अजमेर का चौहान राजवंश || राजस्थान इतिहास || RPSC & RSSSMB All Competition Exam Notes
अजमेर का चौहान राजवंश
चौहानों की उत्पत्ति के विभिन्न मत -
* चौहानों की उत्पत्ति के विषय में विद्वान एकमत नहीं है, कुछ प्रमुख विद्वानों के मत हम निम्नांकित सारणी से जान सकते है-
मत | संबंधित विद्वान/साक्ष्य |
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मतअग्नि कुण्ड | संबंधित विद्वान/साक्ष्यपृथ्वीराज रासो, नैणसी एवं सूर्यमल्ल मिसण |
मतसूर्यवंशी | संबंधित विद्वान/साक्ष्यअढ़ाई दिन के झोपड़े का लेख, पृथ्वीराज विजय, हम्मीर महाकाव्य, हम्मीर रासो, सुर्जन चरित्र, चौहान प्रशस्ति, बेदला शिलालेख, गौरीशंकर हीराचंद ओझा |
मतइन्द्र के वंशज | संबंधित विद्वान/साक्ष्यरायपाल का सेवाडी अभिलेख |
मतविदेशी मत (शक सीथियन) | संबंधित विद्वान/साक्ष्यकर्नल जेम्स टॉड, वी.ए. स्मिथ एवं विलियम क्रुक। |
मतब्राह्मणवंशी मत | संबंधित विद्वान/साक्ष्यडॉ. दशरथ शर्मा, डॉ. गोपीनाथ शर्मा, जान कवि के कायम खाँ रासो में, बिजौलिया |
मतचंद्रवंशी मत | संबंधित विद्वान/साक्ष्यहांसी शिलालेख (1167 ई. पृथ्वीराज द्वितीय), अचलेश्वर मंदिर का लेख। |
- शाकम्भरी/सांभर/सपादलक्ष एवं अजमेर के चौहान
- वासुदेव चौहान
- अजयराज (1105-1133 ई.)
- अर्णोराज (1133-1155 ई.)
- बीसलदेव चौहान / (विग्रहराज चतुर्थ) (1158-1163 ई.)
- पृथ्वीराज चौहान (1177-92 ई.)
* शाकम्भरी/सांभर/सपादलक्ष एवं अजमेर के चौहान *
* डॉ. दशरथ शर्मा के ग्रंथ 'अर्ली चौहान डायनेस्टी' के अनुसार :- चौहान (चाहमान) जांगल देश अर्थात् बीकानेर, जयपुर, उत्तरी मारवाड़ के रहने वाले थे और सपादलक्ष (सांभर) इनका मुख्य स्थान था एवं अहिच्छत्रपुर (नागौर) इनकी राजधानी थी।
* सपादलक्ष (सांभर) के चौहान वंश की प्रमुख शाखाएं थी - लाट के चौहान, धवलपुरी के चौहान, प्रतापगढ़ के चौहान, शाकम्भरी के चौहान, रणस्तम्भपुर के चौहान, नाडौल के चौहान, जाबालिपुर के चौहान, सप्तपुर के चौहान
* वासुदेव चौहान *
* बिजौलिया शिलालेख, हम्मीर महाकाव्य, सुर्जन चरित्र, प्रबंध कोष, अर्ली चौहान डायनेस्टी आदि साक्ष्यों के अनुसार सपादलक्ष के चहमानों (चौहानों) का आदि पुरुष वासुदेव चौहान था।
* इन्होंने 551 ई. के लगभग सपादलक्ष में 'चहमान' राज्य की स्थापना की तथा अहिच्छत्रपुर को राजधानी बनाया।
* बिजौलिया शिलालेख के अनुसार ये वत्स गोत्रीय ब्राह्मण थे। इन्होंने सांभर झील का निर्माण करवाया।
* वासुदेव के बाद चौहान शासकों के नाम क्रमशः सामंत, नृप, जयराज, विग्रहराज, चंद्रराज, गोपेन्द्र राज, दुलर्भराज प्राप्त होते है।
* प्रारम्भ में चौहान गुर्जर प्रतिहारों के सामंत थे परंतु गूवक प्रथम ने एक स्वतंत्र शासन स्थापित कर गुर्जरों की अधीनता से चौहानों को मुक्त किया। गूवक गुर्जर प्रतिहार शासक नागभट्ट का सामंत था।
* गूवक प्रथम के बाद चन्द्रराज-द्वितीय, गूवक द्वितीय, चन्दनराज तथा वाक्पतिराज प्रथम चौहान वंश के शासक बने। चन्दनराज की पत्नी आत्मप्रभा (रूद्राणी) पुष्कर झील में एक हजार दीपक जलाकर भगवान शिव की पूजा करती थी। वाक्पतिराज प्रथम पहला चौहान शासक था, जिसने महाराज की उपाधि धारण की। वाक्पतिराज प्रथम के बाद विन्ध्यराज सांभर का शासक बना।
