दुनिया का सबसे अनमोल रत्न - प्रेमचंद || कहानी || Duniya Ka Sabse Anmol Ratn - Munshi Premchamd
दुनिया का सबसे अनमोल रत्न - प्रेमचंद
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अगर तुझे वह चौज़ न मिले तो खबरदार इधर रुख न करना, वर्ना सूली पर खिंचवा दूँगी। दिलफिगार को अपनी भावनाओं के प्रदर्शन का, शिकवे-शिकायत का, प्रेमिका के सौन्दर्य-दर्शन का तनिक भी अवसर न दिया गया। दिलफ़रेब ने ज्यों ही यह फैसला सुनाया, उसके चोबदारों ने गरीब दिलफ़िगार को धक्के देकर बाहर निकाल दिया। और आज तीन दिन से यह आफ़त का मारा आदमी उसी कँटीले पेड़ के नीचे उसी भयानक मैदान में बैठा हुआ सोच रहा है कि क्या करूँ। दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ मुझको मिलेगी? नामुमकिन। और वह है क्या? कारूँ का खजाना? आबे हयात? खुसरो का ताज? जामे-जम? तख्तेताऊस? परवेज़ की दौलत? नहीं, यह चीजें हरगिज नहीं। दुनिया में जरूर इनसे भी महँगी, इनसे भी अनमोल चीजें मौजूद हैं मगर वह क्या है। कहाँ हैं? कैसे मिलेंगी? या या खुदा, मेरी मुश्किल क्योंकर आसान होगी?
दिलफ़िगार इन्हीं खयालों में चक्कर खा रहा था और अक्ल कुछ काम न करती थी। मुनीर शामी को हातिम-सा मददगार मिल गया। ऐ काश कोई मेरा भी मददगार हो जाता, ऐ काश मुझे भी उस चीज का जो दुनिया की सबसे बेशकीमत चीज़ है, नाम बतला दिया जाता। बला से वह चीज हाथ न आली मगर मुझे इतना तो मालूम हो जाता कि वह किस क़िस्म की चीज़ है। मैं घड़े बराबर मोती की खोज में जा सकता हूँ। मैं समुन्दर का गीत, पत्थर का दिल, मौत की आवाज़ और इनसे भी ज्यादा बेनिशान चीज़ों की तलाश में कमर कस सकता हूँ। मगर दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ा यह मेरी कल्पना की उड़ान से बहुत ऊपर है।
आसमान पर तारे निकल आये थे। दिलफ़िगार यकायक खुदा का नाम लेकर उठा और एक तरफ को चल खड़ा हुआ। भूखा-प्यासा, नंगे बदन, थकन से चूर, वह बरसों वीरानों और आबादियों की खाक छानता फिरा, तलवे कॉटों से छलनी हो गये, शरीर में हड्डियाँ ही हड्ड्डियाँ दिखायी देने लगी मगर वह चीज जो दुनिया की सबसे बेश-कीमत चीज़ थी, न मिली और न उसका कुछ निशान मिला।
एक रोज वह भूलता-अटकता एक मैदान में जा निकला, जहाँ हजारों आदमी गोल बाँधे खड़े थे। बीच में कई अमामे और चोगे वाले दढ़ियल काजी अफ़सरी शान से बैठे हुए आपस में कुछ सलाह-मशविरा कर रहे थे और इस जमात से जरा दूर पर एक सूली खड़ी थी। दिलफ़िगार कुछ तो कमजोरी की वजह से कुछ यहाँ की कैफियत देखने के इरादे से ठिठक गया। क्या देखता है, कि कई लोग नंगी तलवारे लिये, एक कैदी को जिसके हाथ-पैर में जंजीरें थीं, पकडे चले आ रहे हैं। सूली के पास पहुँचकर सब सिपाही रुक गये और कैदी की हथकड़ियाँ, बेड़ियाँ सब उतार ली गयीं। इस अभागे आदमी का दामन सैकड़ों बेगुनाहों के खून के छींटों से रंगीन था, और उसका दिल नेकी के खयाल और रहम की आवाज़ से ज़रा भी परिचित न था। उसे काला चोर कहते थे। सिपाहियों ने उसे सूली के तख्ते पर खड़ा कर दिया, मौत की फाँसी उसकी गर्दन में डाल दी और जल्लादों ने तख्ता खींचने का इरादा किया कि वह अभागा मुजरिम चीखकर बोला-खुदा के वास्ते मुझे एक पल के लिए फाँसी से उतार दो ताकि अपने दिल की आख़िरी आरजू निकाल लूँ। यह सुनते ही चारों तरफ सन्नाटा छा गया। लोग अचम्भे में आकर ताकने लगे। काजियों ने एक मरने वाले आदमी की अंतिम याचना को रद्द करना उचित न समझा और बदनसीब पापी काला चोर जरा देर के लिए फाँसी से उतार लिया गया।
