राग दरबारी (श्रीलाल शुक्ल)1968 ई.
राग दरबारी (श्रीलाल शुक्ल)1968 ई.
* श्रीलाल शुक्ल कृत रागदरबारी हिंदी साहित्य के अमर उपन्यासों में से एक है। 1968 ई. में प्रकाशित यह उपन्यास पूर्णतः व्यंग्य शैली में लिखा गया है जिसमें हास्य का पुट भी कई बारगी नज़र आता है। यह उपन्यास स्वतंत्र भारत की ईमानदारी, नैतिकता, न्याय और शिक्षा व्यवस्था की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाता है।
* इस उपन्यास के लिये श्रीलाल शुक्ल को प्रकाशन के अगले वर्ष ही 1969 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। यह रचना आज भी प्रासंगिक बनी हुई है।
* 'राग दरबारी' पैंतीस अंशों में विभक्त रिपोर्ताज शैली में रचित उपन्यास है।
* 'राग दरबारी' हिंदी का महत्त्वपूर्ण उपन्यास है जो पूर्णतः व्यंग्य शैली में लिखा गया है। लेखक शिवपालगंज नामक गाँव के माध्यम से स्वातंत्र्योत्तर भारत की शासन व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था आदि की पोल खोलकर रख देता है। व्यंग्य शैली में होने के कारण हँसी-मजाक और रोना दोनों का अनुभव एक साथ होता है। यहाँ धारदार व्यंग्य मनोरंजन के साथ-साथ पाठक को आत्मनिरीक्षण का भी अवसर बखूबी प्रदान करता है। भारतीय शासन व्यवस्था एवं व्यक्ति में व्याप्त धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार, वंशवाद, जातिवाद इत्यादि को कुछ इस तरह उभारा गया है कि पाठक उनकी तहों तक पहुँचता है।
पात्र :-
मुख्य पात्र :-
* वैद्य जी: - यह गाँव की केंद्रीय सत्ता के प्रतीक हैं जो गाँव की राजनीति के मास्टमाइंड हैं।
* बद्री पहलवान :- वैद्य जी के बड़े बेटे। शरीर को सुगठित बनाने का अभ्यास करने में व्यस्त तथा अपने आश्रय में रहने वालों की देखभाल करते थे।
* रुप्पन: - वैद्य जी के छोटे बेटे और कई वर्षों से 10वीं कक्षा के छात्र थे और छात्र नेता भी थे।
* रंगनाथ :- वैद्यजी के भाँजे । इतिहास से एम.ए करके लगभग 5-6 महीने के लिये छुट्टी पर शिवपालगंज आए।
* छोटे पहलवानः - बद्री पहलवान के शिष्य। गाँव की राजनीति में सक्रियता रखने वाले। अपने पिता से बदतमीजी करने वाले।
* प्रिंसिपल साहब: - छंगामल इंटर कॉलेज के प्राचार्य। कॉलेज की साजिशों में महत्त्वपूर्ण स्थान।
* खन्ना मास्टर :- छंगामल इंटर कॉलेज में इतिहास के अध्यापक।
* मास्टर मोती रामः - छंगामल इंटर कॉलेज में अध्यापक। साथ ही आटा चक्की का काम करने वाले।
* जोगनाथः - स्थानीय गुंडा, हमेशा नशे में रहने वाला।
* सनीचरः - असली नाम मंगलदास; वैद्यनाथ जी का नौकर। उपन्यास के अंत में प्रधान बनाया जाता है।
* लंगड़ः - भ्रष्ट व्यवस्था का शिकार
* बेलाः - गयादीन की कुँवारी लड़की। जो कुँवारी रहकर वैवाहिक जीवन का आनन्द लेती है।
* रामाधीन भीकमखेड़वीः अफीम का कारोबार करता था। वैद्यजी का विरोधी।
