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राजस्थान पशुधन || 20वीं पशुगणना 2019 के अनुसार || राजस्थान पशु सम्पदा नोट्स | भूगोल

राजस्थान पशुधन || 20वीं पशुगणना 2019 के अनुसार 

प्रत्येक पाँच वर्ष बाद राज्य में पशुगणना राजस्व महंत द्वारा की जाती रही है, जबकि इस बार 20वीं पशुगणना का कार्य राजस्व मण्डत (अजमेर) व पशुपालन निदेशालय (जयपुर) द्वारा संयुक्त रूप से की गई थी।

- प्रथम पशुगणना वर्ष 1919 में की गई।

- स्वतंत्रता के पक्षात् पहली पशुगणना वर्ष 1951 में की गई।

राजस्थान पशुधन


* 19वीं पशुगणना 2012 में की गई थी।
- नवीनतम 20वीं पशुगणना 2019 में हुई थी।
- 20वीं पशुगणना की शुरुआत 1 अक्टूबर, 2018 को की गई।
20वीं पशुगणना पूर्णरूप से डिजिटल पशुगणना थी।
2019 की पशुगणना में दो राज्य प्रशासन (State Admin) बनाए गए जिसमें राजस्व मण्डल (अजमेर)
- पशुपातन निदेशालय (जयपुर)
20वीं पशुगणना में प्रत्येक जिले में पशुगणना अधिकारी के रूप में जिला कलेक्टर को नियुक्त किया गया।
- 20वीं पयुगणना के आंकड़े का प्रकाशन 16 अक्टूबर, 2019 में किया गया।
- देश के कुल दुध उत्पादन में राज्य का योगदान 13 प्रतिशत व ऊन उत्पादन में 37 प्रतिशत है।
- राजस्थान में देश का 7.24 प्रतिशत गौवंश, 12.47 प्रतिशत भैस, 14.00 प्रतिशत बकरियाँ, 10.64 प्रतिशत भेड़ व 84.43 प्रतिशत ऊँट है।

20वीं पशुगणना के आंकड़े-

- देश के कुत पशुधन का 10.60 प्रतिशत पशुधन राजस्थान में उपलब्ध है।
- पशुधन की दृष्टि से देश में राजस्थान का द्वितीय स्थान है (प्रथम स्थान उत्तर प्रदेश)।
- 20वीं पशु गणना के अनुसार राज्य में कुल पशु सम्पदा 568 लाख है।
- 19वीं पशुगणना के अनुसार राज्य में कुत सम्पदा 577 ताख है।
- वर्ष 2012 के सापेक्ष वर्ष 2019 में कुल पशु सम्पदा में 1.66 प्रतिशत की कमी आई है।
- 2007 की 18वीं पशुगणना प्रथम बार पशुओं की नस्त के आधार पर की गई।

गौवंशः-

- 2019 की पशुगणना में राजस्थान में गौवंश 139 लाख है और गौवंश की दृष्टि से देश में छठा स्थान है।
- 2012 की 19वीं पशुगणना में गौवंश की संख्या 133 लाख थी।
- 19वीं पशुगणना के सापेक्ष 20वीं पशुगणना में 4.60 प्रतिशत गौवंश में वृद्धि हुई है।
- राजस्थान में सर्वाधिक गौवंश बीकानेर में व न्यूनतम धौलपुर में जिले में पाए जाते हैं।


1. राठी = (श्रीगंगानगर, जैसलमेर, बीकानेर )
       इसे राजस्थान की कामधेनु कहा जाता है।
       यह दूध उत्पादन हेतु प्रसिद्ध है।
       यह लालसिंध व साहीवाल का क्रॉस है।

2. थारपारकर = (बाड़मेर, जोधपुर व जैसलमेर)
           मूल स्थान- सिंथ (पाकिस्तान) व मालाणी (बाड़मेर)।

3. कांकरेज = (बाड़मेर, जालोर व पाली)
          मूल स्थान- कच्छ का रण (गुजरात) जो कृषि कार्य में उपयोगी।
          बैल मजबूत कद काठी के होते हैं।

4. सांचौरी = (उदयपुर, पाली, सिरोही, जालोर)
           कृषि कार्यों में उपयोगी।

5. नागौरी = (बीकानेर व नागौर क्षेत्र में)
         यह नस्ल भारवाहक व कृषि कार्य में उत्तम होते हैं।
         उत्पत्ति स्थान - सुहालक (नागौर) 
         यह दौड़ने में तेज व फुर्तीले होते हैं।