इसी भीड़ में एक खूबसूरत भोला-भोला लड़का एक छड़ी पर सवार होकर अपने पैरों पर उछल-उछल फर्जी घोड़ा दौड़ा रहा था, और अपनी सादगी की दुनिया में ऐसा मगन था कि जैसे वह इस वक्त सचमुच किसी अरबी घोड़े काशहसवार है। उसका चेहरा उस सच्ची खुशी से कमल की तरह खिला हुआ था जो चन्द दिनों के लिए बचपन ही में हासिल होती है और जिसकी याद हमको मरते दम तक नहीं भूलती। उसका दिल अभी तक पाप की गर्द और धूल से अछूता था और मासूमियत उसे अपनी गोद में खिला रही थी।
बदनसीब काला चोर फॉसी से उतरा। हजारों आँखें उस पर गड़ी हुई थीं। वह उस लड़के के पास आया और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगा। उसे इस वक्त वह ज़माना याद आया जब वह खुद ऐसा ही भोला-भाला, ऐसा ही खुश-व-खुर्रम और दुनिया की गन्दगियों से ऐसा ही पाक साफ़ था। मॉ गोदियों में खिलाती थी, बाप बलाएँ लेता था और सारा कुनबा जान न्योछावर करता था। आह। काले चोर के दिल पर इस वक़्त बीते हुए दिनों की याद का इतना असर हुआ कि उसकी आँखों से, जिन्होंने दम तोडती हुई लाशों को तड़पते देखा और न झपकी, आँसू का एक क़तरा टपक पड़ा। दिलफिगार ने लपककर उस अनमोल मोती को हाथ में ले लिया और उसके दिल ने कहा-बेशक यह दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ है जिस पर तख्ते ताऊस और जामेजम और आबे हयात और ज़रे परवेज़ सब न्योछावर हैं।
इस खयाल से खुश होता कामयाबी की उम्मीद में सरमस्त, दिलफ़िगार अपनी माशूका दिलफरेब के शहर मीनोसवाद को चला। मगर ज्यो-ज्यों मंजिलें तय होती जाती थीं उसका दिल बैठ जाता था कि कहीं उस चीज़ की, जिसे मैं दुनिया की सबसे बेशक़ीमत चीज़ समझता हूँ, दिलफरेब की आँखों में कद्र न हुई तो मैं फाँसी पर चढ़ा दिया जाऊँगा और इस दुनिया से नामुराद जाऊँगा। लेकिन जो हो सो हो, अब तो किस्मत आजमाई है। आखिरकार पहाड़ और दरिया तय करते शहर मीनोसवाद में आ पहुँचा और दिलफरेब की ड्योढी पर जाकर विनती की कि थकान से टूटा हुआ दिलफ़िगार खुदा के फ़ज़ल से हुक्म की तामील करके आया है, और आपके कदम चूमना चाहता है। दिलफरेब ने फौरन अपने सामने बुला भेजा और एक सुनहरे परदे की ओट से फरमाइश की कि वह अनमोल चीज़ पेश करो। दिलफ़िगार ने आशा और भय की एक विचित्र मनःस्थिति में वह बूँद पेश की और उसकी सारी कैफियत बहुत पुरअसर लफ्ज़ों में बयान की। दिलफरेब ने पूरी कहानी बहुत गौर से सुनी और वह भेंट हाथ में लेकर जरा देर तक गौर करने के बाद बोली-दिलफ़िगार, बेशक तूने दुनिया की एक बेशकीमत चीज़ ढूंढ निकाली, तेरी हिम्मत और तेरी सूझबूझ की दाद देती हैं। मगर यह दुनिया की सबसे बेशक़ीमत चीज़ नहीं, इसलिए तू यहाँ से जा और फिर कोशिश कर, शायद अब की तेरे हाथ वह मोती लगे और तेरी किस्मत में मेरी गुलामी लिखी हो। जैसा कि मैंने पहले ही बतला दिया था मैं तुझे फाँसी पर चढ़वा सकती हूँ मगर मैं तेरी जॉबख्शी करती हूँ इसलिए कि तुझमें वह गुण मौजूद हैं, जो मैं अपने प्रेमी में देखना चाहती हूँ और मुझे यकीन है कि तू जरूर कभी-न-कभी कामयाब होगा।