गौण पात्र :-
कालिका प्रसाद, कुसहर प्रसाद, गयादीन, पंडित राधेलाल, शत्रुघ्न सिंह, रिपुदमन, सर्वदमन सिंह, डा. बलराम सिंह
विशेष :-
* कस्बाई जीवन की व्यंग्यपूर्ण अभिव्यक्ति एवं ग्रामीणकरुणाई जीवन की आलोचना।
* रागदरबारी में भाषा प्रयोग के विविध रूप दिखाई देते हैं। एकतरफ ग्रामीण पात्र, वैद्यजी, रुप्पन, सनीचर, जोगनाथ आदि की भाषा गाँव के परिवेश से है, वहीं शहर से आए रंगनाथ की भाषा में बौद्धिकता है। शराबी, जुआरी की भी अपनी गँवई भाषा है।
* लोकजीवन के शब्द लक-दक, चकाचक, फंटूश, खड़दूस, तिड़ी-बिड़ी, कल्लाना, लुलुहाना, कुकुरहॉव, चिड़ीमार, चुरेंट, हड़काना आदि।
मुहावरे एवं लोकोक्तिया :-
* तन पर नहीं लत्ता, पान खाँय अलबत्ता
* हर शाख पर उल्लू बैठा है
* चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए
* आग खाएगा तो अंगार हगेगा
* मुँह में राम बगल में छुरी
* अंधों में काना राजा
* हमारी ही पाली लोमड़ी हमारे ही घर में हुआ-हुआ
कथासार
* इस उपन्यास की कहानी किन्हीं मुख्य किरदारों के इर्द-गिर्द नहीं घूमती। उपन्यास में अनेक पात्र हैं और सबकी अपनी अहमियत है। गाँव की राजनीति मुख्य तौर पर दो ध्रुवों पर केंद्रित है। एक है वैद्यजी और दूसरा रामधीन भीखमखेड़वी। वैद्यजी बड़े चालाक, चतुरऔर कुटिल पात्र हैं। वे अप्रत्यक्ष रूप से ही सही पर गाँव के कॉलेज और कोऑपरेटिव पर कब्ता जमाए बैठे थे। उनके दो पुत्र हैं, दोनों शैक्षिक मामले में भदेस हैं। बड़ा बेटा पहलवानी करता है और छोटा रुप्पन कई सालों से दसवीं का छात्र है, तथा छात्रों के बीच नेता बना बैठा है। रंगनाथ, वैद्यजी का भाँजा है जो शहर से पढ़कर मामा के गाँव शिवपालगंज आता है। वह अपने किताबी आदर्शों को लेकर गाँव पहुँचता है। धीरे-धीरे उसका सामना पुलिस तंत्र, न्याय तंत्र, शैक्षिक तंत्र और सामाजिक तंत्र में व्याप्त बुराईयों से होता है।
* रंगनाथ ने अप्रत्यक्ष रूप से बेईमानों के विरुद्ध लड़ने के लिये एक पक्ष को उकसाया भी पर उसकी कोशिश सफल नहीं हुई और उसने भी हार मान ली और गाँव छोड़कर जाने का फैसला कर लिया। इसी प्रसंग में एक पात्र उससे कहता है कि जाओगे कहाँ? हर जगह तो बेईमान और भ्रष्टाचार व्याप्त है। इस बात से लेखक ने यह संकेत किया है कि देशभर में न जाने कितने ऐसे शिवपालगंज भरे पड़े हैं।
* इस उपन्यास में रागदरबारी से अभिप्राय है कि वैद्यजी की बैठक (दरबार) केवल उन्हीं का राग न होकर समूचे देश के प्रमुख सत्ता प्रतिष्ठानों का भी राग बन गया है। जिसमें राष्ट्रीय प्रजातंत्र में पंचायत, ग्राम सभा, सहकारी समितियों के चुनावों में हथकंडे से लेकर गुटबंदी, तिकड़मबाजी, शोषण, उत्पीड़न चौतरफा व्याप्त है।
प्रमुख उद्धरण
