ads

आ. रामचन्द्र शुक्ल- जीवन परिचय || रचनाए एवं कथन - (1884-1941 ई.) Ramchandra Shukla ka jivan Parichay

               आ.रामचन्द्र शुक्ल (1884-1941ई.)


 शुक्ल का जन्म   - 1884 ई. 

                     -   अगोना (बस्ती, उ. प्र.) में 

◇ इनका साहित्यिक जीवन काव्य से शुरु  

# सन् 1896-97 में "भारत और बंसत" शीर्षक कविता आनन्द कादम्बिनी पत्रिका में प्रकाशित हुई 

*  सन् 1903 को आनन्द कादम्बिनी पत्रिका के संपादक बने।

◇  एकमात्र कहानी "ग्यारह वर्ष का समय" सन् 1903 में प्रकाशित हुई।




* प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू, अंग्रेजी व फारसी में हुई। बाद में हिन्दी की शिक्षा प्राप्त कर सन् 1904 में मिर्जापुर हाई स्कूल में कला के शिक्षक बने।

◇ सन् 1904 में आ. रामचन्द्र शुक्ल काशी नागरी प्रचारिणी सभा के हिन्दी शब्द सागर के निर्माण के लिए के संपादक बने।

*  शुक्ल की गद्य शैली विवेचनात्मक

*मुख्यतः आलोचक के रूप में प्रसिद्ध 

* शुक्ल की जीवनी "आ. रामचन्द्र शुक्ल जीवन व कृतित्व" के नाम से आ. चन्द्रशेखर शुक्ल ने सन् 1983 में लिखी। 

# इस प्रकार राजमल बौरा ने भी सन् 2000 में आ. रामचन्द्र शुक्ल की जीवनी "चिंतामणि चिंतक आ. रामचन्द्र शुक्ल" के नाम से लिखी।


                   ◇ आ. रामचन्द्र शुक्ल की रचनाएँ * 

(1) हिन्दी साहित्य का विकास (1929 ई.सच्चे अर्थों में हिन्दी साहित्य का सर्वप्रथम परम्परागत इतिहास ग्रंथ।

(2) गोस्वामी तुलसीदास 1923 ई.

(3) जायसी ग्रंथावली 1924 ई.

(4) भ्रमरगीतसार ग्रंथावली- 1924 ई.

(5) चिंतामणि भाग-1 (1939 ई.) - इसमें कुल 17 निबंध है

- भाव या मनोविकार, उत्साह, श्रद्धा और भक्ति, करुणा, लज्जा और ग्लानि, लोभ और प्रीति, घृणा, ईर्ष्या, भय, क्रोध, कविता क्या है, भारतेन्दु हश्चिन्द्र, तुलसी का भक्ति मार्ग, मानस की धर्म भूमि, काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था, साधारणीकरण और व्यक्ति वैचिन्यवाद, रसात्मक बोध के विविध।

(6) चिंतामणि भाग-2 (1945 ई.) - 

 इसमें तीन निबंध है- प्राकृतिक दृष्य, काव्य में रहस्यवाद, काव्य में अभिव्यंजनावाद

(7) चिंतामणि भाग-3 (1983 ई.) - 

इसके संपादक डॉ. नामवरसिंह हैं। 

इस कृति में कुल 21 निबंध है।

(8) चिंतामणि भाग-4 (2002 ई.) -

  इसके संपादक डॉ. कुसुम चतुर्वेदी और डॉ. ओमप्रकाश सिंह हैं।

 इस रचना में कुल 47 निबंध है।

(9) रस मीमांसा (1949 ई.) -

 इसका संपादन विश्वनाथप्रसाद मिश्र ने किया।

 इस रचना में काव्य चिंतन संबंधी सैद्धांतिक समीक्षा के निबंध है- काव्य की साधना, काव्य और सृष्टि प्रसार, काव्य और व्यवहार, मनुष्यता की उच्च भूमि, भावना या कल्पना, मनोरंजन, सौंदर्य, चमत्कारवाद, काव्य की भाषा. अलंकार ।

(10) कल्पना का आनन्द (1901 ई.) -

 (एडीसन के प्लेजर ऑफ इमेजिनेशन का अनुवाद)

(11) मेगस्थनीज का भारतवर्षीय विवरण- (1906 ई.) - 

(डॉ. श्वान बक की पुस्तक मेगस्थनीज इंडिका का अनुवाद)

(12) विश्वप्रपंच (1920 ई.) -  (दा यूनिवर्स का अनुवाद)

(13) बुद्धचरित्- (1922 ई.)


