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हिंदी साहित्य – इतिहास लेखन की पद्धतियां, काल विभाजन और नामकरण | hindi sahity itihas lekhan ki paddhati kal vibhajan

हिंदी साहित्य – इतिहास लेखन की पद्धतियां, काल विभाजन और नामकरण | hindi sahity itihas lekhan ki paddhati kal vibhajan


इतिहास' शब्द की व्युत्पत्ति एवं अर्थ

'इतिहास' शब्द तीन शब्दों के योग से बना है







पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार इतिहास की परिभाषाएँ

1. हिरोदोतस / हिरोडोट्स / हेरोडोट्स -

समय - 484 ई. पूर्व से 425 ई. पूर्व तक
जन्म - यूनान (ग्रीक) के हैलीकारनेसस नामक स्थान पर
पुस्तक - हिस्टोरिया/हिस्टोरिका/द हिस्ट्रीज़
परिभाषा -"सत्य घटनाओं का क्रमबद्ध अध्ययन इतिहास है।"
हिरोडोट्स के संदर्भ में विशेष तथ्य -👇
1. हिस्ट्री (इतिहास) शब्द के प्रथम प्रयोक्ता।
2. इन्हें इतिहास का जनक माना जाता है।
3. इन्होंने इतिहास की व्याख्या भौतिकवादी दृष्टिकोण से की है।
4. इन्होंने इतिहास को खोज, गवेषणा एवं अनुसंधान के अर्थ में ग्रहण किया है।

 इन्होंने इतिहास के निम्नलिखित चार लक्षण बताये हैं-
(1) इतिहास वैज्ञानिक विधा है।
(2) इतिहास मानव जाति से संबंधित होता है।
(3) इतिहास तर्कसंगत विधा है।
(4) इतिहास शिक्षाप्रद विधा है।

भारतीय आलोचक के अनुसार हिंदी साहित्य के इतिहास की परिभाषाऐ*
1 डॉ नगेंद्र के अनुसार - समय 1915 से 1999 ई परिभाषा - हिंदी साहित्य का इतिहास युग चेतना और साहित्य चेतना के समन्वय

पर आधारित साहित्य के इतिहास के संश्लिष्ट स्वरूप को हमें स्वीकार करना चाहिए

2. डा. गणपति चंद्र गुप्त के अनुसार - अतीत के किसी भी तथ्य तत्व या प्रवृत्ति का वर्णन , विवरण , विवेचन ,विश्लेषण , आदि काल विशेष या कार्यक्रम की दृष्टि से किया गया हो

3. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार - समय 1884 से 1941 ई

परिभाषा - प्रत्येक देश का साहित्य वहां की जनता के चित्तवृति का संचित प्रतिबिंब होता है तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता है आदि से अंत तक इन्हीं चित्तवृतियों की परंपरा को परखते हुए साहित्य परंपरा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही इतिहास कहलाता है

पुस्तक - हिंदी साहित्य का इतिहास
रचना - 1929 ई
4. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के अनुसार - साहित्य की प्रगति , परंपरा , निरंतरता और विकास को पहचानना ही साहित्य के इतिहास का प्रयोजन है

कथन - साहित्य का इतिहास ग्रंथों और ग्रंथकारों के उद्भव और विलय की कहानी नहीं वह काल स्त्रोत मैं बहे आते हुए जीवंत समाज की विकास कथा है ग्रंथकार और ग्रंथ उसे प्राण धारा की ओर सिर्फ इशारा करते हैं वह ही मुख्य नहीं है मुख्य है वह प्राण धारा जो नाना परिस्थितियों से गुजरती हुई आज हमारे भीतर अपने आप को प्रकाशित कर रही है साहित्य के इतिहास में हम अपने आप को पढ़ने का सूत्र पाते हैं

5. डॉ बच्चन सिंह के अनुसार - जन्म - 1919 ई. जौनपुर

निधन - 2008 ई में
इनकी पुस्तक - आधुनिक हिंदी साहित्य का इतिहास की भूमिका मैं * हिंदी साहित्य का इतिहास का विकास क्रम प्रकृति की तरह कार्य कारण श्रृंखला से बंधा हुआ नहीं रहता है इतिहास मनुष्य का ही होता है वह एक मानवीय तत्व एवं ऐतिहासिक घटनाएं और परिवेश के अलावा मनुष्य की आकांक्षाओं और निर्णय के क्रि‌याकलाप आदि पर भी बहुत कुछ निर्भर करती है
इतिहास अतीत से उन्मुख नहीं बल्कि भविष्य से उन्मुख होता है
वह जड़ नहीं गत्यात्मक होता है‌



हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की पद्धतियां


हिंदी साहित्य – इतिहास लेखन की पद्धतियां, काल विभाजन और नामकरण | hindi sahity itihas lekhan ki paddhati kal vibhajan

1. वर्णानुक्रम पद्धति : इसमें लेखकों और कवियों का परिचय उनके किया जाता है नाम के अनुसार किया जाता हे

इस पद्धति में 'क' नाम से प्रारंभ होने वाले कबीर और केशव का विवेचन एक साथ किया जाएगा भले ही वह कार्यक्रम की दृष्टि से अलग-अलग हो
* गार्सा - द- तासी व शिव सिंह सेंगर ने अपने इतिहास ग्रन्थ में इसी पद्धति का प्रयोग किया है

विशेषताएं – अमनोवैज्ञानिक पद्धति
अवैज्ञानिक पद्धति
शब्दकोशीय पद्धति
यह इतिहास लेखन की सबसे प्राचीन पद्धति है

