तमस उपन्यास : भीष्म साहनी
तमस उपन्यास : भीष्म साहनी
'तमस' भीष्म साहनी का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इस उपन्यास की कथावस्तु, 1947 में पंजाब में हुए भयानक सांप्रदायिक दंगों पर आधारित है तथा इसमें लाहौर के आस-पास की सिर्फ पाँच दिन की कहानी वर्णित है। यह उपन्यास दो खंडों में विभाजित है। पहले खंड में सांप्रदायिक तनाव की कहानी कही गयी है। दूसरे भाग में अनेक गाँव उपन्यास की परिधि में आ जाते हैं।
पात्र
* नत्थूः- समाज के तथाकथित निचले तबके से आने वाला युवक, (जाति से चमार) जिसने ₹5 मिलने के कारण मुराद अली के कहने पर सूअर को मारा।
* मुराद अली:- अंग्रेजों का चमचा
- पतली बैंत की छड़ी झुलाता रहता
- ठिगना
- काला
* बख्शी जी:- जिला कांग्रेस कमेटी के सेक्रेटरी
- बलगमी शरीरवाले
- उम्र-रसीदा आदमी: देह शिथिल पड़ गई थी |
* मास्टर रामहास: - कांग्रेस कमेटी के सदस्य/कार्यकर्ता
- कामचोर
- स्वार्थ हेतु कांग्रेस से जुड़ाव
* कश्मीरी लाल:- कांग्रेस का कार्यकर्ता
* जरनैल सिंह: - कांग्रेस का कार्यकर्ता
- मानसिक रूप से विक्षिप्त
- ईमानदार
- बरसों जेल में रहने के बाद वह शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो गया था।
- नेहरू जी के साथ वह भी रावी नदी के किनारे नाचा था। जब पूर्ण स्वराज का नारा लगा था, तब वह अपने शहर से वॉलंटियर बनकर लाहौर गया था।
- उसका न घर था, न बीवी-बच्चे थे।
- हफ्ते में दो तीन बार कहीं न कहीं से पिट कर आता था।
- पुलिस के लाठी चार्ज में जहाँ लोग जान बचाकर भागते थे, वह झुर्रियों भरी अपनी छोटी-सी छाती फैलाए खड़ा रहता और अपनी पसलियां तुड़वा कर आता था।
* शंकरलाल:- कांग्रेस का कार्यकर्ता
- मेहता का विरोधी
- मुनादी वाला
* देसराज: - कांग्रेस का कार्यकर्ता
* अजीज: - कांग्रेस का कार्यकर्ता
* अजीत सिंह:- कांग्रेस का कार्यकर्ता
* मेहता जी:- जिला कांग्रेस कमेटी के सदस्य
- वे दिखने में जवाहरलाल नेहरू जैसे दिखते थे।
- कुल मिलाकर 16 वर्ष जेल में काटकर आए थे और कांग्रेस कमेटी के प्रधान थे।
- सबसे उजली खादी पहनते थे।
- उन पर एक तरह का आरोप लगाया जा रहा था कि सेठी ठेकेवाले के पास से उन्हें 50 हजार बीमें मिलने वाले थे जिसकी एवज में वो सेठी को चुनावों में टिकट दिलाने वाले हैं।
- असल में, मेहता जी और शंकर लाल की आपस में पटती नहीं थी।
* देवदत्तः - कम्युनिस्ट
कांग्रेस की सदस्यता के नियम
* सदस्य चार आने सलाना चंदा देता हो. शुद्ध हाथ की कती, हाथ की चुनी खादी पहनता हो. चरखा कातता हो।
* कांग्रेस कमेटी का प्रभात फेरी में गाया जाने वाला पुराना गीत जिसे अक्सर मास्टर रामदास या फिर देसराज गाते थे-
"जरा वी लगन आजादी दी
लग गई जिन्हां दे मन दे विच।"
"ओह भजन् खण दे फिरदे में
हर सेहरा हर बन दे विच"
* रिचर्ड :- जिला कलेक्टर
* लीजा: - रिचर्ड की पत्नी
* पुण्यात्मा वानप्रस्थ जी :- संस्कृति के ज्ञाता
- सभी वेद-वेदांग के मर्मज्ञ थे।
- पठन-पाठन और हवन-यज्ञ के अतिरिक्त हिंदू संगठन के पुण्य कार्य भी बड़ी लगन से करते थे।
* मास्टर देवव्रत :- अखाड़ा संचालक
- हिंदू संगठन के युवकों को लाठी चलाने का काम सिखाते थे।
* दानवीर प्रधानः - शहर के जाने माने व्यापारियों में से एक
- हिंदू संगठन को 200 लाठियों के दाम की रकम दान में दी।
- इनका 15 साल का बेटा रणवीर मास्टर देवव्रत का शिष्य था।
* मंत्री जी:- हिंदू संगठन की ओर से मंदिर में मोर्चा संभालने के लिये मीटिंग करने वाले।
* रणवीरः - 15 साल का तरुण रणवीर दानवीर प्रधान जी का बेटा था।