* "वहीं एक ट्रक खड़ा था। उसे देखते ही यकीन हो जाता था. इसका जन्म केवल सड़कों के साथ बलात्कार करने के लिये हुआ है। जैसे कि सत्य के होते हैं, इस ट्रक के भी कई पहलू थे।"
* "ड्राइवर ने मुस्कुराकर वह प्रशंसा-पत्र ग्रहण किया। रंगनाथ ने अपनी बात साफ़ करने की कोशिश की। कहा, "उसे चाहे जितनी बार टॉप गियर में डालो, दो गज चलते ही फिसल जाती है और लौटकर अपने खाँचे में आ जाती है।"
* "कहा तो, घास खोद रहा हूँ, इसी को अंग्रेज़ी में रिसर्च कहते हैं। परसाल एम.ए. किया था। इस साल से रिसर्च शुरू की है।"
- रंगनाथ, ड्राइवर से
* "वर्तमान शिक्षा-पद्धति रास्ते में पड़ी हुई कुतिया है, जिसे कोई भी लात मार सकता है। ड्राइवर भी उस पर रास्ता चलते-चलते एक जुम्ला मारकर चपरासी के साथ ट्रक की ओर चल दिया।"
* "इतना काम है कि अपराधों की जाँच नहीं हो पाती, मुकदमों का चालान नहीं हो पाता, अदालतों में गवाही नहीं हो पाती। इतना काम है कि सारा काम ठप्प पड़ा है।"
* "बाद में पता चलता कि वह अकेला आदमी बीस गाँवों की सुरक्षा के लिये तैनात है और जिस हालत में जहाँ है, वहाँ से उसी हालत में वह बीसों गाँवों में अपराध रोक सकता है, अपराध हो गया तो उसका पता लगा सकता है और अपराध न हुआ हो, तो उसे करा सकता है।"
* "देश में इंजीनियरों और डॉक्टरों की कमी है। कारण यह है कि इस देश के निवासी परंपरा से कवि हैं। चीज को समझने के पहले वे उस पर मुग्ध होकर कविता कहते हैं।"
* "हर हिंदुस्तानी की यही हालत है। दो पैसे की जहाँ किफायत हो, वह उधर ही मुँह मारता है।"
- मास्टर मोतीराम, लड़कों से
* "क्लर्क ने कहा, "सरकारी बसवाला हिसाब लगाओ मालवीय। एक बस बिगड़ जाती है तो सब सवारियाँ पीछे आने वाली दूसरी बस में बैठा दी जाती हैं इन लड़कों को भी वैसे ही अपने दर्जे में ले जाकर बैठा लो।"
* "इस देश में जाति-प्रथा को खत्म करने की यही एक सीधी-सी तरकीब है। जाति से उसका नाम छीनकर उसे किसी आदमी का नाम बना देने से जाति के पास और कुछ नहीं रह जाता। वह अपने आप खत्म हो जाती है।"
* "पुनर्जन्म के सिद्धांत की ईजाद दीवानी की अदालतों में हुई है, ताकि वादी और प्रतिवादी इस अफसोस को लेकर न मरें कि उनका मुकदमा अधूरा ही पड़ा रहा। इसके सहारे वे सोचते हुए चैन से मर सकते हैं कि मुकदमे का फैसला सुनने के लिये अभी अगला जन्म तो पड़ा ही है।"
* “तब तक लंगड़ दरवाजे पर आ गया। शास्त्रों में शूद्रों के लिये जिस आचरण का विधान है, उसके अनुसार चौखट पर मुर्गी बनकर उसने वैद्यजी को प्रणाम किया। इससे प्रकट हुआ कि हमारे यहाँ आज भी शास्त्र सर्वोपरि है और जाति-प्रथा मिटाने की सारी कोशिशें अगर फरेब नहीं है तो रोमांटिक कार्रवाइयाँ हैं।"