6. गिर = ( अजमेर, भीलवाड़ा, पाली)
        इसे अजमेरिया या रेंडा नस्ल भी कहते हैं
        उत्पत्ति स्थान- काठियावाड़ (गुजरात) 
        डेयरी उद्योग के लिए लाभदायक।

7. मालवी = (कोटा, झालावाड़, उदयपुर)
         मूल स्थान - मालवा (उत्तर प्रदेश) 
         यह दुग्ध हेतु प्रसिद्ध है।

8. हरियाणवी = श्रीगंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर
            बैल कृषि कार्य में उपयोगी होते हैं। इ
           इनके माथे की हड्डी उभरी हुई होती है।

9. मेवाती = अलवर व भरतपुर
         इसे कोठी नस्ल भी कहते हैं। 
         इसके बैल मजबूत कद काठी के होते हैं।

विदेशी गोवंश:-

- भारत की सबसे बड़ी गोशाला- पथमेड़ा (जालोर) में स्थित है और यहाँ पर गौमूत्र बैंक व गौमूत्र रिफाईनरी लगाई गई है।
- राजस्थान का बजावास गाँव बैल हेतु प्रसिद्ध है।
राज्य का एकमात्र हिमकृत सीमन बैंक, बस्सी (जयपुर) में स्थित है।

- राजस्थान में सर्वाधिक विदेशी गौवंश जयपुर में व न्यूनतम बाड़‌मेर में जिले में पाए जाते हैं।


1. जर्सी = अमेरिका

        छोटी उम्र में दूध देना प्रारंभ करती है

2. हॉलिस्टिन = अमेरिका व हॉलैण्ड

            शरीर पर काले सफेद चक्ते ।

           सर्वाधिक दूध देने वाली नस्ल होती है। 

रेड-डेन = डेनमार्क

         यह गहरे रंग की होती है।

         इसके दूध में वसा की मात्रा 4 प्रतिशत होती है।

1. भैंस:-

- 20वीं पशुगणना में राजस्थान में भैंस की संख्या 137 लाख हैं और भैंस की दृष्टि में देश में दूसरा स्थान है।

- 9वीं पशुगणना में भैंस की संख्या 130 ताख थी।

- 2012 की पशुगणना की तुलना में 2019 की पशुगणना में भैंस में 5.53 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- राज्य में सर्वाधिक भैस जयपुर व न्यूनतम जैसलमेर में पाई जाती है।

भैंस की नस्लें:-


1. मूर्रा नस्ल:-
- यह नस्त हरियाणा के सीमावर्ती क्षेत्रों में पाई जाती है।
- इस नस्ल की भैंस को कुंडी भैंस भी कहते हैं।
- इस नस्ल की भैंस के सींग जलेबीनुमा होते हैं।
- इसका मूल स्थान मोठगुमरी (पाकिस्तान) है।
- इसका दूध उत्पादन लगभग (20-25 लीटर) होता है।
- इसके दूध में सामान्यतः 7-8 प्रतिशत वसा होती है।

2. सूरती नस्ल:-
- यह गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्र में पाई जाती है।
- इनका मूल स्थान सूरत (गुजरात) में है।

3. जाफराबादी:-

- यह दक्षिणी राजस्थान में पाई जाती है।
- यह सर्वश्रेष्ठ मादा ताकतवर जानवर होती है।
- इनका मूल स्थान गुजरात में है।

4. भदावरी:- 

-यह पूर्वी राजस्थान में पाई जाती है।
- यह राजस्थान की सबसे सुन्दर नस्त होती है।
-इसके दूध में सर्वाधिक वसा की मात्रा (13 प्रतिशत) होती है।

5. नागौरी नस्लः- 

-यह मध्यवर्ती राजस्थान में पाई जाती है।

- इस नस्त के भैसों का उपयोग कृषि कार्य में किया जाता है।

 2.भेड़:-
- राजस्थान में 2019 की पशुगणना के अनुसार भेड़ों की संख्या 79 लाख है।
- वर्ष 2012 की पशुगणना में भेड़ों की संख्या 90 लाख थी।
भेड़ों की दृष्टि से राजस्थान का देश में चौथा स्थान है।
- वर्ष 2012 की तुलना में वर्ष 2019 की पशुगणना में भेड़ों की संख्या में 12.95 प्रतिशत की कमी आई है।
- राजस्थान में सर्वाधिक मात्रा में भेड़ बाड़मेर जिले में पाई जाती है।
- राजस्थान में न्यूनतम मात्रा में भेड़ बाँसवाड़ा जिले में पाई जाती हैं।