- मास्टर देवव्रत का शिष्य था और अखाड़े में शिक्षा लेने जाता था।
* बोधराजः - रणवीर की तरह यह भी मास्टर देवव्रत के अखाड़े का शिष्य था।
- लेटकर बाण चला सकता था।
- शब्दभेदी बाण चला सकता था।
- शीशे में अक्स देखकर बाण चला सकता था।
- लटकती रस्सी को निशाना बना सकता था।
* धर्मदेव:- रणवीर की भांति मास्टर देवव्रत के अखाड़े का शिष्य कहीं से कारतूसों की खाली पेटी उठा लाया था, ताकि उस कमरे में शस्त्र-अस्त्रों का आभास होता रहे जिसे रणवीर ने शास्त्रगार बनाया था।
* नायकः - कमस रीट के बाबू मस्त राम का बेटा था।
- स्थानीय कॉलेज में फर्स्ट ईयर में पढ़ता था।
- मास्टर देवव्रत के अखाड़े के शिष्यों वाली मंडली में केवल यही एक युवक था जो जेबों वाली फौजी कमीज पहनता था।
* शंभूः - रणवीर की भाँति मास्टर देवव्रत के अखाड़े का शिष्य।
* इंद्र: - रणवीर की भांति मास्टर देवव्रत के अखाड़े का शिष्य।
* मनोहर:- रणवीर की भाति मास्टर देवव्रत के अखाड़े का शिष्य। मनोहर, इंद्र, शंभू, रणवीर ये सभी उस दल के सदस्य थे जो दंगों में हिंदुओं की ओर से मोर्चा संभाल रहे थे।
- रणवीर कद का छोटा था इसलिये वह मन ही मन में अपने आप को शिवाजी की भूमिका में देखता था।
- उसी गली से एक इत्र बेचने वाला दंगों के दिन भी अपना इत्र बेचने निकल आया था। गली में रणवीर का पूरा दल था, उसे इंद्र ने चाकू से मार गिराया था।
* प्रोफेसर रघुनाथः - अकेला ऐसा हिंदुस्तानी आदमी जिसका जिले के कलेक्टर रिचर्ड के साथ में उठना-बैठना था।
- दोनों को ही अंग्रेजी साहित्य और भारतीय इतिहास में रुचि थी।
- रिचर्ड को वो वह सदा ही एक सुरक्षित व्यक्ति लगा करता था।
* हयात बख़्शः - मुस्लिम लीग का कार्यकर्ता
- रूमी टोपी पहनता था।
* हरबर्ट : - मिशन कॉलेज का अंग्रेज़ी प्रिंसिपल
- अमन पसंद व्यक्ति था।
* मौलादाद :- बिजली कंपनी में क्लर्क
- दाढ़ी वाला
- मुस्लिम लीग का कार्यकर्ता
* हकीम अब्दुलगनी : - हकीम जी कांग्रेसी मुसलमान थे।
* नानबाई:- नानबाई की दुकान थी, जहाँ सभी बैठकर कह्वा पीते थे।
* लाला लक्ष्मीनारायणः - पैसे वाले जाने-माने व्यक्ति, ऊँचे मकान में रहते थे।
- शहर के अनेक मुसलमान व्यापारियों के साथ लालाजी व्यापार करते थे।
* नानकूः - लाला लक्ष्मीनारायण का नौकर
* फतहदीन:- लाला लक्ष्मीनारायण का पड़ोसी
* शाहनवाज़:- लाला लक्ष्मीनारायण के समधी का पड़ौसी और अच्छा मित्र उसके पास गहरे नीले रंग की ब्यूक गाड़ी थी।
- उसने दंगों के बीच लाला लक्ष्मीनारायण के परिवार को उनके घर से निकाल कर अपनी ब्यूक गाड़ी में सदर बाज़ार में उनके किसी सगे संबंधियों के घर छोड़ दिया था। शाहनवाज़ रघुनाथ का जिगरी दोस्त था। रघुनाथ की पत्नी शाहनवाज़ से पर्दा नहीं करती है।
- दंगों के बीच में ही शाहनवाज़ ने रघुनाथ के पुश्तैनी घर (जो वे दंगों के कारण जल्दी-जल्दी में छोड़कर शहर के एक सुरक्षित इलाके में रह रहे थे) से रघुनाथ की बीवी के गहने की पोटली निकाल ली थी।
- शाहनवाज़ को ऑमलेट खाना पसंद था, जब भी वो रघुनाथ के घर जाता था, उसके छोटे भाई की बहू उसके लिये दौड़कर अंडे का ऑमलेट बनाती थी।
* फातिमा: - शाहनवाज की पत्नी
* मिल्खी:- रघुनाथ के पुश्तैनी घर का नौकर
- शाहनवाज जब रघुनाथ की बीवी के गहने लाने उसके पुश्तैनी घर गया था तब उसे सीढ़ियों से धक्का देकर गिराकर मार डाला।
- रघुनाथ के पुश्तैनी घर के सामने फिरोज़ खालवाले का गोदाम था। दंगों के दौरान नानबाई मिल्खी को बीड़ी के पैकेट छत से फेंक देता था?
