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शिक्षा मनोविज्ञान || शिक्षा मनोविज्ञान की अवधारणा || शिक्षा मनोविज्ञान का विकास || Notes

         शिक्षा मनोविज्ञान की अवधारणा

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  •   शिक्षा मनोविज्ञान की अवधारणा
  • शिक्षा मनोविज्ञान का विकास
  • शिक्षक के लिए उपयोगिता
  • छात्र की दृष्टि से उपयोगिता
  • अभिभावकों की दृष्टि से उपयोगिता 
  • शिक्षा तथा मनोविज्ञान में सम्बंध या शिक्षा में मनोविज्ञान का योगदान/प्रभाव
  • विभिन्नताओं के आधार पर आयोजन

शिक्षा मनोविज्ञान का विकास :- 

• जे.जे. रूसो 1762 में प्रकाशित अपनी पुस्तक Emile- on Education में शिक्षा के मनोवैज्ञानिक आधारों पर बल दिया।

• इस पुस्तक के नायक बालक एमिल तथा बालिका सोफी के विकास का उल्लेख किया है।

• शिक्षा में मनोवैज्ञानिक प्रवृति को लानें का शुरूआती श्रेय पेस्टॉलाजी को दिया जाता है।

• पेस्टालॉजी के शिष्य फ्रेडरिक विलियम (1782-1852) अगस्त फ्रॉबेल जर्मनी के शिक्षाशास्त्री थे जिन्होनें छोटे बच्चों के लिए शैक्षणिक खिलौनों का विकास किया जिन्हें "फ्रॉबेल उपहार" कहते है। फॉब्रेल की शिक्षण विधि को किंडरगार्टन प्रणाली कहते है

• शिक्षा के क्षेत्र में खेल की अवधारणा का प्रथम प्रतिपादक फ्रॉबेल को ही माना जाता है।

• इटालियन चिकित्सक मेडम मारिया मोटेंसरी ने भी शिक्षा सुधार हेतु द डिस्कवरी ऑफ द चाईल्ड, सिक्रेट ऑफ चाईल्ड हुड, रिकन्स्ट्रक्शन इन एजुकेशन नामक पुस्तक लिखी। इनकी मोटेंसरी प्रणाली मुख्यतः 2-6 वर्ष के बच्चों हेतु है। मंदबुद्धि बालकों की चिकित्सा के दौरान इस प्रणाली का विकास किया गया।

• मोटेसरी प्रणाली में पाठ्यक्रम को चार भागों में विभाजित किया -कर्मेन्द्रीय शिक्षण, ज्ञानेन्द्रीय शिक्षण, भाषा और गणित

• अमेरिकन शिक्षा शास्त्री जॉन डीवी (1859-1952) प्रयोजनवादी विचारधारा के जनक है, इनके अनुसार शिक्षण समस्या समाधान की प्रक्रिया है। अपनी पुस्तक "डेमोक्रेसी एण्ड एजुकेशन" (1916) में कहा कि "शिक्षा लगातार अनुभव की पहचान एवं पुनःरचना है जॉन डीवी ने शिक्षा की त्रिस्तरीय प्रणाली बताया जिसमें शिक्षक छात्र एवं पाठ्यक्रम शामिल है। लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण छात्र है। अतः जॉन डीवी को बाल केन्द्रित शिक्षा का जनक माना जाता है।

* अमेरिका के स्टनले हॉल ने भी 1893 में अमेरिका में बाल अध्ययन आन्दोलन संचालित किया इसमें "चाईल्ड स्टडी सोसायटी", चाईल्ड वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन" जैसे संस्थाओं की स्थापना की।  1891 में स्टेनले हॉल ने "पेडागोजी सेमीनेरी" नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया।

* 1920 के दशक में तीन अमेरिकन मनोवैज्ञानिको ने शिक्षा मनोविज्ञान को एक स्वतंत्र शाखा के रूप में विकसित करनें में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

1. ई.एल. थॉर्नडाइक

2. स्टेनले हॉल

3. टरमन

• थॉर्नडाइक साईकोलॉजी" - 

1903 का प्रकाशन हुआ। यह शिक्षा मनोविज्ञान की प्रथम पुस्तक है। थॉर्नडाईक को प्रथम शिक्षा मनोवैज्ञानिक एवं शिक्षा मनोविज्ञान का जनक कहते है।

