यपाल भागकर जंगलों में चला गया था।
- इनके समय प्रतिहार वंश का शासन पुनः राजस्थान तक सिमट गया था।
- इस कारण बुंदेलखंड के शासक 'विद्याधर चंदेल' ने राज्यपाल को कायर कहना प्रारंभ कर दिया था।
- विद्या धर चंदेल ने राज्यपाल पर आक्रमण किया। इस दौरान राज्यपाल वीरगति को प्राप्त हुआ।

* त्रिलोचनपाल :- 

- शासनकाल - 1019-1027 ई.
- राज्यपाल का उत्तराधिकारी
- राजधानी - 'बारी' (अलबरूनी के अनुसार)
- इनके समय 1020 ई. में महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया और लूट-मार करके वापस गजनी चला गया।

* यशपाल :- 

- शासनकाल - 1027-1036 ई.
- कड़ा शिलालेख में यशपाल व उनके दान का वर्णन मिलता है।
- यह गुर्जर-प्रतिहारों का अंतिम शासक था।
- इनके बाद गुर्जर प्रतिहारों ने सामंतों के रूप में कुछ समय तक कन्नौज पर शासन किया।


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