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झूठा सच - 2 ( देश का भविष्य ) - 1960 ई. - हिंदी उपन्यास - प्रबोध क्लासेज

      झूठा सच-2 (देश का भविष्य)- 1960 ई. 

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 यह उपन्यास 2 खंडों में विभक्त है : - 
(1)  वतन और देश (1958 ई.) = click here
(2)  देश का भविष्य (1960 ई.) =

                        प्रमुख उद्धरण

 * "ओफ! खलकत पर क्या गुजर रही है! बच्चे रात-रात भर बरसात में भीग कर निमोनिए से मर रहे हैं। लोग फसीलों की आड़ में खंडहरों में ही दिन गुजार रहे हैं। लोग कब्रों की ईंट उखाड़ कर दीवार बनाकर फूस की टट्टियों के नीचे पनाह पा रहे हैं।"  

- पं. गिरधारीलाल सपरिवार दिल्ली में, सैय्यद से हस्तांतरित मकान में, दरी पर लेटे हुए |

 * "पुरानी दिल्ली में बस्ती के बाहर या बस्ती के भीतर जहाँ भी कहीं खुला स्थान था। सब जगह शरणार्थियों के लिये कैम्प बना लिये गए थे, परंतु नई दिल्ली की भव्य सड़कों, कनॉट प्लेस और शासन के केंद्रों के आसपास इस संकट का कोई प्रभाव दिखाई नहीं देता था।"  

- लेखक

  * "गांधी जी कलकत्ता से पश्चिम पाकिस्तान में शांति स्थापना का प्रयत्न करने के लिये आए थे, परंतु दिल्ली की अवस्था देखकर उनका सिर लज्जा और दुःख से झुक गया। भारत में शांति स्थापित किए बिना वे पाकिस्तान को क्या कह सकते थे? गांधी जी ने प्रण कर लिया, दिल्ली में पूर्ण शांति किए बिना वे दिल्ली नहीं छोड़ेगें इसके लिये चाहे प्राण ही दे देने पड़ें।" 

- लेखक

  * "गांधी जी सहृदयता, सहिष्णुता और उदारता के प्रचार के लिये अपनी संध्या प्रार्थनाएँ दिल्ली के भिन्न-भिन्न भागों में कर रहे थे। प्रार्थना रेडियो और लाउडस्पीकरों द्वारा पूरे नगर में सभी जगह सुनी जा सकती थी।" 

-लेखक

  * "प्रार्थना के स्थान पर एक ओर कुछ बुर्कापोश मुसलमान स्त्रियाँ और कुछ मुसलमान मर्द भी थे। उन्हें सुरक्षा के नाम पर स्वयंसेवक घेरे हुए थे। श्रोताओं के लिये दरियाँ बिछी हुई थीं परंतु अधिकांश लोग दरियों पर न बैठकर आसपास घूम रहे थे और क्रोध प्रकट कर रहे थे- प्रार्थना क्या ढोंग है। गांधी मुसलमानों का हौसला बढ़ाने के लिये आ रहा है।" 

- लेखक

  * "गांधी जी के शरीर पर केवल कमर से घुटनों के ऊपर ही छोटी सी धोती थी। गर्दन झुकी हुई और चेहरा बहुत उदास था। उपस्थित लोगों में केवल वे ही बिना कपड़े के थे; सबसे भिन्न! उन्हें पहचानने के लिये किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं थी। दुबला. गठीला, गहरा साँवला शरीर सुडौल, सुरूप और सुवर्ण न होकर भी भव्य जान पड़ रहा था।" 

- लेखक

 * "बुर्कापोश स्त्रियाँ गांधी जी के घुटनों से लिपट, बिलख-बिलख कर रो पड़ीं। गांधी जी के नेत्रों से आँसू टपकने लगे। उन्होंनें स्त्रियों के बुकों से ढके सिरों पर करुणा का हाथ रखकर अल्लाह ईश्वर का भरोसा करने के लिये कहा और प्रण-प्रण से उनकी रक्षा करने का आश्वासन दिया।"

  * "स्त्रियों का भाग्य पुरुषों की प्रसन्नता और उनके निर्णय पर ही आश्रित है।" 

