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आदिकाल : महत्त्वपूर्ण पंक्तियाँ || हिन्दी साहित्य का इतिहास || हिन्दी साहित्य

आदिकाल : महत्त्वपूर्ण  पंक्तियाँ || हिन्दी साहित्य का इतिहास ||  हिन्दी साहित्य 

                           आदिकाल : महत्त्वपूर्ण काव्य पंक्तियाँ

* जो जिण सासण भाषियउ सो भइ कहियड सारु।

जो पालइ सइ भाउ करि सो सरि पावड पारु॥ - देवसेन - श्रावकाचार

प्रिय पाठकों,........इस पोस्ट में हमने आदिकाल की महत्वपूर्ण पंक्तियों को क्रमवार से समाहित किया  है। यदि आपको हमारे द्वारा किया गया यह प्रयास अच्छा लगा है, तो इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ अवश्य साझा करें। आप अपने सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज कर सकते है। जिससे हम हिंदी साहित्य के आगामी ब्लॉग को और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें।

 



* पंडिअ सअल सत्त बक्खाणइ।

  देहहि रुद्ध बसंत न जाणइ।

  अमणागमण ण तेन विखंडिअ। 

  तो वि णिलज्जइ भणइ हउँ पंडिय॥" - सरहपा


* जहि मन पवन न संचरइ

  , रवि ससि नाहि पवेश।

  तहि वत चित्त विसाम करु

  , सरेहे कहिअ उवेश ॥" - सरहपा


* घोर अधारे चंदमणि 

  जिमि उज्जोअ करेड।

  परम महासुह एषु 

  कणे दुरिअ अशेष हरेइ ॥" - सरहपा

काआ तरुवर पंच विडाल" - लूइपा


* भाव न होइ, अभाव ण जाइ" - लूइपा


सहजे थर करि वारुणी साध" - विरुपा


एक्क ण किज्जइ मंत्र ण तंत - कण्हपा


हालो डोंबी' तो पुछमि सदभावे

सदगुरु पाअ पए जाइब पुणु जिणउरा" - कण्हपा


"भल्ला हुआ जो मारिया" - हेमचन्द्र


"पिय संगमि कउ निद्दडी" - हेमचन्द्र


* "गंगा जउँना माझे बहइ रे नाई" - डोम्भिपा


*"नगर वाहिरे डोंबी तोहरि कुडिया छई -- कण्हपा


*  " 'छोइ जाइ सो बाह्य नाड़िया ॥" - कण्हपा


*  "जिमि लोण बिलिज्जइ पाणि 

   एहि तिमि धरणी लइ चित्त" – कण्हपा


* "देसिल बयना सब जन मिट्ठा।

  ते तैसन जंपओ अवहट्ठा॥"- विद्यापति


*  "हिन्दू बोले दूरहि निकार।

  छोटे तरुका भभकी मार ॥ - विद्यापति (कीर्तिलता से)


* "मनहु कला ससभान 

  कला सोलह सो बन्निय" "

  विगसि कमलस्त्रिग भ्रमर

  बेनू, खंजन मृग लुट्टिय" - पृथ्वीराज रासो


* "बज्जिय घोर निसान 

  रान चौहान चहाँ दिस।"- पृथ्वीराज रासो


उट्टि राज प्रिथिराज बाग 

  मनो लग्ग वीर नट" - पृथ्वीराज रासो 


12. "बारह बरिस लै कूकर जीऐं

   औ तेरह लौ जिऐं सियार।

   बरिस अठारह छत्री जीऐं,

   आगे जीवन को धिक्कार॥"- जगनिक


 * "एक थाल मोती से भरा"

    एक नार ने अचरज किया" - अमीर खुसरो


 *  "गोरी सोवै सेज पर

  मुख पर डारै केस" - अमीर खुसरो


 * "मेरा जोबना नवेलरा 

  भयो है गुलाल" - अमीर खुसरो


 * "जे हाल मिसकी मकुन तगाफुल 

   दुराय नैना बनाय बतियाँ"- अमीर खुसरो


 * "सरस वसंत समय भल पावलि" 