- मिल्खी दंगों के दौरान रघुनाथ के घर में अकेला बचा था, वो उसे पीछे घर रखाने के लिये छोड़ गए थे।
* सलोतरी साहब :-
- इनका नाम लेकर मुराद अली ने नत्थू चमार से सूअर मरवाया था और बोला था कि सलोतरी साहब ने मरे हुए सूअर की माँग की है।
* जत्थेदार किशनसिंह :-
- गुरुद्वारे में सुरक्षा प्रबंध का मोर्चा किशन सिंह ने संभाल रखा था।
- किशन सिंह पहले बर्मा की लड़ाई में भाग ले चुका था और बर्मा की लड़ाई के दांव-पेंच वह अपने कस्बे के मुसलमानों पर चलाना चाहता था।
- सुरक्षा की कमान संभालते ही वह घर जाकर अपनी खाकी कमीज़ पहन आया था जिस पर इंग्लिशिया सरकार के तीन तमगे थे, हालांकि उसने तमगों वाली खाकी कमीज़ के नीचे पैजामा ही पहन रखा था।
* सरदार हरिसिंह :-
- गुरुद्वारे की दाईं ओर से बंदूक चलाने का मोर्चा सरदार हरी सिंह को सौंपा गया।
- दाईं ओर का मोर्चा नकारा साबित हुआ क्योंकि सरदार हरिसिंह ने अपने हमसायों पर गोली चलाने को स्वीकारा नहीं।
* बिशनसिंह मनिहारीवाले :-
- इनकी ड्यूटी खालसा लंगर में लगाई गई थी।
- पीले रंग का रेशमी रूमाल अपनी पगड़ी में बांध रखा था जो उसने बसंत पंचमी के मेले के बाद अपने बेटे के सिर से उतारकर अपनी जेब में रख लिया था।
- आज अचानक जेब में हाथ डालने पर उसे यह रूमाल मिला और उसने अपनी पगड़ी में खोस लिया।
* शेख गुलाम रसूल :- गुरुद्वारे के पीछे दो गलियाँ छोड़कर शेख गुलाम रसूल का ऊँचा दो मंजिला मकान था और मुसलमानों के दल ने दंगों के समय उसी को अपना किला बना रखा था।
* मुखिया सरदार तेजसिंह :-
- तेजसिंह में वजन था। उनका रोम-रोम पंथ की रक्षा के लिये न्योछावर था।
- सरदार तेजसिंह (मुखिया) के नाना के पिताजी महाराणा रणजीत सिंह के दरबारी हुआ करते थे।
* युवा प्रीतम सिंह:- गुरुद्वारे के द्वार पर खड़े होकर सुरक्षा के लिये पहरा दे रहा था।
* सोहन सिंह:- वह युवक जो गुरुद्वारे में यह समझाने का प्रयास कर रहा था कि हमें इस सांप्रदायिकता के ज़हर को और बढ़ावा नहीं देना चाहिए जिसे अंग्रेज़ों ने हमारे बीच बोया है। ऐसा बोलने के लिये निहंग सिखों ने उसे पीटकर चुप कराकर बिठा दिया था।
* मीरदाद :- जो हाल सोहन सिंह का गुरुद्वारे में था वही हाल मीरदाद का मुसलमानों की बस्ती में था। उम्रदराज लोग मीरदाद जैसे युवकों की यह बात समझने को तैयार ही नहीं थे कि सांप्रदायिकता की ये जहें अंग्रेजी हुकूमत ने बोई हैं। उनके अनुसार असल कुसूरवार दूसरे धर्म के लोग ही थे (मुसलमानों के लिये सिख और हिंदू, हिंदुओं और सिक्खों के लिये मुसलमान)। उनके अनुसार अंग्रेजी हुकूमत के लोगों का उनके आपसी मसलों से कोई लेना-देना नहीं है। वे धर्म के मामले में नहीं पड़ते।
* गोपाल सिंह (मुखबिर) :- गुरुद्वारे की ओर से मुसलमानों के इलाके में घुसकर उनकी नीति का पता लगाने गया था। किंतु जिस घर में छिपा था वहाँ की बुढ़िया ने उसे देख लिया तो किसी तरह जान बचा कर भागा और वापस गुरुद्वारे पहुँच गया।
* गुरुद्वारे की युद्ध समिति के सदस्य :-
* सरदार मंगल सिंह सुनार
* प्रीतम सिंह बजाज
* भगत सिंह पंसारी
* तेजसिंह
* किशनसिंह
* बलदेव सिंह :- धर्म-रक्षा की उत्तेजना में वो अपनी बूढ़ी माँ को घर पर ही छोड़कर खुद सुबह से गुरुद्वारे आ गया था।
- यह सोचकर कि माँ तो अब बची नहीं होगी। माँ को तुकों ने मौत के घाट उतार दिया होगा। उसने खून का बदला खून से लेने की ठानी और बूढ़े लुहार करीम बख्श की छाती में तलवार भोंककर उसकी हत्या कर दी।
* हरनाम सिंह / बंतो :-
- दंपत्ति
- ढोक इलाहीबख्श के अकेले सिख निवासी
-जिसकी दुकान लूट ली गई थी और घर जला दिया था और वह अपनी पत्नी के साथ भागने के लिये मजबूर था।
- ढोक इलाहीबख्श के ही निवासी करीमखान ने हरनाम सिंह को भाग जाने का मशवरा दिया था।
- जसबीर कौर और इकबाल सिंह क्रमशः हरनाम सिंह और बतो के बेटी और बेटे थे।