2. कालानुक्रम पद्धति :    इसमें कवियों व लेखकों का परिचय उनके कार्यक्रम के अनुसार या जन्मतिथि के अनुसार दिया जाता है
* जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन व मिश्र बधुओं ने इस पद्धति को अपनाया

विशेषताएं-
मनोवैज्ञानिक पद्धति
अवैज्ञानिक पद्धति
इतिहास लेखन के सबसे लोकप्रिय पद्धति रही है
*यह ग्रंथ कवि वृत संग्रह बनकर रहते हैं
* युगीन परिस्थितियों के संदर्भ में कवियों का विश्लेषण नहीं है

3 विधेयवादी पद्धति : इतिहास लेखन की सर्वाधिक उपयोगी सर्वोत्कृष्ट पद्धति

जन्मदाता - तेन / बेन महोदय
इस पद्धति का प्रयोग सर्वप्रथम आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कियाजाति वातावरण और क्षण विशेष परिस्थितियों का विश्लेषण
विशेषताएं या दोष - साहित्य कार या काव्य रचयिता के व्यक्तित्व एवं
उसकी प्रतिभा के सर्वथा उपेक्षा कर दी गई है। = हडसन

4. वैज्ञानिक पद्धति:

तथ्य + शोध + क्रमबद्धता + तटस्थता+ निरपेक्षता = वैज्ञानिकता
इतिहास तथ्य संकलन ना होकर व्याख्या एवं विश्लेषण की अपेक्षा भी करता

5. समाजशास्त्रीय पद्धति : मार्क्स के द्वंदात्मक एव भौतिकवाद सिद्धांत के आधार पर


समाज+ व्यक्ति वह पद्धति जिसमें इतिहासकार किसी रचनाकार एवं रचना का मूल्यांकन इस दृष्टि से करता है कि रचनाकार ने समाज से क्या-क्या ग्रहण किया है तथा समाज पर क्या प्रभाव डाला है

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने - अपने इतिहास संबंधी रचनाओं में इस पद्धति का प्रयोग किया है

विधेयवादी + समाज शास्त्रीय+ आचार्य प्रसाद द्विवेदी

सांस्कृतिक चिंतनधारा का स्वाभाविक विकास पर आधारित दृष्टि = संतुलित इतिहास लेकन





2. भक्तमाल - रचना - नाभादास

रचनाकार - अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग काल बताया है

* डॉ रामकुमार वर्मा के अनुसार - विक्रम संवत - 1642 सर्वमान्य समय

* आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार - संवत 1642 के बाद

* डॉ नगेंद्र के अनुसार - 1596 ई

* महावीर सिंह गहलोत के अनुसार - 1658 ई

यह ग्रंथ 200 भक्त कवियों का परिचय एवं 316 छपप्य छंदों में दिया गया है
विशेष – तुलसी का परिचय सबसे पहले इसी रचना से प्राप्त होता है
तुलसी को विशेष आदर देते हुए नाभादास ने तुलसी को
अपने इस ग्रंथ का सुमेर कहा है

3 मूल गोसाई चरित्र - रचनाकार - बेनी माधव दास

तुलसी के शिष्य
रचना काल - विक्रम संवत 1687
इसमें दोहा चौपाई छंदों में तुलसी का जीवन चरित्र वर्णित है

4 भक्त नामावली - रचनाकार - ध्रुव दास

रचनाकाल - विक्रम संवत 1698
इसमें ध्रुव दास के 116 भक्त कवियों का संक्षिप्त जीवन चरित्र वर्णित ह

5 कालिदास हजारा - रचनाकार - कालिदास त्रिवेदी

रचना काल - विक्रम संवत 1775
इसमें 212 कवियों और लगभग 1000 कविताओं का संकलन है
कुछ कवियों का संक्षिप्त जीवन परिचय भी इसमें प्राप्त होता है
इसके आधार पर शिव सिंह सिंगर ने शिव सिंह सरोज लिखा

6. सरकवि गिरा विलास - रचनाकार - बलदेव

रचना काल - विक्रम संवत 1803
इसमें 17 कवियों की रचनाओं का परिचय है
इनमें से मुख्य कवि केशवदास चिंतामणि मतिराम बिहारी घनानंद आदि

7. राग सागरोद्भव राग कल्पद्रूम - रचनाकार - कृष्णानंद विकास देव

रचना काल - विक्रम संवत 1900
इस रचना में कृष्ण के उपासक 200 से अधिक कवियों की कविताओं का संकलन है

8. गुरुग्रंथ साहिब - रचनाकार - गुरु अर्जन देव

इसमें कबीर दास , नानक , नामदेव , रैदास , गुरु नानक , आदि संतों के पद संकलित है
काल विभाजन और नामकरण

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का काल विभाजन:

वीरगाथा काल : (1050 - 1375 वि.)

भक्ति काल : (1375 - 1700 वि.)

रीति काल : (1700 - 1900 वि.)

गद्य काल : (1900 वि. से आगे...)

जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन का काल विभाजन:

1 चारण काल
2 15वीं शताब्दी का धार्मिक पुनर्जागरण
3 जायसी की प्रेम कविता
4 ब्रज का कृष्ण भक्ति संप्रदाय
5 मुगल दरबार
6 तुलसीदास
7 रिति काव्य
8 तुलसी के अन्य परवर्ती
9 18वीं शताब्दी
10 कंपनी के शासन में हिंदुस्तान
11 महारानी विक्टोरिया के शासन में हिंदुस्तान












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