भेड़ की नस्लें:-


1. चोकला:-
- यह नस्त शेखावाटी (चूरू, सीकर, झुंझुनूँ) बीकानेर, जयपुर नागौर क्षेत्र में पाई जाती है। यह ऊन हेतू प्रसिद्ध नस्त है।
- इस नस्ल को भारतीय मेरिनो भी कहते हैं।
- इस नस्त को 'द्वापर नस्त भी कहते हैं।

2. सोनाड़ी:-

- यह नस्ल उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ में पाई जाती है।

 - इस नस्ल को चनोधर भी कहते हैं। 

- इस नस्त की ऊन का उपयोग गतीचा निर्माण में किया जाता है।

3. मालपुरी:-
- यह राजस्थान के टोंक, जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, सवाईमाधोपुर, बूंदी जिलों में पाई जाती है। 

- इस नस्त को देशी नस्त भी कहते हैं।

 इस नस्ल की ऊन का उपयोग गलीचा निर्माण में किया जाता है।

- 4. मारवाड़ी:-
-यह नस्ल जालोर, नागौर, पाली, बाड़मेर, जोधपुर, उदयपुर व अजमेर में पाई जाती है।
-इस नस्ल से वर्ष भर में सर्वाधिक मात्रा में ऊन प्राप्त होती है।
- इस नस्ल की राजस्थान राज्य में 50 प्रतिशत भेड़ें पाई जाती है।
- यह लम्बी दूरी की यात्रा तय करने में सक्षम होती है।
- इस नस्ल में रोग प्रतिरोधकता क्षमता सर्वाधिक मात्रा में पाई जाती है।

5. पूगल:-
- यह नस्त राजस्थान के बीकानेर, जैसलमेर जिलों में पाई जाती है।
- इसे स्थानीय भाषा में चोकला कहते हैं।

6. नाली:-
- यह राजस्थान में श्रीगंगानगर, चूरू एवं झुंझुनूं जिलों में पाई जाती है।
- इनसे लम्बे रेशे वाली ऊन प्राप्त की जाती है।

7. खेरी:-
- यह जोधपुर, नागौर व पाली जिले में पाई जाती है।
- इस नस्ल के सींग हल्के होते हैं।
- यह एक घुमक्कड़ नस्ल है, जिसे स्थानीय भाषा में रेवड़ कहा जाता है।

8. मगराः-
- यह राजस्थान के बीकानेर, जैसलमेर एवं नागौर जिलों में पाई जाती है।
इस नस्त को बीकानेरी चोकला भी कहते हैं।

भेड़ की विदेशी नस्लः-
भेड़ों की रुसी नस्ल रूसी मेरिनो में पाई जाती है।
- इस नस्त को डोर्सेट, रेम्बुते, कोरिडेल नाम से जाना जाता है।
- राजस्थान में सर्वाधिक विदेशी नस्त की भेड़ झुंझुनूं व न्यूनतम कोटा में पाई जाती है।

3.बकरी:-
- 2019 की पशुगणना के अनुसार बकरियों की संख्या 208 लाख है।
- बकरियों की दृष्टि से राजस्थान का देश में प्रथम स्थान है।
- वर्ष 2012 की पशुगणना में बकरियों की संख्या 216 ताख थी।
- वर्ष 2012 की पशुगणना के सापेक्ष वर्ष 2019 की पशुगणना में बकरियों की संख्या में 3.81 प्रतिशत की कमी आई है।
-राजस्थान में सर्वाधिक बकरियाँ बाड़मेर व न्यूनतम धौलपुर में पाई जाती है।
- बकरी को राजस्थान में 'गरीब की गाय कहते हैं।
- इसे चलता-फिरता फ्रिज' कहा जाता है।
- इसके मांस को चेवण या चेवणी कहा जाता है।
- यह सर्वाधिक मात्रा में बाड़मेर में पाई जाती है।

बकरी की नस्लें:-


1. मारवाड़ी (लौही):- यह पश्चिमी राजस्थान में पाई जाती है।
- इसे मांस उत्पादन हेतु पाला जाता है।

2. झखरानाः-

 यह राजस्थान के अलवर में पाई जाती है।
- यह सर्वाधिक दूध उत्पादन वाली नस्त है।

3. बरबरी:-

 यह पूर्वी राजस्थान में पाई जाती है।
- इस नस्त को राजस्थान में शहरी बकरी भी कहते हैं।
- इस नस्ल की बकरी सबसे सुन्दर होती है।
- यह नस्त सर्वाधिक प्रजनन क्षमता हेतु सक्षम होती है।