- जसबीर की शादी हो चुकी थी। वो जिस गाँव में थी वहाँ सिखों की जनसंख्या ज्यादा थी इसलिये हरनाम सिंह थोड़ा निश्चित था कि सभी संगत में एकत्रित हो गए होंगे और जसबीर अकेली नहीं होगी किंतु हरनाम सिंह और बंतो को लगातार इकबाल सिंह की चिंता सता रही थी कि यह बेचारा अकेला कहाँ होगा।
* इकबाल सिंह: - हरनाम सिंह का बेटा
- इकबाल मीरपुर में बजाजी की दुकान करता था।
- इसका बाप हरनाम सिंह ढोक इलाहीबख्श में चाय की दुकान करता था।
* एहसान अली :- एहसान अली के घर में हरनाम सिंह और उसकी पत्नी ने भागकर पनाह ली हुई थी। एहसान अली की पत्नी ने हरनाम और बंतो को ऊपर एक अंधेरी कोठरी में बिठा दिया था। जय एहसान अली लौटा तो वह उसे हरनाम के बारे में बता रही थी कि हरनाम ने देखा कि एहसान अली, हरनाम के घर से उसी का ट्रंक चुरा कर लाया था लूट में, और उसकी बहू (अकरा) उसका ताला तोड़ रही थी, तो हरनाम सिंह ने खुद ही ट्रक की चाभी दे दी और एहसान अली से कहा कि अच्छा हुआ ये तुम्हारे हाथ लग गया, ये हमारा ही ट्रंक था पर अब तुम इसे अपना ही समझो।
* राजो: - एहसान अली की पत्नी जिसने हरनाम सिंह और बंतो को अपने घर में पनाह दी थी।
* अकराः - एहसान अली और राजो की बहू।
- उनके बेटे रमजान की पत्नी।
* रमजानः - एहसान अली और राजो का बेटा जोशीला युवक जिसके सिर पर सांप्रदायिकता का खून सवार था।
* नूरदीनः - रमजान का साथी, रमजान के ही गाँव का रहने वाला था।
- गधों पर मिट्टी और ईंट लादकर लाता ले जाता था।
- उसके दांतों के ऊपर लाल मसूड़े थे जब हंसता तो मसूड़े दूर तक नजर आते थे।
- रमजान, नूरदीन और उनके अन्य साथियों ने अपनी जान बचा कर भाग रहे सिक्ख इकबाल सिंह का पीछा किया और उसकी जान बख्शने के एवज में उससे इस्लाम कुबूल करवाया।
* हरनाम सिंह के पिता का नाम : - सरदार गुरुदयाल सिंह
* हरनाम सिंह के गाँव का नाम:- ढोक इलाहीबख्श
* हरनाम सिंह की तहसील का नाम :- नूरपुर
जिस स्कूल में दंगे खत्म होने के पश्चात रिलीफ कैंप बनाया गया था, उस स्कूल का चपरासी एक ब्राह्मण था। वह और उसकी ब्राह्मणी बहुत ज्यादा दुखी थे क्योंकि उनकी बेटी प्रकाशो को दंगाई उठाकर ले गए थे और अभी तक उसका कोई पता नहीं चला था। रिलीफ कैंप के आंकड़ा बाबू उस ब्राह्मण के पास आकर कहते हैं कि कल एक बस नूरपुर जाएगी उसमें हथियारबंद पुलिसवाले भी होंगे वो उस बस में जाकर नूरपुर में अपनी बेटी का पता लगा लें। ब्राह्मणी उस आंकड़ा बांबू से कहती है कि अब वो हमारे पास आकर भी क्या करेगी? बुरी वस्तु तो उसके मुंह में पहले ही डाल दी होगी। ब्राह्मण कहता है कि अब प्रकाशो नहीं मिलेगी जहाँ रहे सुखी रहे।
दंगों के पश्चात जिस कॉलेज में अमन कमेटी की मीटिंग होती है उस कॉलेज के दो चपरासी गेट के पास बैठकर बात कर रहे होते हैं कि जाहिल लोग लड़ते हैं। समझदार खानदानी लोग नहीं लड़ते हैं। यहां आए हुए लोगों में हिंदू, सिख और मुसलमान सभी हैं मगर कैसे प्यार मुहब्बत से बातें कर रहे हैं।
अमन कमेटी की मीटिंग के लिये यही कॉलेज का हाल चुना गया, क्योंकि कॉलेज न हिंदुओं का था, न सिखों का, न ही मुसलमानों का था; कॉलेज ईसाइयों का था। प्रिंसिपल भी हिंदुस्तानी नहीं था। अमरीकी पादरी था। बड़ा मिलनसार, बड़ा अमनपसंद।
* अल्लाहरक्खा :- यह अपने ही गाँव की एक हिंदू लड़की प्रकाशो पर अनुरक्त था जिसे वह दंगे के दौरान अपने घर उठा लाता है। बाद में प्रकाशो की स्वीकृति होने पर उसके साथ ही रहने लगता है।
* प्रकाशो :- दंगे के दौरान अपने ब्राह्मण माता-पिता से भटकी हुई युवा ब्राह्मणी। जिसे उसके गाँव का ही अल्लाहरक्खा अपहृत कर ले जाता है।
कथासार