    - विद्यापति (पदावली से)


 *  "कालि कहल पिय साँझहिरे

   जाइब मइ मारू देस"- विद्यापति (पदावली से)


                          (क)  विद्यापति (कीर्तिलता से)


 1. "देसिल बअना सब जन मिट्ठा।

   तें तैं सन जंपओ अवहट्ठा ॥"

 

2. "रज्ज लुद्ध असलान बुद्धि

  बिक्कम बले हारल।

  पास बइसि बिसवासि 

  राय गयनेसर मारल ॥"


 3. "मारंत राय रणरोल पडु,

   मेइनि हा हा सद्द हुअ ।

   सुरराय नयर नरअर-रमणि

   बाम नयन पप्फुरिअ धुअ ॥"


 4. "कतहुँ तुरुक बरकर। 

   बार जाए ते बेगार धरु ॥


5. धरि आनय बाभन बरुआ। 

  मथा चढाव इ गाय का चरुआ ॥

  हिन्दू बोले दूरहि निकार। 

  छोटउ तुरुका भभकी मार ॥"


 6. "जइ सुरसा होसइ मम भाषा।

  जो जो बुन्झिहिसो करिहि पसंसा ॥"


 7. "जाति अजाति विवाह 

   अधम उत्तम का पारक।"


 8. "पुरुष कहाणी हौं कहाँ

   जसु पंत्थावै पुन्नु।"


 9. "बालचंद विज्जावहू भाषा।

   दुहु नहि लग्गइ दुज्जन हासा ॥

 

               (ख) पदावली से

 - 

1. "खने खने नयन कोन अनुसरई। 

  खने खने वसत धूलि तनु भरई ॥"

 

2. "सुधामुख के विहि निरमल बाला

  अपरूप रूप मनोभव-मंगल

   त्रिभुवन विजयी माला ॥"

 

3. "सरस बसंत समय भला पावलि 

   दछिन पवन वह धीरे,

   सपनहु रूप बचन इक भाषिय

    मुख से दूरि करु चीरे ॥"

 

नोट - हिन्दी में विद्यापति को कृष्णगीति परम्परा का प्रवर्तक माना जाता है।


                             अमीर खुसरो (1253-1325 ई०)

(1)च मन तूतिए-हिन्दुम, अर रास्त पुर्सी। 

  जे मन हिन्दुई पुर्स, ता नाज गोयम ॥

अर्थात् "मैं हिन्दुस्तान की तूती हूँ, अगर तुम वास्तव में मुझसे कुछ पूछना चाहते हो तो हिन्दवी में पूछो जिसमें कि मैं कुछ अद्भुत बातें बता सकूँ।"

 

पहेलियाँ-

 (1) "एक थाल मोती से भरा । 

   सबके सिर पर आँधा धरा ॥

  चारों ओर वह थाली फिरे। 

  मोती उससे एक न गिरे ॥" - आकाश

2) "एक नार ने अचरज किया। 

  साँप मारि पिंजड़े में दिया ॥

  जों जों सांप ताल को खाए। 

  सूखे ताल साँप मर जाए ॥"- दिया बत्ती


(3) "एक नार दो को ले बैठी। 

  टेढी होके बिल में पैठी ॥

  जिसके बैठे उसे सुहाय । 

  खुसरो उसके बल बल जाय ॥"- पायजामा

 

(4) "अरथ ते इसका बूझेगा। 

   मुँह देखो तो सूझेगा ॥"- दर्पण

 

               ब्रजभाषा रूप


 (1) "चूक भई कुछ बासों ऐसी ।

    देस छोड़ भयो परदेसी ॥"

 

(2) "एक नार पिया को भानी।

   तन वाको सरगा ज्यों पानी ॥"

 

(3) "चाम मास वाके नहिं नेक। 

   हाड़ हाड़ में वाके छेद ॥

   मोहि अचंभों आवत ऐसे। 

   वामें जीव बसत है कैसे ॥"