4. शेखावाटी:-

 यह शेखावाटी क्षेत्र की बिना सींग वाली बकरी होती है।
- इस नस्ल की बकरी को 'मोढी बकरी कहते हैं।
- इसे काजरी द्वारा विकसित किया गया है।

5. जमनापरी:- 

यह नस्त हाड़ौती क्षेत्र में पाई जाती है।

- इस नस्त को माँस प्राप्ति एवं दूध हेतु पाता जाता है।

- 6. परबतसरी:-

 यह नस्त नागौर और उसके आस-पास के क्षेत्रों में पाई जाती है। 

इस नस्त को माँस प्राप्ति हेतु पाता जाता है।
# बकरी विकास एवं चारा उत्पादन परियोजनाः-
- इस परियोजना का प्रारंभ वर्ष 1981-82 में रामसर (अजमेर) से हुआ।
- इस परियोजना को स्विजरलैंड के सहयोग से प्रारंभ किया गया।
4. ऊँट:-
- 20वीं पशुगणना के अनुसार ऊँटों की संख्या 2.12 लाख है।
- ऊँटों की दृष्टि से राजस्थान का देश में प्रथम स्थान है।
 -वर्ष 2012 की पम्युगणना में ऊँटों की संख्या 3.25 लाख है।
- वर्ष 2012 की पशुगणना की तुलना में वर्ष 2019 की पशुगणना में ऊँटों की संख्याओं में 34.69 प्रतिशत की कमी आई है।
- इसे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है।
- राजस्थान में सर्वाधिक ऊँट जैसलमेर में पाए जाते हैं।
- राजस्थान में न्यूनतम ऊँट झालावाड़ में पाए जाते हैं।
- राज्य में तीन स्थानों के ऊँट प्रसिद्ध है-

ऊँट की नस्ले - 


1. बीकानेरी ऊँट:-

 ये बीकानेर में पाए जाते हैं। ये बोझा ढोने हेतु प्रसिद्ध है।


2. नाबना ऊँट:-

- जैसलमेर में अपनी तेज चाल हेतु पूरे भारत में प्रसिद्ध है।

- ये BSF द्वारा पाले जाते हैं, जो बॉर्डर की निगरानी हेतु उपयोग में लिया जाता है।
- ऊँट को रेबारी/राइका जाति के लोग पालते हैं।
- रोग- ऊँटों में सर्रा रोग सर्वाधिक होता है। 

- सर्रा रोग होने पर पाबूजी री फड़ बाँची जाती है, इसलिए पाबूजी को - ऊँटों का देवता कहा जाता है।
-ऊँट प्रजनन एवं अनुसंधान केन्द्र जोहड़‌बीड़ (बीकानेर) में स्थित है। 

-अब इस केन्द्र को निदेशालय बना दिया गया है। 

-यहाँ ऊँटों की नीति व पॉलिसी बनाई जाएगी जिसमें ऊँट पालकों को ऊँट संबंधी जानकारी दी जाएगी।
-Camel milk dairy- ऊँटनी का दूध मधुमेह रोग में अमृत का कार्य करता है।
-जोहड़बीड़ (बीकानेर) में स्थित है।
-नवीनतम डेयरी जयपुर में बनाई जा रही है।
*- ऊँट की खात पर सूक्ष्म कलाकारी की जाती है जिसे उस्ताकला कहा जाता है। 

- उस्ताकला बीकानेर की प्रसिद्ध है।

5. घोड़े:-
- वर्ष 2019 की पशुगणना के अनुसार घोड़ों की संख्या 34 हजार है।
- घोड़ों की दृष्टि से राजस्थान का देश में तृतीय स्थान है।
- वर्ष 2012 की पशुगणना में घोड़ों की संख्या 37 हजार थी।
- वर्ष 2012 की पशुगणना के सापेक्ष वर्ष 2019 की पशुगणना में घोड़ों की संख्या में 10.85 प्रतिशत की कमी आई है।
-आलम जी का धोरा राजस्थान के बाड़मेर में स्थित है 

- जो घोड़ों का तीर्थ स्थल के नाम से जाना जाता है।
अश्व प्रजनन केन्द्र, जोहड़बीड़ (बीकानेर) में स्थित है।
यह सर्वाधिक मात्रा में बीकानेर जिले में पाए जाते हैं।
- यह न्यूनतम मात्रा में डूंगरपुर जिले में पाए जाते हैं।
- इसमें तीन प्रकार की नस्लें पाई जाती है।