- तारा स्वगत

  * "यह कैम्प का कानून है, नियम है।

    सब जगह कोई न कोई कानून होता है।

    हम जिंदगी भर के लिये ठेका नहीं ले सकते।"

    वे आगे बढ़ गए। - तत्कालीन प्रधानमंत्री

  * "ब्रिटेन ने बँटवारे के समय संयुक्त देश को जो अस्टेट दिया था उसमें से 55 करोड़ पाकिस्तान का हिस्सा था पर जनवरी 1948 में पाकिस्तान ने कश्मीर पर अधिकार के लिये हमला कर दिया था जो भारतीय संघ का हिस्सा था। इसी कारण युद्ध वापस न लेने तक भारत सरकार ने यह रुपये देने से मना कर दिया पर गांधी जी इस बात के खिलाफ थे। उनका सुझाव था कि भारत सरकार अपना सद्भाव प्रकट करने के लिये पाकिस्तान को बिना किसी शर्त के उसका भाग 55 करोड़ रुपये दे दे।"

 * "13 जनवरी, 1948- सांप्रदायिक विद्वेष खत्म न होने तक गांधी जी के आमरण अनशन की घोषणा।"

  * "उस समय पत्रों में और राजनीतिक चर्चा में पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपया दिया जाने अथवा न दिया जाने का प्रश्न ही प्रमुख था।"

  * "गांधी जी सद्भावना की अपीलें कर रहे थे। वे निरंतर माँग कर रहे थे कि सरकार दिल्ली में मुसलमानों की रक्षा का पूरा प्रबंध करे। दिल्ली से जो मुसलमान भय के कारण भाग गए हैं. वे लौटकर निर्भय होकर दिल्ली में रह सकें। हिंदू शरणार्थियों ने मुसलमानों के जिन मकानों और मस्जिदों पर कब्जा कर लिया है; वे मुसलमानों को लौटा दिए जाएँ। गांधी जी के अनशन के इन उद्देश्यों के कारण अधिकांश हिंदूओं ने, विशेषकर पश्चिम और पूर्वी पाकिस्तान से निकाल दिए गए हिंदूओं ने इस अनशन को मुसलमानों के प्रति अनुचित पक्षपात समझा। .... अधिकांश हिंदू गांधी जी के व्यवहार से क्रोध में उबल पड़े।" 

 - लेखक

  * "तारा को भी लग रहा था गांधी जी ने मुसलमानों की सहायता के लिये अपने उपवास से हिंदुओं पर आक्रमण कर दिया है। हिंदू पराजय स्वीकार करके आत्महत्या कर लें... लोगों को नेहरू, मौलाना आजाद पर भरोसा नहीं है, परंतु सरदार पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और सरदार बलदेव सिंह यह नहीं होने देंगे। गांधी जी यह क्या कर रहे हैं? क्या होगा?" 

अगरवाल साहब की कोठी में चल रही बहस, गांधी के अनशन पर

 * "बड़ी कठिन स्थिति है। गांधी का अनशन कैबिनेट के निर्णय के विरुद्ध है। जनता तो कैबिनेट के साथ है। गांधी जी का अनशन निश्चय ही भारत के विरुद्ध पाकिस्तान के पक्ष में है।"

  * "गांधी जी को अनशन करना था तो पार्टीशन रोकने के लिये करना चाहिये था। उसकी घटना तो हो चुकी। यह तो केवल उस घटना की छाया है।" 

- तारा

  * "पहनने की कला इसी में है कि परिधान में यत्न प्रकट न हो।" 

- रावत

  * "मैं तो अपनी सरकार और देश के प्रति कर्त्तव्य-भावना से इस अनशन के परिणाम को बहुत हानिकारक समझता हूँ।" रावत का चेहरा और स्वर बहुत गंभीर हो गया। "लेकिन यह हमारे बस की बात नहीं है। गांधी जी की मृत्यु हो जाती है तो भी बहुत बुरा होता, लेकिन इस प्रकार सरकार का निर्णय बदल जाना राष्ट्रीय हानि है।" यह राष्ट्र को एक व्यक्ति की तुलना में नीचे गिरा देना है। इसके परिणाम बहुत बुरे होंगे।" 

