गद्य साहित्य || गद्य" शब्द की व्युत्पत्ति ||
गद्य साहित्य
"गद्य" शब्द की व्युत्पत्ति :- संस्कृत की "गद् धातु मे "यत" प्रत्यय लगने से हुई
गद् धातु का अर्थ - स्पष्ट करना या मानव की अभिव्यक्ति की मौलिक प्रक्रिया
- गद्य को ही कवियों की कसौटी माना गया है।
 
"गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति "।
- गद्य उन वर्णनात्मक साहित्य रचनाओं के लिए प्रयुक्त होता है जो काव्य - रचना के सम्पूर्ण लक्षणों से समन्वित, अतीव परिष्कृत संव आलंकारिक शैली में लिखी हुई हैं।
 
- काव्य के भेद③
 
- पद्य काव्य
 - गद्य काव्य
 - चंपू काव्य = दोनों की मिश्रित रचनाए "चंपू काव्य” कहलाती है।
 
गद्य काव्य के भेद :- ② →
(ⅰ) कथा
(ii) आख्यायिका :-
जब कोई लेखक कल्पना के आधार पर गद्य रचना करता है। तो उसे " कथा" कहा जाता है।(ⅰ) अग्निपुराण के अनुसार :
(ⅰ) कथा कवि कल्पित होती हैं।
(ii) कथा में वक्ता स्वयं नायक अथवा अन्य कोई और पात्र नायक होता है।
(ii) आ. रुद्रट के अनुसार :- :
(ⅰ) यह नायक का ही वक्ता होना आवश्यक नहीं मानते
(ii) इसमें उच्छवास जैसा कोई विभाजन नहीं होता और कथा मे वक्त्र, अपर-वक्त्र छंदों का प्रयोग नहीं होता हैं।
(iii) आ. विश्वनाथ :-
(1) कथा गद्य काव्य रस प्रधान होता है
(ii) कथानक गद्यो से ही विरचित होता हैं
(ⅲ) कथा में कही आर्या छंद और कही वक्त्र और अपरवक्त्र नामक छंद प्रयुक्त होते हैं
(iv) कथा के प्रारम्भ में श्लोकों के माध्यम से देवतादिकों के प्रति नमन के साथ ही दुष्टादिकों के चरित्र का वर्णन होता है
आख्यायिका :-
(ⅰ) आख्यायिका ऐतिहासिक इतिवृत पर आधारित होती हैं
(ⅱ) नायक स्वयं वक्ता होता है
(iii) यह एक तरह से आत्मकथा परक होती है
(iv) यह उच्छ्वासों में विभक्त होती हैं
(ii) आ-रुद्रट के अनुसार :-
(ⅰ) आख्यायिका का विभाजन उच्छ्वासों में होता है
(ii) आख्यायिका ऐतिहासिक इतिवृत्त पर आधारित होती हैं
(iii) आ. विश्वनाथ के अनुसार :-
(ⅰ) आख्यायिका कथा के समान होती हैं
(ii) जिस प्रकार कथा के अन्दर सरस वस्तु का आश्रय लेकर पद्यों से नमस्कार और दुष्टों के चरित्र का वर्णन होता है, उसी प्रकार आख्यायिका में भी होता है।
-) इसमें कहीं-कहीं पद्यों का प्रयोग भी किया जाता है।
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