घोड़े की नस्लें:-

1. मारवाड़ी नस्तः- इस नस्ल  का प्रजनन केन्द्र, केरू (जोधपुर) में स्थित है।

2. मालाणी नस्तः- यह नस्त बाड़मेर जिले में सर्वाधिक मात्रा में पाई जाती है। 

               इनका प्रजनन केन्द्र, डूण्डलोद (झुंझुनूं) में स्थित है।

3. काठियावाड़ी नस्ल:- 

- यह गुजरात राज्य में पाई जाती है।
- इस नस्त के घोड़े घुड़सवारी के लिए सबसे अच्छे होते हैं।
- इस नस्त के घोड़ों का सर अरबी घोड़े के समान होता है।

6. गधे:-
- 2019 की पशुगणना के अनुसार गधों की संख्या 23 हजार है।
-गधों की संख्या की दृष्टि से राजस्थान का देश में प्रथम स्थान है।
- वर्ष 2012 की पशुगणना में गधों की संख्या 81 हजार थी।
- वर्ष 2012 की पशुगणना के सापेक्ष वर्ष 2019 की पशुगणना में गधों की संख्या में 71.31 प्रतिशत की कमी आई है।
- ये सर्वाधिक मात्रा में राजस्थान के बाड़‌मेर जिले में पाए जाते हैं एवं न्यूनतम मात्रा में टोंक जिले में पाए जाते हैं।
-गधों का मेला प्रतिवर्ष सुणियावास (जयपुर) में आयोजित किया जाता है।
-इनकी पूजा शितला माता की सवारी के रूप में की जाती है।
-गर्दभ अभयारण्य चिकित्सा केन्द्र, डूण्डलोद (झुंझुनूं) में स्थित है।

7. मुर्गियाँ:-

- देशी मुर्गियाँ सर्वाधिक मात्रा में बाँसवाड़ा जिले में पाई जाती हैं।
- फॉर्मिंग मुर्गियाँ सर्वाधिक मात्रा में अजमेर में पाई जाती हैं और अजमेर को 'अण्डों की टोकरी कहा जाता है।
- राज्य का कुक्कड़ फार्म जयपुर में स्थित है।
 कड़कनाथ योजना बाँसवाड़ा में शुरू की गई है।

8. मछली:-
- मछलियाँ सर्वाधिक मात्रा में उदयपुर जिले में पाई जाती हैं।
- मछली अभयारण्य बड़ी तालाब (उदयपुर) में स्थित है।
-प्रथम वर्चुअल फिश एक्वेरियम उदयपुर में स्थित किया गया है।
- रंग-बिरंगी मछलियाँ, बीसलपुर बाँध (टोंक) में मिलती हैं।
-पक्षी चिकित्सालय, जौहरी बाजार (जयपुर) में स्थित है।
-राष्ट्रीय कृषि विज्ञान विकास योजना के अन्तर्गत मत्स्य प्रसंस्करण से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए रामसागर (धौलपुर), बीसलपुर (टोंक), राणा प्रताप सागर (रावतभाटा, चित्तौड़गढ़) जवाई बाँध (पाली) एवं -जयसमन्द (उदयपुर) बाँधों से मत्स्य लैण्डिंग केन्द्र स्थापित किए गए है।

रोग : - 

1. विषाणु = पशुमाता रोग - सभी जानवरों में

         खुरपका-मुँहपका रोग - गाय में।

        गलघोटू रोग - सभी पशुओं में

         शीप पॉक्स रोग- भैड़ व बकरियों में 

2. जीवाणु = लंगड़ा बुखार - सभी जानवरों में।

          फड़कीया रोग- भैड़ों में

         ग्लेण्डर्स रोग - घोड़ों में

राज्य में पशु सम्पदाः-

- राज्य में सर्वाधिक पशु सम्पदा वाले जिले बाड़मेर, जोधपुर, उदयपुर व नागौर हैं व सबसे कम पशु सम्पदा वाले जिले धौलपुर, कोटा, सवाई माधोपुर व बाराँ हैं।
- सर्वाधिक पशु सम्पदा वाला जिला बाड़मेर है, जबकि सबसे कम पशु सम्पदा वाला जिला धौलपुर है।