नाकाम और नामुराद दिलफिगार इस माशूकाना इनायत से जरा दिलेर होकर बोला-ऐ दिल की रानी, बड़ी मुद्दत के बाद तेरी ड्योढ़ी पर सजदा करना नसीब होता है। फिर खुदा जाने ऐसे दिन कब आएँगे, क्या तू अपने जान देने वाले आशिक के बुरे हाल पर तरस न खाएगी और क्या अपने रूप की एक झलक दिखाकर इस जलते हुए दिलफ़िगार को आने वाली सख्तियों के झेलने की ताक़त न देगी? तेरी एक मस्त निगाह के नशे से चूर होकर मैं वह कर सकता हूँ जो आज तक किसी से न बन पड़ा हो।
दिलफ़रेब आशिक की यह चाव-भरी बातें सुनकर गुस्सा हो गयी और हुक्म दिया कि इस दीवाने को खड़े-खड़े दरबार से निकाल दो। चोबदार ने फौरन गरीब दिलफ़िगार को धक्के देकर यार के कूचे से बाहर निकाल दिया।
कुछ देर तक तो दिलफ़िगार अपनी निष्ठुर प्रेमिका की इस कठोरता पर आँसू बहाता रहा, और सोचने लगा कि कहाँ जाऊँ। मुद्दतों रास्ते नापने और जंगलों में भटकने के बाद आँसू की यह बूँद मिली थी, अब ऐसी कौन-सी चीज है जिसकी कीमत इस आबदार मोती से ज्यादा हो। हज़रते खिजा तुमने सिकन्दर को आबेहयात के कुएँ का रास्ता दिखाया था, क्या मेरी बाँह न पकड़ोगे? सिकन्दर सारी दुनिया का मालिक था। मैं तो एक बेघरबार मुसाफिर हूँ। तुमने कितनी ही डूबती किश्तियाँ किनारे लगायी हैं, मुझ गरीब का बेड़ा भी पार करो। ऐ आलीमुकाम जिबरील! कुछ तुम्ही इस नीमजान, दुखी आशिक़ पर तरस खाओ। तुम खुदा के एक खास दरबारी हो, क्या मेरी मुश्किल आसान नकरोगे! गरज यह कि दिलफ़िगार ने बहुत फ़रियाद मचायी मगर उसका हाथ पकडने के लिए कोई सामने न आया। आख़िर निराश होकर वह पागलों की तरह दुबारा एक तरफ को चल खड़ा हुआ।
दिलफ़िगार ने पूरब से पच्छिम तक और उत्तर से दक्खिन तक कितने ही जंगलों और वीरानों की खाक छानी, कभी बर्फिस्तानी चोटियों पर सोया, कभी डरावनी घाटियों में भटकता फिरा मगर जिस चीज़ की धुन थी वह न मिली, यहाँ तक कि उसका शरीर हड्ड्डियों का एक ढाँचा रह गया।
एक रोज वह शाम के वक्त किसी नदी के किनारे खस्ताहाल पड़ा हुआ था। बेखुदी के नशे से चौंका तो क्या देखता है कि चन्दन की एक चिता बनी हुई है और उस पर एक युवती सुहाग के जोड़े पहने सोलहों सिंगार किये बैठी हुई है। उसकी जाँघ पर उसके प्यारे पति का सर है। हजारों आदमी गोल बाँधे खड़े हैं और फूलों की बरखा कर रहे हैं। यकायक चिता में से खुद-ब-खुद एक लपट उठी। सती का चेहरा उस वक्त एक पवित्र भाव से आलोकित हो रहा था। चिता की पवित्र लपटें उसके गले से लिपट गयीं और दम-के-दम में वह फूल-सा शरीर राख का ढेर हो गया। प्रेमिका ने अपने को प्रेमी पर न्योछावर कर दिया और दो प्रेमियों के सच्चे, पवित्र, अमर प्रेम की अन्तिम लीला आँख से ओझल हो गयी। जब सब लोग अपने घरों को लौटे तो दिलफ़िगार चुपके से उठा और अपने चाक- दामन कुरते में यह राख का ढेर समेट लिया और इस मुट्ठी भर राख को दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ समझता हुआ, सफलता के नशे में चूर, यार के कूचे की तरफ चला। अबकी ज्यों-ज्यों वह अपनी मंजिल के करीब आता था, उसकी हिम्मतें बढ़ती जाती थीं। कोई उसके दिल में बैठा हुआ कह रहा था-अबकी तेरी जीत है और इस खयाल ने उसके दिल को जो-जो सपने दिखाए उनकी चर्चा व्यर्थ है। आखिकार वह शहर मीनोसवाद में दाखिल हुआ और दिलफरेब की ऊँची ड्योढ़ी पर जाकर खबर दी कि दिलफ़िगार सुर्ख-रु होकर लौटा है और हुजूर के सामने आना चाहता है। दिलफ़रेब ने जाँबाज़ आशिक को फ़ौरन दरबार में बुलाया और उस चीज के लिए, जो दुनिया की सबसे बेशकीमत चीज़ थी, हाथ फैला दिया। दिलफ़िगार ने हिम्मत करके उसकी चाँदी जैसी कलाई को चूम लिया और मुट्ठी भर