दोहे और गीत ब्रजभाषा में -

(1) "उज्जल बरन, अधीन तन

   एक चित्त दो ध्यान।

   देखत में तो साधु है

   निपट पाप की खान।"

                   

"खुसरो रैन सुहाग की 

 जागी पी के संग।

 तन मेरो मन पीउ को

 दोउ भए एक रंग।"


"गोरी सोवै सेज पर

 मुख पर डारै केस

 चल खुसरो घर आपने,

 रैन भई चहु देस।"

 

(2) "मोरा जोबना नवेलरा

    भयो है गुलाल। कैसे गर 

    दीनी कस मोरी माल ॥ 

    सूनी सेज डरावन लागै

  विरहा अगिन मोहि डस डस जाय।"


 (3) "जे हाल मिसकी मकुन तगाफुल

    दुराय नैना, बनाय बतियाँ।

   किताबे हिज्राँ न दारम, ऐ जाँ। 

   न लेहु काहे लगाय छतियाँ ॥"


            महत्वपूर्ण पंक्तियाँ

                  गोरखनाथ के छंद 

 

① "नौ लख पातरि आगे नाचैं

   पीछे सहज अखाड़ा।

   ऐसे मन लौ जोगी खेलै

  तब अंतरि बसै भंडारा ॥"

 

② "अंजन मांहि निरंजन भेढ्या,

   तिल मुख भेट्या तेलं।

   मूरति मांहि अमूरति 

   परस्या भया निरंतरि खेलें ॥"

 

③ "नाथ बोलै अमृतवाणी। 

   बरिषैगी कवली पांणी ॥

  गाड़ि पडरवा वांधिलै खूँटा। 

  चलै दमामा वजिले ऊँटा ॥"

 

④ "गुर कीजै महिला निगुरा

   न रहिला, गुरु बिन 

  ग्यानं न पायला रे भाईला।"

 

5) "अवधू रहिया हाटे वाटे 

   रूष विरष की छाया।

   तजिबा काम क्रोध लोभ

   मोह संसार की माया ॥"

 

6) "स्वामी तुम्हई गुरु गोसाई। 

  अम्हे जो सिव सबद एक बूझिवा ॥

  निरारंबे चेला कूण विधि रहै।

 सतगुरु होइ स पुछया कहै ॥"

 

⑦ "अभि-अन्तर की त्यागै माया" 

(8) "दुबध्या मेटि सहज में रहें"

 (9)"जोइ-जोइ पिण्डे सोई-ब्रह्माण्डै"

 (10) "अवधू मन चंगा तो कठौती में गंगा"

 

              कुक्कुरिपा के छंद 
 

(1) "हाउनिवासी खमण भतारे

   मोहारे बिगोआकहण न जाइ।"


 (2) "ससुरी निंद गेल, बहुड़ी जागअ"

 

          पृथ्वीराज रासो से

 

(1) "राजनीति पाइयै।

   ग्यान पाइयै सु जानिय ॥

  उकति जुगति पाइयै। 

  अरथ घटि बढ़ि उनमानिया ॥"

 

(2) "उक्ति धर्म विशालस्य।

   राजनीति नवरसं ॥

  खट भाषा पुराणं च। 

  कुरानं कथितं मया ॥"

 

(3) "कुट्टिल केस सुदेस पोह

   परिचिटात पिक्क सद।

  कमलगंध बटासंध हंसगति

   चलित मंद मंद ॥"

 

(4) "रघुनाथ चरित हनुमंत कृत,

   भूप भोज उद्धरिय जिमि।

  पृथ्वीराज सुजस कवि चंद कृत,

   चंद नंद उद्धरिय तिमि ॥"

 

                                लौकिक साहित्य

 

सोरठियो दूहा भलो,

 भली मरवण री बात।

 जोबन छाई धण भली

  तारां छाई रात॥"  ढोला-मारू रा दूहा


* "इणि पर कोइलि कूजइ

  पूंजइ युवति मणोर।

  विधुर वियोगिनि धूजई,

   कूजइ मयण किसोर ॥" – वसन्त विलास

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