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भक्तिकाल के संबंध में महत्वपूर्ण पंक्तियां - प्रमुख सूफी कवि- (Bhakti kal ke sambandh mein mahatvpurn panktiyan)

भक्तिकाल के संबंध में महत्वपूर्ण पंक्तियां - प्रमुख सूफी कवि- (Bhakti kal ke sambandh mein mahatvpurn panktiyan) 

                            भक्तिकाल के संबंध में

                        सूफी कवियों की महत्त्वपूर्ण काव्य पंक्तियाँ

                    



                              (अ) कुतुबन

 

रूकमिनि पुनि वैसहि मरि गई।

कुलवंती सत सों सति भई ॥

बाहर वह भीतर वह होई।

 घर बाहर को रहै न जोई ॥

विधि कर चरित न जानै आनू। 

जो सिरजा सो जाहि नियानू ॥


                               (ब) मंझन

 

(1) देखत ही पहिचानेउ तोहीं।

 एही रूप जेहि छँदर्यो मोही ॥

 एही रूप बुत अहै छपाना।

 एही रूप रब सृष्टि समाना ॥

 एही रूप सकती और सीऊ। 

 एही रूप त्रिभुवन कर जीऊ ॥

 एही रूप प्रकटे बहु भेसा। 

 एही रूप जग रंक नरेसा ॥

                           मलिक मुहम्मद जायसी 


 (1) विक्रम भैंसा प्रेम के बारा। 

  सपनावती कहूँ गयठ पतारा ॥


 (2) आदि अंत जसि कथ्था अहै। 

    लिखि भाषा चौपाई कहै।


 (3) औ मन जानि कवित्त अस कीन्हा।

    मकु यह रहे जगत मह चीन्हा ॥


 (4) तन चितउर मन राजा कीन्हा। 

   हिय सिहल बुद्धि पदमिनी चीन्हा ॥  


* गुरु सुवा जेहि पंथ देखावा। 

  बिनु गुरु जगत को निरगुनपावा ॥

  नागमती यह दुनिया धंधा। 

  बांचा सोइ नएहि चित बधा ॥


 (5) प्रेम कथा एहि भाँति विचारहु। 

   बूझि लेठ जो बूझै पारहु ॥ 


(6) सरवर तीर प‌द्मिनि आई। 

   खोंपा छोरि केस मुकलाई ॥


 (7) बरुनिबान अस ओपहुँ

    बेधे रन बन दाख।

   सौजहि न सब रोवाँ

   पंखिहि तन सब पाँख ॥


 (8) ओहि मिलान जो पहुंचै कोई।

   तब हम कहब पुरुष भल होइ ॥

   है आगे परबत कै बाटा।

   विषम पहार अगम सुठि घाटा ॥


 (9) मानुस प्रेम भयउ बैकुंठी। 

   नाहित काह छारु भई मूठी ॥


 (10) छार उठाय लीन्ह एक मूँठी। 

    दीन्ह उड़ाइ पिरिथिमी झूठी ॥


(11) मुहमद जीवन जल भरन रहट घरी के रीति।

  घरी सो आई ज्यों भरी ढरी जनम गा नीति ॥


 (12) होतहि दरस परस भा लोना।

   धरती सरग भयउ सब सोना ॥


 (13) साजन लेइ पठावा आयसु जाइ न भेंट।

    तन मन जोबन साजि कै देह चली लेइ भेंट ॥


 (14) पिठ सो कहहु संदेसड़ा हे भौंरा हे काग।

   सो धनि विरहे जरि मुई तेहिक धुँआ हम लाग।


 (15) जौहर भइ इस्तिरी पुरुष गये संग्राम।

   पातसाहि गढ चूराचितउर भा इस्लाम ॥


(16) नयन जो देखा कँवल भा

   निरमल नीर सरीर।

   हँसत जो देखा हंस भा,

      दसन जोति नग हीर ॥

 

 (17) फिर फिर रोइ कोइ नहीं बोला। 

    आधी रात विहंगम बोला ॥


 (18) बरसै मघा झंकोरी झकोरी। 

    मोर दोउ नयन चुवइ जनु ओरी ॥


 (19) मुहम्मद कवि कहि जोरि सुनावा। 

    सुना जो प्रेम पीर गा पावा ॥


 (20) जे मुख देखा तेई हँसा। 

    सुना तो आये आसु ॥


 (21) कवि विआस रस कँवला पूरी।

    दूरिहि निअर निअर भा दूरी ॥


 (22) जेहि के बोल बिरह के धाया। 

    कहु केहि भूख कहाँ ते छाया ॥


 (23) भयउँ बिरह जलि कोइलि कारी।

     डार डार जो कूकि पुकारी ॥


  (24) प्रेम पहार कठिन विधि गढ़ा। 

     सो पे चढि जो सिर सौ चढा ॥

     पंथ सूरि कर उठा अंकूरू। 

    चोर चढ़े की चढ़ मंसूरू ॥

 

'रामचरितमानसके सन्दर्भ में रहीमदास ने लिखा है-

                           

रामचरित मानस विमलसन्तन जीवन प्रान।

हिन्दुवान को वेद समयवनहि प्रकट कुरान ॥


* भिखारीदास ने तुलसी के सम्बन्ध में लिखा है-


तुलसी गंग दुवौ भए सुकविन के सरदार।


अयोध्या सिह उपाध्याय 'हरिऔधने इनके सम्बन्ध में लिखा है-


 'कविता करके तुलसी न लसे,

 कविता पा लसी तुलसी की कला'"

 

नाभादास द्वारा विभिन्न कवियों के सन्दर्भ में 'भक्तमालमें कही गई महत्त्वपूर्ण पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं-

 

       महत्वपूर्ण काव्य पंक्ति----------- कवि


कबीर कानि राखी नहीं वर्णाश्रम षट्दरसनी – कबीरदास

* निरअंकुश अति निडररसिक जस रसना गायो - मीराबाई


1 त्रेता काव्य निबन्ध करी सत कोटि रसायन ।

  इक अक्षर उच्चरै ब्रह्महत्यादि परायन।

  अब भक्तन सुख दैन बहुरि लीला बिस्तारी। 

  रामचरन रस मत्त रहत अहनिसि व्रतधारी ॥


 2 संसार अपार के पार को सुगम रूप नौका लियो।

 कलि कुटिल जीव निस्तारहित वाल्मीकि तुलसी भयो|| - तुलसीदास


3. उक्तिचोजअनुप्रासवरनअस्थिति अति भारी।

  वचनप्रीति निर्वाहअर्थ अद्भुत तुकधारी।

  विमल बुद्धि गुन और कोजो वह गुन स्वननि धेरै। '

  सूरकवित सुनि कौन कवि जो नहि सिर चालन करै ॥--सूरदास


 # आचार्य रामचन्द्र शुक्ल केशव को अलंकारवादी मानते हैं। केशवदास ने स्वयं लिखा है-


  जदपि सुजति सुलच्छनीसुवरन सरस सुवृत्त। 

   भूषन बिनु न विराजईकविता वनिता मित्त

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