* “इस देश में लड़कियाँ ब्याहना भी चोरी करने का बहाना हो गया है। एक रिश्वत लेता है तो दूसरा कहता है कि क्या करे बेचारा! बड़ा खानदान है, लड़कियाँ ब्याहनी हैं। सारी बदमाशी का तोड़ लड़कियों के ब्याह पर होता है।" • "यहाँ भी यह मानकर चला गया था कि किसान गाय-भैंस की तरह मच्छर भी पालने को उत्सुक हैं। और उन्हें मारने के पहले किसानों का हृदय-परिवर्तन करना पड़ेगा। हृदय-परिवर्तन के लिये रोब की ज़रूरत है, रोब के लिये अंग्रेजी की जरूरत है।"
* "छोटे पहलवान बोले, जिस किसी की दुम उठाकर देखो, मादा ही नजर आता है।"
* "गुटबंदी परात्मानुभूति की चरम दशा का एक नाम है। उसमें प्रत्येक 'तू', 'मैं' को और प्रत्येक 'मैं', 'तू' को अपने से ज़्यादा अच्छी स्थिति में देखता है। वह उस स्थिति को पकड़ना चाहता है। 'मैं' 'तू' और 'तू' 'मैं' को मिटाकर 'मैं' की जगह 'तू' और 'तू' की जगह 'मैं' बन जाना चाहता है।"
* “वेदांत हमारी पंरपरा है और चूँकि गुटबंदी का अर्थ वेदांत से खींचा जा सकता है, इसलिये गुटबंदी भी हमारी परंपरा है, और दोनों हमारी सांस्कृतिक परंपराएँ हैं।"
* “आप बाँभन हैं और मैं भी बाँभन हूँ। नमक से नमक नहीं खाया जाता। हाँ!"
- चपरासी, प्रिंसिपल से
* "“कोई साला काम तो करता नहीं है, सब एक-दूसरे की इज्जत "
- - रुप्पन, रंगनाथ से
* “जनता के रुपये पर इतना दर्द दिखाना ठीक नहीं। वह तो बरबाद करते हैं।"
- गयादीन, मालवीय से
* "नैतिकता का नाम न लो मास्टर साहब, किसी ने सुन लिया तो चालान कर देगा।"
* "वहाँ लकड़ी की एक टूटी-फूटीं चौकी पड़ी थी। उसकी ओर उँगली उठाकर गयादीन ने कहां, नैतिकता, समझ लो कि यही चौकी है। एक कोने में पड़ी है। सभा-सोसायटी के वक्त पर इस पर चादर बिछा दी जाती है। तब बड़ी बढ़िया दिखती है। इस पर चढ़कर लेक्चर फटकार दिया जाता है। यह उसी के लिये है।"
* “संविधान एक कविता का नाम है जिसके अनुच्छेद 17 में छुआछूत खत्म कर दी गई है क्योंकि इस देश में लोग कविता के सहारे नहीं, बल्कि धर्म के सहारे रहते हैं और क्योंकि छुआछूत इस देश का एक धर्म है।" • "गांधी, जैसा कि कुछ लोगों को आज भी याद होगा, भारतवर्ष में ही पैदा हुए थे और उनके अस्थि-कलश के साथ ही उनके सिद्धांतों को संगम में बहा देने के बाद यह तय किया गया था कि गांधी की याद में अब सिर्फ पक्की इमारतें बनाई जाएँगी।"
* “चुनाव के चोंचले में कुछ नहीं रखा है। नया आदमी चुनो, तो वह भी घटिया निकलता है। सब एक-जैसे हैं।"
* “अपने देश का कानून बहुत पक्का है, जैसा आदमी वैसी अदालत।"
* "हिंदुस्तान में पढ़े-लिखे लोग कभी-कभी एक बीमारी के शिकार हो जाते हैं। उसका नाम 'क्राइसिस ऑफ कांशस' है।"
* “देखो दादा, यह तो पॉलिटिक्स है। इसमें बड़ा बड़ा कमीनापन चलता है। यह तो कुछ भी नहीं हुआ।"
- रुप्पन, रंगनाथ से
* "अगर हम खुश रहें तो गरीबी हमें दुखी नहीं कर सकतीं और गरीबी को मिटाने की असली योजना यही है कि हम बराबर खुश रहें।"