* विंध्यराज के बाद सिंहराज (वाक्पतिराज प्रथम का पुत्र) सांभर का शासक बना। हर्षनाथ मंदिर प्रशस्ति (973 ई.) के अनुसार सिंहराज संभवत गुर्जर प्रतिहार देवपाल का सामंत था।
* सिंहराज ने चौहान शासकों में सर्वप्रथम 'महाराजाधिराज' की उपाधि धारण की।
* सिंहराज के समय में 961 ई. में हर्षनाथ मंदिर का निर्माण प्रारम्भ हुआ , जो विग्रहराज द्वितीय के समय पूर्ण हुआ। इस मंदिर में स्थित शिलालेख में चौहानों की आरम्भ से लेकर सिंहराज तक की वंशावली दी गई है।
* प्रारंभिक चौहान शासकों में सबसे प्रतापी शासक सिंहराज का पुत्र विग्रहराज-द्वितीय हुआ, जो 965 ई. के आसपास सपादलक्ष का राजा बना।
* इसने अन्हिलपाटन के प्रसिद्ध चालुक्य शासक मूलराज-प्रथम को पराजित करके कर देने को बाध्य किया तथा भडोंच में अपनी कुलदेवी आशापुरा माता के मंदिर का निर्माण करवाया। विग्रहराज द्वितीय की उपाधि खुर-रजोन्धकार और दुर्लध्यमेरू थी।
* 1973 ई. के हर्षनाथ (सीकर) के अभिलेख से विग्रहराज के शासन काल के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
* विग्रह राज के पश्चात् क्रमशः दुर्लभराज द्वितीय, गोविंदराज तृतीय व Π वाक्पति द्वितीय गद्दी पर बैठे।
* 'पृथ्वीराज विजय' नामक ग्रंथ में गोविंदराज तृतीय की उपाधि वैरीघरट्ट (शत्रु संहारक) मिलती है। फरिश्ता (एक मुस्लिम लेखक) के अनुसार इसने गजनी के मुस्लिम शासक को आगे बढ़ने से रोका था।
* वाक्पति द्वितीय ने मेवाड़ के शासक अम्बा प्रसाद को युद्ध में पराजित किया था।
* इसके पश्चात् वीर्थराम, चामुण्डराज, सिंहट व दुर्लभराज तृतीय शासक बने।
दुर्लभराज तृतीय ने गुजरात के राजा कर्ण से युद्ध किया तथा गजनी के इब्राहीम से युद्ध करता हुआ मारा गया।
* दुर्लभराज तृतीय के पश्चात् वीरसिंह और फिर विग्रहराज तृतीय शासक बने। विग्रहराज के बाद उसका पुत्र पृथ्वीराज प्रथम शासक बना।
* पृथ्वीराज प्रथम ने 1105 ई. में 700 चालुक्यों को जो पुष्कर के ब्राह्मणों को लूटने आये थे, मौत के घाट उतारा व परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की।
* इसके बारे में हमें विस्तृत जानकारी सीकर जिले के रैवासा के जीणमाता मंदिर से प्राप्त हुए 1105 ई. के शिलालेख से प्राप्त होती हैं। राजशेखर द्वारा रचित 'प्रबन्ध कोष' में इसे 'तुर्क सेना का विजेता' कहा गया है।
* अजयराज (1105-1133 ई.) *
* पृथ्वीराज प्रथम के पुत्र अजयराज के काल को गोपीनाथ शर्मा चहमानों के साम्राज्य का निर्माण काल मानते हैं।
* अजयराज ने मालवा के परमार शासक नरवर्मन को परास्त कर उसके सेनापति सुल्हण को बंदी बना लिया।
* अपने साम्राज्य को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने 1113 ई. में अजयमेरु (अजमेर) बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया। इन्होंने अजयमेरु में एक दुर्ग का निर्माण करवाया जिसे गढ़बीठली (तारागढ़) कहते हैं।