• शिक्षा मनोविज्ञान के प्रारम्भिक स्वरूप के निर्माता - पेस्टालोंजी शिक्षा मनोविज्ञान के आधुनिक स्वरूप के निर्माता- थॉर्नडाईक, टरमन, वाटसन, स्टेनले होंल इत्यादि को माना जाता है।

शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान का योगदान/उपयोगिता शिक्षा मनोविज्ञान न केवल अध्यापक बल्कि शिक्षार्थी, विद्यालय प्रबंधक, तथा अभिभावकों के लिए भी उपयोगी है

शिक्षक के लिए उपयोगिता :- 

(1) स्वयं का ज्ञान एवं तैयारी के लिए

(2) बाल व्यवहार एवं स्वभाव के ज्ञान हेतु

(3) बालक के विकास की अवस्थाओं का ज्ञान

(4) व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान

(5) छात्रों की आवश्यकताओं का ज्ञान

(6) कक्षागत समस्याओं का समाधान

(7) अनुशासन स्थापना में योगदान

(8)उपयुक्त शिक्षण विधियों, सूत्रों के चयन में सहायक

(9) मूल्यांकन विधियों का ज्ञान

(10) कक्षागत वातावरण को प्रभावी बनानें हेतु

(11) अधिगम प्रक्रिया के ज्ञान हेतु एवं अधिगम सिद्धान्तों का ज्ञान

(12) व्यवसायिक कुशलता में वृद्धि करनें हेतु

(13) समस्यात्मक बालकों के ज्ञान हेतु

(14) छात्रों को अभिप्रेरित करनें में सहायक

(15) शैक्षणिक एवं व्यवसायिक मार्गदर्शन हेतु

छात्र की दृष्टि से उपयोगिता :- 

(1) वंशानुक्रम एवं वातावरण के ज्ञान में।

(2) मानसिक क्रियाओं के ज्ञान में

(3) मूल प्रवृतियों एवं रूचि, अभिरूचि के ज्ञान में

(4) आत्म मूल्यांकन करनें में

(5) अभिप्रेरणा के ज्ञान हेतु

(6) शैक्षणिक एवं व्यवसायिक मार्गदर्शन प्राप्त करनें में।

अभिभावकों की दृष्टि से उपयोगिता :- 

(1) बालक की प्रकृति के ज्ञान

(2) विकास को प्रभावित करनें वाले कारकों का ज्ञान

(3) मूल प्रवृत्तियों, रूचियों, अभिरूचियों का ज्ञान

(4) बालकों की शैक्षणिक एवं बौद्धिक योग्यताओं का ज्ञान

(5) व्यवहार सुधार में उपयोगी

(6) बच्चों में होनें वाले परिवर्तनों को समझनें में। 

* शिक्षा तथा मनोविज्ञान में सम्बंध या शिक्षा में मनोविज्ञान का योगदान / प्रभाव :- 

(1) शिक्षा का स्वरूप बाल केन्द्रित होना।

(2) पाठ्यक्रम का निर्माण बालक की रूचि, अभिरूचि, आयु, क्षमता, आवश्यकता के अनुसार होना।

(3) शिक्षण विधियों में विविधता एवं नवीनता आना एवं परम्परागत विधियों के स्थान पर नवीन विधियों का प्रयोग होना।

(4) मूल्यांकन को व्यापक एवं सतत बनाना।

(5) पाठ्य सहगामी गतिविधियों का व्यक्तिगत

विभिन्नताओं के आधार पर आयोजन :- 

(6) बालक की रूचियों एवं मूल प्रवृत्तियों को महत्व देना।

(7) अनुशासन एवं दण्ड की अवधारणाओं में परिवर्तन आना।

(8) थकान एवं रूचि को ध्यान में रखकर समय विभाग चक्र का निर्माण करना।

(9) विद्यालय के वातावरण का आनन्ददायी एवं तनावमुक्त बनाया जाना।

(10) व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षण नियोजन।

(11) शिक्षण सूत्रों का अधिकाधिक उपयोग होना।

(12) दृश्य, श्रव्य, श्रव्य-दृश्य उपकरणों का उपयोग बढ़ना।

(13) शिक्षकों की योग्यता, व्यवहार का मनोवैज्ञानिक आधार पर निर्धारण।

(14) पाठ्यपुस्तकों के निर्धारण में बच्चों की रूचि, स्तर इत्यादि का ध्यान रखना।

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