* "ये साली टेक्स्ट-बुकें, समझ लीजिये, सड़े-गले फल ही हैं। लौंडों के पेट में इन्हीं को भरते रहते हैं। कोई हज़म करता है, कोई कै करता है।"
- भाई, प्रिंसिपल से
* "एक पुराने श्लोक में भूगोल की एक बात समझाई गई है कि सूर्य दिशा के अधीन होकर नहीं उगता। वह जिधर ही उदित होता है, वहीं पूर्व दिशा हो जाती है। उसी तरह उत्तम कोटि का सरकारी आदमी कार्य के अधीन दौरा नहीं करता, वह जिधर निकल जाता है, उधर ही उसका दौरा हो जाता है।
* "प्रत्येक महापुरुष के इर्द-गिर्द 'बालक-बालकों' का मेला लगा हुआ है। पुरुष जब महापुरुष बन जाता है तो वह अपनी इज़्ज़त अपने 'बालक-बालकों' को सौंप देता है। 'बालक-बालक' उस इज़्ज़त को फींचना शुरू करते हैं।"
* "जब बैदजी वोट की भीख माँग रहे हैं तो मना कौन कर सकता है! हमें कौन वोट का अचार डालना है! ले जाएँ। बैदजी ही ले जाएँ।"
- इक्केवाला, सनीचर से
* “शिवपालगंज में सभी जानते थे कि गाँव-सभा का और उसके प्रधान का अमीर होना एक ही बात है। परिणामतः प्रधान का पद बड़ा ही लाभदायक और गुणकारी था।"
* “ये कॉलिज प्रायः किसी स्थानीय जननायक की प्रेरणा से शिक्षा-प्रचार के लिये, और वास्तव में उसके लिये विधानसभा या लोकसभा के चुनावों की ज़मीन तैयार करने के उद्देश्य से खोले जाते थे और उनका मुख्य कार्य कुछ मास्टरों और सरकारी अनुदानों का शोषण करना था।"
* "वास्तव में सच्चे हिंदुस्तानी की यही परिभाषा है कि इंसान जो कहीं भी पान खाने के इंतजाम कर ले और कहीं भी पेशाब करने की जगह ढूँढ ले।"
* "इस बार उस नौजवान ने, देश के औसत नौजवानों की तरह जो प्रेम अपने साथ पढ़नेवाली लड़कियों से और ब्याह अपने बाप के द्वारा दहेज की सीढ़ी से उतारकर लाई गई लड़की से करता है, कहा, "मैं कुछ नहीं जानता। पिताजी जैसा हुक्म देंगे, करूँगा।"
- नौजवान, गयादीन से
* “सोते को जगाया जा सकता है, पर कोई झूठमूठ सोने के बहाने पड़ा हो तो उसे कैसे जगाया जाए...!"
- बैदजी, गयादीन से
* "हमारे न्याय-शास्त्र की किताबों में लिखा है कि जहाँ-जहाँ धुआँ होता है, वहाँ-वहाँ आग होती है। वहीं यह भी बढ़ा देना चाहिये कि जहाँ बस का अड्डा होता है, वहाँ गंदगी होती है।"
* “देखो लंगड़, तुम्हारे कायदा-कानून जानने से कुछ नहीं होता। जानने की बात सिर्फ एक है कि तुम जनता हो और जनता आसानी से नहीं जीतती।"
- रंगनाथ
* "सच्चाई किस चिड़िया का नाम है? किस घोंसले में रहती है? कौन-से जंगल में पाई जाती है?" रुप्पन बाबू ठहाका मारकर हँसे, "दादा, यह शिवपालगंज है। यहाँ यह बताना मुश्किल है कि क्या सच है, क्या झूठ।"
- रुप्पन, रंगनाथ से
* रुप्पन मुँह लटकाकर बैठे हुए थे। वे भुनभुनाए, "मुझे तो लगता है दादा, सारे मुल्क में यह शिवपालगंज ही फैला हुआ है।"
- रुप्पन, रंगनाथ से
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