ads

पुरस्कार - जयशंकर प्रसाद की कहानी Puraskar kahani jaishankar prasad in hindi

 "पुरस्कार: जयशंकर प्रसाद की कहानी Puraskar kahani jaishankar prasad in hindi

प्रिय पाठकों,........इस पोस्ट में हम हिंदी कहानियों के महत्वपूर्ण बिंदुओं को क्रमवार समाहित किया गया है। यदि आपको हमारे द्वारा किया गया यह प्रयास अच्छा लगा है, तो इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम हिंदी साहित्य के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।

जयशंकर प्रसाद का परिचय : - 

जयशंकर प्रसाद हिन्दी के गठान कवि होने के साथ-साथ एक महान कलाकार, नाटककार और उपन्यासकार भी थे। उनका जन्म काशी के एक सम्पन्न घराने में हुआ। प्रावजी बहुत ही गील साभाव वाले, गधुर मिलनसारी व्यक्ति थे। अपनी ननहारिका बुद्धिगता के कारन वे सबके प्रिय थे। संपेशील होने के कारण समाज के उसूलों पर सवाल उठाना उनके लिए कोई अनोखी बात नही थी। किसी भी मत को वह अंतिम नहीं मानते थे। इन्हीं गुणों के कारण उनकी कहानियों ने भी साहित्य में विशेष स्थान पाया ।
पुरस्कार कहानी "Puraskar kahani jaishankar prasad in hindi" में भी उनकी बही विचारधाराएँ झलकती दिखाई देती है।कक 


                                      "पुरस्कार: जयशंकर प्रसाद की कहानी Puraskar kahani jaishankar prasad in hindi

                                पुरस्कार कहानी 

रचनाकाल  - 1931ई.  - गोपालराम के अनुसार

* आँधी कहानी संग्रह - 1931 – में संकलित

बरसात का मौसम । आकाश में काले-काले बादलों की घुमड़ । बिजली की गड़गड़ाहट । ज़ोर से हवा चली और कुछ बूँदें बरसीं । जयघोष के बीच महाराज की सवारी आई ।

आज कोशल देश में कृषि-उत्सव मनाया जा रहा था।
इस दिन महाराज को एक दिन के लिए किसान बनना पड़ता था । जमीन के एक चुने हुए टुकड़े में वे हल चलाते । फिर बीज बोते थे।
जमीन के असली मालिक को जमीन की चार गुणा रकम देते थे । और खेत राजा के हो जाते थे।
उस साल मधूलिका की जमीन चुनी गई थी। कोशल के सभी निवासी उसकी जमीन पर जमा हो रहे थे।
राजा सवारी से उतरे । सुन्दर लड़कियों ने मंगलगान जया । पंडितों ने मंत्र पढ़े। फिर राजा ने ज़मीन पर हल चलाना शुरू किया । लोगों ने फूल और खील बरसाये । कोशल का यह उत्सव दूर-दूर तक मशहूर था ।इसमें भाग लेने के लिए दूसरे राज्यों से भी लोग आते थे । उस साल मगध का राजकुमार अरुण आया था ।

हल चलाने के बाद राजा को बीज बोना था । थाल में बीज उठाये मधूलिका राजा के साथ चल रही थी। सब लोग राजा को देख रहे थे। लेकिन अरुण मधूलिका को ! राजा ने धीरे-धीरे सारे बीज बो दिये । थाल खाली हो गया। राजा ने उसमें कुछ सोने के सिक्के डाल दिये। यह जमीन की कीमत थी ।