* पृथ्वीराज विजय के अनुसार उन्होंने गजनी के मुसलमानों को परास्त कर साम्राज्य की रक्षा की। इन्होंने चांदी और तांबे के सिक्के चलाये, जो अजयप्रिय द्रम्म कहे जाते हैं, इनके सिक्कों पर इनकी पत्नी सोमल देवी का नाम मिलता है।
* स्वयं शैव मतानुयायी होते हुए भी अजयराज धार्मिक सहिष्णु थे। अजयराज ने दिगम्बर व श्वेताम्बर जैन अनुयायियों के शास्त्रार्थ की अध्यक्षता की एवं पार्श्वनाथ मंदिर के लिए एक स्वर्ण कलश भेंट किया।
* अंत में अजयराज अपने पुत्र अर्णोराज को अपना राज्य सौंपकर पुष्कर चले गए।
* अर्णोराज (1133-1155 ई.) *
* अजयराज के बाद अर्णोराज ने 1133 ई. के लगभग अजमेर का शासन संभाला। इसने महाराजाधिराज, परमेश्वर, परमभट्टारक की उपाधि धारण की।
* अर्णोराज ने तुर्क आक्रमणकारियों, मालवा के नरवर्मन तथा चालुक्य शासक सिद्धराज जयसिंह व कुमारपाल को पराजित किया था।
* चालुक्य शासक सिद्धराज जयसिंह व अर्णोराज के बीच संघर्ष 1134 ई. में हुआ, पराजय के बाद जयसिंह ने अपनी पुत्री कांचन देवी का विवाह अर्णोराज के साथ करके उससे संधि कर ली।
* 1142 ई. में कुमारपाल चालुक्यों का शासक बना इसके व अर्णोराज के मध्य भी संघर्ष हुआ।
* 1150 के आस-पास इनमें मित्रता स्थापित हो जाती है और अर्णोराज अपनी पुत्री जल्हण का विवाह कुमारपाल के साथ कर देता है।
* प्रबंध चिंतामणी व प्रबंध कोश नामक ग्रंथों से ज्ञात होता है कि कुमारपाल व अर्णोराज के बीच यह युद्ध आबू के निकट हुआ था।
* अर्णोराज ने अजमेर में आना सागर झील व पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया था।
* अणोराज ने अजमेर में खरतरगच्छ के अनुयायियों के लिए भूमिदान दिया। 'देवबोध' और 'धर्मघोष' इनके समय के प्रकाण्ड विद्वान थे जिनको उसने सम्मानित किया था।
* अर्णोराज की उनके पुत्र जग्गदेव ने हत्या कर दी, पर जग्गदेव केवल तीन वर्ष ही शासन कर पाया।
* बीसलदेव चौहान / (विग्रहराज चतुर्थ) (1158-1163 ई.) *
* जग्गदेव के पश्चात् विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) 1158 ई. के लगभग अजमेर का शासक बना।
* उन्होंने गजनी के शासक अमीर खुशरुशाह (हम्मीर) व दिल्ली के तोमर शासक तंवर को परास्त किया एवं दिल्ली को अपने राज्य में मिलाया। दिल्ली पर अधिकार करने वाला यह प्रथम चौहान शासक था।
* विग्रहराज ने चालुक्य शासक कुमारपाल से पाली, नागौर व जालौर छीन लिये तथा भंडानकों को भी पराजित किया है।
* सोमदेव जो बीसलदेव का राजकवि था ने 'ललित विग्ग्रहराज' नाटक की रचना की। इसमें इन्द्रपुर की राजकुमारी देसल देवी व बीसलदेव के प्रेम प्रसंग का वर्णन है। इसके एक अन्य दरबारी विद्वान नरपति नाल्ह ने बीसलदेव रासो (राजमति व बीसलदेव के प्रेम प्रसंग का वर्णन) नामक ग्रंथ की रचना की थी।
* विद्वानों का आश्रयदाता होने के कारण जयानक भट्ट ने विग्रहराज को 'कवि बान्धव' (कवि बंधु) की उपाधि प्रदान की। स्वयं विग्रहराज ने 'हरिकेलि' नाटक की रचना की।
* इन्होंने अजमेर में एक संस्कृत पाठशाला का निर्माण (सरस्वती कण्ठाभरण नामक) करवाया जिसे कालांतर में मुहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने अढाई दिन के झोंपड़े में परिवर्तित कर दिया था। इस पाठशाला पर हरिकेली नाटक की पंक्तिया उत्कीर्ण थी।