                       * आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के प्रसिद्ध कथन  *


1* "प्रत्येक देश का साहित्य वहां की जनता की चित्तावृतियों का संचित प्रतिबिंब होता है।"

2* "हिन्दी साहित्य का आदिकाल संवत 1050 से लेकर संवत 1375 तक अर्थात महाराज भोज के समय से लेकर हम्मीदेव के समय के कुछ पीछे तक माना जा सकता है।"

3"जब तक भाषा बोलचाल में थी जब तक वह भावा या देशभाषा ही कहलाती रही। जब यह भी साहित्य की भाषा हो गई जब उत्तके लिए अपभ्रंश शब्द का व्यवहार होने लगा।"

4* "नाथपंथियों के जोगियों की भाषा सघुक्कड़ी थी।"

5* 'सिद्धों की उद्धृत भाषा देश भाषा मिश्रित अपभ्रंश या पुरानी हिन्दी की काव्य भाषा है।"

6* "कबीर आदि संतों को नाथपंथियों से जिस प्रकार साखी और बानी शब्द मिले, उसी प्रकार साखी और बानी के लिए बहुत कुछ सामग्री और सधक्कड़ी भाषा थी।"

7* "वीरगति के रूप में हमें सबसे पुरानी पुस्तक बीसलदेव रासो मिलती है।"

8* "बीसलदेव रासो में काव्य के अर्थ में रसायण शब्द बार बार आया है। अतः हमारी समझ में इसी रसायण शब्द से होते-होते रासो हो गया है।"

9* "बीसलदेव रासो में आए बारह सौ बहोत्तरा का स्पष्ट अर्थ वि. सं. 1212 है।"

10"यह घटनात्मक काव्य नहीं है, वर्णनात्मक है।" (बीसलदेव रासो )

11* "भाषा की परीक्षा करके देखते हैं तो वह साहित्यिक नहीं है, राजस्थानी है।" - (बीसलदेव रासो )

12* "अपभ्रंश के योग से शुद्ध राजस्थानी भाषा का जो साहित्यिक रूप था, वह डिंगल कहलाता था 

13"इनकी भाषा ललित व सानुप्रास होती थी।" (चिंतामणि त्रिपाठी )

14•"भाषा चलती होने पर भी उनकी भाषा अनुप्रासयुक्त होती थी।" (बेनी के लिए)

15* इस ग्रंथ को इन्होंने वास्तव में आचार्य के रूप में लिखा है, कवि के रूप में नहीं। - (भाषाभूषण ग्रंथ महाराजा जसवंतसिंह )

16* "इनका एक एक दोहा हिन्दी साहित्य एक एक रत्न माना जाता है।" (बिहारी )

17* "इसमें रस के ऐसे छिंटें पड़ते हैं जिससे हृदय कलिका थौड़ी देर के लिए खिल उठती है।" (बिहारी सतसई )

18* "यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक काव्य एक चुना हुआ गुलदस्ता है।"

19* "जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी, उतना ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा।"  -  (बिहारी)

20* "बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है, कविता उनकी श्रृंगारी है, पर प्रेम की उच्च भूमि पर नहीं पहुँचती, नीचे ही रह जाती है।" - (बिहारी )

21* "भाषा इनकी बड़ी स्वाभाविक, चलती और व्यंजनापूर्ण होती थी।" (मंडन के लिए)

22*"इनका सच्चा कवि हृदय था।" (मतिराम ) • 

23"रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में पद्माकर को छोड़कर और किसी कवि में मतिराम की सी चलती भाषा और सरल व्यंजना नहीं मिलती। -  (मतिराम )

24* "उनके प्रेम भक्ति और सम्मान की प्रतिष्ठा हिन्दू जनता के हृदय में उस समय भी थी और आये भी बराबर बत्ती च्ही या बढ़ती रही। - (भूषण )