-रावत

*** "कम्युनिज्म में सिर्फ उन्हीं लोगों को रोटी मिलती है, जिनके हाथों में छाले पड़े हों।" -तारा के दफ्तर के एक सामान्य कर्मचारी का कम्युनिज्म के बारे में ख्याल

 *** "सैनिक का कौशल शस्त्र प्रयोग है, परंतु सेनापति शस्त्र नहीं उठाता। सेनापति का काम कुशल सैनिकों का उचित संचालन होता है। अच्छे लेखकों का उचित प्रयोग कर सकना संपादक का काम है। ... पुरी के मन से कशिश जी के प्रति क्रोध मिट गया।"

 * "जब मनुष्य अभाव के गाढ़े में होता है तब उसे असमर्थता की दीवारें बंदी बनाए रखती हैं। उसे सफलता का कोई मार्ग दिखाई नहीं दे सकता। साधनों की सीढ़ी पा जाने पर मनुष्य की दृष्टि अभाव के गाढ़े से ऊपर उठ जाती है।" 

- लेखक 

* "दिल्ली में आ बसे पंजाबी 'शरणार्थी' पुकारे जाने पर आपत्ति करने लगे थे। उन्होंने अपने लिये 'पुरुषार्थी' नाम रख लिया था।"

  * "हमारे यहाँ कहावत है - चढ़ती जवानी में मर्द लड़की से शादी की बात करता है, तो लड़‌की भवें उठा कर पूछती है, तू क्या है? लड़की जवान हो जाती है तो बात करने वाले से पूछती है तुम कौन हो? उम्र ढलने लगे तो खुद ही चीखती फिरती है कहाँ है कोई? कहाँ है कोई?"

 मर्सी, तारा को (नरोत्तम का प्रस्ताव अस्वीकार कर देने पर)

  * "त्याग-व्याग की फिजूल बातें रहने दो।" मर्सी झुंझला उठी, "विवाह न हो तो भी सेक्स सब चाहते हैं। यह तो शरीर का स्वभाव है।"

 * "मर्सी दीदी।" इस बार माथुर ने आँखें मिलाकर कहा, "अगर सेक्स का संबंध प्रेम से है तो उसे इतनी निम्न और उच्छृंखल वस्तु नहीं बन जाने देना चाहिये।" मर्सी और झुंझला उठी, "मर्द औरत में प्रेम क्या होता, लव इज दी ग्लोरीफाइड नेम फॉर सेक्स" 

माथुर, निरंजन चड्ढा का पुराना दोस्त

  * "आचार्य कृपलानी ने ठीक ही कहा है, रिवोल्यूशन का क्या हुआ? कहाँ हुआ?... दो साल में ही 'गांधी की जय' खोखली पड़ गई है। सब शासन पुराने आई.सी.एस. लोग चला रहे हैं। उन लोगों ने सेवा करना नहीं शासन करना सीखा है। उन्हें डेमोक्रेसी नहीं ब्यूरोक्रेसी की आदत है।"

 - माथुर

  * "अब भी बिना मुकदमा चलाए कैद बल्कि 'डिफेंस ऑफ इंडिया ऐक्ट' से पुलिस के हाथों पूर्वापेक्षा लंबे हो गए हैं। कोर्ट लोगों को बरी कर देती है। पुलिस उन्हें दूसरी दफा लगाकर पकड़ लेती है। हमें तो शरम आती है। अंग्रेज सरकार ने अदालत में दिए भगत सिंह के बयान को नहीं जब्त किया था। पर इस सरकार ने गोडसे का अदालती बयान जब्त कर लिया है। क्या इनके पास गोडसे के लिये जवाब नहीं है? मुँह बंद कर देना डेमोक्रेसी है?" 