* दिल्ली शिवालिक स्तम्भ लेख विग्रहराज के बारे में जानकारी देता है।
* वर्तमान टोंक जिले में बीसलपुर कस्बा एवं बीसल सागर बाँध का निर्माण भी बीसलदेव द्वारा करवाया गया। शैव मतावलम्बी होने के बावजूद धर्मघोष सूरी के आग्रह पर बीसलदेव ने एकादशी के दिन पशुवध पर रोक लगाई थी।
* इनके काल को चौहानों का 'स्वर्णयुग' भी कहा जाता है।
* विग्रहराज चतुर्थ के बाद अपरगांव और उसके बाद पुम्वीराज द्वितीय (इसकी पत्नी का नाम सुहाय देत्री था।) गद्दी पर बैठे जिसने 1169 ई. तक शासन किया। पृथ्वीराज ने यामीत्री वंश के खुशरूशाह मलिक को पराजित किया था।
* पृथ्वीराज द्वितीय की निःसंतान मृत्यु होने पर उनका चाचा (अणोराज का सबसे छोटा पुत्र, जो गुजरात की राजकुमारी कांचन देवी से पैदा हुआ था) सोमेश्वर अजमेर का शासक बना। सोमेश्वर की पत्री कर्पूरदेबी कलचुरी शासक अचल की पुत्री थी। सोमेश्वर ने प्रतापलंकेश्वर की उपाधि धारण की थी इसने अजमेर में कल्पवृक्ष का निर्माण करवाया था।
* कर्पूरदेवी से उनके पृथ्वीराज तृतीय और हरिराज नामक दो पुत्र हुए।
* पृथ्वीराज चौहान (1177-92 ई.) *
* अजमेर के चौहान वंश के अंतिम प्रतापी शासक पृथ्वीराज-तृतीय (राय पिथौरा) हुए, जिनका जन्म 1166 ई. में गुजरात की तत्कालीन राजधानी अन्हिलपाटन में हुआ था।
* पृथ्वीराज केवल 11 वर्ष की आयु में अपने पिता की मृत्यु के बाद शासक बने, प्रारम्भ में उनकी माता कर्पूर देवी, प्रधानमंत्री कंदबवास (कैमास) व सेनाध्यक्ष भुवनमल्ल का उन्हें सहयोग प्राप्त हुआ। स्कन्द, वामन, सोढ़, पद्मनाभ आदि पृथ्वीराज के अन्य मंत्री थे।
* पृथ्वीराज ने प्रारंभिक वर्षों में अपने विरोधियों चचेरे भाई नागार्जुन व भण्डानकों को पराजित किया। इससे उनका राज्य दिल्ली से अजमेर तक विस्तृत हो गया।
1182 ई. में पृथ्वीराज ने महोबा के चंदेल शासक परमार्दिदेव को हराकर (तुमुल का युद्ध) वहाँ अपना अधिकार किया। विजयी पृथ्वीराज पंजुनराय को महोबा का प्रशासक नियुक्त कर लौट आए।
* महोबा पर पृथ्वीराज के इस आक्रमण के दौरान चंदेलों के दो सेनानायक आल्हा व उदल अपने अद्भुत शौर्य के कारण इतिहास में अमर हो गये। दोनों इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गये।
* चालुक्यों पर विजय :- गुजरात के चालुक्यों और अजमेर के चौहानों के बीच दीर्घकाल से संघर्ष चला आ रहा था किन्तु सोमेश्वर के शासनकाल में दोनों के मैत्रीपूर्ण संबंध रहे। पृथ्वीराज तृतीय के समय यह संघर्ष पुनः चालू हो गया।
* पृथ्वीराज रासो के अनुसार संघर्ष का कारण यह था कि पृथ्वीराज तृतीय तथा चालुक्य नरेश भीमदेव द्वितीय दोनों आबू के शासक सलख की पुत्री इच्छिनी से विवाह करना चाहते थे।
* पृथ्वीराज रासो में संघर्ष का दूसरा कारण यह भी बताया है कि पृथ्वीराज तृतीय के चाचा कान्हा ने भीमदेव द्वितीय के सात चचेरे भाइयों को मार दिया था, इसलिए भीमदेव ने अजमेर पर आक्रमण कर नागौर पर अधिकार कर लिया तथा सोमेश्वर को मार डाला। यद्यपि इस कारण की सत्यता संदिग्ध हैं।