राख को उसकी हथेली में रखकर सारी कैफियत दिल को पिघला देने वाले लफ़्ज़ों में कह सुनायी और सुन्दर प्रेमिका के होठों से अपनी किस्मत का मुबारक फैसला सुनने के लिए इन्तज़ार करने लगा। दिलफ़रेब ने उस मुठ्ठी भर राख को आँखों से लगा लिया और कुछ देर तक विचारों के सागर में डूबे रहने के बाद बोली-ऐ जान निछावर करने वाले आशिक दिलफ़िगार। बेशक यह राख जो तू लाया है, जिसमें लोहे को सोना कर देने की सिफ़त है, दुनिया की बहुत बेशकीमत चीज़ है और मैं सच्चे दिल से तेरी एहसानमन्द हूँ कि तूने ऐसी अनमोल भेंट मुझे दी। मगर दुनिया में इससे भी ज्यादा अनमोल कोई चीज़ है, जा उसे तलाश कर और तब मेरे पास आ। मैं तहेदिल से दुआ करती हूँ कि खुदा तुझे कामयाब करे। यह कहकर वह सुनहरे परदे से बाहर आयी और माशूक़ाना अदा से अपने रूप का जलवा दिखाकर फिर नजरों से ओझल हो गयी। एक बिजली थी कि कौंधी और फिर बादलों के परदे में छिप गयी। अभी दिलफ़िगार के होश-हवास ठिकाने पर न आने पाये थे कि चोबदार ने मुलायमियत से उसका हाथ पकड़कर यार के कूचे से उसको निकाल दिया और फिर तीसरी बार वह प्रेम का पुजारी निराशा के अथाह समुन्दर में गोता खाने लगा।
दिलफ़िगार का हियाव छूट गया। उसे यकीन हो गया कि मैं दुनिया में इसी तरह नाशाद और नामुराद मर जाने के लिए पैदा किया गया था और अब इसके सिवा और कोई चारा नहीं कि किसी पहाड़ पर चढ़कर नीचे कूद पड़ें, ताकि माशूक के जुल्मों की फ़रियाद करने के लिए एक हड्डी भी बाकी न रहे। वह दीवाने की तरह उठा और गिरता- पड़ता एक गगनचुम्बी पहाड़ की चोटी पर जा पहुँचा। किसी और समय वह ऐसे ऊँचे पहाड़ पर चढ़ने का साहस न कर सकता था मगर इस वक़्त जान देने के जोश में उसे वह पहाड एक मामूली टेकरी से ज्यादा ऊँचा न नजर आया। क़रीब था कि वह नीचे कूद पड़े कि हरे-हरे कपड़े पहने हुए और हरा अमामा बाँधे एक बुजुर्ग एक हाथ में तसबीह और दूसरे हाथ में लाठी लिये बरामद हुए और हिम्मत बढ़ाने वाले स्वर में बोले-दिलफ़िगार, नादान दिलफिगार, यह क्या बुज़दिलों जैसी हरकत है। तू मुहब्बत का दावा करता है और तुझे इतनी भी खबर नहीं किमजबूत इरादा मुहब्बत के रास्ते की पहली मंज़िल है? मर्द बन और यों हिम्मत न हार। पूरब की तरफ एक देश है जिसका नाम हिन्दोस्तान है, वहाँ जा और तेरी आरजू पूरी होगी। यह कहकर हजरते खिज गायब हो गये। दिलफ़िगार ने शुक्रिये की नमाज अदा की और ताज़ा हौसले, ताज़ा जोश और अलौकिक सहायता का सहारा पाकर खुश-खुश पहाड़ से उतरा और हिन्दोस्तान की तरफ चल पड़ा।
मुद्दतों तक कॉटों से भरे हुए जंगलों, आग बरसाने वाले रेगिस्तानों, कठिन घाटियों और अलंध्य पर्वतों को तय करने के बाद दिलफ़िगार हिन्द की पाक सरज़मीन में दाखिल हुआ और एक ठण्डे पानी के सोते में सफ़र की तकलीफें धोकर थकान के मारे नदी के किनारे लेट गया। शाम होते-होते वह एक चटियल मैदान में पहुँचा जहाँ बेशुमार अधमरी और बेजान लाशें बिना कफ़न के पड़ी हुई थीं। चील-कौए और वहशी दरिन्दे मरे पड़े हुए थे और सारा मैदान खून से लाल हो रहा था। यह डरावना दृश्य देखते ही दिलफ़िगार का जी दहल गया। या खुदा, किस मुसीबत में जान फैसी, मरने वालों का कराहना, सिसकना और एडियों रगडकर जान देना, दरिन्दों का हड्डियों को नोचना और गोश्त के लोथड़ों को लेकर भागना, ऐसा हौलनाक सीन दिलफिगार ने कभी न देखा था। यकायक उसे ख्याल आया, यह लड़ाई का मैदान है और