मधूलिका ने थाली को प्रणाम किया। फिर सिक्के उठाकर राजा पर वार दिए। और कहा, 'महाराज! यह मेरे बाप-दादा की जमीन है। मैं इसे ऐसे ही आप को देने को तैयार हूँ। पर बेचूँगी नहीं ।'
यह सुनते ही बूढ़े मंत्री चीखे, 'नासमझ ! राजा की कृपा का अपमान मत कर । आज से तू राज्य की सुरक्षा में है। इसे अपना भाग्य समझ ।'
राजा ने पूछा, 'कौन है यह लड़की ?'
'महाराज ! यह वीर सिंहमित्र की बेटी है । सिंहमित्र जिसने वाराणासी की लड़ाई में कोशल को मगध से बचाया था ।'
राजा कुछ सोचने लगे। फिर बिना कुछ कहे अपने शिविर की ओर लौट गये ।
जयघोष के साथ उत्सव पूरा हुआ ।
रात हुई पर राजकुमार अरुण की आँखों में नींद कहाँ ? अपने घोड़े पर सवार वह बाहर निकल पड़ा। घूमते-घूमते एक बरगद के पेड़ के पास पहुँचा।
पेड़ के नीचे, हाथ पर सिर रखकर मधूलिका सो रही थी । सोई हुई मधुलिका बहुत ही सुंदर और भोली जान पड़ती थी ! अरुण चुपचाप, एकटक उसे देख रहा था।
अचानक कोयल बोल उठी । मधूलिका की नींद टूटी। सामने एक अपरिचित को देख वह उठ बैठी।
अरुण बोला, 'मैं मगध का राजकुमार हूँ। आज सुबह तुम्हें उत्सव में देखा था । तभी से तुम्हारे साहस और सुंदरता का पुजारी बन गया हूँ।'
'मजाक न करो, राजकुमार। मैं आज बहुत दुखी हूँ। मेरा अपमान न करके मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो,' कहकर मधूलिका वहाँ से चल दी।
चोट खाकर राजकुमार लौट गया । मधूलिका कुछ देर तक उड़ती हुई धूल को देखती रही। आँखों में आँसू आ गये ।
मन ही मन मधूलिका ने जीवन को एक नए सिरे से शुरू करने का निश्चय किया ।
अपनी जमीन खोकर मधूलिका दूसरे के खेतों में कड़ी मेहनत करने लगी । रूखा-सूखा जो मिलता खाकर अपनी झोंपड़ी में सो जाती ।
इस तरह तीन साल बीत गये ।
सर्दियों की एक रात । मेघों से भरा आकाश । रह-रहकर बिजली चमक उठती थी । मधूलिका अपनी झोंपड़ी में बैठी ठिठुर रही थी। आज बहुत दिनों बाद उसे बीती हुई वह बरत याद आई । राजकुमार अरुण की प्यार-भरी बातें ! अब उसे दुख हो रहा था - उसे अरुण की बात मान लेनी चाहिए थी !

तभी, दरवाजे पर खट-खट हुई। 'कौन है यहाँ ? राही को शरण चाहिए,' बाहर से आवाज़ आई ।

दरवाज़ा खोलते ही बिजली चमकी । मधूलिका चिल्ला उठी, 'राजकुमार !' अरुण भी उसे देखकर हैरान था। कुछ रुक कर बोला, 'मैं बाग़ी हूँ। मुझे मगध से निकाल दिया गया है। मैं कोशल में रहने आया हूँ।'

मधूलिका हँस कर बोली, 'आपका स्वागत है ।'

बारिश बंद हो चुकी थी। कोहरे से धुली हुई चाँदनी में अरुण और मधूलिका बरगद के पेड़ के नीचे जा बैठे । मधूलिका आज बहुत खुश थी । अरुण कुछ संभल-संभल कर बातें कर रहा था।

'मैं नया राज्य स्थापित करूँगा । तुम्हें राजरानी बनाऊँगा। तुम मझसे प्यार करती हो न, मधूलिके !' अरुण ने उसके हाथों को दबाकर पूछा।

मधूलिका आज बहुत खुश थी। राजकुमार अरुण के पास बैठकर वह अपने सभी दुखों को भूल-सी गयी थी । सपनों की दुनिया में खोई थी मधूलिका जब अरुण बोला, 'नये राज्य की स्थापना करने में तुम्हें मेरी मदद करनी होगी ।'

'जो कहोगे, वही करूँगी !' मधूलिका ने कहा ।

और अरुण उसे अपनी योजना बताने लगा ।

मधूलिका राजा से मिलने उनके महल में गई। महाराज को प्रणाम करके बोली, 'तीन बरस हुए देव ! मेरी जमीन खेती के लिए ली गई थी।'

'अच्छा तो तुम उसकी कीमत माँगने आई हो। बोलो, तुम्हें क्या चाहिए ?'

'मुझे किले के दक्षिणी नाले के पास अपने खेत के बराबर की जमीन चाहिए ।'

राजा मान गए ।

किले के दक्षिणी नाले के पास की जमीन सैनिक- महत्त्व रखती थी। वहाँ सैनिक किले पर पहरा देते थे। जमीन मधूलिका को मिल जाने के बाद सैनिक वहाँ से हटा लिए गये।

अरुण अपनी सैनिक-टुकड़ी के साथ घने जंगल में छुप गया। वह वहाँ से राजा के किले पर हमला करने वाला था। यही उसकी योजना थी।

मधूलिका का दिल उसे धिक्कार रहा था। 'मेरे पिता ने कोशल को बचाया था। उनकी बेटी होकर मैं दुश्मन की मदद कर रही हूँ। नहीं, कभी नहीं !