25* " भूषण के वीर रस के उद्‌गार सारी जनता के हृदय की संपति हुए।" - (भूषण )

26* "जिसकी रचना को जनता का हृदय स्वीकार करेगा, उस कवि की कीर्ति तब तक बराबर बनी रहेगी, जब तक स्वीकृति बनी रहेगी।" (भूषण )

27* "शिवाजी और छत्रशाल की वीरता का वर्णनों को कोई कवियों की झूटी खुशामद नहीं कह सकता।" (भूषण )

28 * "वे हिन्दू जाति के प्रतिनिधि कवि हैं।" - (भूषण )

29* "छंदशास्त्र का इनका सा विशद निरूपण और किसी कवि ने नहीं किया है।" - (सुखदेव मिश्र )

30* "ये आचार्य और कवि दोनों रूपों में हमारे सामने आते हैं।" (देव )

31* "कवित्व शक्ति और मौलिकता देव में खूब थी, पर उनके सम्यक स्फुर्ण में उनकी रुचि विशेष प्रायः बाधक हुई है।" ( देव )

32* "रीतिकाल के कवियों में ये बड़े ही प्रगल्भ और प्रतिभासंपन्न कवि थे, इसमें कोई सन्देह नहीं।" (कवि देव के लिए)

33* "श्रीपति ने काव्य के सब अंगों का निरूपण विशद रीति से किया है।"- (श्रीपति )

34* "इनकी रचना कलापक्ष में संयत और भाव पक्ष में रंजनकारिणी।" (भिखारीदास )

35* "ऐसा सर्वप्रिय कवि इस काल के भीतर बिहारी को छोड़ कोई दूसरा नहीं हुआ है। इनकी रचना की रमणीयता ही इस सर्वप्रियता का एकमात्र कारण है।" (पद्माकर)

36* "रीतिकाल की सनक इनमें इतनी अधिक थी कि इन्हें यमुना लहरी नामक देव स्तुति में भी नवरस और षट् ऋतु सुझाई पड़ी है।" (ग्वाल कवि )

37* "पट् त्रऋतुओं का वर्णन इन्होंने ही विस्तृत किया है, पर वही श्रृंगाारी उद्दीपन ढंग का।" - (ग्वाल कवि

38* "ग्वाल कवि ने देशाटन अच्छा किया था, इसलिए भिन्न भिन्न प्रांतों की बोलियों का अच्छा ज्ञान हो गया था।"

39"हृदय की अनुभूति ही साहित्य में रस और भाव कहलाती है।"

40* "हृदय के प्रभावित होने का नाम ही रसानुभूति है।"

41* "जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञान दशा कहलाती है. उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है।"

42"हमें अपनी दृष्टि से दूसरे देशों के साहित्य को देखना होगा, दूसरे देशों की दृष्टि से अपनेसाहित्य को नहीं।"

43* "प्रेम दूसरों की आँखों से नहीं, अपनी आँखों से देखता है।"

44 * "यदि द्य कवियों की कसौटी है, निबंध गद्य की कसौटी है।"

45 * "मक्ति धर्म की रसात्मक अनुभूति है।"

46 * "साहसपूर्ण आनन्द की उमंग का नाम ही उत्साह है।"

47 * "यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण है।"

48 * "परिचय प्रेम का प्रवर्तक है।"

49 * "बैर क्रोध का अचार मुरब्बा है।"


Q.1 आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय की चर्चा करे ?

उतर. शुक्ल का जन्म   - 1884 ई. 

                       -   अगोना (बस्ती, उ. प्र.) में 

◇ इनका साहित्यिक जीवन काव्य से शुरु  

सन् 1896-97 में "भारत और बंसत" शीर्षक कविता आनन्द कादम्बिनी पत्रिका में प्रकाशित हुई 

*  सन् 1903 को आनन्द कादम्बिनी पत्रिका के संपादक बने।

◇  एकमात्र कहानी "ग्यारह वर्ष का समय" सन् 1903 में प्रकाशित हुई।

1 टिप्पणी:

Blogger द्वारा संचालित.