उपन्यास का आंरभ नत्थू चमार द्वारा सूअर मारने की घटना से होता है। मुराद अली अंग्रेजी सरकार का चमचा है। वह नत्थू चमार को पाँच रुपये देकर एक सूअर मरवाता है और उसे मस्जिद की सीढ़ियों पर फिंकवा देता है। इस घटना से मुसलमानों में खलबली होती है और एक गाय भी मार दी जाती है। परिणामतः शहर में सांप्रदायिक तनाव हो जाता है और दोनों संप्रदाय एक-दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं। नागरिकों का एक शिष्ट मंडल डिप्टी कमिश्नर रिचर्ड से मिलकर शांति स्थापना के लिये सरकारी सहयोग चाहता है। शिष्ट मंडल के बख्शी जी शहर में - कर्फ्यू लगाने की सलाह देते हैं लेकिन रिचर्ड इसे स्वीकार नहीं करता। वह स्थिति की गंभीरता को जानते हुए भी अनजान बना रहता है। - परिणामतः पूरे शहर में हत्या, लूट और आगजनी खुलकर होने लगती है। सांप्रदायिकता की यह आग गाँवों में भी फैल जाती है। सैयदपुर में सिखों और मुसलमानों के बीच खूनी संघर्ष होता है। दोनों ओर बाकायदा मोर्चे खुले हैं। भयानक रक्तपात होता है। सिख औरतें अपने बच्चों सहित कुँए में कूदकर आत्महत्या करती हैं।
सारी बर्बादी हो जाने के बाद सरकार की ओर से हस्तक्षेप होता है। नगर और गाँवों से ऊपर एक हवाई जहाज मंडराता है और सारे माहौल को मिनटों में बदल देता है। लोग आतंकित होकर अपने-अपने घरों में दुबक जाते हैं। कर्फ्यू लगा दिया जाता है। जगह-जगह सेना तैनात कर दी जाती है। शांति कायम करने के लिये सरकार की ओर से एक अन्य कमेटी (नागरिक समिति) बना दी जाती है जिसमें हिन्दू, मुसलमान और सिक्ख हैं। अमन कमेटी के सदस्य एक बस में बैठकर शहर का चक्कर लगाते हैं। लेकिन जो होना होता है, वह हो चुका होता है। लोग अपने घर से, परिवार से, संबंधियों से बिछुड़ चुके हैं। उनके घर जला दिए गए हैं, संपत्ति लूट ली गई है। वे शरणार्थी कैंपों में अपनी बहू-बेटियों का पता पूछ रहे हैं। 'तमस' उपन्यास इसी सांप्रदायिक खूनी संघर्ष की कहानी है।
शरणार्थी कैंप का जो वर्णन लेखक ने किया है वह पाठक को सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या वाकई में हम इंसान हैं? जिस इंसानियत की व्याख्या हम जीवन भर करते रहते हैं वह असल में समय आने पर पिछली सीट ले लेती है और हमारी चालक शक्ति क्रोध, ईर्ष्या, बदले की भावना हो जाती है। हमारा व्यवहार हिंसात्मक हो जाता है। रिलीफ कैंप के उस माहौल में जहाँ लोग अपने बिछड़े हुए और लापता जन का पता लगाने की कोशिश कर रहे होते हैं उन्हीं के बीच में लेखक एक ऐसे किरदार को भी लेकर आते हैं जो अपनी मृत पत्नी की लाश को खोज रहा होता है, (जिसने कि कुएँ में कूदकर आत्महत्या की थी) ताकि वह अपनी पत्नी की लाश से उसके सोने के गहने उतार सके। वह रिलीफ कैंप में काम करने वाले क्लर्क से कहता है कि, "अब घरवाली तो डूबमरी, जो सबके साथ हुई है, वही मेरे साथ भी हुई है, पर ये कड़े और जंजीरें मैं कैसे छोड़ दूं? क्यों वीर जी?"
असल में तमस यथार्थपरक विस्तृत मानव सभ्यता की कहानी है, वही मानव जिसने दुनिया बसाई उसके दोनों छोर एक कर दिये, परंतु बसी-बसाई सभ्यताएं जड़ से उजाड़ देना भी मानव के ही बस की बात है।
प्रमुख उद्धरण
* "यह सब हिन्दुओं की चालाकी है, बख्शीजी हम सब जानते हैं। आप चाहें जो कहें, कांग्रेस हिन्दुओं की जमात है। कांग्रेस हिन्दुओं की जमात है और मुस्लिम लीग मुसलमानों की। कांग्रेस मुसलमानों की रहनुमाई नहीं कर सकती।"
- महमूद
* "बड़ा आसान है, लीजा। मुसलमानों के नामों के अन्त में अली, दीन, अहमद, ऐसे-ऐसे शब्द लगे रहते हैं जबकि हिन्दुओं के नामों के पीछे ऐसे शब्द जैसे लाल, चन्द, राम लगे रहते हैं। रोशनलाल होगा तो हिन्दू, रोशनदीन होगा तो मुसलमान, इकबालचन्द होगा तो हिन्दू, और जो इकबाल अहमद होगा तो मुसलमान।"
- रिचर्ड
* "बुद्ध की मूर्तियों की सबसे बड़ी खूबी वह धीमी सी मुस्कान है जो उसके होंठों के आसपास खेलती रहती है।"
-रिचर्ड
* "ये आदमी लोग कितने अजीब होते हैं, कितना रस ले-लेकर पत्थरों और खंडहरों के बारे में बातें करते रहते हैं। कोई स्त्री इन बातों के बारे में जानते हुए भी इतना चहकेगी नहीं, इतनी डीग नहीं मारेगी।"
-लीजा
* "हुकूमत करनेवाले यह नहीं देखते प्रजा में कौन-सी समानता पाई जाती है, उनकी दिलचस्पी तो यह देखने में होती है कि वे किन-किन बातों में एक-दूसरे से अलग हैं?"