- माथुर

  * "अहिंसा और जनवाद में विश्वास रखने वाली कांग्रेसी सरकार ने अंग्रेजी शासन के समय के जेल नियमों में बहुत से परिवर्तन कर दिए थे। पहले कैदियों को गेहूँ-जौ-चना मिली रोटी और दाल लोहे की तसला-कटोरी में मिलती थी अब निरे गेहूँ की रोटी और तसला-कटोरी पीतल के थे। जांघिया की जगह ऊँचा पजामा था। जेल में पुलिस का दखल पहले से बहुत अधिक था। कानूनी अधिकारों की सुनवाई पहले से कम थी।" 

- लेखक

  * "दीदी. मुझे अहंकार है? तुम मुझे इनमें से एक भी ऐसी बता दो जो साथी या पार्टनर की तरह जीवन में साथ देना चाहती हो। वे केवल जिंदगी के लिये सपोर्ट चाहती है, भत्ता। वे किसी का व्यक्तित्व नहीं देखना चाहती, केवल आमदनी देखती है। ... एडवांटेज और प्रेम एक बात नहीं है। इनमें से एक को ही बता दो, जो जीवन के संघर्ष का सामना करना चाहती हो?"

अपने ऊपर फिदा लड़कियों के बारे में नरोत्तम का तारा को तर्क

 * "पुरी बंटवारे से पहले का लंपन प्रोलेटेरियर (गरीब, साधनहीन) निम्नवर्गीय) नहीं रहा है। अब यह पेटी बुर्जुआ (कुछ पूँजी वाले। उच्च मध्यवगीय आय का) की भाँति सोचता है। अब उसे सब ओर अवसर की कमी और विषमता नहीं दिखाई देती। उसे अब परिवर्तन और न्याय की नई धारणाओं की आवश्यकता नहीं जान पड़ती। उसकी जड़ें जम रही हैं। अब वह उलट-पुलट के विचारों से घबराता है। तुम मतभेदों को बढ़ाकर उसे चिढ़ा देती हो। अपना पारिवारिक जीवन क्यों खराब कर रही हो?" 

- गिल, कनक से

  * "डिक्टेटरशिप का क्या मतलब?" ... क्या अब कांग्रेस की डिक्टेटरशिप नहीं है? सब सरकारें डिक्टेटर ही होती हैं। किसी भी सरकार की शक्ति और अधिकार पर केवल उस सरकार की अपनी इच्छा और निर्णय की सीमा होती है। हड़तालों को, आर.एस.एस. को गैरकानूनी करार देना, सब कम्युनिस्टों को गिरफ्तार कर लेना। लोगों को संदेह मात्र पर गिरफ्तार कर लेना और प्रिवेटिव डिटेंशन (बिना मुकदमा चलाए कैद) का कानून क्या है? कम्युनिस्टों को सरकारी नौकरी न देने का हुक्म क्या है? तुम्हारी 'सी' फैक्ट्री में से 5000 मजदूर कम्युनिस्ट होने के संदेह में निकाल दिए गए थे, वह क्या था? डिक्टेटरशिप और क्या होती है? प्रश्न यही है कि सरकार का दृष्टिकोण किस श्रेणी का है, डिक्टेटरशिप चोरों की है या मेहनत करने वालों की।" 

- चड्ढा, पहले आम चुनाव के समय चल रही बहस में।

  * "यू.पी. के चीफ़ मिनिस्टर ने कहा है, जो लोग भगवान पर विश्वास नहीं करते उन्हें किस पाप से डर हो सकता है। ईश्वर विश्वास कांग्रेस और राष्ट्रीयता का लक्षण कब से हो गया? तुम्हारे आदमी भरी सभा में कहते हैं कि कम्युनिस्टों की सरकार हो गई तो स्त्रियों को सामाजिक संपत्ति बना दिया जाएगा।"

  * "सदा अपने को दबाते कुचलते (कामतृप्ति या स्त्री-पुरुष संसर्ग के संबंध में) रहना यातना नहीं है? जो विवाहितों के लिये स्वभाविक हैं। रोकने का यत्न करते हैं। रुके रहने के यत्न में कुछ हो जाता है।" तारा ने अपना विचार रखा -"प्यार में श्यामा क्या व्यवहार का संयम नहीं रह सकता।" श्यामा फुंकार सी छोड़ कर बोली - "तरसना ही क्या प्यार है? प्यार क्या संतोष नहीं चाहता?"

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