* खैर वजह जो भी हो 1184 ई. में दोनों पक्षों के बीच घमासान किन्तु अनिर्णायक युद्ध हुआ और अन्त में 1187 ई. के आस-पास चालुक्यों के महामंत्री जगदेव प्रतिहार के प्रयासों से दोनों में एक अस्थायी संधि हो गयी।
* इस युद्ध को नागौर का युद्ध भी कहा जाता है, क्योंकि यह संघर्ष नागौर की धरती पर हुआ था।
* चौहान-गहड़वाल वैमनस्य :- दिल्ली को लेकर चौहानों में और गहड़वालों में वैमनस्य एक स्वाभाविक घटना बन गयी थी। इसी प्रश्न को लेकर विग्रहराज चतुर्थ और विजयचन्द्र गहड़वाल में युद्ध हुआ था जिसमें विजयचन्द्र पराजित हुआ था।
* पृथ्वीराज के समय भी गहड़वालों से यह वैमनस्य जारी रहा, इस समय गहड़वाल शासक जयचंद था। जयचंद व पृथ्वीराज के मध्य संघर्ष का एक ओर कारण संयोगिता का पृथ्वीराज द्वारा अपहरण को भी माना जाता है।
* संयोगिता-कथा की ऐतिहासिकता :- इस कथा की सत्यता एवं ऐतिहासिकता के संबंध में इतिहासकार एक मत नहीं है। डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने इसे कपोल कल्पना मानते हुए कहा है कि प्रबन्ध कोष, हम्मीर महाकाव्य, पृथ्वीराज प्रबन्ध एवं प्रबन्ध चिन्तामणि, जैसे समकालीन ग्रन्थों में इस घटना का कोई जिक्र नहीं है।
* डॉ. रोमिला थापर एवं डॉ. आर. एस. त्रिपाठी ने भी इसे सही नहीं माना है। समकालीन फारसी तवारीखों में इस घटना का वर्णन नहीं मिलता किन्तु अबुल फजल ने इसका वर्णन अवश्य किया है।
* डॉ. दशरथ शर्मा का मत है कि :- हम्मीर महाकाव्य तथा रंभामंजरी में ढेर सारी गलतियां हैं तथा इनमें वर्णन न मिलने से सारी घटना को ही काल्पनिक मान लिया जाय यह उचित नहीं है। उन्होंने घटना की सत्यता को स्वीकार करते हुए बताया कि प्रेम जीवन का एक अंग है और वह सत्य एवं वास्तविक है। अतः यह घटना घटी हो तो कोई आश्वर्य नहीं।
* सी. वी. वैद्य एवं डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने भी इस कथा को स्वीकार किया है।
* तराइन के युद्ध (1191 एवं 1192 ई.): - पृथ्वीराज के समय भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में गौर-वंश का शासन था, जिसका नेता शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी था।
* सन् 1186 से 1191 ई. तक मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान से कई बार पराजित हुआ। हम्मीर महाकाव्य के अनुसार 07 बार, पृथ्वीराज प्रबंध में 08 बार, पृथ्वीराज रासो में 21 बार, प्रबंध चिंतामणि में 23 बार मोहम्मद गौरी के पराजित होने को उल्लेख है।
* अंत में 1191 ई. में मुहम्मद गौरी ने एक बड़ी सेना के साथ पृथ्वीराज पर आक्रमण कर दिया। वर्तमान करनाल (हरियाणा) के पास तराइन के मैदान में दोनों की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ, जिसमें मुहम्मद गौरी की पराजय हुई।
* पृथ्वीराज चौहान के सामंत गोविन्दराज ने अपनी बर्डी के वार से मुहम्मद गौरी को घायल कर दिया। घायल गौरी अपनी सेना सहित गजनी भाग गया।
* पृथ्वीराज ने तबरहिन्द पर अधिकार कर काजी जियाउद्दीन को बंदी बना लिया जिसे बाद में एक बड़ी धनराशि के बदले रिहा कर दिया गया परन्तु गौरी इस हार से निराश न हुआ और 1192 ई. में वह पुनः तराइन के मैदान में आ धमका।