अन्य तथ्य:-
- केन्द्रीय भेड़ अनुसंधान केन्द्र, अविकानगर (टोंक) में स्थित है।
- भेड़ और ऊन प्रशिक्षण संस्थान, जयपुर में स्थित है।
-भैंस अनुसंधान केन्द्र, वल्लभनगर (उदयपुर) में स्थित है।
-केन्द्रीय बकरी अनुसंधान केन्द्र, अविकानगर (टोंक) में स्थित है।
- राजस्थान में पशुधन निःशुल्क दवा योजना 15 अगस्त, 2012 से प्रारंभ की गई है।
- राजस्थान में गोपालन योजना 2 अक्टूबर, 1990 से प्रारंभ की गई।
-राजस्थान में भामाशाह पशु बीमा योजना 23 जुलाई, 2016 से प्रारंभ की गई।
-ऊँट प्रजनन प्रोत्साहन योजना 2 अक्टूबर, 2016 से प्रारंभ की गई।
-राजस्थन पशुधन विकास बोर्ड की स्थापना 25 मार्च, 1998 को की गई।
-राजस्थान में अविका कवच योजना वर्ष 2004-05 में भेड़ की मृत्यु एवं भेड़ की विकलांगता के लिए की गई।
-अविकापालक जीवन रक्षक योजना वर्ष 2005 में प्रारंभ की गई।

पशु मेलेः

- राजस्थान में प्रतिवर्ष पशु मेलों का आयोजन किया जाता है। ये मेले व्यक्तिगत महापुरुषों तथा देवताओं के नाम से जुड़े हुए हैं।

1. मल्लीनाथ पशु मेला (मार्च-अप्रैल): -

यह मेला तितवाड़ा (बाड़‌मेर) में चैत्र कृष्णा 11 से चैत्र शुक्ल 11 तक भरता है। इस मेले में सर्वाधिक धारपारकर नस्ल के पशु आते हैं।

2. गोमती सागर पशु मेला (मई):-

 यह मेला झालरापाटन (झालावाड़) में वैशाख शुक्त 13 से ज्येष्ठ कृष्णा 5 तक भरता है। इस मेले में मालवी नस्ल के पशु सर्वाधिक मात्रा में आते हैं।

3. चंद्रभागा पशु मेला-(नवम्बर-दिसम्बर):- 

यह मेला झालरापाटन (झालावाड़) में कार्तिक शुक्त 11 से मार्गशीर्ष कृष्ण 5 तक भरता है।

- इस मेले में सर्वाधिक मालवी नस्ल के पशु आते हैं।


4. महाशिवरात्रि पशु मेला (फरवरी):-
 

यह मेला करौली में आयोजित किया जाता है। 

यह मेला मार्ग पूर्णिमा से फाल्गुन कृष्ण 7 तक भरता है। - 

इस मेले में सर्वाधिक हरियाणवी नस्ल के पशु आते हैं।

5. वीर तेजा पशु मेला (अगस्त) -

यह मेला परबतसर (नागौर) में श्रावण पूर्णिमा से भाद्रपद अमावस्या तक भरता है। 

इस मेले में सर्वाधिक नागौरी नस्त के पशु आते हैं।

6. गोगामेड़ी पशु मेला (अगस्त-सितम्बर) -

यह मेला गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) में श्रावण पूर्णिमा से भाद्रपद पूर्णिमा तक भरता है। 

- इस मेले में सर्वाधिक हरियाणवी नस्ल के पशु आते हैं।

7. रामदेव पशु मेला (जनवरी-फरवरी):- 

यह मेला मानासर (नागौर) माघ शुक्त 1 से मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक भरता है।
- इस मेले में सर्वाधिक नागौरी नस्ल के पशु आते हैं।

8. कार्तिक पशु मेला (नवम्बर):- 

यह मेला पुष्कर (अजमेर) में कार्तिक शुक्ल 1 से मार्गशीर्ष कृष्ण 2 तक भरता है। 

- इस मेले में सर्वाधिक गिर नस्ल के पशु आते हैं।

9. बलदेव पशु मेला (मार्च-अप्रैल):- 

यह मेला मेड़ा (नागौर) में चैत्र शुक्त 1 से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा तक भरता है। 

- इस मेले में सर्वाधिक नागौरी नस्ल के पशु आते हैं। 

10. जसवंत प्रदर्शनी एवं पशु मेला (सितम्बर-अक्टूबर):- 

यह मेला भरतपुर में आश्विन शुक्ल 5 से 14 तक भरता है। 

इस मेले में सर्वाधिक हरियाणवी नस्ल के पशु आते हैं।

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