यह लाशें सूरमा सिपाहियों की हैं। इतने में करीब से कराहने की आवाज़ आयी। दिलफ़िगार उस तरफ फिरा तो देखा कि एक लम्बा-तड़ंगा आदमी, जिसका मर्दाना चेहरा जान निकालने की कमज़ोरी से पीला हो गया है, ज़मीन पर सर झुकाये पड़ा हुआ है। सीने से खून का फौव्वारा जारी है, मगर आबदार तलवार की मूठ पंजे से अलग नहीं हुई। दिलफिगार ने एक चीथड़ा लेकर घाव के मुँह पर रख दिया ताकि खून रुक जाए और बोला-ऐ जवाँमर्द, तू कौन है? जवाँमर्द ने यह सुनकर आँखें खोली और वीरों की तरह बोला-क्या तू नहीं जानता मैं कौन हूँ, क्या तूने आज इस तलवार की काट नहीं देखी? मैं अपनी माँ का बेटा और भारत का सपूत हूँ। यह कहते-कहते उसकी त्योरियों पर बल पड़ गये। पीला चेहरा गुस्से से लाल हो गया और आबदार शमशीर फिर अपना जौहर दिखाने के लिए चमक उठी। दिलफ़िगार समझ गया कि यह इस वक्त मुझे दुश्मन समझ रहा है,
नरमी से बोला-ऐ जवाँमर्द, मैं तेरा दुश्मन नहीं हूँ। अपने वतन से निकला हुआ एक गरीब मुसाफिर हूँ। इधर भूलता- भटकता आ निकला। बराय मेहरबानी मुझसे यहाँ की कुल कैफियत बयान कर।
यह सुनते ही घायल सिपाही बहुत मीठे स्वर में बोला-अगर तू मुसाफ़िर है तो आ मेरे खून से तर पहलू में बैठ जा क्योंकि यही दो अंगुल जमीन है जो मेरे पास बाकी रह गयी है और जो सिवाय मौत के कोई नहीं छीन सकता। अफ़सोस है कि तू यहाँ ऐसे वक़्त में आया जब हम तेरा आतिथ्य सत्कार करने के योग्य नहीं। हमारे बाप-दादा का देश आज हमारे हाथ से निकल गया और इस वक्त हम बेवतन हैं। मगर (पहलू बदलकर) हमने हमलावर दुश्मन को बता दिया कि राजपूत अपने देश के लिए कैसी बहादुरी से जान देता है। यह आस-पास जो लाशें तू देख रहा है, यह उन लोगों की है, जो इस तलवार के घाट उतरे हैं। (मुस्कराकर) और गोया कि मैं बेवतन हूँ, मगर गनीमत है कि दुश्मन की जमीन पर मर रहा हूँ। (सीने के घाव से चीथड़ा निकालकर) क्या तूने यह मरहम रख दिया? खून निकलने दे, इसे रोकने से क्या फायदा? क्या मैं अपने ही देश में गुलामी करने के लिए ज़िन्दा रहूँ? नहीं, ऐसीज़िन्दगी से मर जाना अच्छा। इससे अच्छी मौत मुमकिन नहीं।
जवाँमदै की आवाज़ मद्धिम हो गयी, अंग ढीले पड़ गये, खून इतना ज्यादा बहा कि खुद-ब-खुद बन्द हो गया, रह-रहकर एकाध बूँद टपक पड़ता था। आखिरकार सारा शरीर बेदम हो गया, दिल की हरकत बन्द हो गयी और आँखें मुँद गयीं। दिलफ़िगार ने समझा अब काम तमाम हो गया कि मरने वाले ने धीमे से कहा-भारतमाता की जय! और उसके सीने से खून का आखिरी क़तरा निकल पड़ा। एक सच्चे देशप्रेमी और देशभक्त ने देशभक्ति का हक़ अदा कर दिया। दिलफ़िगार पर इस दृश्य का बहुत गहरा असर पड़ा और उसके दिल ने कहा, बेशक दुनिया में खून के इस क़तरे से ज़्यादा अनमोल चीज कोई नहीं हो सकती। उसने फ़ौरन उस खून की बूँद को जिसके आगे यमन का लाल भी हेच है, हाथ में ले लिया और इस दिलेर राजपूत की बहादुरी पर हैरत करता हुआ अपने वतन की तरफ रवाना हुआ और सख्तियाँ झेलता आखिरकार बहुत दिनों के बाद रूप की रानी मलका दिलफ़रेब की ड्योढ़ी पर जा पहुँचा और पैग़ाम दिया कि दिलफ़िगार सुर्खरू और कामयाब होकर लौटा है और दरबार में हाज़िर होना चाहता है।दिलफ़रेब ने उसे फौरन हाज़िर होने का हुक्म दिया। खुद हस्बे मामूल सुनहरे परदे की ओट में बैठी और बोली- दिलफ़िगार, अबकी तू बहुत दिनों के बाद वापस आया है। ला, दुनिया की सबसे बेशक़ीमत चीज कहाँ है?