* उसकी सेना में एक लाख बीस हजार के करीब कुशल घुड़सवार थे। लाहौर पहुँचकर उसने किवाम उल मुल्क नामक अपना दूत पृथ्वीराज के पास भेजा और अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा। ऐसा प्रकट होता है कि सुलह का नाटक उसने पृथ्वीराज को धोखे में रखने के लिए किया था।
* इस युद्ध में (तराइन का द्वितीय युद्ध 1192 ई.) पृथ्वीराज की हार हुई तथा भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना हुई।
* पृथ्वीराज को सिरसा के निकट सरस्वती नामक स्थान पर बंदी बना लिया गया।
* पृथ्वीराज न केवल वीर, साहसी एवं सैनिक प्रतिभाओं से युक्त थे अपितु विद्वानों एवं कलाकारों के आश्रयदाता भी थे।
* 'पृथ्वीराज रासो' का लेखक चन्दरबरदाई, 'पृथ्वीराज विजय' का लेखक जयानक, वागीश्वर, जनार्दन आशाधर, पृथ्वीभट्ट, विश्वरूप, विद्यापति गौड़ आदि अनेक विद्वान, कवि और साहित्यकार उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे।
* पृथ्वीराज के शासनकाल में अजमेर में 'सरस्वती कण्ठाभरण' नामक संस्कृत विद्यालय में 85 विषयों का अध्ययन-अध्यापन होता था। उसने तारागढ़ नाम के दुर्ग को सुदृढ़ता प्रदान की ताकि अपनी राजधानी की शत्रुओं से रक्षा की जा सके। पृथ्वीराज ने दिल्ली में पिथौरागढ़ के किले का भी निर्माण करवाया था।
* उन्होंने अजमेर नगर का परिवर्धन कर अनेक मंदिरों एवं महलों का निर्माण करवाया। राजस्थान के इतिहासकार डॉ. दशरथ शर्मा उनके गुणों के आधार पर ही उन्हें योग्य एवं रहस्यमयी शासक बताते हैं।
* पृथ्वीराज विजय के लेखक जयानक के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने युद्धों के वातावरण में रहते हुए भी चौहान राज्य की प्रतिभा को साहित्य एवं सांस्कृक्तिक क्षेत्र में पुष्ट किया।
* पृथ्वी राज अंतिम हिंद सम्राट कहा जाता है। रायपिथौरा व दल पुंगल उनकी उपाधियां थी।
* पृथ्वीराज की मृत्यु :- तराईन के द्वितीय युद्ध (1192 ई.) के बाद पृथ्वीराज की मृत्यु के बारे में भिन्न-भिन्न मत प्रचलित है।
* पृथ्वीराज रासो के अनुसार गौरी पृथ्वीराज को बंदी बनाकर गजनी ले गया, जहां पर पृथ्वीराज ने शब्द भेदी बाण से गौरी को मार डाला बाद में वहीं पर पृथ्वीराज की भी मृत्यु हो गई। यद्यपि यह मत सही नहीं माना जाता है।
* हम्मीर महाकाव्य में उल्लेख है कि जब पृथ्वीराज अपने घोड़े नाटारम्भ से नीचे उतर कर युद्ध कर रह थे, तो उन्हें बंदी बना लिया गया था।
* सल्तनतकालीन इतिहासकार हसन निजामी के अनुसार पृथ्वीराज ने गौरी के अधीनस्थ शासक के रूप में अजमेर पर शासन किया, हमें इस कथन के पक्ष में एक सिक्का भी प्राप्त हुआ है, जिसके एक ओर मुहम्मद-बिन-साम व दूसरी ओर पृथ्वीराज अंकित है।
* हसन निजामी के अनुसार जब गौरी को पता चला कि पृथ्वीराज उसे मारने का षड्यंत्र कर रहा है, तो उसने पृथ्वीराज को मारकर उसके पुत्र गोविंदराज को अजमेर का शासक बना दिया।
* सल्तनकालीन इतिहास मिनहाज-उस-सिराज के अनुसार पृथ्वीराज तराइन के मैदान में ही मृत्यु को प्राप्त हो गये थे।
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