-रिचर्ड
* "हिन्दू गाय का माँस नहीं खाते, और मुसलमान सूअर का माँस नहीं खाते, सिख लोग झटके का माँस खाते हैं जबकि मुसलमान लोग हलाल का माँस खाते हैं..."
- रिचर्ड
* "अगर प्रजा आपस में लड़े तो शासक को किस बात ख़तरा है।"
- रिचर्ड
* "सबसे पहले अपनी रक्षा का प्रबन्ध किया जाना चाहिये। सभी सदस्य अपने-अपने घर में एक-एक कनस्तर कड़वे तेल का रखें, एक-एक बोरी कच्चा या पक्का कोयला रखें। उबलता तेल शत्रु पर डाला जा सकता है, जलते अंगारे छत पर से फेंके जा सकते हैं।..."
- पुण्यात्माजी
* "शहर की हिफाजत का सवाल राजनीतिक सवाल नहीं है. यह राजनीतिक पार्टियों के ऊपर सवाल है, शहर के सभी लोगों का, नागरिकों का सवाल है। इसमें अपनी अपनी पार्टियों को भूल जाना होगा। सरकार का भी रोल इसमें बहुत बड़ा है। हम सबको मिलकर शहर की स्थिति को संभाल लेना चाहिये। हमें इसी वक्त शहर का दौरा करना चाहिये और लोगों को समझाना चाहिये, उनसे अपील करनी चाहिये कि वे आपस में नहीं लड़ें।"
- पादरी हरबर्ट
* "दुख से छुटकारा पाने के लिये आदमी सबसे पहले औरत की तरफ ही मुड़ता है।" - लेखक
* "बाबू ने कहा आजादी आनेवाली है। मैंने कहा, आए आजादी, पर हमें क्या? हम पहले भी बोझा ढोते हैं, आजादी के बाद भी बोझा ढोएँगे।"
- मजदूर आपस में
* " उसे लगा जैसे मानवीय मूल्यों का कोई महत्त्व नहीं होता, वास्तव में महत्त्व केवल शासकीय मूल्यों का होता है।"
- लीजा के विचार
* "और लोग भी हैं, अफसरों के साथ, हमसायों के साथ, हिन्दू- मुसलमान सभी के साथ मेल-मिलाप बनाए रखते हैं। अपने समधियों को ही देखो, मुसलमानों का उनके घर ताँता लगा रहता है। तुमने न अफसरों के साथ बनाकर रखी, न हमसायों के साथ।"
- लाला लक्ष्मीनारायण से उनकी पत्नी
* "हम मध्यमवर्ग के लोग हैं, पुराने संस्कारों का हम पर गहरा प्रभाव है। मजदूर वर्ग के होते तो हिन्दू-मुसलमान का सवाल तुम्हें परेशान नहीं करता।"
- देवदत्त
* "साहिबान, मैं आपसे कहता हूँ कि हिन्दू-मुसलमान भाई-भाई हैं, शहर में फ़साद हो रहा है, आगजनी हो रही है और उसे कोई रोकता नहीं। डिप्टी कमिश्नर अपनी मेम को बाँहों में लेकर बैठा है और मैं कहता हूँ कि हमारा दुश्मन अंग्रेज्ज है। गांधीजी कहते हैं कि वही हमें लड़ाता है और हम भाई-भाई हैं। हमें अंग्रेज़ों की बातों में नहीं आना चाहिये। और गांधीजी का फ़रमान है कि पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा। मैं भी यही कहता हूँ कि पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा, हम एक हैं, हम भाई-भाई हैं, हम मिलकर रहेंगे...।" - जरनैल
* "वन्तो तेरा रब्बा राखा...
सरबत्त दा रब्बा राखा।"
* "जहाँ सबको जानता था, वहाँ किसी ने आसरा नहीं दिया, सामान लूट लिया और घर को आग लगा दी। यहाँ जानने वालों से क्या उम्मीद हो सकती है?"