दिलफ़िगार ने मेंहदी-रची हथेलियों को चूमते हुए खून का वह कतरा उस पर रख दिया और उसकी पूरी कैफियत पुरजोश लहजे में कह सुनायी। वह खामोश भी न होने पाया था कि यकायक वह सुनहरा परदा हट गया और दिलफ़िगार के सामने हुस्न का एक दरबार सजा हुआ नज़र आया जिसकी एक-एक नाजनीन जुलेखा से बढकर थी। दिलफ़रेब बड़ी शान के साथ सुनहरी मसनद पर सुशोभित हो रही थी। दिलफ़िगार हुस्न का यह तिलस्म देखकर अचम्भे में पड़ गया और चित्रलिखित-सा खड़ा रहा कि दिलफ़रेब मसनद से उठी और कई क़दम आगे बढ़कर उससे लिपट गयी। गानेवालियों ने खुशी के गाने शुरू किये, दरबारियों ने दिलफिगार को नज़रें भेंट की और चाँद-सूरज को बड़ी इज्जत के साथ मसनद पर बैठा दिया। जब वह लुभावना गीत बन्द हुआ तो दिलफरेब खड़ी हो गयी और हाथ जोडकर दिलफ़िगार से बोली-ऐ जॉनिसार आशिक़ दिलफ़िगार! मेरी दुआएँ बर आयीं और खुदा ने मेरी सुन सुन ली और तुझे कामयाब व सुर्खरू किया। आज से तू मेरा मालिक है और मैं तेरी लॉडी!
यह कहकर उसने एक रत्नजटित मंजूषा मँगायी और उसमें से एक तख्ती निकाली जिस पर सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ था-
'खून का वह आखिरी क़तरा जो वतन की हिफाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ है।'
एक रोज वह शाम के वक्त किसी नदी के किनारे खस्ताहाल पड़ा हुआ था। बेखुदी के नशे से चौंका तो क्या देखता है कि चन्दन की एक चिता बनी हुई है और उस पर एक युवती सुहाग के जोड़े पहने सोलहों सिंगार किये बैठी हुई है। उसकी जाँघ पर उसके प्यारे पति का सर है। हजारों आदमी गोल बाँधे खड़े हैं और फूलों की बरखा कर रहे हैं। यकायक चिता में से खुद-ब-खुद एक लपट उठी। सती का चेहरा उस वक्त एक पवित्र भाव से आलोकित हो रहा था। चिता की पवित्र लपटें उसके गले से लिपट गयीं और दम-के-दम में वह फूल-सा शरीर राख का ढेर हो गया। प्रेमिका ने अपने को प्रेमी पर न्योछावर कर दिया और दो प्रेमियों के सच्चे, पवित्र, अमर प्रेम की अन्तिम लीला आँख से ओझल हो गयी। जब सब लोग अपने घरों को लौटे तो दिलफ़िगार चुपके से उठा और अपने चाक- दामन कुरते में यह राख का ढेर समेट लिया और इस मुट्ठी भर राख को दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ समझता हुआ, सफलता के नशे में चूर, यार के कूचे की तरफ चला। अबकी ज्यों-ज्यों वह अपनी मंजिल के करीब आता था, उसकी हिम्मतें बढ़ती जाती थीं। कोई उसके दिल में बैठा हुआ कह रहा था-अबकी तेरी जीत है और इस खयाल ने उसके दिल को जो-जो सपने दिखाए उनकी चर्चा व्यर्थ है। आखिकार वह शहर मीनोसवाद में दाखिल हुआ और दिलफरेब की ऊँची ड्योढ़ी पर जाकर खबर दी कि दिलफ़िगार सुर्ख-रु होकर लौटा है और हुजूर के सामने आना चाहता है। दिलफ़रेब ने जाँबाज़ आशिक को फ़ौरन दरबार में बुलाया और उस चीज के लिए, जो दुनिया की सबसे बेशकीमत चीज़ थी, हाथ फैला दिया। दिलफ़िगार ने हिम्मत करके उसकी चाँदी जैसी कलाई को चूम लिया और मुट्ठी भर राख को उसकी हथेली में रखकर सारी कैफियत दिल को पिघला देने वाले लफ़्ज़ों में कह सुनायी और सुन्दर प्रेमिका के होठों से अपनी किस्मत का मुबारक फैसला सुनने के लिए इन्तज़ार करने लगा। दिलफ़रेब ने उस मुठ्ठी भर राख को आँखों से लगा लिया और कुछ देर तक विचारों के सागर में डूबे रहने के बाद बोली-ऐ जान निछावर करने वाले आशिक दिलफ़िगार। बेशक यह राख जो तू लाया है, जिसमें लोहे को सोना कर देने की सिफ़त है, दुनिया की बहुत बेशकीमत चीज़ है और मैं सच्चे दिल से तेरी एहसानमन्द हूँ कि तूने ऐसी अनमोल भेंट मुझे दी। मगर दुनिया में इससे भी ज्यादा अनमोल कोई चीज़ है, जा उसे तलाश कर और तब मेरे पास आ। मैं तहेदिल से दुआ करती हूँ कि खुदा तुझे कामयाब करे। यह कहकर वह सुनहरे परदे से बाहर आयी और माशूक़ाना अदा से अपने रूप का जलवा दिखाकर फिर नजरों से ओझल हो गयी। एक बिजली थी कि कौंधी और फिर बादलों के परदे में छिप गयी। अभी दिलफ़िगार के होश-हवास ठिकाने पर न आने पाये थे कि चोबदार ने मुलायमियत से उसका हाथ पकड़कर यार के कूचे से उसको निकाल दिया और फिर तीसरी बार वह प्रेम का पुजारी निराशा के अथाह समुन्दर में गोता खाने लगा।