यह सोचकर वह इधर-उधर भागने लगी। सामने से कोशल देश के सेनापति अपनी सैनिक-टुकड़ी के साथ आते हुए दिखाई दिये । वह उनके पैरों पर गिर पड़ी और बोली । 'आज रात किले पर चढ़ाई होगी। डाकू दक्षिणी नाले की ओर से आएँगे। जल्दी कुछ कीजिये ।'

सैनिक दक्षिणी नाले की ओर भागे ।
हमले की तैयारी करता हुआ अरुण पकड़ा गया।
इस तरह उस की योजना बेकार हो गई। उसे बंदी बना लिया गया। राजा ने उसे प्राण-दंड दिया।
फिर मधूलिका बुलाई गई। वह पागल-सी आकर खड़ी हो गई। राजा ने कहा, 'मधूलिका, मनचाहा पुरस्कार माँग ।'
'मुझे भी प्राण-दंड मिले !' कहती हुई वह बंदी अरुण के पास जा खड़ी हुई ।

                            पात्र एवं चरित चित्रण 

पुरस्कार कहानी में प्रमुख पात्र -
  •  मुख्य पात्र -  मधुलिका,अरुण 
  •  कहानी इन दो पात्रों के माध्यम से ही चरम तक पहुँचती है दोनो गतिशील पात्र हैं और कहानी के अंत तक दिखाई देते हैं' दोनों की मानसिक दशा को स्चनाकार द्वारा पाठको 'वे, समक्ष सफलतापूर्वक उजागर किया गया है'
  •  अरुण महत्वाकांशी एवं संघर्षशील पात्र है | 
  •  तथा सामंतवादी विचाराधारा का प्रतिनिधी है|
  • वहीं मधुलिका नारी सुलभ, कोमल, भावनाओं से मुक्त है इस कहानी में 'भी यह स्वाभिमानिनी, देश प्रेमिका, एवं आदर्श प्रेमिका के रूप में 'चित्रित हुई है-
  • मधुलिका के मानसिक इंद्र का चित्रण मनोहारी बन पड़ा। इन दो पात्रों' के अतिरिक्त राजा का चरित्र अपनी छाप छोड़ता हैं।

                                 संवाद / कथोपकथन 


सरल, रोचक एवं पात्रानुकूल हैं, प्रकृति चित्रण में तत्सम् शब्दावली का प्रयोग हुआ है। तथा पात्रों के क्रियाकलापों एवं आपसी वार्तालाप में बोलचाल की सामान्य भाषा का प्रभोग हुआ है।

रंस कप्तानी के संवाद पात्रानुकूल होने के साथ-२ उनकी मनोदशा को अभिव्यत करने में पूर्णतथा सफल सिध्द हुए हैं।

                                    भाषा-शैली

इतकी भाषा (पुरस्कारकहानी) – संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है' तथा इसमे काव्य के समान प्रवाह मयता है
इस कहानी में चित्रणात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।

 
                                        उद्देश्य

 इस कहानी में प्रेम एवं कर्तव्य के संघर्ष को चित्रित किया गया है
- कहानी का मुख्य उद्देश्य - व्यक्तिगत प्रेम पर राष्ट्रप्रेम और कर्तव्य की विजय दिखाना है

पुरस्कार कहानी में जयशंकर प्रसाद चालू प्रेम और कर्तव्य के साथ - २ चरित्रगत, प्रेम' का गौरव बनाए रखने में सफल हुए हैं

मत :- 

  1. पुरस्कार कहानी 'व्यक्तिगत हिता के स्थान पर राष्ट्रहित का भार्ग प्रशस्त करने पाली कहानी  है - नंददुलारे वाजपेयी
  2. # पुरस्कार कहानी कर्तव्य और निष्ठा के इन्द्र के कर्तव्य को उच्चतर सिद्ध करने वाली कहानी है - अगेय
  3. मैं पुरस्कार अतीत की पृष्टभूमि में निजी प्रेम और देशप्रेम की संवेदनाओं की टकराव के कारण एक अच्छी कहानी बन गई हैं, देशप्रेम की संवेदना इस कहानी को समकालीन, स्वाधीनता आंदोलन से अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ती है। - गोपाल राम
  4. # आँधी संकलन की कहानियों में चित्रित प्रेम अधिक सूक्ष्म, दद्वात्मक, गंभीर और उदात्त है - हरदयाल

नोट :-  इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम हिंदी साहित्य के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.