- हरनाम सिंह
* "हम झूठी अफवाहें सुन-सुनकर एक-दूसरे के खिलाफ तैश में आ रहे हैं। हमें अपनी तरफ से पूरी कोशिश करनी चाहिये कि गाँव के मुसलमानों के साथ मेल-जोल बनाए रखें और हत्तुलवसा कोशिश करें कि गाँव में फसाद न हो।"
- सोहन सिंह
* "अगर हिंदू-मुसलमान-सिख मिल जाते हैं, उनमें इत्तहाद हो जाता है, तो अंग्रेज की हालत कमजोर पड़ जाती है। अगर हम आपस में लड़ते रहते हैं त्तो हालत मजबूत बनी रहती है।"
- मीरदाद
* "रोशनी स्त्रियों के दमकते चेहरों पर पड़ रही थी। भावनाओं से उद्वेलित चेहरे। उत्कंठा, भय, अधाह श्रद्धा और विश्वास सभी उनकी आँखों में छाये थे। कहीं-कहीं किसी युवती की चकित आँखें गुरुद्वारे का अनूठा दृश्य देखे जा रही थीं। इन्हीं युवतियों में जसबीर भी बैठी थी हरनामसिंह चायवाले की बेटी।"
- लेखक
* "सैयण्पुर के निवासी होने का सिखों को भी उतना ही गुमान था जितना मुसलमानों को, सभी को सैयदपुर की लाल मिट्टी पर, बढ़िया गेहूँ पर, लुकाटों के बागों पर, यहाँ तक कि सैयदपुर के कड़े जाड़ों पर और बर्फीली हवा पर समान रूप से नाज था, और इसी भांति अपनी मेहमानवाजी पर, दरियादिली पर और हँसमुख स्वभाव पर भी नाज था। फ्साद शुरू होने पर दोनों ओर से लोग सैयदपुर के निवासी होने के नाते ही छाती ठोककर मैदान में कूदे थे।"
- लेखक
* "चाँदनी पीली पड़ गई। धीरे-धीरे पौ फटने लगी। रात का ऐन्द्रजालिक वातावरण फिर से छिन्न-भिन्न होने लगा। स्वच्छ, शीतल हवा रोज की तरह बहने लगी। गाँव के बाहर पके गेहूँ के खेत इस हवा में झूमने लगे। हवा में लुकाटों की महक थी। नदी की ओर से हवा का झोंका आया, लुकाटों की महक से लदा हुआ। उसमें उन सफेद फूलों की भी भीनी-भीनी गंध मिली थी जो इस मौसम में झाड़ियों पर उगते थे। किसी-किसी वक्त लुकाटों के बाग में से तोतों का एक झुंड पर फड़फड़ाता, चीं-चीं करता उड़ जाता। नदी का पानी नीला-नीला हो रहा था। हवा का झोंका आता तो पानी में झुरझुरी-सी होती।"- लेखक
* "जब रोशनी फैलने लगी तो चीलें और कव्वे, ढेरों-के-ढेरों आसमान में उड़ने लगे। उनके गिद्ध भी मँडराते हुए आ गए। स्कूल के बाहर खड़े एक रुंड-मुंड पेड़ पर दस-पंद्रह गिद्ध आकर बैठ गए थे- छोटे- छोटे सिर बड़ी-बड़ी पीली चोंचें। कुछ गिद्ध कुएँ की जगत पर भी आ बैठे थे जहाँ लाशें फूलने लगी थीं और फूल-फूलकर कुएँ के मुँह तक पहुँचने लगी थीं। घरों की मुँडेरों पर भी जगह-जगह गिद्ध आकर बैठ गए थे। गलियाँ सुनसान पड़ी थीं, बिखरी लाशें गाँव की निःस्तब्धता को और भी गहरा बना रही थीं। अब गाँव की गलियों में कोई धीरे से भी चलता तो उसके पैरों की चाप गूँजती थी।"
- लेखक
* "पिछले एक साल में रिचर्ड उसे दो बार तीन-तीन महीने के लिये जेल भेज चुका था। यह आदमी फ़िसाद के पहले और फ़िसाद के दिनों में भी फिसाद को रोकने की कोशिश करता रहा था। कांग्रेस और मुस्लिम लीग के कारकुनों को एक साथ मिलकर बैठने और शहर में अमन बनाए रखने के लिये प्रेरित करता रहा था। इसकी नज़र अभी भी अमन पर ही थी, इस समय यह इसके अतिरिक्त और कोई बात नहीं करेगा।"
- लेखक
* "यहाँ सभी टोडी इकट्ठे हुए हैं, सरकार की चापलूसी करनेवाले। हम किसी से डरते नहीं हैं, साफ बात मुँह पर कहते हैं। इन फ़िसादों के लिये ज़िम्मेदार कौन है? सरकार उस वक्त कहाँ थी जब शहर में तनाव बढ़ रहा था, अब कर्फ्यू लगाया गया है, उस वक्त क्यों नहीं लगाया गया? उस वक्त साहब बहादुर कहाँ थे? हम किसी से डरते नहीं हैं, साफ बात मुँह पर कहते हैं....." - मनोहर लाल
* "फिसाद करनेवाला भी अंग्रेज, फ़िसाद रोकनेवाला भी अंग्रेज्ज, भूखों मारनेवाला भी अंग्रेज, रोटी देनेवाला भी अंग्रेज, घर से बेघर करनेवाला भी अंग्रेज्ज, घरों में बसानेवाला भी अंग्रेज...."
- बख्शी जी
* “इतने गाँव तो जल गए रिचर्ड, अभी भी तुम्हें काम है? अब तुम्हें और क्या काम करना है?"