दिलफ़िगार का हियाव छूट गया। उसे यकीन हो गया कि मैं दुनिया में इसी तरह नाशाद और नामुराद मर जाने के लिए पैदा किया गया था और अब इसके सिवा और कोई चारा नहीं कि किसी पहाड़ पर चढ़कर नीचे कूद पड़ें, ताकि माशूक के जुल्मों की फ़रियाद करने के लिए एक हड्डी भी बाकी न रहे। वह दीवाने की तरह उठा और गिरता- पड़ता एक गगनचुम्बी पहाड़ की चोटी पर जा पहुँचा। किसी और समय वह ऐसे ऊँचे पहाड़ पर चढ़ने का साहस न कर सकता था मगर इस वक़्त जान देने के जोश में उसे वह पहाड एक मामूली टेकरी से ज्यादा ऊँचा न नजर आया। क़रीब था कि वह नीचे कूद पड़े कि हरे-हरे कपड़े पहने हुए और हरा अमामा बाँधे एक बुजुर्ग एक हाथ में तसबीह और दूसरे हाथ में लाठी लिये बरामद हुए और हिम्मत बढ़ाने वाले स्वर में बोले-दिलफ़िगार, नादान दिलफिगार, यह क्या बुज़दिलों जैसी हरकत है। तू मुहब्बत का दावा करता है और तुझे इतनी भी खबर नहीं किमजबूत इरादा मुहब्बत के रास्ते की पहली मंज़िल है? मर्द बन और यों हिम्मत न हार। पूरब की तरफ एक देश है जिसका नाम हिन्दोस्तान है, वहाँ जा और तेरी आरजू पूरी होगी। यह कहकर हजरते खिज गायब हो गये। दिलफ़िगार ने शुक्रिये की नमाज अदा की और ताज़ा हौसले, ताज़ा जोश और अलौकिक सहायता का सहारा पाकर खुश-खुश पहाड़ से उतरा और हिन्दोस्तान की तरफ चल पड़ा।
मुद्दतों तक कॉटों से भरे हुए जंगलों, आग बरसाने वाले रेगिस्तानों, कठिन घाटियों और अलंध्य पर्वतों को तय करने के बाद दिलफ़िगार हिन्द की पाक सरज़मीन में दाखिल हुआ और एक ठण्डे पानी के सोते में सफ़र की तकलीफें धोकर थकान के मारे नदी के किनारे लेट गया। शाम होते-होते वह एक चटियल मैदान में पहुँचा जहाँ बेशुमार अधमरी और बेजान लाशें बिना कफ़न के पड़ी हुई थीं। चील-कौए और वहशी दरिन्दे मरे पड़े हुए थे और सारा मैदान खून से लाल हो रहा था। यह डरावना दृश्य देखते ही दिलफ़िगार का जी दहल गया। या खुदा, किस मुसीबत में जान फैसी, मरने वालों का कराहना, सिसकना और एडियों रगडकर जान देना, दरिन्दों का हड्डियों को नोचना और गोश्त के लोथड़ों को लेकर भागना, ऐसा हौलनाक सीन दिलफिगार ने कभी न देखा था। यकायक उसे ख्याल आया, यह लड़ाई का मैदान है और यह लाशें सूरमा सिपाहियों की हैं। इतने में करीब से कराहने की आवाज़ आयी। दिलफ़िगार उस तरफ फिरा तो देखा कि एक लम्बा-तड़ंगा आदमी, जिसका मर्दाना चेहरा जान निकालने की कमज़ोरी से पीला हो गया है, ज़मीन पर सर झुकाये पड़ा हुआ है। सीने से खून का फौव्वारा जारी है, मगर आबदार तलवार की मूठ पंजे से अलग नहीं हुई। दिलफिगार ने एक चीथड़ा लेकर घाव के मुँह पर रख दिया ताकि खून रुक जाए और बोला-ऐ जवाँमर्द, तू कौन है? जवाँमर्द ने यह सुनकर आँखें खोली और वीरों की तरह बोला-क्या तू नहीं जानता मैं कौन हूँ, क्या तूने आज इस तलवार की काट नहीं देखी? मैं अपनी माँ का बेटा और भारत का सपूत हूँ। यह कहते-कहते उसकी त्योरियों पर बल पड़ गये। पीला चेहरा गुस्से से लाल हो गया और आबदार शमशीर फिर अपना जौहर दिखाने के लिए चमक उठी। दिलफ़िगार समझ गया कि यह इस वक्त मुझे दुश्मन समझ रहा है,
नरमी से बोला-ऐ जवाँमर्द, मैं तेरा दुश्मन नहीं हूँ। अपने वतन से निकला हुआ एक गरीब मुसाफिर हूँ। इधर भूलता- भटकता आ निकला। बराय मेहरबानी मुझसे यहाँ की कुल कैफियत बयान कर।
यह सुनते ही घायल सिपाही बहुत मीठे स्वर में बोला-अगर तू मुसाफ़िर है तो आ मेरे खून से तर पहलू में बैठ जा क्योंकि यही दो अंगुल जमीन है जो मेरे पास बाकी रह गयी है और जो सिवाय मौत के कोई नहीं छीन सकता। अफ़सोस है कि तू यहाँ ऐसे वक़्त में आया जब हम तेरा आतिथ्य सत्कार करने के योग्य नहीं। हमारे बाप-दादा का देश आज हमारे हाथ से निकल गया और इस वक्त हम बेवतन हैं। मगर (पहलू बदलकर) हमने हमलावर दुश्मन को बता दिया कि राजपूत अपने देश के लिए कैसी बहादुरी से जान देता है। यह आस-पास जो लाशें तू देख रहा है, यह उन लोगों की है, जो इस तलवार के घाट उतरे हैं। (मुस्कराकर) और गोया कि मैं बेवतन हूँ, मगर गनीमत है कि दुश्मन की जमीन पर मर रहा हूँ। (सीने के घाव से चीथड़ा निकालकर) क्या तूने यह मरहम रख दिया? खून निकलने दे, इसे रोकने से क्या फायदा? क्या मैं अपने ही देश में गुलामी करने के लिए ज़िन्दा रहूँ? नहीं, ऐसीज़िन्दगी से मर जाना अच्छा। इससे अच्छी मौत मुमकिन नहीं।
जवाँमदै की आवाज़ मद्धिम हो गयी, अंग ढीले पड़ गये, खून इतना ज्यादा बहा कि खुद-ब-खुद बन्द हो गया, रह-रहकर एकाध बूँद टपक पड़ता था। आखिरकार सारा शरीर बेदम हो गया, दिल की हरकत बन्द हो गयी और आँखें मुँद गयीं। दिलफ़िगार ने समझा अब काम तमाम हो गया कि मरने वाले ने धीमे से कहा-भारतमाता की जय! और उसके सीने से खून का आखिरी क़तरा निकल पड़ा। एक सच्चे देशप्रेमी और देशभक्त ने देशभक्ति का हक़ अदा कर दिया। दिलफ़िगार पर इस दृश्य का बहुत गहरा असर पड़ा और उसके दिल ने कहा, बेशक दुनिया में खून के इस क़तरे से ज़्यादा अनमोल चीज कोई नहीं हो सकती। उसने फ़ौरन उस खून की बूँद को जिसके आगे यमन का लाल भी हेच है, हाथ में ले लिया और इस दिलेर राजपूत की बहादुरी पर हैरत करता हुआ अपने वतन की तरफ रवाना हुआ और सख्तियाँ झेलता आखिरकार बहुत दिनों के बाद रूप की रानी मलका दिलफ़रेब की ड्योढ़ी पर जा पहुँचा और पैग़ाम दिया कि दिलफ़िगार सुर्खरू और कामयाब होकर लौटा है और दरबार में हाज़िर होना चाहता है।दिलफ़रेब ने उसे फौरन हाज़िर होने का हुक्म दिया। खुद हस्बे मामूल सुनहरे परदे की ओट में बैठी और बोली- दिलफ़िगार, अबकी तू बहुत दिनों के बाद वापस आया है। ला, दुनिया की सबसे बेशक़ीमत चीज कहाँ है?
दिलफ़िगार ने मेंहदी-रची हथेलियों को चूमते हुए खून का वह कतरा उस पर रख दिया और उसकी पूरी कैफियत पुरजोश लहजे में कह सुनायी। वह खामोश भी न होने पाया था कि यकायक वह सुनहरा परदा हट गया और दिलफ़िगार के सामने हुस्न का एक दरबार सजा हुआ नज़र आया जिसकी एक-एक नाजनीन जुलेखा से बढकर थी। दिलफ़रेब बड़ी शान के साथ सुनहरी मसनद पर सुशोभित हो रही थी। दिलफ़िगार हुस्न का यह तिलस्म देखकर अचम्भे में पड़ गया और चित्रलिखित-सा खड़ा रहा कि दिलफ़रेब मसनद से उठी और कई क़दम आगे बढ़कर उससे लिपट गयी। गानेवालियों ने खुशी के गाने शुरू किये, दरबारियों ने दिलफिगार को नज़रें भेंट की और चाँद-सूरज को बड़ी इज्जत के साथ मसनद पर बैठा दिया। जब वह लुभावना गीत बन्द हुआ तो दिलफरेब खड़ी हो गयी और हाथ जोडकर दिलफ़िगार से बोली-ऐ जॉनिसार आशिक़ दिलफ़िगार! मेरी दुआएँ बर आयीं और खुदा ने मेरी सुन सुन ली और तुझे कामयाब व सुर्खरू किया। आज से तू मेरा मालिक है और मैं तेरी लॉडी!
यह कहकर उसने एक रत्नजटित मंजूषा मँगायी और उसमें से एक तख्ती निकाली जिस पर सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ था-
'खून का वह आखिरी क़तरा जो वतन की हिफाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ है।'
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