- लीज़ा
* "मुझे कहाँ घुमाने ले चलोगे, रिचर्ड? मुझे जलते गाँवों की सैर कराओगे? मैं कुछ भी देखना नहीं चाहती, कहीं भी जाना नहीं चाहती।" - लीज़ा
* "हमें आँकड़े चाहिये, केवल आँकड़ें। आप समझते क्यों नहीं? आप लम्बी हौंकने लगते हैं, सारी रामकहानी सुनाने लगते हैं, मुझे रामकहानी नहीं चाहिये, मुझे केवल आँकड़े चाहिये। कितने मरे, कितने घायल हुए, कितना माली नुकसान हुआ...." - रिलीफ कमेटी का बाबू
* "बापू ने कहा कि हिंसा मत करो। अब फ़िसाद के वक्त मुझ पर कोई हमला कर दे तो मैं क्या करूँ? क्या उस वक्त मैं उसके सामने हाथ जोड़ दूँ- मार ले भाई, गर्दन झुका दूँ, काट ले भाई गर्दन। क्या करूँ?"
- कश्मीरीलाल
* "गांधीजी ने यह कहीं नहीं कहा कि कोई तुम पर हमला करे तो तुम उसका जवाब ही नहीं दो।"
- शंकर लाल
* "तू खुद तशदुद नहीं कर। नम्बर एक। तू तशदुद करनेवाले को समझा भी, अगर समझाने का मौका है तो। नम्बर दो। और अगर वह नहीं मानता तो डटकर मुकाबला कर। यह है नम्बर तीन।"
- बख़्शी जी
* "दोनों एक-दूसरे के साथ खुलने लगे थे। अल्लाहरक्खा ने आगे बढ़कर उसे बाँहों में भर लिया। डरी-सहमी रहते हुए भी प्रकाशो इस अनूठे अनुभव में भाग लेने लगी थी, उसे ग्रहण-सी करने लगी थी। उसे लगता जैसे अतीत पीछे छूटता जा रहा है और वर्तमान बाँहें फैलाए उसे आलिंगन में भरने के लिये उतावला हो रहा है। स्थिति इतनी बदल गई थी कि उसके प्रसंग में प्रकाशो के माँ-बाप असंगत होते जा रहे थे।
- लेखक
* “यदि कोई हिन्दू अब चुनाव के लिये खड़ा होगा तो उसे कांग्रेस के समर्थन की जरूरत होगी, और अगर कोई मुसलमान खड़ा होगा तो उसे मुस्लिम लीग के समर्थन की।
- लेखक
* "हम जाहिल लोग लड़ते हैं। समझदार, खानदानी लोग नहीं लड़ते। यहाँ सभी आए हैं हिन्दू भी, सिख भी, मुसलमान भी; मगर कैसे प्यार-मुहब्बत से बातें कर रहे हैं....।" - लेखक
* "मैं सोचता हूँ इस वक्त हम सब मिलकर, जैसे भी हो, शहर की फिज़ा को बेहतर बनाएँ। यहाँ शहर के सभी बड़े-बड़े लोग मौजूद हैं, उनकी आवाज़ का बड़ा असर होगा। मेरा विचार है कि एक अमन कमेटी बनाई जाए और यह अमन कमेटी हर मुहल्ले में, हर गली में अमन का प्रचार करे। इसमें सभी सियासी जमातों के नुमाइन्दे शामिल हों। इस काम के लिये, मैं समझता हूँ कि अगर एक बस का इन्तज़ाम हो सके, जिस पर लाउडस्पीकर और माइक्रोफोन लगा दिए जाएँ, और कांग्रेस, मुस्लिम लीग तथा अन्य सियासी जमातों के नुमाइन्दे बैठकर जगह-जगह बस में से अमन की अपील करें तो इसका बड़ा असर होगा।"
- लूकस साहब
* "साहिबान, इस तरह हम कोई काम नहीं कर सकेंगे। फिरकावाराना अनासर के खिलाफ हमें लड़ना है। यह जरूरी नहीं कि किसको नुमान्दगी मिले, जरूरी यह है कि अमन कमेटी सभी फिरकों की एक मुश्तरका जमात बने, ताकि हम हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई मिलकर एक प्लेटफार्म पर से अमन की अपील कर सकें। इसी बात को मद्देनजर रखते हुए मैं तजवीज करता हूँ कि जनाब हयातबख्श, बख्शीजी और ज्ञानी जोधासिंहजी को अमन कमेटी का वाइस प्रेजिडेंट मुन्तखिब किया जाए।"
- देवदत्त
* "लोगों ने झाँक-झाँककर बस के अंदर देखा, कौन आदमी था जो पहले से बस में बैठकर आया था और लाउडस्पीकर पर नारे लगा रहा था। ड्राइवर की सीट के साथवाली सीट पर एक आदमी हाथ में माइक्रोफोन पकड़े बैठा था। बहुत लोगों ने उसे नहीं पहचाना। कुछेक ने पहचान भी लिया। नत्थू मर चुका था, वरना नत्थू यहाँ मौजूद होता तो उसे पहचानने में देर नहीं लगती। मुरादअली था काले चेहरे और कँटीली मूँछोंवाला मुरादअली, उसकी पतली-सी छड़ी उसकी टाँगों के बीच पड़ी थी और छोटी-छोटी आँखें दाएँ-बाएँ देखे जा रही थीं और लाउडस्पीकर में से नारे गूँज रहे थे।" - लेखक
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